जब से केन्द्र में भाजपा सरकार बनी है तब से ही देशभक्ति, राष्ट्रवाद पर बहस एक केन्द्रीय मुद्दा रही है। संघी व उनके चाटूकार हर छोटे-बड़े काम को देशभक्ति से जोड़ दे रहेे हैं। अपने कामों का विरोध करने वालों तथा सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने वालों को देशद्रोह की श्रेणी में खड़ा करके वे आक्रामक मुद्रा में आ जाते हैं। इस प्रकार संघी मानसिकता के लोग समाज में अपनी दहशत बनाकर राज कर रहे हैं। अपने कुकर्मों में संघियों ने गाय, गंगा व सेना का भरपूर इस्तेमाल किया है। गाय, गंगा और सेना की पवित्रता का प्रचार-प्रसार इस सरकार ने खूब किया है तथा सरकार की क्रूर पूंजीवादी नीतियों तथा हिंदुत्ववादी सोच के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने में इन तीनों का सहारा लिया गया है।
आज पूरे देश में संघी फासीवादी ताकतें हावी हैं। वे प्रतिरोध की हर आवाज को कुचल देना चाहती हैं। वे नौकरशाही, शिक्षण संस्थानों व तमाम संवैधानिक संस्थाओं में संघी मानसिकता के लोगों को बैठा रहे हैं। पूरे ही देश मेें यह प्रचार किया जा रहा है कि जब से केन्द्र में भाजपा सरकार आयी है तब से देश में दंगे नहीं हुए हैं। पर दरअसल बात यह है कि पूरे देश में संघी सोच हावी हुयी है। आम जनता तक अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत बढ़ी है। विरोधी विचारों के लिए स्थान क्रमशः खत्म होता जा रहा हैै। सत्ता में बैठे लोग विरोध का सामना करने के बजाय विरोधी आवाजों को कुचलने पर आमादा हैं। सत्ताधारी लोगों की यही सोच देश में अराजकता फैलाने के लिए जिम्मेदार है।
हमारे देश में जादवपुर वि.वि., हैदराबाद केन्द्रीय वि.वि., जेएनयू जैसे संस्थान हैं जो प्रतिरोध की परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं। इनका इतिहास है कि शासक वर्ग की हर जनविरोधी नीति की मुखालफत करते रहे हैं। पर कुछ दिनों से ही सरकार में बैठे लोगों ने अपने गुण्डा तत्वों के माध्यम से इन संस्थानों पर निशाना साधा है तथा इन संस्थानों के जनवादी व प्रगतिशील विचारों पर खुलकर हमला किया है। चाहे इनमें हैदराबाद केन्द्रीय वि.वि. में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या का मामला रहा हो, जादवपुर वि.वि. में छात्रों के दमन का मामला रहा हो या जेएनयू में छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार व अन्य साथियों को फर्जी तरीके से देशद्रोह के मामले में फंसाने का मामला रहा हो। सभी मामलों में संघी फासीवादी आक्रामक व हमलावर रहे हैं। इन्होंने सभी मामलों में भारतीय न्याय व्यवस्था को भी चुनौति दी है तथा फर्जी देशभक्ति की आड़ में दहशत फैलाने का काम किया है।
इसी कड़ी में जेएनयू के एम.एस.सी. बायोटेक के छात्र नजीब अहमद का मामला है। नजीब उ0 प्र0 के बदायूं जिले का रहने वाला है। नजीब ने बी.एस.सी बायोटेक बरेली के इन्वर्टीस इंस्टीट्यूट से किया। इसके बाद उसने आगे की पढ़ाई केे लिए जेएनयू को चुना। नजीब के परिवार के मुताबिक नजीब के गायब होने से 2 माह पूर्व ही उसका एडमिशन हुआ तथा घटना के लगभग 15 दिन पूर्व ही वह हास्टल में रहने गया था। नजीब किसी भी छात्र संगठन से जुड़ा नहीं था।
नजीब तीन भाई व एक बहिन में सबसे बड़ा था। नजीब के अलावा तीन भाई-बहिन भी पढ़ाई कर रहे हैं। नजीब के चाचा श्री अनीस अहमद ने बताया कि हास्टल में चुनाव का कैंपेन चल रहा था। इसी दौरान 14 अक्टूबर की शाम को एबीवीपी के तीन लोग उसके कमरे में पहुंचे। उसी दौरान नजीब से कुछ कहा सुनी हो गयी फिर अचानक 15-20 लोगों ने आकर नजीब को बुरी तरह पीटा। यह सारा मामला वार्डन के सामने ही हुआ पर किसी ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। घटना के बाद नजीब का रूम पार्टनर जेएनयू की एंबूलैंस में घायल नजीब को सफदरजंग अस्पताल ले गया। वहां डाक्टरों ने भर्ती करने से मना कर दिया और कहा कि पहले पुलिस में जाओ। नजीब 14 अक्टूबर की रात को ही वापस हास्टल आ गया। उसके बाद उसने अपनी मां फातिमा नफीस से बात की तथा मां को घटना के बारे में बताया। तभी नजीब की मां उसी समय अपने घर से दिल्ली के लिए निकल पड़ी।
नजीब की मां घर से निकलने के बाद लगातार उसके संपर्क में थी। आखिरी बार उन्होंने आनंदविहार पहुंचकर बात की। परंतु जब वे आनंदविहार से जेएनयू के उस हास्टल पहुंची जिसमें वह रह रहा था तो वह उन्हें अपने कमरे में नहीं मिला। रूम पार्टनर आस-पास देखने गया परंतु नजीब कहीं नहीं मिला। तब से लेकर आज तक नजीब का कोई सुराग नहीं लग पाया है। तमाम आतंकी घटनाओं का सुराग लगाने वाला, चंद घंटों में मुजरिमों को पकड़ने वाला, इन्काउंटरों में माहिर पुलिस विभाग नजीब के मामले में फेल साबित हुआ। इसका मतलब साफ है कि मारपीट में शामिल लोग, गायब करने वाले लोग और मामले को सुलझाने की जिनकी जिम्मेदारी है वे सब कहीं न कहीं मिलेे हुए हैं। इस मामले में जेएनयू प्रशासन, दिल्ली पुलिस प्रशासन, केन्द्र सरकार और दोषियों का एक पूरा गठजोड़ है। इसीलिए जेएनयू प्रशासन लगातार नजीब के परिवार से मिलने से बचता रहा। नजीब के परिवार की मद्द करने के बजाय नजीब को ही दोषी ठहराने में लगा रहा। जेएनयू प्रशासन ने नजीब के परिवार से मिलने से साफ मना कर दिया। काफी मशक्कत के बाद ये लोग वी.सी. से मिल पाए। जेएनयू प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखने से भी मना कर दिया उल्टे नजीब को ही मारपीट का आरोपी माना।
नजीब का भाई जब पुलिस में तहरीर लिखवाने गया तो पुलिस तहरीर लिखने में भी हस्तक्षेप किया। परिवार तहरीर में जो लिखवाना चाहता था उसे नहीं लिखने दिया गया। परिवार के मुताबिक पुलिस अफसरों का कहना है कि नजीब अपने आप गया है। हमने आरोपियों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया। इस घटना को लगभग तीन महीने होने वाले हैं। नजीब की परेशान मां अपने कलेजे के टुकड़े को दिल्ली की सड़कों पर ढूंढ रही हैं। वहीं व्यवस्था की निर्लज्जता यह है कि आरोपी खुलेआम जेएनयू कैम्पस में घूम रहे हैं तथा इंसानियत को चिढ़ा रहे हैं। नजीब की बरामदगी को लेकर राजधानी दिल्ली में आये दिन धरना, प्रदर्शन, रैलियां हो रही हैं। तमाम छात्र संगठन, जनपक्षधर बुद्धिजीवी व नागरिक आन्दोलनों में भाग ले रहे हैं। इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस-प्रशासन का रवैया आन्दोलनकारियों के प्रति दमनात्मक रहा है। वहीं नजीब को ढूंढने के मामले में शिथिलता रही है या पूरे मामले को टालने का प्रयास रहा है। आन्दोलनकारियों व नजीब के परिवार को जब-तब गिरफ्तार कर लिया जा रहा है। उनका दमन किया जा रहा है। सरकार में बैठे लोग विरोध की आवाज को निर्लज्जता के साथ दबाने में जुटे हैं।
अभी कुछ ही दिनों पहले नजीब के मामले में लगी जांच ऐजेन्सियों ने पूछताछ की। उसके रूम पार्टनरों का लाई डिटेक्टर टैस्ट किया गया। परन्तु आरोपियों ने यह टैस्ट कराने से मना कर दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि इस तरह के मामलों में पूछताछ क्या आरोपियों की मर्जी से की जाती है। यह घटना यह दिखाती है कि आरोपियों को कितना राजनीतिक संरक्षण है। यह सब एक प्लान के तहत किया गया है। जिसमें केन्द्र सरकार का पूर्ण समर्थन है इसलिए दिल्ली पुलिस-प्रशासन व जांच ऐजेन्सियां कुछ नहीं कर पा रही हैं।
नजीब की घटना को लेकर आन्दोलनों की श्रृंखला आगे बढ़ती जा रही है। यह आन्दोलन दिल्ली से लेकर नजीब के गृहनगर बदांयू तथा अलीगढ़ तक फैल चुका है। दिल्ली में आये दिन धरना-प्रदर्शन होते रहते हैं। बदांयू में भी तमाम संगठन, इमके, क्रालोस, नव क्रांति दल, वेलफेयर पार्टी आॅफ इण्डिया, पीस पार्टी, जदयू छात्र मोर्चा, आदि संगठनों ने नजीब के मामले में बदांयू शहर में ज्ञापन व प्रदर्शन इत्यादि कार्यक्रम किये हैं। कुछ दिनों पहले वेलफेयर पार्टी आॅफ इण्डिया के साथ कुछ संगठनों ने दिल्ली में जाकर मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक मार्च किया।
अभी हाल में ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के छात्रों ने तथा छात्र संघ ने नजीब की बरामदगी को लेकर इंसाफ मार्च निकाला तथा रेल रोको आन्दोलन किया। पुलिस प्रशासन द्वारा आन्दोलन को रोकने का प्रयास किया गया परन्तु जब छात्रों ने रेल रोक कर प्रदर्शन शुरु कर दिया तो पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया तथा कुछ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस तरह हम देखें तो नजीब की घटना एक देशव्यापी रूप लेती जा रही है। छात्रों में आक्रोश बढ़ रहा है। संघी फासीवादियों के तमाम कुत्सित प्रयासों के बावजूद हमारे देश में प्रतिरोध की संस्कृति अभी जीवित है। इंसाफ पसंद लोग इंसानियत के खिलाफ उठने वाले हर कदम का मुकाबला करने को तैयार हैं। नजीब हमको मिलेगा या नहीं या उसके साथ संघी फासीवादियों ने क्या किया इन सारे सवालों के जवाब हमको तभी मिल सकते हैं जब हम सभी इंसाफ पसंद लोग व संगठन इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर एक व्यापक जनान्दोलन खड़ा करें। हम अपनी फौलादी एकता से ही संघी सरकार को झुका सकते हैं।
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