रविवार, 22 सितंबर 2024

 सिद्धू-कानू ने फूंका था अंग्रेजों के खिलाफ पहला बिगुल

‘करो या मरो, अंग्रेजो हमारी माटी छोडो!’         - राजेन्द्र

वैसे तो स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई 1857 में मानी जाती है मगर इसके पहले ही वर्तमान के झारखंड राज्य के संथाल परगना में ‘संथाल हूल’ या ‘संथाल विद्रोह’ के द्वारा अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। दो भाइयों सिद्धू-कानू के नेतृत्व में 30 जून 1855 को वर्तमान साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव से प्रारंभ हुए इस विद्रोह के मौके पर सिद्धू ने घोषणा की - ‘करो या मरो’, ‘अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो’।

 लेनिन के जन्मदिवस ( 22 अप्रैल) के अवसर पर

भारतीय युवाओं के नाम लेनिन का पत्र  (काल्पनिक)


भारत के युवाओ!

        मैं लेनिन आपसे चंद बातें करना चाहता हूं। सबसे पहले मेरा हार्दिक अभिनंदन स्वीकार कीजिए। मुझे हमेशा से युवाओं खासकर युवा मजदूरों से बातें करने में विशेष आनंद आता रहा है।

युवावस्था की बात कुछ और ही होती है। यह अवस्था मानव जीवन के सर्वोत्तम को अभिव्यक्त करती है। आप जानते ही हो मार्क्स और एंगेल्स ने अपने क्रांतिकारी विचारों को अपनी युवावस्था में ही सूत्रित किया था। मानव जाति के इतिहास से अनेकानेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जब महान वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, कलाकारों ने अपना सर्वोत्तम अपनी युवावस्था में ही दिया था।

हिंदुस्तान को लीडरों से बचाओ
                                                                                                                                                                               
                                                                              -सआदत हसन मंटो

हम एक अर्से से ये शोर सुन रहे हैं। हिन्दुस्तान को इस चीज़ से बचाओ। उस चीज़ से बचाओ, मगर वाक़िया ये है कि हिन्दुस्तान को उन लोगों से बचाना चाहिए जो इस क़िस्म का शोर पैदा कर रहे हैं। ये लोग शोर पैदा करने के फ़न में माहिर हैं। इसमें कोई शक नहीं, मगर उनके दिल इख़लास (अच्छी नीयत) से बिलकुल खाली हैं। रात को किसी जलसे में गर्मा-गर्म तक़रीर (भाषण) करने के बाद जब ये लोग अपने पुर-तकल्लुफ (सुकून से) बिस्तरों में सोते हैं तो उनके दिमाग़ बिल्कुल ख़ाली होते हैं। उनकी रातों का ख़फ़ीफ़-तरीन (थोड़ा सा) हिस्सा भी इस ख्याल में नहीं गुज़रा कि हिन्दुस्तान किस मर्ज़ में मुब्तला (विपत्ति में पड़ा हुआ) है। दरअसल वो अपने मर्ज़ के इलाज मुआलिजे (इलाज करने वाला) में इस क़दर मसरूफ़ रहते हैं कि उन्हें अपने वतन के मर्ज़ के बारे में ग़ौर करने का मौक़ा ही नहीं मिलता। 

शनिवार, 25 नवंबर 2023

 दमन फासीवाद की फितरत, संघर्ष है छात्रों-युवाओं की विरासत

हर गुजरते दिन के साथ केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा राजकीय दमन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय(ईडी), सीबीआई, एनआईए, आयकर विभाग, जैसी संस्थाएं विरोध की आवाजों को डराने-दबाने का जरिया बन गयी हैं। जिन पत्रकारों, वेब पोर्टल, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि को निशाना बनाया जा रहा है, वे मोदी सरकार से भिन्न रुख रखते रहे हैं या समाज के किसी शोषित-उत्पीड़ित हिस्से की आवाज उठाते रहे हैं। सरकारी दमन की शिकार संस्थाओं में द वायर, ऑल्ट न्यूज, बीबीसी आदि की फेहरिस्त में नया नाम न्यूज क्लिक का जुड़ गया है।

आसमान से टपका खजूर में लटका
                                                                                              -नीता
महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण बिल अभी तक अधर में लटका हुआ था। अब 19 सितंबर 2023 को इतने लम्बे समय बाद ये बिल पास हो गया है। इस बिल को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से जाना जाएगा। इस बिल की वैधता लागू होने के बाद 15 साल तक के लिए ही होगी। 15 साल बाद संसद इस पर पुनर्विचार करेगी। 

फिस्तिीनी मुक्ति संघर्ष

फिलिस्तीन को खून में डुबोता अत्याचारी इजरायल

                                                                                कंचन

7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया। इसके बाद इजरायल ने गाजा पर बर्बर हवाई हमले कर हजारों निर्दोष फिलिस्तीनियों की जानें ले ली। इन हमलों में मरने वालों की संख्या 10,000 को पार कर चुकी है, और यह लगातार बढ़ रही है। हमास के अचानक हमले से शुरू हुए इस युद्ध ने एक बार फिर इजरायल के फिलिस्तीन पर अवैध कब्जे के सवाल को विश्व राजनीति में पुनः जिन्दा कर दिया है।

 दुनियाभर में इजरायली शासकों के विरोध में प्रदर्शन

इजरायली शासकों द्वारा गाजा पर लगातार बमबारी जारी है। जिसमें अभी तक लगभग 10,000 लोग मारे गये हैं। गाजा अत्यधिक घना बसा आबादी क्षेत्र है। यहां मिसाइल हमलों का मतलब सीधे आम नागरिकों को निशाना बनाना है। इजरायली मिसाइल हमलों में अस्पताल और शरणार्थी शिविरों को भी निशाना बनाया जा रहा है। इजरायली शासकों के इन कुकर्मों के विरोध में दुनियाभर में जनता आक्रोशित है। इसमें प्रमुखता से इजरायली शासकों का विरोध, मानवीय सहायता दिये जाने, शांति तथा नागरिक हत्याओं पर रोक, गाजा से घेराबंदी हटाने आदि प्रमुख मांगें हैं। भारत, युनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी आदि देशों में जनता को इजरायली शासकों के कुकर्मों का विरोध करते हुए अपनी सरकारों के दमन का भी सामना करना पड़ रहा है।

 आगामी लोक सभा चुनाव और छात्र-नौजवान

पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। इन चुनावों को आगामी लोक सभा चुनावों के लिए सेमी फाइनल माना जा रहा है। इन विधान सभा चुनावों के नतीजे लोक सभा चुनावों को प्रभावित करेंगें, ऐसा समझा जा रहा है।

ये विधान सभा चुनाव और आगामी लोक सभा चुनाव ऐसे दौर में होने जा रहे हैं, जब हिन्दू बहुसंख्यकवाद पर आधारित फासीवादी ताकतें न सिर्फ मजदूर-मेहनतकश आबादी पर चौतरफा हमला जारी रखे हुए हैं, बल्कि इस हमले का दायरा शासक वर्ग की अन्य पार्टियो के नेताओं, मध्यम वर्ग के सचेत लोगों, पत्रकारों, मोदी सरकार के दमनकारी कदमों का विरोध करते वाले जनवादी अधिकारों की आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं और दलितों, महिलाओं, जन-जातियों और अल्पसंख्यकों विशेष तौर पर मुसलमानों तक बढ़ा दिया गया है।

योग: कल और आज  

                                                                                                                      - मोहन

योग क्या है? इस सवाल का जवाब एक तरफ एकदम सरल है और दूसरी तरफ इतना जटिल है कि आप जवाब को सुनने व समझने में अपने को असमर्थ पायेंगे। योग क्या है का सीधा, सरल व उपयोगी व्यवहारिक जवाब यह है कि यह एक शारीरिक व्यायाम शास्त्र है।

योग एक शारीरिक व्यायाम शास्त्र के रूप में ही अपना सच्चा अर्थ रखता है न कि किसी दार्शनिक सम्प्रदाय के रूप में। यद्यपि एक दार्शनिक सम्प्रदाय के रूप में इसे मान्यता मिलती रही है। खासकर जब भारत के सबसे प्राचीन दार्शनिक सम्प्रदायों की चर्चा होती रही है।भारत में योग को एक आस्तिक परन्तु निरीश्वरवादी दार्शनिक सम्प्रदाय के रूप में देखा जाता रहा है। यद्यपि आज ऐसा नहीं है। 

 काकोरी शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी

                                                                                                                    -महेन्द्र

‘‘मृत्यु क्या है? यह जीवन का ही दूसरा पहलू है। जीवन क्या है? यह भी मृत्यु के दूसरे पहलू के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। फिर व्यक्ति को मृत्यु से भयभीत क्यों होना चाहिए? मृत्यु उतनी ही अवश्यंभावी है, जितना सूर्योदय। यदि यह सत्य है कि इतिहास की पुनरावृत्ति होती है, तो मेरा विश्वास है कि हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जायेगी। सभी को मेरा अंतिम नमस्कार।’’

ये शब्द राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के फांसी पर चढ़ाये जाने से तीन दिन पूर्व अपने एक मित्र को लिखे पत्र से हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अमिट अध्याय काकोरी ट्रेन डकैती में मौत की सजा पाये चार लोगों में एक नाम राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का भी है। अशफाक उल्लां खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को काकोरी काण्ड की सजा देते हुए लुटेरे अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। अपने काम के अंजाम की पहले क्षण से ही खबर होने के बावजूद भी क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। टेªन की डकैती इसलिए कि आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए, हथियार खरीदने के लिए पैसे की जरूरत थी। 

 जीवन के प्रवाह में संरक्षण और परिवर्तन

                                                                                                                       -संजय

धरती पर जीवन को देखें तो उसमें समानता और भिन्नता दोनों एक साथ नजर आती है। एक कोण से देखने पर समानता दिखती है तो दूसरे कोण से देखने पर भिन्नता। सारे पेड़-पौधे दूर से हरे नजर आते हैं। पर नजदीक से देखने पर पाते हैं कि उनमें से कुछ पेड़ हैं और बाकी झाड़ियां या घास। और भी ज्यादा नजदीक से देखने पर पता चलता है कि इनकी जड़ों, तने, फूल और पत्तियों में भी भिन्नता है। यही बात जन्तुओं पर भी लागू होती है।

 क्रांतिकारी छात्र संगठनों का पहला कन्वेंशन  

देश के विभिन्न राज्यों से 12 छात्र-युवा संगठनों द्वारा आयोजित कन्वेंशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इससे पहले इन्हीं संगठनों द्वारा कुछ माह पूर्व ही त्मअवसनजपवदंतल ैजनकमदजे ल्वनजी ब्ंउचंपहद (त्ैल्ब्) का निर्माण किया गया। इस मंच के बैनर तले ही कन्वेंशन का आयोजन किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ 8 अक्टूबर को कन्वेंशन का आयोजन किया गया। कन्वेंशन में देशभर से आए छात्रों ने अपने-अपने राज्यों में छम्च् (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) 2020 द्वारा शिक्षा पर ढाए जा रहे कहर के बारे में बात रखी।

 आत्महत्या नहीं, यह संस्थानिक हत्या है       

                                                                                                         महेश                    

एनआईटी (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) सिलचर, असम में बीते 15 सितंबर की शाम को 20 वर्षीय छात्र कोज बुकर ने संस्थान के छात्रावास-7 के अपने कमरे में आत्महत्या कर ली। कोज बुकर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में तृतीय वर्ष के छात्र थे और अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले थे।

कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण एनआईटी सिलचर ने 2021 में पहले सेमेस्टर की पढ़ाई ऑनलाइन आयोजित की थी। लॉकडाउन में ग्रामीण इलाके से होने के कारण कोज बुकर को इंटरनेट की सुविधा कम मिली। वह कक्षाओं में उपस्थित भी नहीं हो सके। कम उपस्थिति के कारण अधिकारियों ने उन पर परीक्षा में 6 बैकलॉग लगा दिए। अभी कोज को तीसरे वर्ष के पांचवें सेमेस्टर की कक्षाओं में जाने के लिए पंजीकरण की अनुमति नहीं दी गई। कुछ दिन पहले कॉलेज के डीन ने अन्य छात्रों के सामने कोज बुकर का काफी अपमान किया था।