दमन फासीवाद की फितरत, संघर्ष है छात्रों-युवाओं की विरासत
हर गुजरते दिन के साथ केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा राजकीय दमन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय(ईडी), सीबीआई, एनआईए, आयकर विभाग, जैसी संस्थाएं विरोध की आवाजों को डराने-दबाने का जरिया बन गयी हैं। जिन पत्रकारों, वेब पोर्टल, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि को निशाना बनाया जा रहा है, वे मोदी सरकार से भिन्न रुख रखते रहे हैं या समाज के किसी शोषित-उत्पीड़ित हिस्से की आवाज उठाते रहे हैं। सरकारी दमन की शिकार संस्थाओं में द वायर, ऑल्ट न्यूज, बीबीसी आदि की फेहरिस्त में नया नाम न्यूज क्लिक का जुड़ गया है।
न्यूज क्लिक के मुख्यालय सहित उससे जुड़े व स्वतंत्र पत्रकारों पर आक्रामक ढंग से छापेमारी की गयी। उनके लैपटाप, मोबाइल आदि सामग्री जब्त की गयी। न्यूज क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर अमित चक्रवर्ती पर आतंकवाद निरोधी कानून यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। विदेशी फंडिंग और देश विरोधी प्रचार (प्रोपेगेंडा) का आरोप लगाया गया है।
एक तरफ सरकार समर्थक मीडिया है। मीडिया की सरकार ‘‘भक्ति’’ देश के बड़े पूंजीपतियों का संघ-भाजपा पर वरदहस्त होने का प्रमाण है। इसको आमतौर पर गोदी मीडिया कह दिया जाता है। अर्थव्यवस्था की खस्ताहालत से सामाजिक समस्यायें लगातार बढ़ रही हैं। पूंजीपतियों की दौलत में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है तो ठीक इस समय पर देश की करोड़ों-करोड़ मेहनतकश जनता की हालत और अधिक बदतर हो रही है। इसमें मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग अपनी स्थिति से लगातार नीचे को फिसल रहा है। अपनी लगातार गिर रही स्थिति के खिलाफ मध्यम वर्ग का असंतोष बढ़ रहा है। इस असंतोष को पूंजीवादी व्यवस्था की रक्षा में इस्तेमाल करते हुए निरंकुशता, फासीवाद को समाधान की तरह पेश किया जा रहा है।
संघ-भाजपा अपने जन्म के समय से ही फासीवादी हैं। मुसोलिनी, हिटलर इनके अंतर्राष्ट्रीय आदर्श रहे हैं तो सावरकर, नाथूराम गोडसे देशी आदर्श हैं। शुद्ध जर्मन आर्य नस्ल की हिटलरी बातों को भारत में ‘‘हिन्दू बनाम अन्य’’ के तौर पर लागू किया जा रहा है। जिसका मुख्य निशाना मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। हालांकि ईसाई, दलित, आदिवासी, महिलायें आदि भी जब-तब इनके शिकार बनते रहते हैं। यह भी साफ है कि हिटलर की ही तरह हिन्दू फासीवादी संघ-भाजपा को भी बड़े पूंजीपतियों का आशीर्वाद प्राप्त है।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की लगातार खराब होती स्थिति में सीमित राजनीतिक अधिकारों को और कम किया जा रहा है। भुखमरी सूचकांक में भारत का 125 देशों की सूची में 111 वां स्थान और प्रेस स्वतंत्रता में 180 देशों की सूची में 161 वां स्थान इसी सच्चाई को बयां करते हैं। एकाधिकारी पूंजीपतियों की सेवा में बेशर्मी से खड़ी सरकारें अन्य सभी (मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग) के विरोध की आवाज को दबाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। यानी की क्रांति, समाजवाद, साम्यवाद को लक्ष्य मानने वाले व्यक्ति संगठन तो छोड़िये आज पूंजीवादी व्यवस्था के दायरे में किसी सुधार की मांग करने वालों को भी चुप करा दिया जा रहा है। संघ-भाजपा की तानाशाही को मध्यम वर्ग सहित उदार पूंजीवादी दायरे में भी महसूस किया जा रहा है। हालांकि ये हिस्से आम तौर पर व्यवस्था के क्रांतिकारी परिवर्तन के विरोधी हैं और पूंजीवादी व्यवस्था में ही सुधार की चाहत रखते हैं। लेकिन व्यवस्था के फासीवाद की ओर बढ़ने के साथ उनकी इस ‘‘सदिच्छा’’ के लिए खास गुंजाइश नहीं बची है। आलोचना, विरोध के हर स्वर को बेरहमी से कुचल दिया जा रहा है। सरकार की आलोचना करने पर जांच, गिरफ्तारी, जेल और आपराधिक धाराओं में मुकदमे लादे जा रहे हैं।
दमन की इस फितरत को छात्र-युवा भी कॉलेज-कैम्पसों में झेल रहे हैं। जेएनयू से लेकर जामिया, हैदराबाद से लेकर बनारस सब जगह छात्रों-युवाओं की न्यायपूर्ण आवाज को बेरहमी से कुचला जा रहा है। मसला चाहे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विरोध का हो या फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठाने का या फिर बेकारी के खिलाफ सड़कों पर उतरने का, दमन का हर जगह छात्र-युवा सामना कर रहे हैं।
आज देश उस दोराहे पर खड़ा है जहां से वह फासीवादी अंधकार की तरफ भी बढ़ सकता है जिसे लाने का यत्न संघ-भाजपा और इनकी हिन्दू वाहिनी कर रही है। तरह-तरह की कूपमंडूकता-अवैज्ञानिकता, अंधराष्ट्रवाद के सागर में छात्रों- युवाओं व बाकी समाज को डुबाकर इसकी तैयारी की जा रही है। हर विज्ञानपरक-प्रगतिशील सोच-विचार को राष्ट्रविरोधी का तमगा दे कुचला जा रहा है। पर देश को दोराहे की दूसरी राह पर भी बढ़ाया जा सकता है। यह राह इंकलाब की राह है। यह राह पूंजीवाद को समाप्त कर समाजवादी सवेरा लाने की राह है। यह राह शहीदे आजम भगत सिंह की राह है। वक्त छात्र-युवाओं के सामने यह कार्यभार पेश कर रहा है कि हिटलर की राह पर जाते देश को भगत सिंह की राह पर ले जायें। फासीवाद की ओर बढ़ते देश को इंकलाब की ओर ले जायें।
ऐसे में फासीवाद विरोध की हर आवाज का समर्थन करना और उनके दमन का विरोध करना हमारा कर्तव्य बनता है। इसमें छात्रों-युवाओं के साथ मजदूर-मेहनतकश जनता को शामिल करना होगा। तब संघर्षरत मेहनतकश जनता का जितना ही दमन होगा, उसका प्रतिरोध उतना ही बढ़ता जायेगा। और इंकलाब कोई दूर की कौड़ी न रह जायेगा।
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