कश्मीर
गठबंधन का टूटना और दमन का नया दौर
पिछले समय में कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी द्वारा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस लेने के बाद वहां राज्यपाल शासन लग गया। भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के पीछे पीडीपी को दोषी ठहराया गया और पीडीपी भाजपा को दोषी ठहरा रही है। दरअसल भाजपा-पीडीपी का यह गठबंधन एक-दूसरे के विरोधी दलों का गठबंधन था। यह गठबंधन घोर अवसरवाद सत्ता सुख भोगने का गठबंधन था। गठबंधन बनाने को लेकर लंबी सौदेबाजी की वार्ताएं चली थी। यह सौदेबाजी इस रूप में सामने आयी कि कश्मीर घाटी एवं जम्मू को दोनों पार्टियों ने आपस में राजनीतिक रूप से बांट लिया था। जहां एक तरफ जम्मू में भाजपा (वह भी केंद्र) की चलती थी तो वहीं दूसरी तरफ कश्मीर घाटी में पीडीपी की। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक बयान देती तो भाजपा के मंत्री-नेता दूसरे।
भाजपा पीडीपी के इस बेमेल गठबंधन के टूटने का कारण यह राजनीतिक दल जो भी बता रहे हों परंतु इसकी असली वजह आगामी 2019 का लोकसभा चुनाव है। कश्मीर के लगातार खराब होते हालात और उससे निपटने के लिए भाजपा संघ द्वारा जो बंदूक की जुबान बोली और अमल में लाई जा रही है उससे हालात और भी बेकाबू होते चले गए हैं। ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेलने में माहिर भाजपा-संघ बगैर किसी पूर्व चेतावनी के गठबंधन वापस लेने को अपना एक और मास्टर स्ट्रोक घोषित कर रहे है। दरअसल ऐसा घोषित कर वह अपनी असफलता को पीडीपी के मत्थे मढ़ना चाहती है। राज्यपाल शासन लगने के बाद अब जम्मू कश्मीर के शासन को भाजपा ने सीधे अपने हाथ में ले लिया है।
कश्मीरी जनता के तीखे दमन में शामिल दोनों पार्टियों ने पिछले समय में खुद को बेनकाब कर दिया है। पीडीपी को जहां कश्मीर घाटी वह भी मुख्यतः दक्षिणी कश्मीर में अपना आधार सिमटता दिख रहा था वहीं जम्मू में भाजपा को अपने एजेंडे को आगे ना बढ़ा पाने के कारण अपना आधार खोता नजर आया। कठुआ कांड में भाजपा के मंत्रियों द्वारा सामूहिक बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा रैली निकालने की वजह से व मामले का सांप्रदायिकरण करने के कारण पूरे देश में थू-थू झेलनी पड़ी। इस प्रकार गठबंधन को ‘ठीक समय’ पर तोड़कर वे अपनी-अपनी ‘क्षतिपूर्ति’ करने निकल पड़े हैं।
अगर 2014 की बाद के कश्मीर के हालात पर नजर डालें तो वहां हालात निरंतर खराब होते चले गए। कश्मीर की स्वायत्तता (धारा 370) के घोर विरोधी संघ-भाजपा ने अपने छुद्र स्वार्थों के लिए कश्मीर को एक बार फिर आग में झौंक दिया है। कश्मीर की स्वतंत्रता की मांग को जो एक हद तक शांत हो चुकी थी, एक बार पुनः सतह पर आ गई है। संघ-भाजपा का घृणित एजेंडा जहां एक तरफ पाकिस्तान-मुस्लिम विरोध के नाम पर कश्मीरी जनता पर हमलावर है वही दूसरी तरफ सैन्यवाद देशभक्ति की अपनी परिभाषा के अनुसार वह कश्मीरी जनता का सैन्य दमन करने पर आमादा है। अपने इस हिन्दू फासीवादी एजेण्डे को आगे बढाने के लिए अंधराष्ट्रभक्ति, पाकिस्तान विरोध मुस्लिम विराध और कश्मीरी जनता के विरोध को दिन-रात हवा देता रहता है। कभी पैलेट गन से हजारों युवाओं को अंधा बना कर अपंग कर दिया जाता है। कभी सेना और सुरक्षाकर्मियों की बंदूकों का मुकाबला पत्थरों से करने वाले युवाओं को आतंकवादी बताया जाता है। या पैसा लेकर पत्थर फेंकने का आरोप लगाया जाता है। कभी सेना द्वारा कश्मीरी नागरिक को जीप के आगे मानव ढाल बनाकर चलाने को महिमामंडित किया जाता है। कभी वह प्रतिरोध के किसी भी स्वर को बंदूक से कुचलने की धमकी देते हैं। संघ-भाजपा के सत्ताशीन होने के बाद सेना के अफसर भी संघ भाजपा की फासीवादी भाषा में बात करने लगे हैं। संघ-भाजपा के नेता तो ऐसी भाषा बोलने के लिए कुख्यात हैं। सेनाध्यक्ष बिपिन रावत जब यह कहते हैं कि ‘‘कश्मीर की आजादी संभव नहीं, आप सेना से लड़ नहीं सकते’’ इस बात को स्पष्ट कर देता है कि कश्मीरी जनता के प्रति भारतीय राजसत्ता का क्या रुख है। और जब सयुक्त राष्ट्र संघ कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात कर दे तो भारतीय शासक उसे गलत ठहराने के लिए एक स्वर में चीख पडते है। भाजपा के नेता जब तब कश्मीरी पत्रकारों को अपनी हद में रहने की घमकी देते हैं। उनका मानना है कि वह वही भाषा बोले जो संघ-भाजपा सुनना चाहते हैं। संघ-भाजपा की इन करतूतों एवं कश्मीरी जनता के तीव्र दमन की प्रतिक्रिया स्वरूप कश्मीर में आतंकवाद भी क्रमशः बढ़ता गया है। जिसमें अब तक हजारों आम नागरिक व सुरक्षा कर्मी व आतंकवादी मारे गये हैं। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1990 से 2017 तक 13976 आम नागरिकों, 5123 सुरक्षाबलों ने अपनी जान गंवाई है। अपने प्रतिक्रियावादी चरित्र के कारण संघ-भाजपा यह समझने में बिल्कुल अक्षम हैं कि कश्मीर समस्या का समाधान सैन्य तरीके से संभव नहीं है। वह यह समझने के लायक भी नहीं है कि जैसे-जैसे दमन बढ़ाया जाएगा वैसे-वैसे उसके खिलाफ जनता का संघर्ष भी जुझारू बनता जाएगा।
कश्मीर समस्या को लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा, भाकपा, माकपा सरीखी चुनावबाज में पार्टियों का रुख एक सा है। वह कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं। कांग्रेस के शासनकाल में भी सेना का व्यवहार कश्मीरी जनता के प्रति ऐसा ही दमनात्मक रहा है। कश्मीर, उत्तर-पूर्व की अलग राष्ट्रीयताओं की मांग को लेकर शासक वर्ग का नजरिया और व्यवहार दमन के जरिए उसे जबरन अपने साथ रखने का है। सबसे विशाल लोकतंत्र का पर्याय भारतीय शासक वर्ग आज सेना की भारी मौजूदगी और क्रूर दमन के बाद ही कश्मीर को अपने साथ किए हुए हैं। राष्ट्रीयताओं को दमन के लिए उसने आर्म फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट, डिस्टर्ब एरिया एक्स सरीखे काले-कानून बना रखे हैं।
लेकिन फासीवादी संघ-भाजपा ने इस दमन को और तेज कर दिया है। कश्मीर आज संघ-भाजपा के लिए कारगर औजार है। इसी के जरिए वह पाकिस्तान विरोध, आतंकवाद, मुस्लिम विरोध, अंधराष्ट्रभक्ति व सैन्यवाद की विषाक्त हवा को पूरे देश में फैला रहा है। मीडिया चैनल कश्मीर के युवाओं को शेष भारत का दुश्मन साबित करने का धुंआधार प्रचार दिन-रात कर रहे हैं। कश्मीर के मसले को लेकर पूरे देश को उन्मादी बनाने का प्रयास जोरों पर है। ऐसा करते हुए वे शेष भारत के लोगों का उनकी समस्याओं से ध्यान भटकाने का काम करते हैं। अपने प्रतिक्रियावादी चरित्र से फासीवादी आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं, और जब वे ऐसा कर रहे हैं तो शेष भारत के मजदूर-मेहनतकशों, छात्र-नौजवानों के अधिकारों पर भी चुपचाप हमला बोलते हैं।
आज कश्मीर की आजादी की मांग और शेष भारत के मजदूरों, किसानों, युवाओं की मुक्ति का मार्ग एक ही है कश्मीर की आजादी के दमन का विरोध और अपने ऊपर हो रहे दमन उत्पीड़न का विरोध एक साथ किए जाने की जरूरत है। और ऐसा करते हुए दमन और उत्पीड़न के समूल नाश के लिए बराबरी व सम्मान पर आधारित समाज व्यवस्था के लिए संघर्ष अनिवार्य बन जाता है। तभी कश्मीर के और उस जैसी अन्य उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं को अलग होने के अधिकार के साथ आत्मनिर्णय का अधिकार मिल सकता है। आज पूंजीवाद में पूंजीपति वर्ग इसका घोर दुश्मन है ऐसा समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है।
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