आत्महत्या नहीं, यह संस्थानिक हत्या है
महेश
एनआईटी (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) सिलचर, असम में बीते 15 सितंबर की शाम को 20 वर्षीय छात्र कोज बुकर ने संस्थान के छात्रावास-7 के अपने कमरे में आत्महत्या कर ली। कोज बुकर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में तृतीय वर्ष के छात्र थे और अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले थे।
छात्रों ने अधिकारियों से एक विशेष परीक्षा आयोजित करने कि अपील की ताकि कोज बैकलॉग को साफ कर सके। इसके लिए वह प्रतिदिन प्रशासन के पास जाता था। ताकि कोरोना काल में इंटरनेट की खराब सेवा के कारण रुकी हुई पढ़ाई की भरपाई की जा सके। प्रशासन छात्रों व कोज की अपील को नजरअंदाज करता रहा। 15 सितंबर को प्रशासनिक डीन प्रोफेसर बी.के.राय ने स्पेशल परीक्षा करने वाले आवेदन फार्म को सबके सामने फाड़ दिया और फोन पर उनके पिता का काफी अपमान किया। इस सब परेशानी और अमानवीय बर्ताव को कोज बुकर झेल नहीं पाया। मानसिक दबाव में आकर उसने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
कोज की आत्महत्या के बाद छात्र वहाँ जुटने लगे। छात्रों ने उसके मृत शरीर के साथ कॉलेज प्रशासन के आने का वहीं पर इंतजार किया। परंतु डीन, संस्थान के निदेशक व कॉलेज प्रशासन से कोई भी वहां पर नहीं आया। इसके बाद छात्र आक्रोशित हो गए। उन्होंने कोज की मौत का जिम्मेदार डीन को मानते हुये रात में ही कोज के मृत शरीर के साथ डीन के घर तक मार्च निकाला और डीन के इस्तीफे की मांग की। प्रशासन ने छात्रों की मांग सुनने के बजाय कछार जिले की पुलिस को बुलाया जिसने छात्र-छात्राओं पर लाठी चार्ज किया। करीब 40 छात्र-छात्राओं को चोट, गंभीर चोटें लगी। जिनका सिलचर मेडिकल कॉलेज हास्पिटल में इलाज कराया गया।
पुलिस का कहना है ‘छात्रों ने डीन के सरकारी घर और सरकारी गाड़ियों में तोड़फोड़ की है। छात्रों ने पुलिस कर्मियों पर भी हमला किया है।’ छात्रों का कहना है कि ‘पुलिस ने उनके शांतिपूर्ण मार्च में लाठी चार्ज किया। जिसके बाद कुछ स्थिति हिंसक हुई।’ काफी देर से प्रतिक्रिया देते हुए एनआईटी सिलचर के निदेशक प्रोफेसर दिलीप कुमार वैद्य ने कोज को अपनी मौत के लिए खुद जिम्मेदार ठहराते हुए कहा ‘यह घटना छोटा-मोटा थी। स्थानीय अखबारों में कोज को बदनाम करने के लिए उसको ड्रग की लत का दोषी ठहरा दिया। मीडिया में कहा गया यह कोई बड़ी बात नहीं है।’
संस्थान की वजह से एक छात्र की मौत ने छात्रों को काफी आक्रोशित किया। 16 सितंबर को छात्रों ने न्याय की मांग करते हुए कैंडल मार्च निकाला। छात्रों ने बताया ‘डीन बिनॉय कृष्ण राय ने इससे पहले भी कई छात्रों को प्रताड़ित किया है। डीन के खिलाफ कार्यवाही के बजाय कॉलेज प्रबंधन ने मृतक छात्र के खिलाफ दुष्प्रचार किया।’ छात्रों ने 5 मांग रखते हुये कहाँ ‘डीन ऑफ एकेडमी बी.के.राय का इस्तीफा, मृतक छात्र के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने को लेकर कॉलेज प्रबंधन माफी मांगे, छात्र की मौत मामले में कॉलेज प्रबंधन की तरफ से एफआईआर दर्ज कराई जाए, प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई ना करने का लिखित आश्वासन और शैक्षणिक सुधार के साथ पढ़ाई का बोझ कम करने के लिए हाई लेवल कमेटी का गठन’ किया जाए। 18 सितंबर से लगभग 2000 से अधिक छात्रों ने जिमखाना छात्र संघ निकाय के बैनर तले डीन के घर के पास अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी।
भूख हड़ताल के पांचवें दिन संस्थान के निदेशक के साथ दो दौर की वार्ता के बाद आंदोलन समाप्त कर दिया। वार्ता में डीन को 2 दिन के भीतर हटाना था। किसी भी आंदोलनकारी छात्र के ऊपर कुछ भी कार्यवाही नहीं की जाएगी और कोज बुकर के लिए परिसर में शोक सभा आयोजित की जाएगी। छात्रों के संघर्ष के बाद इन मांगों पर सहमति बनी।
देशभर में छात्रों की बढ़ती आत्महत्या चिंता का कारण है। केंद्र सरकार ने मार्च 2023 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया एनआईटी में 2018-2023 की शिक्षण अवधि के दौरान 24 छात्रों ने आत्महत्या की है। शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के कारण भी छात्रों को आत्महत्या करनी पड़ी हैं। दिसंबर 2021 में सरकार ने लोकसभा में बताया था केंद्र सरकार के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकित 2014 से 2021 के बीच एनआईटी के 30 छात्रों ने आत्महत्या की है। देश के चोटी के शिक्षण संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या का यह आंकड़ा कोई नया और नई बात नहीं है।
छात्रों की आत्महत्या का यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (एडीएसआई) की रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में कोविड महामारी के दौरान छात्रों की आत्महत्या के मामलों में भारी वृद्धि हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार 2020 में 12,526 छात्रों की मृत्यु हुई थी। 2021 में यह 4.5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ प्रतिदिन औसतन 35 से अधिक छात्रों की मृत्यु और पूरे वर्ष में 13,000 से अधिक मौतें हुई थी। जिसमें 10,732 आत्महत्या में से 864 का कारण ‘परीक्षा में विफलता’ थी। 2017 में 9905 छात्रों ने आत्महत्या की थी। इन चार वर्ष के दौरान 33 प्रतिशत के आसपास की भारी बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़े देश के कुछ नामी-गिरामी शिक्षण संस्थानों के हैं। बहुसंख्यक शिक्षण संस्थानों, देश के देहातों, कोनों-अंतरों में तो छात्रों की मौत के ठीक से मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं।
होनहार छात्र कोज बुकर को एनआईटी कॉलेज प्रशासन के छात्र विरोधी अड़ियल रुख, तानाशाही पूर्ण रवैये के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है। कॉलेज प्रशासन, निदेशक, डीन, संस्थान सभी ने अपने पद के अहंकार में आकर एक छात्र की संस्थानिक हत्या कर दी। इतने लोगों के जिम्मेदार होने के बावजूद छात्र की मौत को ‘प्राकृतिक मौत’ के मामले के तौर पर दर्ज किया गया है। जिसका दोषी कोई नहीं है। कोरोना काल में सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई के बड़े-बड़े दावे किए थे। तब भी इन दावों पर ढेरों सवाल खड़े थे और आज भी इस तरह अलग-अलग रूपों में ऑनलाइन पढ़ाई के परिणाम सामने आ रहे हैं। कोज व तमाम छात्रों की इन मौतों के खिलाफ छात्र समुदाय को संगठित होना होगा। समाज के बाकी हिस्सों के साथ उनकी समस्याओं पर खड़े होना होगा, उनको अपनी समस्याओं पर अपने साथ खड़ा कर मजबूत संघर्षों के जरिए छात्र हित और अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा।
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