हमारा कहना है
हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे
यह वर्ष चुनाव का वर्ष है। और वर्ष के पहले दिन से ही स्पष्ट है कि सत्ता में काबिज मोदी सरकार किसी भी कीमत पर सत्ता में वापसी चाहती है। चुनाव जीतने के लिए वह हर हथकण्डे को अपनाना चाहती है। इन हथकण्डों में घोर सांप्रदायिक धु्रवीकरण, लटकों-झटकों से भरी लोकप्रिय योजनाएं, राष्ट्रवाद की उग्र बातें आदि सभी कुछ शामिल है। अगले 5 महीनों में देश में चुनाव का कानफोडू कोलाहल हर जगह गूंजना है। और इस कोलाहल में सबसे ऊंची आवाज से जग ठगाई का काम स्वयं नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को करना है।
यह आज कोई छिपी बात नहीं है कि वर्ष 2014 में यह सरकार भारत के सबसे बड़े लुटेरे पूंजीपतियों के सहयोग से अस्तित्व में आयी थी। दानवों और पिचाशों के गठजोड़ ने मोदी को सत्ता में बिठाया था। मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, रतन टाटा जैसे धन दानवों और हिन्दू राष्ट्रवाद का झण्डा उठाकर घूमने वाली हिन्दू फासीवादी पैशाचिक शक्ति राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-भाजपा का यह गठजोड़ था। मोदी ने दानव और पिचाश दोनों से काली ताकत हासिल की थी। और इन 5 सालों ने दिखाया ‘सबका साथ सबका विकास’ का असली अर्थ था दानव और पिचाशों का साथ और उनका ही विकास।
किसी को भी थोड़ा सा शक हो तो भारत के सबसे बड़े धन दानवों की पूंजी में बढ़ती को देख लेना चाहिए। किसी को भी शक हो तो उन्हें मोहन भागवत, जो कि संघ प्रमुख हैं, के भाषणों को थोड़ी गहराई से पढ़ लेना चाहिए। और आज जो सबसे ज्यादा ‘फिर से मोदी सरकार’ का नारा लगा रहे हैं, वे यही दानव-पिचाश हैं या फिर इनके टुकड़ों में पलने वाले इनके लगुए-भगुए हैं या वह मीडिया है जिसे कोई ‘मोदी मीडिया’ तो कोई ‘गोदी मीडिया’ कहता है।
इस मोदी सरकार ने हम छात्रों-युवाओं को पिछले 5 साल में क्या दिया? सत्ता में आने से पहले, एक से बढ़कर एक, वायदे किए गए। नारे-जुमले उछाले गये। बेरोजगार युवाओं और अपनी पढ़ाई पूरी करके रोजगार की आशा पाने वालों को सपना बेचा गया कि ‘मोदी सरकार’ हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करेगी। आज के दिन की हकीकत है कि हर तीसरा युवा बेरोजगार है। जिनके पास रोजगार है उन्हें नहीं पता कि यह रोजगार कितने दिन रहेगा।
और हद यह है कि देश में बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति क्या है इसका पता ही नहीं लगे इसलिए वर्ष 2015 से बेरोजगारी के आंकड़े प्रकाशित करने ही बंद कर दिये। रोजगार का आंकलन लगाने की प्रणाली को ध्वस्त कर दिया। मोदी और उनके भोपू अरूण जेटली ने बेरोजगारी और बेरोजगारों के बारे में क्या-क्या कहा वह सब बेरोजगारों के कानों में गूंज रहा है।
इस ‘मोदी सरकार’ ने हम छात्रों-युवाओं को और क्या दिया? देश की शिक्षा-प्रणाली ध्वस्त हो गयी है। देश के धन कुबेर शिक्षा के धंधे से दोनों हाथों से दौलत बटौर रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग बंद कर दिया गया। कालेज-विश्वविद्यालयों, मेडिकल-इंजीनियरिंग कालेजों की फीसों में भारी वृद्धि की गयी। और सरकार के खिलाफ छात्रों का गुस्सा न भड़के इसके लिए उनका ध्यान भरमाने के लिए संघ-भाजपा-एबीवीपी के मंत्री-विधायक-कार्यकर्ता-गुण्डे यानी ये सब ‘राष्ट्रवाद’ की पैशाचिक लीला करने लगे।
इनका राष्ट्रवाद ऐसा राष्ट्रवाद है जो पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सामने दुम हिलाता था, आज कल ओबामा-ट्रंप से प्रशंसा की हड्डी पाते ही पूंछ पटक-पटक कर उसे चूसने लगता है। इनका राष्ट्रवाद अपने राज की फिक्र में लड़ने वाले सामंतों से ऊर्जा पाता है। और ये सामंत तो ऐसे थे कि देश के मेहनतकशों-दलितों के गले में हांडी और कमर में झाडू बंधवाते थे ताकि वे जमीन में न थूंकें और उनके चलने से जो रास्ता ‘गंदा’ हो गया है उसे खुद में बंधे झाडू से साफ करें।
इनका राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद से नहीं लड़ता है उसकी वंदना करता है। इनका राष्ट्रवाद सामंतवाद से नहीं लड़ता है उसको अपना आदर्श मानता है। हमारे प्रिय देश को इनका वश चले तो मनुस्मृति में वर्णित जाति व्यवस्था वाले हिन्दू फासीवादी राष्ट्र में बदल दें।
‘मोदी सरकार’ के 5 साल छात्र-युवाओं के लिए काले साल थे। और यह सरकार फिर चुनकर आयी तो यह, हम छात्र-युवाओं सहित पूरे समाज को, अपने सिर में पहनने वाली संघी काली टोपी की तरह और काले रंग से भर देंगे।
यह 5 साल यदि ‘मोदी सरकार’ द्वारा छात्रों-युवाओं पर हमले के साल थे तो हम छात्र-युवाओं ने ईंट का जवाब पत्थर से देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। देश के तमाम विश्वविद्यालय-संस्थान खासकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय और संस्थान तो सचमुच रणक्षेत्र बने रहे। कभी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय कभी एफटीआईआई कभी हैदराबाद विश्वविद्यालय तो कभी मणिपुर विश्वविद्यालय। कहीं हमने मोदी सरकार को करारी शिकस्त दी और लिये गये फैसलों को बदलने पर मजबूर किया तो कहीं हम लड़ते-लड़ते हार गये।
रायपुर की मोहम्मद हिदायतुल्ला विश्वविद्यालय में हमने एक लंबे, जटिल व जुझारू संघर्ष से शानदार जीत हासिल की। ऐसी ही कामयाबी मणिपुर व अन्य कई विश्वविद्यालयों में मिली तो एफटीआईआई में लंबा संघर्ष वह रंग न दिखा सका जिसकी आशा इस लंबी लड़ाई से पैदा हुई। फिर भी हम गर्वपूर्वक कह सकते हैं कि जीत ने हमारा हौसला बढ़ाया और हार ने हमें सबक सिखाया। जीत ने हमारी जमीन को मजबूत किया तो हार ने नयी लड़ाई को जीतने के लिए हमें प्रशिक्षण दिया। कुछ भी हो इन 5 सालों में हमारी जीत और हार दोनों ही भारत के छात्र-युवा आंदोलन के लिए मिसाल बन गये।
जीती गयी या हारी गयी लड़ाई में एक मजबूत, जुझारू, प्रेरणा देने वाली आवाज के रूप में छात्राएं रहीं। छात्राओं ने खासकर रायपुर में उनको कैद करने वाले पिजरे को इतने जोर से लात मारी कि उसके परखच्चे उड़ गये। पिजरे का मालिक रोता-बिसूरता भाग खड़ा हुआ। और ऐसे ही सबक मूर्ख शासकों को बनारस और पंजाब विश्वविद्यालय में भी सिखाये गये।
मणिपुर, जम्मू और कश्मीर में छात्र-युवाओं के संघर्ष का उतना ही लंबा इतिहास है जितना हमारी आजादी का इतिहास है। इन 5 वर्षों में मणिपुर, जम्मू-कश्मीर के छात्र-युवाओं ने साबित कर दिया कि उनके पूर्वजों ने जो संघर्ष की मशाल उनके हाथ में सौंपी है उसे वे जला के रखेंगे।
भारत के छात्र-युवा पूरे भारत की आशा और भविष्य हैं। हम छात्र-युवाओं से यदि यह मांग की जाती है कि हम देश की तकदीर बदलें तो कोई गलत नहीं की जाती है। हमसे मांग की जाती है कि हम भगतसिंह की तरह जहीन-रौशन दिमाग हों तो कुछ गलत नहीं की जाती है। हमसे यह हमारे देश की मांग है कि हम भगतसिंह की तरह हंसते-हंसते अपने प्राण एक ऐसा देश बनाने के लिए न्यौछावर कर दें जिसमें किसी का शोषण न होता हो तो ठीक ही तो है। फांसी पर चढ़ने से पहले भगतसिंह ने ठीक ही तो कहा था भारत की जनता का भविष्य पूंजीवाद में नहीं समाजवाद में है। समाजवाद में ही वह शोषण मुक्त, सुखी व सम्पन्न होगी। और इसलिए हमें नये भारत-समाजवादी भारत के लिए लड़ना होगा और जीतना होगा।
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