अग्निपथ योजना
‘अग्निवीर’ के नाम पर युवाओं को छलती मोदी सरकार
-कैलाश
‘जिस दिन मोदी जी अपनी मां का जन्मदिन मनाने गये थे उस दिन हमारी सबकी माताएं घर पर रो रही थीं, इस मारे की हमारे बच्चों के संग ऐसा कर दिया गया है।’ ‘मोदी जी ने हमारे आगे हाथ जोड़कर वन रैंक, वन पेंशन के नाम पर वोट मांगा था और आज नो रैंक, नो पेंशन की योजना बनाकर हम युवाओं को बेरोजगारी में धकेल दिया है।’ ‘हम आर्मी की 2020 की भर्ती का फिजिकल और मेडिकल पास करके 2 सालों से रिटर्न का इंतजार कर रहे थे। कोरोना का बहाना बनाकर अभी तक हमें लटकाये रखा और अब पुरानी भर्ती रद्द कर अग्निपथ योजना को लाकर सरकार ने हमारे सपनों को एक झटके में तोड़ दिया है।’ ‘हमारे पास कोई रिएक्शन नहीं बचा है। क्योंकि जो भी एक आशा, एक उम्मीद परिवार की हमारी थी, जो सपने थे वो एक लाइव प्रेस कान्फ्रेंस द्वारा खत्म कर दिया गया।’ यह बातें उन नौजवानों की हैं जो सरकार द्वारा सेना में भर्ती के लिये लाई गयी नयी अग्निपथ योजना (टूर ऑफ ड्यूटी) का विरोध कर रहे हैं।
भारत में रेलवे के बाद सेना ही स्थायी रोजगार का सबसे बड़ा जरिया रही है। शासकों द्वारा प्रचारित देशप्रेम की भावना तथा सेना की स्थायी नौकरी, पेंशन व अन्य सुविधायें नौजवानों को अपनी ओर खींचती हैं। एक बार भर्ती हो जाने पर सम्बंधित व्यक्ति और परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है। मजदूर- मेहनतकश परिवारों में कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ज्यादा न पढ़ पाने व स्थायी रोजगार की चाहत नौजवानों को 10-12वीं के बाद सेना की ओर ले जाती रही है। लेकिन सरकार की नयी भर्ती योजना ने अब सब-कुछ बदल दिया है।
14 जून को रक्षा मंत्री ने तीनों सेनाओं के अध्यक्षों की उपस्थिति में सेना में भर्ती की नयी ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा की। इस योजना के अनुसार अब सेना में भी स्थायी नियुक्ति के बजाय 4 साल की संविदा पर नौकरी दी जायेगी। 4 वर्ष के पश्चात अधिकतम 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही योग्यता व संगठन की आवश्यकता के अनुसार स्थायी नियुक्ति दी जायेगी। कार्यमुक्त होने पर सेवानिधि के अतिरिक्त अन्य कोई भी लाभ नहीं मिलेगा। अग्निवीरों को 90 के बजाय 30 दिन का ही सालाना अवकाश मिलेगा। साथ ही साल 2020 की भर्ती प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया गया। नाम व प्रतीकों की राजनीति करने में माहिर मोदी सरकार ने ‘अग्निवीर’ के नाम पर सेना में स्थायी रोजगार पर हमला बोला।
मोदी सरकार के इस तुगलकी फरमान के साथ ही 2-3 साल से सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवानों का आक्रोश फूट पड़ा। छात्र-युवा विरोधी इस योजना के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे। बिहार, पश्चिमी यू.पी., हरियाणा आदि जगहों पर इन प्रदर्शनों ने उग्र रूप धारण कर लिया। रेलवे स्टेशनों, बसों में आगजनी व तोड़-फोड़ की घटनाएं घटी तो कुछ जगहों पर भाजपा नेताओं के घरों व भाजपा कार्यालयों को भी निशाना बनाया गया। 2020 में भर्ती परीक्षा का मेडिकल व फिजिकल पास कर चुके युवाओं का कहना था कि कोरोना काल में चुनाव हुये, बड़े धार्मिक आयोजन हुये, सब कुछ हुआ लेकिन लिखित परीक्षा नहीं हुई, नियुक्ति पत्र नहीं दिये गये। ‘‘अब जो नयी योजना लायी गयी है यह भर्ती की नहीं बल्कि छंटनी की योजना है’’।
युवाओं के गुस्से को देखते हुये सरकार ने 2022 की भर्ती में 2 साल की उम्र सीमा में छूट व केंद्रीय सशस्त्र पुलिस फोर्स (ब्।च्थ्) व असम राइफल्स की भर्ती में अग्निवीरों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण जैसी घोषणाएं की। हालांकि ये घोषणाएं छात्रों के आंदोलन को भटकाने के लिए ही थीं। सच्चाई ये है कि पूर्व सैनिकों के लिए बैंक, केन्द्र सरकार के विभाग, केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था पहले से ही है। इसके बावजूद बहुत थोडे़ से सैनिक ही पुनः नौकरी पाते रहे (तालिका देखें)। ‘अग्निवीरों’ के लिए ये अवसर कम ही हुए है।आंदोलनरत युवाओं का भयंकर दमन किया। लाठीचार्ज, आंसू गैस, फर्जी मुकदमे व गिरफ्तारियां की गयी। इतने पर भी युवाओं का आक्रोश शांत होने के बजाय और बढ़ता देख सरकार ने तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों को आगे किया। भारत के रक्षा मंत्री-गृह मंत्री के बजाय इतिहास में पहली बार सेना के जनरल सरकार की किसी योजना के बचाव में प्रेस कांफ्रेंस करते दिखे। सरकार की योजना को वापस न लेने का ऐलान व युवाओं को धमकाते हुये इन जनरलों ने कहा कि विरोध-प्रदर्शनों व आगजनी में शामिल किसी भी युवा को सेना में नहीं लिया जायेगा तथा उन्हें इस आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा कि वह इनमें शामिल नहीं थे। यह जनरल अपने चमचमाते बूटों तले युवाओं के विरोध करने के लोकत्रांत्रिक अधिकार को भी कुचल देना चाहते हैं। इन उपायों के चलते और संगठनबद्ध आंदोलन के बजाय स्वतः स्फूर्त विरोध-प्रदर्शनों को रोकने में फिलहाल सरकार सफल रही।
अग्निपथ योजना की घोषणा के साथ ही सरकार समर्थक मीडिया संस्थान, संघ-भाजपा के प्रवक्ता व सांसद-विधायकों से लेकर कुछ उद्योगपति तथा रामदेव-रविशंकर जैसे ठग बाबा तक इस योजना के प्रचार में उतर आये। ये सब किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के उत्पाद की तरह सरकार की इस योजना के लाभ गिनाने लगे। उत्पाद की खूबियों (योजना के लाभ) को गिनाते हुये यह विरोध कर रहे युवाओं को भटके हुये, विपक्ष द्वारा बरगलाये हुये, अराजक-हिंसक इत्यादि बताने लगे। मोदी सरकार की जी-हुजूरी में लीन यह लोग युवाओं की बात सुनने, उनके विरोध को समझने तक को तैयार नहीं हैं। उनकी समस्या के समाधान की तो कौन कहे।
यह महानुभाव चाहते हैं कि नौजवान आईने की तरह साफ इस सच्चाई से आँख मूंद लें कि सरकार उनके स्थायी रोजगार पर हमला कर रही है, उनके भविष्य को अंधकार में धकेल रही है। यह चाहते हैं कि अपने भविष्य पर मंडराते खतरे का मुकाबला करने के बजाय छात्र-नौजवान शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन रेत में घुसा लें।
सरकार कह रही है कि इस योजना के लागू होने से सेना की औसत उम्र कम हो जायेगी। जिससे सेना की कार्यकुशलता में इजाफा होगा। कि इससे वेतन-पेंशन के खर्चों में कटौती कर सेना का आधुनिकीकरण किया जा सकेगा। किसी भी काम में कुशलता हासिल करने के लिए कुछ समय तक प्रशिक्षण व अनुभव चाहिये होता है। जब 4 साल के लिये ही नियुक्ति की जायेगी तो अग्निवीर कितना कुशल हो पायेंगे? जब हर साल अधिकतम 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही नियमित किया जायेगा तो सेना कितनी जवान हो पायेगी? यह कोई अबूझ पहेली नहीं है। रही बात सेना के आधुनिकीकरण की तो यह मुख्य बात है।
सेना के आधुनिकीकरण के पीछे मोदी सरकार का मकसद क्या है? भारतीय पूंजीपति वर्ग की चाहत है कि भारतीय सेना को अमेरिकी-रूसी सेना की तरह ढाला जाये। ताकि पूंजीपतियों की जरूरत के अनुरूप बाजार व कच्चे माल के लिए दूसरे देशों में सैन्य हस्तक्षेप किया जा सके। पड़ोसी मुल्कों के साथ तनाव में उन्हें धौंसपट्टी दिखा दबदबा कायम किया जा सके। इससे आगे बढ़कर संघ-भाजपा के एकीकृत ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ के अनुरूप भारत को एक साम्राज्यवादी देश में तब्दील किया जा सके। बदलते वक्त और प्रौद्योगिकी के जमाने में अब सैनिकों के बजाय युद्धपोतों, मिसाइलों व लड़ाकू विमानों का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। इसीलिये मिसाइल-लड़ाकू विमान खरीदने के लिये मोदी सरकार सैनिकों को मिलने वाले वेतन-पेंशन में कटौती करना चाहती है। हां, सांसदों-विधायकों के वेतन-पेंशन में कोई कमी न हो इसका वह भरपूर ख्याल रख रही है।
सेना के आधुनिकीकरण के लिये सैनिकों के वेतन-पेंशन में कटौती करने वाली ‘राष्ट्रवादी सरकार’ देश के पूंजीपतियों पर कोई कर (टैक्स) लगाने को तैयार नहीं है। उल्टा 2014 में केंद्र की सत्ता में काबिज होने के बाद मोदी सरकार ने पूंजीपतियों पर लगने वाले कारपोरेट टैक्स को 30 से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया था। साथ ही 2015 में अमीरों पर लगने वाले वेल्थ टैक्स को खत्म कर दिया था। अमीरों पर टैक्स कम करने वाली मोदी सरकार आम जनता पर करों (अप्रत्यक्ष कर-जी एस टी, एक्साइज ड्यूटी, वैट इत्यादि) के बोझ को बढ़ाती गयी है। आम जनता के खून-पसीने की कमाई को करों के रूप में निचोड़ने वाली मोदी सरकार इस पैसे से अब सेना के आधुनिकीकरण के नाम पर भी देशी-विदेशी पूंजीपतियों को ही मालामाल करेगी। सैन्य साजो-सामान के अरबों-खरबों रुपये के ठेके इन्हीं पूंजीपतियों को दिये जायेंगे। जैसे राफेल सौदे में अनुभवी सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनाटिक लिमिटेड (भ्।स्) को छोड़कर कुछ हफ्ते पुरानी अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड को दे दिया गया था।
मोदी सरकार में सेना की भर्ती प्रक्रिया अचानक बदल दी गयी हो यह कोई नयी बात नहीं है। इससे पहले भी नोटबंदी, तालाबंदी (लॉकडाउन), धारा 370 खत्म करने, सीएए-एनआरसी, कृषि कानून जैसे तुगलकी फैसले लिये जा चुके हैं। ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’ के काल में मोदी ही सब कुछ (तानाशाह) हैं। उन्हें किसी व्यक्ति, संस्था, संगठनों के सलाह-मशविरे की जरूरत नहीं है। उनके फैसले जनता के हित में लिये जाते हैं पर जनता ही ‘‘बेवक़ूफ’’ है कि उन्हें समझ नहीं पाती और विरोध करने लगती है। हाँ, ये अलग बात है कि इन फैसलों से जनता कंगाल होती जाती है और पूंजीपति मालामाल होते जाते हैं।
2 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने का वादा कर सत्ता में आयी मोदी सरकार के इन जनविरोधी फैसलों का ही परिणाम है कि बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंचती जा रही है और स्थायी रोजगार की उम्मीद लगातार खत्म होती जा रही है। 2018 में ही राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (छैैव्) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा पहुंच गयी थी। कोरोना काल में मोदी द्वारा थोपे गये तुगलकी लॉकडाउन ने इसमें और इजाफा ही किया। ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारों में बेरोजगारी नहीं थी, लेकिन मोदी सरकार ने अपने फैसलों से सबको पीछे छोड़ दिया है।
आखिर क्यों सरकार छात्र-नौजवानों के भविष्य पर हमला कर रही है? इसका कारण है मुनाफे पर टिकी यह पूंजीवादी व्यवस्था। इस व्यवस्था में पूंजीपतियों का मुनाफा ही सब कुछ है। पूंजीपतियों के मुनाफे के लिये ही निजीकरण- उदारीकरण-विनिवेशीकरण की जनविरोधी नीतियों को चौतरफा लागू किया जा रहा है। देशी-विदेशी पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली इन नीतियों को लागू करने में राष्ट्रीय-क्षेत्रीय कोई भी पार्टी पीछे नहीं है। इन नीतियों के तहत ही स्थायी नियुक्तियों को खत्म कर ठेका, संविदा, फिक्स टर्म एम्प्लायमेंट (एफ.टी.ई.) को लागू किया जा रहा है। सरकारी कंपनियों को औने-पौने दामों में पूंजीपतियों को सौंपा जा रहा है। अभी तक अन्य क्षेत्रों में इन नीतियों को धड़ल्ले से लागू किया जा रहा था। अब ‘राष्ट्रवादी’ मोदी सरकार द्वारा सेना में भी जोर-शोर से इन नीतियों को आगे बढ़ाया जायेगा।
मोदी सरकार की इस योजना का फायदा फैक्ट्रियों के मालिक तथा मुख्यतः प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियां उठायेंगी। 4 साल बाद बेरोजगार अग्निवीरों के रूप में फैक्ट्री मालिकों को जहाँ अनुशासित मजदूर उपलब्ध होंगे वहीं प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों को अनुशासित व प्रशिक्षित लोग मिलेंगे। एस.आई.एस., ए.पी.एस., जी.फोर एस., रिलायंस जैसी बहुराष्ट्रीय प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनियों को प्रशिक्षण में कोई खर्च नहीं करना होगा। रोजगार के संकट के बीच होटलों, मॉलों, अस्पतालों, फैक्ट्री, आफिसों, निजी बंगलों आदि में सुरक्षा गार्ड मुहैय्या कराने वाली यह कम्पनियां कम पैसों में अग्निवीरों को नियुक्त करेंगी। भारत में तेजी से बढ़ते प्राइवेट सिक्योरिटी कंपनियों के कारोबार (2016 में 57,000 करोड़ व 2022 में लगभग 1.5 लाख करोड़) में यह कंपनियां और मालामाल होती जायेंगी।
‘भाजपा ऑफिस में सिक्योरिटी गार्ड रखना होगा तो अग्निवीर को प्राथमिकता दूंगा’ जैसा भाजपा महासचिव का बयान हो या संस्कृति मंत्री जी.किशन रेड्डी का बयान कि ‘अग्निवीरों को बालों की कटाई, कपड़ों की धुलाई, बिजली मिस्त्री, चालक तक का काम मिलेगा’ आदि रोजगार के संदर्भ में अग्निवीरों के भविष्य की झलक मात्र है।
अग्निपथ योजना से मोदी सरकार अपने हिन्दू फासीवादी एजेंडे के अनुरूप समाज को सैन्यीकरण की ओर भी ले जायेगी। अग्निवीरों को 4 साल से ज्यादा की नौकरी पाने के लिये योग्यता के अलावा एक अघोषित शर्त (अन्य संस्थानों की तरह ही) संघ- भाजपा के विचारों का वाहक होना भी बन जायेगा। सेना के अधिकतर अफसरों-जनरलों की हिन्दू सवर्ण पृष्ठभूमि और सेना का राजनीतिकरण भी उन्हें इस ओर धकेलेगा। 4 साल बाद अग्निवीर जब बेरोजगार होकर लौटेगा तो वह हथियार चलाने में प्रशिक्षित होने के साथ संघ-भाजपा के हिन्दू फासीवादी एजेण्डे का वाहक भी बन सकता है। अभी संघ के अनुषंगी संगठन (विहिप, बजरंग दल आदि) गैर कानूनी तौर पर हथियारों का प्रशिक्षण देते थे अब यह सांस्थानिक तौर पर होगा। ये प्रशिक्षित लोग अगर संघी विचारधारा पर खड़े हो गये तो फासीवादियों की सेना के रूप में जनता का दमन करेंगे। भाजपा सांसद महेंद्र सोलंकी का बयान इसी ओर इशारा करता है कि अग्निवीर प्रशिक्षण लेकर 4 साल देश की सेवा व बाद में विधर्मियों से परिवार की रक्षा करें। निश्चित तौर पर विधर्मी संघ-भाजपा की राजनीति का विरोध करने वाले ही होंगे। हालांकि जनता के संघर्षों के आगे बढ़ने पर संघ-भाजपा को यह नीति उल्टी भी पड़ सकती है। सैन्य प्रशिक्षित युवा बेकारी, महंगाई, बदतर होते जीवन हालातों के चलते जनसंघर्षों की ओर भी बढ़ सकते हैं।
छात्र-नौजवानों को मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों- योजनाओं का पुरजोर विरोध करना चाहिये। यह विरोध स्वतः स्फूर्त ढंग से सफल नहीं हो सकता। इसलिए छात्र-नौजवानों के देशव्यापी क्रांतिकारी संगठन खड़े करने की आवश्यकता है। क्रांतिकारी संगठनों के झंडे तले देशव्यापी एकजुटता के दम पर ही फासीवादी मोदी सरकार को झुकाया जा सकता है। जिस तरह दिल्ली की घेराबंदी कर किसानों ने झुकाया था। छात्र-नौजवानों को इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें