आइये! हिन्दू फासीवादियों का मुकाबला करें
आज यह बात किसी से छिपी नहीं है कि संघ-भाजपा हिन्दू फासीवादी संगठन हैं। बीते कुछ समय से इनकी कारस्तानियों ने इस संदर्भ में शक की सारी गुंजाइश खत्म कर दी है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड में चुनावी जीत के बाद ये एक के बाद एक ऐसे मुद्दे उछालने में लगे हैं जो समाज में साम्प्रदायिक वैमनस्य को स्थायी बना दें। जो लगातार बढ़ती महंगाई, बेकारी की समस्या से लोगों का ध्यान भटका दें।
पांच राज्यों में चुनाव के वक्त ये हिजाब को मुद्दा बना रहे थे। इसके जरिये मुस्लिम लड़कियों के पढ़ने के हक को छीन रहे थे। उसके बाद इन्होंने मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाने पर लेना शुरू किया। ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मथुरा की ईदगाह, ताजमहल, कुतुबमीनार तक के मामले में ये हर रोज नये-नये दावे करने लगे। कहने लगे कि इन सभी जगह पर पहले मंदिर थे। इसलिए इन्हें मन्दिर में बदल दिया जाये। अदालतें भी खुद 90 के दशक में बने धार्मिक स्थल कानून को दरकिनार कर इनके सुर में सुर मिलाती नजर आयीं। धार्मिक स्थल कानून स्पष्ट तौर पर कहता है कि आजादी के बाद जो भी धार्मिक स्थल जिस रूप में मौजूद है उसे उसी रूप में रखा जाये।
मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर हमले के साथ संघी ताकतें रामनवमी के जुुलूस के दौरान मुस्लिम इलाकों-मस्जिदों पर हमला करने लगीं। इन हमलों के लिए भी मुस्लिमों को ही शासन-प्रशासन ने दोषी ठहराया। इसके बाद जब नुपुर शर्मा के नफरती बयान के खिलाफ मुस्लिमों का देश-दुनिया में आक्रोश फूटा तो एक बार फिर शासन-सत्ता मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही सजा देने में जुट गयी। रामनवमी जुलूस व नुपुर शर्मा विरोधी जुलूस दोनों मामलों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को आरोपी बना सत्ता बुलडोजर से उनके घर ढहाने में जुट गयी। जहांगीरपुरी (दिल्ली), इलाहाबाद, मध्यप्रदेश सब जगह बुलडोजर कानूनी प्रक्रिया को धता बता फासीवादी तांडव का पर्याय बन गया। अब गुनाह अदालत में साबित नहीं होना था बल्कि हिन्दू फासीवादी, उनका प्रशासन खुद ही आरोप लगा, न्याय कर बुलडोजर के जरिये सजा दे रहा था। इस बुलडोजर राज पर न्यायिक प्रक्रिया तक नतमस्तक नजर आयीं।
हिन्दू फासीवादी ताकतों के इस शासन में मुस्लिम समुदाय जहां इनके हमले के सीधे निशाने पर है वहीं बाकी समुदायों की मेहनतकश जनता, छात्र-युवा भी इनके अप्रत्यक्ष हमले का शिकार हो रहे हैं। इनके द्वारा उछाले जा रहे साम्प्रदायिक मुद्दे बेकारी-महंगाई सरीखे आम जन के मुद्दों को हाशिये पर डाल रहे हैं। इन मुद्दों पर जनता-युवाओं के एकजुट संघर्ष की संभावना को कमजोर कर रहे हैं।
हिन्दू फासीवादियों के इन हमलों के चलते मुस्लिम समुदाय में भी कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हो रही हैं। ये ताकतें नुपुर शर्मा पर फतवे जारी करने से लेकर कन्हैयालाल की हत्या तक मुस्लिम युवाओं को ले जा रही हैं। मुस्लिम कट्टरपंथियों के द्वारा समर्थित इन करतूतों से हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता दोनों मजबूत होती हैं व एक- दूसरे को फलने-फूलने का मौका मुहैय्या कराती हैं।
हिन्दू फासीवादी ताकतों को शासक पूंजीपति वर्ग का खुला समर्थन मिला हुआ है। पूंजीपतियों को इनके राज में मनमानी लूट की छूट मिली हुई है। इनकी लूट के खिलाफ उठने वाली आवाज को हिन्दू फासीवादी ताकतें अपने मुद्दों से या तो हाशिये में ढकेल दे रही हैं या क्रूर दमन का शिकार बना रही हैं। हिन्दू फासीवादी आज अपने खिलाफ एक भी स्वर सुनने को तैयार नहीं हैं। गुजरात दंगों का सच उजागर करने में जुटी तीस्ता सीतलवाड़ हो या ऑल्ट न्यूज के जुबेर सबको ये ताकतें मनमाने तरीके से जेलों में ठूंस रही हैं।
ऐसे में देश को अंधकार की ओर ले जाते सत्ताधारी हिन्दू फासीवादी छात्रों-युवाओं के भविष्य को भी अंधकारमय बना रहे हैं। ये ताकतें इस गलतफहमी में हैं कि अपने दुष्प्रचार से ये हमेशा अपनी सत्ता कायम रखेंगी। ये भूल जाती हैं कि आम जनता छात्रों-युवाओं के जीवन को लगातार बदहाल बनाने के चलते ये उनके संघर्षों के निशाने पर आने से बच नहीं सकती। कि इनका हश्र भी कुख्यात हिटलर-मुसोलिनी सरीखा होना तय है। उनको इस इंजाम तक पहुंचाने में भारत के छात्र-युवा महती भूमिका निभायेंगे। अग्निपथ योजना के खिलाफ सड़कों पर उतर भारत के छात्र-युवाओं ने इनके खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है। इस संघर्ष को भविष्य में और धार देने की जरूरत है। हिन्दू फासीवाद व लुटेरे पूंजीवाद को संघर्षों का निशाना बना कर ही भारत के छात्र-युवा बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
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