बालिका गृह में पूंजीवाद का हैवानी चेहरा
-महेश
मुजफ्फरपुर, देवरिया के बालिका गृह में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार-उत्पीड़न की घटनाएं सामने आयीं। घटनाओं ने समाज में मौजूदा बालिका गृहों की स्थिति को सामने रखा। दूसरी तरफ समाज सुधार के नाम पर चलने वाले गोरख धंधे में लिप्त पूंजीवादी व्यवस्था के पुलिस, प्रशासन, नेता आदि के गठजोड़ को भी उजागर किया है।
बालिका गृहों की स्थिति को बयां करते हुए एक 10 वर्ष की बच्ची का बयान बता देता है कि यहां बच्चियों के साथ किस तरह से हैवानियत की जाती थी। यह बच्ची बताती है कि ‘‘बड़ी मैम ले जाती थी। कभी सफेद, लाल, काली गाड़ी में आती थी.. शाम 4 बजे जाती थी.. सुबह आती थी... दीदी सुबह कुछ नहीं कहती थी...’’ दस वर्षीय बच्ची ने थाने में यह बात बताई। ‘मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान’ देवरिया (उत्तर प्रदेश) के बालिका गृह में गरीब असहाय बच्चियों के बुरे हालात हैं। 42 में से 18 बच्चियां लापता हैं। ‘जब आश्रम गृह की एक लड़की ने यहां के स्टाफ के साथ असहमति जताई तो उसे पीट-पीटकर मार डाला गया। जमीन में गाड़ दिया गया’। यह बात मुजफ्फरपुर (बिहार) के ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ में रहने वाली बच्ची ने बताई। जहां 44 में से 34 बच्चियों के साथ बलात्कार की पुष्टि हुई है। जिनकी उम्र 7 से 14 वर्ष है। इन घटनाओं ने समाज में मौजूद बालिका गृहों की स्थिति को सामने रख दिया है। इसी तरह के हालात देश के अलग-अलग हिस्सों में हैं।
गरीब, असहाय, समाज से त्यागी हुयी बच्चियों का कहीं कोई आसरा नहीं होता है। उनको इस तरह के बालिका गृह, महिला गृह में रखा जाता है। कुछ लोग समाज सुधार के नाम पर पाखंड करते हुए इन बच्चियों को सफेदपोश लोगों, ऊंचे पदों पर बैठे पुलिस-प्रशासन के अधिकारी, नेताओं तक सप्लाई करते रहे हैं। समाज सुधार पैसा कमाने, सुख-सुविधा पाने का जरिया बन गया है। ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ के संस्थापक बृजेश ठाकुर व ‘मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान’ की संचालिका गिरजा त्रिपाठी व इनके पति और बेटी जैसे लोग हैं। जो सड़ांध मारते पूंजीवाद के समय के पाखंडी समाज सुधारक हैं।
इन लोगों के सभी राजनीतिक पार्टियों से संबंध रहे हैं। जो आज विपक्ष में हैं, कल वे सत्ता में थे। कल तक यह लोग भी इनको सरकारी खजाने से समाज सुधार के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपए देते रहे। जो पार्टियां आज सत्ता में हैं (भाजपा व नीतीश की पार्टी) उनके साथ इन पाखंडी समाज सुधारकों के घनिष्ट सम्बंध जगजाहिर हैं। उत्तर प्रदेश में बेटियों को बचाने के नाम पर ‘‘एंटी रोमियो स्क्वाइड’’ बनाने वाले योगी आदित्यनाथ भी देवरिया प्रकरण पर लीपा-पोती करने में लग जाते हैं। तथाकथित सुशासन बाबू नीतीश कुमार की आत्मा तो ऐसे सो गई, मानो जागने का नाम ना लेती हो। वे तो महीनों जांच रिपोर्ट को दबाए बैठे रहे। घटना के महीनों बाद भारी दबाव में रिपोर्ट दर्ज की गई। ‘‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’’ का नारा देने वाली मोदी सरकार दोनों राज्यों में सत्ता में होने के बावजूद भी इन गरीब बच्चों के प्रति उदासीन बनी रही। बृजेश ठाकुर ने एक अखबार से तीन अखबार निकालने शुरू कर दिए। सरकारों ने भारी विज्ञापन दिए। उसकी यह घ्निष्ठता सरकार से बढ़ती ही गई।
स्थानीय प्रशासन, स्थानीय मीडिया व समाज कल्याण विभाग इन संस्थाओं पर उठने वाले सवालों, इनकी गलत कार्य पद्धति के बावजूद इनका महिमामंडन करते रहे। सालों से समाज सुधार के नाम पर पाखंड करते रहे। यह स्थानीय प्रशासन, मीडिया, नेताओं के गठजोड़ को दिखाता है।
न्यायालय भी आरोपियों को बचाने, जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने, आरोपियों की सजा कम करने के काम में लगे रहे। बृजेश ठाकुर, गिरिजा त्रिपाठी या अन्य आरोपी तो मोहरे हैं, असली आरोपी सफेदपोश लोग बच निकले हैं। जो सरकारों में बैठे मंत्री, बड़े अधिकारी जैसे लोग हैं। जो सालों से बच्चियों की अस्मत को लूटते रहे। समाज सुधारक के नाम पर स्थापित रहे। आने वाले समय में कहीं और ऐसे ही कुकृत्य करते नजर आएंगे।
आज के दौर के पूंजीवाद ने समाज कल्याण के नाम पर बची-खुची ‘कल्याणकारी योजनाओं’ से पल्ला झाड़ लिया है। ऐसी बच्चियों-महिलाओं की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। सरकार इस काम को गैर सरकारी संस्थाओं को सौंप दे रही है। इससे सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच निकलती है। ऐसे मामले उजागर होने पर इनसे अपना पल्ला झाड़ लेती है। कुछ एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) के संचालकों को निशाना बनाकर खुद पाक-साफ बनने का स्वांग रचते हैं।
आज जरूरत बनती है कि समाज से त्यागे हुए असहाय, गरीब बच्चियों, महिलाओं के साथ घिनौने कृत्यों को अंजाम देने वाले प्रशासन, नेता व तथाकथित समाज सुधारकों के नापाक गठजोड़ का पर्दाफाश किया जाए। इनके खिलाफ संघर्ष किया जाए। साथ ही असली नकाबपोश लोगों के चरित्र को उजागर कर उनकी असली जगह सलाखों के पीछे पहुंचाया जाए। अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाली सरकारों और पूंजीवादी व्यवस्था का चरित्र उजागर करने की जरूरत है। पूंजीवाद का चरित्र अमानवीय व महिला विरोधी है। यह महिलाओं को एक इंसान के बजाय उपभोग की वस्तु के रूप में स्थापित करता है। इसलिए यह छोटी बच्चियों के साथ भी घिनौने कृत्यों को अंजाम देने वालों के साथ बनी रहती है। ऐसे घिनौने दानवों को पालती-पोषती है।
दुखियों, पीड़ितों व असहाय लोगों के दुख और तकलीफों का वास्तविक समाधान समाजवाद में ही है। समाजवाद में इनकी पूरी जिम्मेदारी समाजवादी सरकार की होती है। जो उनके साथ मानवीय बराबरी का रिश्ता स्थापित करेगी। समाज निर्माण में उनकी भूमिका तय करेगी। समाजवाद के संघर्षों में हम छात्र-युवाओं को जुट जाना चाहिए।
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