शनिवार, 15 अगस्त 2015

हमें युधिष्ठिर नहीं चाहिए! हमें ‘भगवा दिन’ नहीं चाहिए!!

        फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीटयूट आफ इंडिया(एफटीआईआई) के छात्र शुक्रवार 12 जून से अनिश्चितकालीन धरने पर हैं। दरअसल उन्होंने यह कदम सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा गजेन्द्र चैहान को एफटीआईआई का चेयरमैन नियुक्त करने की घोषणा के बाद उठाया है। छात्र, गजेन्द्र चैहान को चेयरमैन बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं।

        कक्षाओं का बहिष्कार करते हुए छात्र ‘आइसेनटिन, पुदोवकिन- हम लड़ेंगे! हम जीतेंगे!’ के नारे लगा रहे थे। गौरतलब है कि आइसेनटिन और पुदोवकिन दोनों ही समाजवादी रूस के महान फिल्म निर्देशक थे।
        एफटीआईआई के चेयरमैन का इतिहास अब तक एक ऐसे लोगों का इतिहास रहा है जो वामपंथी या जनवादी विचारों से जुड़े रहे हैं। जिनकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों के रूप में रही है। अदूर गोपालकृष्णन, गिरीश कर्नाड, श्याम बेनेगल, अनंतमूर्ति जैसे लोग जोकि एफटीआईआई के चेयरमैन रह चुके हैं, की कला और फिल्म निर्माण की योग्यता पर शायद ही किसी को शक हो। 
        एफटीआईआई के आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि हमारी गजेन्द्र चैहान से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है लेकिन चैहान जैसे व्यक्ति को संस्थान का चेयरमैन बनाकर, संस्थान की गुणवत्ता को गिराया जा रहा है।        गजेन्द्र चैहान की योग्यता पर उठ रहे सवाल एकदम जायज भी हैं। महाभारत टेलीफिल्म में ‘युधिष्ठिर’ का पात्र एवं ‘खुली खिड़की’ जैसी बी ग्रेड अश्लील फिल्मों के अलावा शायद ही फिल्म निर्माण का कोई ऐसा काम होगा जो उनकी योग्यता को दर्शाता हो। फिर भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा उन्हें एफटीआईआई का चेयरमैन बनाए जाने के पीछे उनकी कोई न कोई ‘गुप्त योजना’ तो होगी ही, जो छात्रों को दिखायी नहीं दे रही है। दरअसल उनमें एक ‘गुप्त योजना’ है और वह यह कि वे 2004 से भाजपा के सदस्य हैं। वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से खट्टर का प्रचार कर चुके हैं। आशाराम बापू जैसे पाखण्डी बाबाओं की तर्ज पर सबको मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का प्रवचन देते रहते हैं और इन सभी योग्यताओं की वजह से ही उन्हें एफटीआईआई का चेयरमैन बनाया जा रहा है। क्या हुआ जो उनमें एफटीआईआई का चेयरमैन बनने की योग्यता नहीं है। जब दीनानाथ बत्रा जैसे झोलाछाप व्यक्ति द्वारा लिखित किताबों को गुजरात के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। जब सुदर्शन राव जैसे कूपमंडूक व्यक्ति को भारतीय अनुसंधान परिषद का अध्यक्ष बनाया जा रहा है तो गजेन्द्र चैहान कौन से बुरे हैं?
        संघ की फासीवादी विचारधारा का ज्ञान-विज्ञान-कला से दूर-दूर का नाता नहीं है। इनकी सोच से ग्रसित व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान व कला को ऊंचे धरातल पर ले जाने के बजाय गिराने का ही काम करेगा। वैज्ञानिक व जनवादी सोच पर खड़े लोग संघ के ‘हिन्दू राष्ट्र’ के सपने में रुकावट बनते हैं। इसलिए वह जल्द से जल्द ऐसे लोगों की जगह पर कूपमंडूक लोगों को बैठाना चाहते हैं जो आगे की पीढ़ी को भी अपने जैसा बनाये। संघ द्वारा इसके लिए चैतरफा प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में सभी जनवादी व धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लिए यह जरूरी काम बन जाता है कि संघ द्वारा शिक्षण संस्थानों को भगवा रंग में रंगने की कोशिशों को बेनकाब कर शिक्षा को हिन्दू फासीवादी पंजों से आजाद करवाया जाय।

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