दो साल पहले फिल्म एण्ड टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में गजेन्द्र चैहान की नियुक्ति के खिलाफ वहां के छात्रों ने 139 दिनों तक बहादुराना संघर्ष चलाया था। छात्रों का कहना था कि गजेन्द्र चैहान एक अभिनेता के बतौर संस्थान का निर्देशक बनने की योग्यता नहीं रखते हैं और महज आरएसएस से जुड़े होने के चलते उन्हें अध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि छात्रों का यह संघर्ष बेशर्म सरकार को झुकाने में असफल रहा और गजेन्द्र चैहान 2 साल तक अध्यक्ष के पद पर आसीन रहे।
इस साल गजेन्द्र चैहान का कार्यकाल खत्म होने के बाद उनकी जगह एक नए संघी अनुपम खेर को अध्यक्ष पद पर बैठाया गया है। ये नया संघी अभिनय क्षमता और आरएसएस की सेवा दोनों में अपने पूर्ववर्ती से बीस ही बैठता है। इस प्रकार अंततः दो साल की खोज के बाद आरएसएस को अध्यक्ष पद के लिए एक योग्य व्यक्ति मिल ही गया।
परन्तु इन दो सालों में मोदी सरकार ने अन्य संस्थानों की तरह एफटीआईआई को भी निजीकरण की राह पर धकेल दिया है। छोटे-छोटे स्ववित्त पोषित कोर्सेज चलाकर संस्थान को धन उगाहने की दुकान में बदलने की प्रक्रिया चालू कर दी गयी है। अब तक चैहान इसे पूरी शिद्दत से कर रहे थे तो अब अनुपम भी इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे। हो सकता है अपनी अनुपमीय अभिनय क्षमता के चलते वो इस काम को और भी बेहतर तरीके से कर लें।
बीते 3 सालों में अनुपम खेर का इतिहास मोदी सरकार की जी-हुजूरी करने वाला रहा है। यही वजह है कि उन्हें इस संस्थान में अध्यक्ष पद पर बैठाया गया है। उनकी पत्नी किरण खेर कई बार से भाजपा सांसद हैं।
शिक्षा संस्थानों के उच्च पदों पर संघियों को बैठाकर आरएसएस संस्थानों को अपने भगवा रंग में रंगना चाहता है। अनुपम खेर की नियुक्ति भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनकी अभिनय क्षमता क्या है। इससे न तो संस्थान का भला होना है और न ही सिनेमा का। हां, संघ और भक्तों का भला होना तय है।
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