लेनिन के जन्मदिवस ( 22 अप्रैल) के अवसर पर
भारतीय युवाओं के नाम लेनिन का पत्र (काल्पनिक)
भारत के युवाओ!
मैं लेनिन आपसे चंद बातें करना चाहता हूं। सबसे पहले मेरा हार्दिक अभिनंदन स्वीकार कीजिए। मुझे हमेशा से युवाओं खासकर युवा मजदूरों से बातें करने में विशेष आनंद आता रहा है।
युवावस्था की बात कुछ और ही होती है। यह अवस्था मानव जीवन के सर्वोत्तम को अभिव्यक्त करती है। आप जानते ही हो मार्क्स और एंगेल्स ने अपने क्रांतिकारी विचारों को अपनी युवावस्था में ही सूत्रित किया था। मानव जाति के इतिहास से अनेकानेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जब महान वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, कलाकारों ने अपना सर्वोत्तम अपनी युवावस्था में ही दिया था।
युवा स्वभावतः ही विद्रोही होते हैं। और यदि उन्होंने अपने विचारों को वैज्ञानिक जामा पहना दिया तो वह अपने विद्रोही स्वभाव और वैज्ञानिक विचारों के कारण स्वर्ग को धरती पर उतार कर ला सकते हैं। और यदि वे विज्ञान का दामन ना पकड़ें तो यह खतरा हमेशा बना रहता है कि उनके विचार उन्हें अराजकता, आतंक की राह में धकेल सकते हैं और इससे भी ज्यादा वे आत्मघात तक भी जा सकते हैं। इसलिए मैं हमेशा युवाओं से कहता हूं कि क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हो सकता है। यानी यदि आप स्थापित समाज व्यवस्था से उसके पुराने पड़ चुके मूल्यों-मान्यताओं से, रूढ़िवादी सामाजिक संस्थाओं से विद्रोह करना चाहते हो तो आपको क्रांतिकारी सिद्धांत से अपने को लैस करना होगा। और यह ध्यान रहे क्रांतिकारी सिद्धांत सिर्फ पढ़ लेने या रट लेने से हासिल नहीं हो सकते बल्कि शोषक समाज के खिलाफ मजदूर और मेहनतकशों के अविराम संघर्ष के साथ सूत्रबद्ध और ऐक्यबद्ध होकर ही क्रांतिकारी सिद्धांतों का मर्म समझ में आ सकता है। और इसी प्रक्रिया में उन्हें लागू कर दुनिया को बदला जा सकता है।
क्रांतिकारी सिद्धांत क्या है? असल में हर सिद्धांत किसी न किसी वर्ग की सेवा करता है (ध्यान रहे यहां हम विज्ञान के बारे में बात नहीं कर रहे हैं)। इसी रूप में क्रांतिकारी सिद्धांत समाज के मजदूर-मेहनतकशों, शोषित-उत्पीड़ित के हितों और आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करता है। उनकी सेवा करता है। और यदि कोई सिद्धांत इस कसौटी में खरा नहीं उतरेगा तो वह क्रांतिकारी सिद्धांत का दर्जा खो बैठेगा। और साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि मजदूर-मेहनतकश जनता के हित युग विशेष में प्रमुख रूप से क्या हैं। असल में सिद्धांत के आगे लिखा शब्द क्रांतिकारी ही उसको निर्देशित करता है। युग विशेष में मानव जाति के सामने मुक्ति से संबंधित विशिष्ट कार्यभार आ खड़े होते हैं। वे युग की सीमा को बताते हुए मानव जाति की मुक्ति के सवाल को ठोस रूप में रेखांकित कर रहे होते हैं। मजदूर-मेहनतकश वर्ग मुक्ति की समस्या को प्राथमिकता के क्रम में रख रहे होते हैं। साम्राज्यवाद के चंगुल में छटपटाते देश के लिए राष्ट्रीय मुक्ति का कार्यभार प्रमुख हो सकता है यद्यपि यह संघर्ष समाजवाद और साम्यवाद से ही निर्देशित होगा। और राष्ट्रीय मुक्ति का कार्य मजदूर वर्ग इस ढंग से संपादित करेगा कि वह तुरंत ही साम्राज्यवाद से मुक्ति के बाद समाजवाद की राह में बढ़ सके।
क्रांतिकारी सिद्धांत का समाज में जन्म एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया में होता है और कदाचित उसमें मानव जाति का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से योगदान होता है। मतलब यह कि क्रांतिकारी सिद्धांत किसी एक व्यक्ति के प्रयास या मेधा का चमत्कार जैसा कुछ नहीं होता है। व्यक्ति विशेष की भूमिका अवश्य होती है परंतु वह अपनी भूमिका निभा सके इसकी पृष्ठभूमि मौजूद होती है और पूर्व पीठिका पहले से तैयार हो जाती है। क्रांतिकारी सिद्धांत को जिन दार्शनिक, वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, आदि समस्याओं को हल करना होता है वे क्रांतिकारी सिद्धांत के निरूपण से पहले मानव जाति के समक्ष मुखर रूप से आ चुकी होती हैं। यानी समस्या आ चुकी होती है; समाधान का आना बाकी होता है। रंगमंच सज चुका होता है। अब सिद्धांत का क्रांतिकारी ऐतिहासिक नृत्य बाकी होता है। और जैसे ही सिद्धांत समाज के सबसे क्रांतिकारी वर्ग तक पहुंचाया जाता है वैसे ही सामाजिक क्रांति का युग आरंभ हो जाता है। पुरातन वर्गों को समाप्त कर क्रांतिकारी वर्ग समाज में काबिज हो जाता है।
इस बात को बखूबी कार्ल मार्क्स व एंगेल्स की महान भूमिका से समझा जा सकता है। पूंजीवाद के समग्र युग में मार्क्स-एंगेल्स की शिक्षाएं महान क्रांतिकारी सिद्धांत की भूमिका निभाती हैं। मार्क्स-एंगेल्स की क्रांतिकारी शिक्षाओं को ‘मार्क्सवाद’ का नाम दिया जाता है। असल में यह नाम मार्क्स के विरोधियों ने मार्क्स के सिद्धांतों को दिया था। मार्क्सवाद के तीन स्रोत है: जर्मन दर्शनशास्त्र, आंग्ल राजनीतिक अर्थशास्त्र व फ्रांसीसी समाजवाद। 19वीं शताब्दी में मानव जाति ने इन तीन रूपों में, अपने सर्वश्रेष्ठ को निर्मित किया था। मार्क्सवाद का जन्म और विकास वैश्विक स्तर का है इसलिए उसकी शिक्षाएं सार्वभौमिक रूप से लागू होती हैं। जो विज्ञान की विशेषता है वही मार्क्सवाद की भी विशेषता है। इसलिए यदि भारत के युवा स्थापित सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंकना चाहते हैं तो उन्हें क्रांतिकारी सिद्धांत के रूप में मार्क्सवाद को स्वीकार और भारत की ठोस परिस्थितियों में पूरी रचनात्मकता के साथ लागू करना होगा।
क्रांतिकारी सिद्धांत के महत्व पर जितना भी जोर दिया जाए उतना कम है। और सिद्धांत के बिना व्यवहार अंधी सुरंग में भटकने को अभिशप्त है। और व्यवहार का महत्व मार्क्सवाद के अनुसार क्या है। आपने अवश्य सुना होगा कि मार्क्स ने क्या कहा है। कार्ल मार्क्स ने कहा था; ‘दार्शनिकों ने दुनिया की अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है किंतु असल सवाल दुनिया को बदलने का है।’ मार्क्सवाद का यह वैचारिक पहलू ही उसे अनन्य क्रांतिकारिता प्रदान कर देता है। उसके क्रांतिकारी पहलू को उजागर कर देता है। पूरी दुनिया को, भारत को क्रांतिकारी ढंग से बदलने का प्रश्न आपके समक्ष है।
भारत दुनिया का नायाब देश है। वैसे तो पूरी दुनिया में हर देश की अपनी विशिष्टता होती है परंतु भारत विविधताओं का देश है। जितनी अनूठता अपनी विविधताओं के संदर्भ में महान भारत देश की है उतनी अनूठता विश्व के किसी अन्य देश में नहीं है। यहां का विशाल भू-क्षेत्र (महान हिमालय से लेकर गंगा के मैदानों और सुदूर दक्षिण में हिंद महासागर) व विशाल जनसंख्या जो कि विभिन्न तरह का जीवन अपनी विशिष्ट जीवन शैली व रीति-रिवाज के साथ जीती है। नाना प्रकार के धार्मिक समुदाय व पंथ; प्रकृति पूजक; लंबे समय तक भारत की विशेषता रही पेशा आधारित जाति व्यवस्था जो कि पूंजीवाद के विकास के साथ खोखली होने लगी, सामाजिक विकास के विभिन्न संस्तरों पर खड़ी राष्ट्रीयताएं आदि बातें मिलकर भारत के अनूठेपन को दिखलाती हैं। भारत का इतिहास भी कम अनूठा नहीं है। महान प्राचीन सभ्यताएं दुनिया के जिन देशों में प्रकट हुई उनमें से भारत भी एक है। परंतु जो बात मुझे भारत के प्रति आकर्षित करती है वह भारत की विविधता व अनूठापन है परंतु जो बात मुझे क्षोभ से भरती है वह है भारत के मजदूर-मेहनतकशों की गुलामी। और उनकी गुलामी अतीत के बोझ के कारण और भी गहरी हो जाती है। भारत के मेहनतकश स्त्री-पुरुषों का जीवन गुलामी के बंधनों में जकड़ा हुआ है। भारत के युवाओं खासकर के, युवा मजदूरों यह तुम्हारा कर्तव्य है कि भारत को गुलामी के बंधनों से आजाद कराओ। यह कार्य आप तभी कर पाओगे जब भारत के मजदूरों, मेहनतकश किसानों, नौजवानों और उत्पीड़ित स्त्रियों, जातियों-जनजातियों को मुक्ति के लिए जागृत कर पाओगे। मुक्ति के लिए जागृत करने में क्रांतिकारी सिद्धांत आपका पथ प्रदर्शन करेगा। याद रखें किसी भी देश की क्रांति किसी अन्य देश की क्रांति की नकल पर नहीं की जा सकती है। हर क्रांति अपने आप में अनोखी होती है। उसका अपना ही रास्ता होता है। किसी भी क्रांति की नकल मत करो परंतु दुनिया की हर क्रांति का अध्ययन गहराई से करो। उनसे सीखो पर याद रखो कि अतीत की क्रांतियां तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ संदर्भ बिंदु का काम कर सकती हैं। भारत की क्रांति अपना ही रास्ता तय कर रही है और निःसंदेह एक दिन भारत में महान क्रांति का सूर्योदय होगा। और फिर भारत की क्रांति कई देशों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करेगी।
भारत के युवाओं खासकर युवा मजदूरों का कर्तव्य है की क्रांति को संभव बनाने के लिए क्रांतिकारी सिद्धांतों पर पकड़ बनाते हुए हर तरह के प्रयत्न करें। यह ध्यान रखें की क्रांति का विकास सीधे सरल मार्ग के रूप में नहीं होता है। वह उतार-चढ़ाव से भरा होता है। घुमावदार चक्करदार मार्ग होता है। और यहां यह भी ध्यान रखें की इतिहास की गति भी कम अनूठी नहीं है। मार्क्स के शब्दों में कहूं तो इतिहास में कभी-कभी ऐसा होता है कि एक दिन बीस वर्षों के बराबर होता है और कभी-कभी बीस बरस महज एक दिन के बराबर होते हैं। इसलिए जहां क्रांतिकारी साहस, सजगता और तत्परता की आवश्यकता होती है वहां धैर्य, लगन, दृढ़ता व एकनिष्ठता की भी उतनी ही आवश्यकता होती है। अतीत की किसी भी क्रांति के विकास और गति का इतिहास उठाकर देखिए आप पाएंगे क्रांति का मार्ग अपार संभावनाओं के साथ जटिलता व विविधता से भरा हुआ है।
अंत में, मैं जिस विषय पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा वह है क्रांतिकारी संगठन का सवाल। क्रांतिकारी संगठन से यहां मेरा सर्वदा पहला आशय मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी से है। ऐसी पार्टी जो मजदूर वर्ग की विचारधारा, कार्यक्रम, रणनीति व रणकौशल से लैस हो। बिना ऐसी पार्टी के क्रांति करना असंभव है। और आप जानते हैं पार्टी का काम करने खासकर उसे नेतृत्व देने के लिए पेशेवर क्रांतिकारियों की आवश्यकता होगी। पेशेवर क्रांतिकारी किसी भी वर्ग या समुदाय से आ सकते हैं परंतु मेरा जोर इस बात पर है कि हर योग्य मजदूर को पेशेवर क्रांतिकारी बनना होगा। योग्य मजदूरों से बने हुये पेशेवर क्रांतिकारियों का संगठन उस पार्टी के मस्तिष्क, रीढ़ व रज्जु का निर्माण कर सकता है जो क्रांति को संगठित व नेतृत्व प्रदान करेगी। भारत के युवाओं खासकर मजदूर युवाओं का कर्तव्य है कि वे भारत में क्रांति संभव हो सके इसके लिए वे अपने आप को प्रस्तुत करें और पेशेवर क्रांतिकारियों की टोली तैयार करें। जिस दिन आपके देश में अखिल भारतीय स्तर पर पेशेवर क्रांतिकारियों का नेटवर्क खड़ा हो जाएगा उस दिन भारत क्रांति की पहली मंजिल में प्रवेश कर जाएगा।
विश्व क्रांति जिंदाबाद! भारत की क्रांति जिंदाबाद!! के नारों को बुलंद करते हुए मैं गर्मजोशी से आपका अभिवादन करता हूं। गर्मजोशी से हाथ मिलाता हूं। आपका साथी- व्लादिमीर इल्यीच लेनिन।
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