आसमान से टपका खजूर में लटका-नीता
इस समय लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 है। इस बिल के लागू हो जाने के बाद लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या बढ़कर न्यूनतम 181 हो जाएगी। यानी कुल 543 लोकसभा सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। जिनमें 43 सीटें एस.सी.-एस.टी. (अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति) महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से पास तो हो गया है। लेकिन इसके व्यवहार में लागू होने की संभावना 2029 तक भी नहीं लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बिल को जनगणना और परिसीमन से जोड़ा गया है। यानी पहले जनगणना होगी फिर परिसीमन होगा और फिर ये आरक्षण लागू होगा। सरकार इसके पीछे पारदर्शिता को कारण बता रही है। लेकिन कुछ लोग इसको ‘चुनावी जुमला’ बता रहे हैं। इसको कहा जाता है ‘आसमान से टपका खजूर में लटका’। वैसी ही स्थिति इस बिल की हो रही है। पहले इस बिल को पास होने में इतना समय लग गया और अब, कब तक यह लागू होगा इसका कुछ कहा नहीं जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 82 (2001 में किए गए संशोधन के बाद) के अनुसार, 2026 तक जनगणना की जाएगी और उसके आंकड़े आने के बाद ही परिसीमन कराया जा सकता है। परिसीमन आयोग को अपनी अंतिम रिपोर्ट देने में कम से कम 3 से 4 साल का समय लगता है। पिछले आयोग ने 5 साल में रिपोर्ट दी थी। इस हिसाब से 2029 में भी महिलाएं इस आरक्षण का लाभ उठा पाएंगी इसकी संभावना कम ही है।
दूसरी बात इस बिल के तहत एस.सी.-एस.टी. जातियों की महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित होंगी। जैसे इन जातियों के पुरुषों के लिए आरक्षित होती हैं। महिलाओं के लिए आरक्षित कुल एक तिहाई सीटों में से एस.सी.-एस.टी. के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर शेष सीटों पर किसी भी जाति की महिला चुनाव लड़ सकती हैं। इसमें ओ.बी.सी. (अन्य पिछड़ा वर्ग) की महिलाओं के लिए आरक्षण की बात नहीं कही गई है।
इन सब ऊहा-पोह की बातों के बाद भी हमारे प्रधानमंत्री अपना क्रेडिट लेना नहीं भूलते हैं। उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण बिल मातृशक्ति को आगे बढ़ाने का बिल है। ये मातृशक्ति में नई ऊर्जा भरने वाला है। बिल पास होने के बाद देश की मातृशक्ति का मिजाज बदलेगा और विश्वास पैदा होगा। वो महिला सशक्तिकरण को और आगे बढ़ाएगा।
लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी भूल जाते हैं कि देश की आधी आबादी यानी 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। लेकिन आरक्षण 33 प्रतिशत पास किया जा रहा है वह भी इतनी शंकाओं के साथ। इससे महिला सशक्त हो जायेगी? आज संसद, विधान सभाआंे में 15 प्रतिशत महिलाएं हैं और ये बिल लागू होने के बाद 33 प्रतिशत होंगी। क्या केवल इससे महिलाओं की समस्या (महिला हिंसा, यौन हिंसा, महंगाई, बेरोजगारी आदि समस्याएं) खत्म हो जायेगी? महिलाओं को इंसान न समझने वाली पितृसत्तात्मक सोच खत्म हो जायेगी? मोदी जी इस बारे में कोई बात नहीं करते हैं।
आज समाज में छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। घर में हो या बाहर हर जगह महिलाओं के दिल में यौन हिंसा का एक भय हमेशा मौजूद रहता है। महिलाओं की इस स्थिति के लिए अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति, पुरुष प्रधान सोच मुख्य कारण हैं। क्या सरकार इसको खत्म करने का प्रयास कर रही है? क्या आज तक की 15 प्रतिशत महिला सांसद/विधायक इसके लिए आवाज उठा रहीं हैं?
नये संसद भवन के उद्घाटन के समय महिला पहलवानों पर लाठी चलवाई गई और उनके साथ यौन उत्पीड़न करने वाले बृजभूषण को संसद में बैठाया गया। महिलाओं के प्रति घटिया सोच रखने वाला वही सांसद बृजभूषण महिला आरक्षण बिल पास करता है। इस बिल को पास करने वाले नेता ही महिलाओं से कहते हैं कि अगर महिलाओं के साथ बलात्कार होना एकदम तय हो जाए तो विरोध करने के बजाय उसका मजा लेना चाहिए। क्या ऐसी मानसिकता के लोगों को मोदी जेल में डाल रहे हैं? नहीं!
खुद मोदी सरकार एक तरफ तो महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात करती है, उन्हें सशक्त करने की बात करती है। दूसरी तरफ महिलाओं से बेगारी करवाती है मिड डे मील वर्कर, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, उपनल कर्मी आदि से सरकार बेगारी करवा रही है। महिलाओं से रात की पाली में काम करने का कानून पास कर रही है।
इस तरह महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले खुद महिला विरोधी काम कर रहे हैं। महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओ में केवल 33 प्रतिशत आरक्षण से समानता नहीं आयेगी।महिलाओं को हर स्तर पर सम्मानजनक बराबरी के लिए संघर्ष करना होगा। महिलाओं को इंच-इंच की लड़ाई लड़ते हुए बड़े संघर्ष की तैयारी करनी होगी। जिस तरह इतने लंबे समय से 33 प्रतिशत आरक्षण की लड़ाई महिलाएं लड़ रही थी। अब वो मांग पूरी हो गई है तो एक तरह यह महिलाओं की जीत ही है। पर इस जीत को व्यवहार में उतारने के लिए भी संघर्ष करना होगा।
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