मंगलवार, 22 नवंबर 2022

 उत्तराखंड में भर्ती घोटालों के विरोध में युवा आक्रोशित

                                                                                            -महेश

अगस्त-सितंबर माह में उत्तराखंड में भर्ती घोटाले व्यापक रूप में सामने आए। न्ज्ञैैैब् (उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग) द्वारा विभिन्न परीक्षाओं में पेपर लीक, भ्रष्टाचार, धांधली की जांच ैज्थ् (स्पेशल टास्क फोर्स) को सौंपी गई। बाद में उत्तराखंड विजिलेंस विभाग ने भी जांच शुरू की। पुलिस दरोगा भर्ती 2015, ग्राम विकास अधिकारी भर्ती 2016, सचिवालय रक्षक और कनिष्ठ सहायक परीक्षाओं में धांधली, वन रक्षक भर्ती 2018, वन आरक्षी (फॉरेस्ट गार्ड) 2020, वन दरोगा भर्ती 2021 सहित 7 से अधिक भर्तियों की जांच चल रही है। यह जांच भी सवालों के घेरे में है। इसके अलावा उत्तराखंड सचिवालय में विधानसभा अध्यक्षों द्वारा अपने-अपने रिश्तेदारों, करीबी लोगों को नौकरी देने के आरोप लगे हैं। अभी तक 41 से अधिक गिरफ्तारियां होने के बावजूद भर्ती घोटाले के मुख्य आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। सीबीआई जांच की मांग भी प्रमुखता से उठ रही है।

बेरोजगार नौजवान परीक्षाओं में गड़बड़ियों की बात लंबे समय से उठा रहे थे। छात्रों ने आरटीआई के जरिये तथ्य जुटाकर, ओएमआर सीट की कार्बन कापी, परीक्षार्थियों से संपर्क कर आदि-आदि तरीकों से परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक की जानकारी जुटाई। नौजवान पहले सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज उठाते रहे। उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार नौजवानों के साथ हुई धांधली सुनने को तैयार नहीं हुई। धामी सरकार, मंत्री, भाजपा नेता भ्रष्टाचार के मामले में ‘जीरो टॉलरेंस’ का दावा कर अपनी पीठ खुद ही थपथपाते रहे। नौजवानों के साथ हुए भ्रष्टाचार, पेपर लीक के मामलों को नजरअंदाज करते रहे। नौकरियों में धांधली पर सरकार की बेरुखी से छात्र-नौजवानों का आक्रोश बढ़ता गया।




इन भर्ती घोटालों के विरोध में पूरे उत्तराखंड के अंदर छात्र-नौजवानों में आक्रोश फैल गया। देहरादून, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, श्रीनगर, बागेश्वर, नैनीताल, उत्तरकाशी सहित तमाम शहरों में छात्र-नौजवानों के संगठनों ने उत्तराखंड युवा एकता मंच का गठन किया। इसी बैनर तले राज्यभर में व्यापक प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों में सीबीआई जांच की मांग, पेपर लीक करने वाले अपराधियों को सजा दो, भर्तियों में भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं-नौकरशाहों को बर्खास्त करो, रद्द किए गए पेपरों को तुरंत शुरू करो, धामी सरकार इस्तीफा दो, उत्तराखंड में रिक्त पड़े पदों पर तत्काल नियुक्ति करो, बेरोजगारी को बढ़ाने वाली नीतियां रद्द करो आदि मांगें उठीं।

उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार ने यह दिखा दिया है कि छात्र-युवाओं, गरीबों-मेहनतकशों की नौकरियों की बंदरबांट की गई है। यह स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने अपने-अपने परिजनों, चहेतों को नौकरियों पर लगाया है। पैसे, सत्ता तक पहुंच के चलते सरकारी नौकरी पाने के आलम में तथाकथित राष्ट्रभक्ति, देश भक्ति, सांस्कृतिक एकता का शोर मचाने वाले आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के प्रचारकों के परिजनों और करीबियों को नौकरी दी गई। भाजपा के तमाम मंत्रियों, नेताओं को नौकरियां दी गई। अपनी बारी में यही काम कांग्रेस की सरकारों ने भी किया। हमाम में सब नंगे हैं की बात को दोनों ही पार्टियों ने चरितार्थ किया।  

इस दौरान उत्तराखंड में सचिवालय भर्ती की बात मीडिया में प्रमुखता से की जा रही थी। परंतु मुख्य सवाल न्ज्ञैैैब् सहित अन्य परीक्षाओं में भ्रष्टाचार का है जिनमें भ्रष्टाचार की बात प्रमुखता से प्रदर्शनों में उठाई गई। धांधलियों में राजनेताओं-नौकरशाहों-कोचिंग माफियाओं और छुटभैये नेताओं का गठजोड़ सामने आया है। जिन्होंने पेपरों को लाखों रुपए तक में बेचा। इनमें से कई लोग इन परीक्षाओं में धांधलियों से ही करोड़ों की अवैध संपत्ति के मालिक बन चुके हैं।

उत्तराखंड सरकार एसटीएफ से जांच करा रही है लेकिन इस घोटाले में आयोग के बड़े अधिकारियों के अलावा मंत्रियों तक की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में एसटीएफ की जांच की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े होते हैं। उत्तराखंड बनने के बाद से ही सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं। लेकिन किसी भी मामले में भ्रष्ट बड़े मगरमच्छों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। कुछ छोटी मछलियां मामूली सजा पाकर बचती रही हैं। अभी नेताओं के करीबी लोग, कुछ नौकरशाह, पेपर छापने वाली कंपनी के मालिक, कोचिंग माफिया आदि गिरफ्तार किये गये हैं। अभी भी मुख्य आरोपी एसटीएफ द्वारा नहीं पकड़े गए हैं। 

नेताओं के करीबी छुटभैये नेता हाकम सिंह को न्ज्ञैैैब् सहित अन्य परीक्षाओं का मुख्य आरोपी बनाकर पेश किया जा रहा है। हाकम सिंह एक मोहरा भर है। हाकम सिंह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का करीबी बताया जाता है। जिसके संबंध उत्तराखंड के कई राजनेताओं-नौकरशाहों के साथ पाए गए हैं। न्ज्ञैैैब् के अध्यक्ष को बदल दिया गया है। न्ज्ञच्ैब् (उत्तराखंड लोक सेवा आयोग) के जरिये अब इन परीक्षाओं को कराने का फैसला लिया गया है। इस तरह के मामूली बदलाव कर उत्तराखंड सरकार अपने आप को पाक-साफ करने पर लगी हुई है।

नौकरियों में भ्रष्टाचार एक राष्ट्रीय परिघटना बन चुकी है। बल्कि मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला तो पिछले कई सालों से सुर्खियों में है। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि-आदि सभी राज्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी नौकरियों के गवाह रहे हैं। 

बेरोजगारी की भयावहता आज हर कोई महसूस कर रहा है। बेरोजगारी के प्रति केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक की बेशर्म बेरुखी जगजाहिर है। मोदी सरकार ने 2016 से बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने बंद कर दिये हैं। किसी भी तरह जीवनयापन को ही मोदी सरकार ने रोजगार घोषित कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी के कारण आत्महत्या के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

नौकरी के सीमित अवसरों के चलते नौजवानों का गलाकाटू प्रतियोगिता में कूदना मजबूरी है। नौजवान रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। बेरोजगारी की भयावहता लगातार बढ़ती जा रही है। उसमें कोढ़ में खाज भ्रष्टाचार से उसका हाल और बुरा है। इन्हीं में कुछ अपने पैसे, रसूख या जान-पहचान का इस्तेमाल कर भ्रष्ट तरीकों से नौकरी पाने से भी कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। कम से कम होते स्थाई, सुरक्षित रोजगार के चलते भ्रष्ट तरीकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। दिन-रात मेहनत करने वाले छात्र-नौजवानों, गरीब घरों से आने वाले युवाओं के हकों पर डाका डाला जा रहा है।

छात्र-नौजवानों को वर्तमान दौर में पूंजीवादी सरकारों और पूंजीवादी व्यवस्था को निशाने में लेना होगा। यही हमारी नौकरियों में रुकावट के मुख्य कारण हैं। एकजुट और संगठित होकर ही यह किया जा सकता है। अपनी नौकरियों के साथ-साथ सभी को सुरक्षित और स्थाई रोजगार मिल सके इसके लिए संघर्ष करने की जरूरत है। ‘योग्यता अनुसार काम दो, काम के अनुसार वेतन दो’ के नारे को साकार करने के लिए संघर्ष करने की जरूरत है।

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