मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

 आरआरआर (राइज, रोर, रिवोल्ट)

मिथक, छद्म इतिहास और विजुअल इफेक्ट से पैदा किया गया दूषित मनोरंजन

आरआरआर (राइज, रोर, रिवोल्ट) फिल्म के गाने नाटू-नाटू को ऑस्कर अवार्ड मिलने से यह फिल्म विश्व भर में सुर्खियों में है। फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड मिलने से फिल्म की कमाई भी बढ़नी है। फिल्म के बारे में बताया जा रहा है कि फिल्म निर्माता ने फिल्म में इतिहास, मिथक (रामायण, महाभारत के पात्रों को चित्रित कर) और तकनीक के जरिये मानवीय क्षमताओं से परे फिल्म के नायकों को दिखाया है। इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन है। सवाल ये है कि जब इतिहास को मनोरंजन के तौर पर पेश किया जाए तो ऐसे फिल्मी इतिहास से वास्तविक इतिहास के प्रति नजरिया कितना दूषित हो सकता है? भारत में आज जिस तरह शिक्षा से लेकर समाज की आम धारणाओं में संघ-भाजपा द्वारा इतिहास से खिलवाड़ किया जा रहा है, ऐसे में फिल्म आरआरआर कहां खड़ी होती है? इतिहास से यह खिलवाड़, मानवीय क्षमताओं का अतिरंजित चित्रण समाज में आम मेहनतकश लोगों, छात्रों-नौजवानों पर क्या असर छोड़ेगा?

फिल्म का कथानक यह है कि ब्रिटिश पुलिस की सेवा करता एक क्रांतिकारी हथियारों के जखीरे तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह भारतीय जनता का क्रूर दमन कर उस सम्मान को पाना चाहता है जिससे उसे हथियार गोदाम की जिम्मेदारी मिल जाये। ऐसे में वह भारतीय जनता पर ब्रिटिश सिपाहियों की तुलना में कई गुना अधिक क्रूरता करता है। दूसरी तरफ एक अन्य आदिवासी क्रांतिकारी ब्रिटिश अफसर की पत्नी द्वारा एक गोण्ड जनजाति की बच्ची को जबरन उसके मां-बाप से छीन लेने के खिलाफ ब्रिटिशों से लड़ने पहुंचता है। इन दोनों नायकों क्रमशः राम और भीम को मानवीय क्षमताओं से परे दिखाया गया है। इनका चित्रण इतना बढ़ा-चढ़ा कर किया गया है कि फिल्म देखने वाला फिल्म देखते हुए आश्चर्य से मोहित हो जाये। इसके लिए कम्प्यूटर द्वारा जबरदस्त दृश्य प्रभाव (वीएफएक्स- विजुअल इफेक्ट) पैदा किया गया है। फिल्म में राम की प्रेयसी सीता का किरदार आलिया भट्ट ने किया है। जिनकी भूमिका फिल्म में पौरुष चित्रण के कारण नगण्य सी है। हालांकि भारतीय फिल्मों में पितृसत्तात्मकता के असर के कारण नायकों की तुलना में नायिकाओं का स्थान कमतर ही रखा जाता है। 

भीम गोण्ड बच्ची को बचाने के लिए एक ब्रिटिश लड़की से प्रेम करने लगता है। जहां एक ब्रिटिश दावत में नाचने को लेकर ब्रिटिश लड़के द्वारा अपमानित होने पर ‘नाटू-नाटू’ गाने पर नाच होता है। अन्ततः परस्पर एक-दूसरे से अनजान ये क्रांतिकारी मित्र हो जाते हैं। फिर अपने लक्ष्य के अनुरूप एक-दूसरे के शत्रु हो जाते हैं। ऐसे में भीम, सीता के जरिये राम के सच को जानता है उसको वायदा करता है कि वह राम को बचाकर लायेगा। क्रांतिकारी के तौर पर एक-दूसरे को जान लेने के बाद अपनी जान जोखिम में डालकर भी दूसरे को बचाते हैं। अंत में ये दोनों ब्रिटिश सैनिकों की कई टुकड़ियों से बिना उचित सैन्य साजो-सामान के लड़ते हैं। यहां फिल्म का क्रांतिकारी राम जंगल में मिथकीय राम की मूर्ति से धनुष-बाण और गेरूआ वेशभूषा धारण करता है। साथ ही भीम भी शारीरिक सौष्ठव के दम पर हथियारों से लैस ब्रिटिश सैनिकों को धूल चटा देता है। अंत में ब्रिटिश गवर्नर स्कॉट की हत्या और ब्रिटिश हथियारों के गोदाम को नष्ट कर दिया जाता है। इस प्रकार ब्रिटिश अफसर के चंगुल से गोण्ड बच्ची और हथियारों का जखीरा पाने में ये दोनों सफल होते हैं। 

फिल्म में राम चरन ने क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू और जू.एनटीआर ने क्रांतिकारी कोमुरम भीम के किरदार को निभाया है। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उन क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई में ऐसा कुछ किया। बल्कि फिल्म का इन क्रांतिकारियों के कार्यों से दूर-दूर तक भी कोई वास्ता नहीं है। वास्तव में ये दोनों कभी आपस में मिले भी, ऐसा कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है।

क्रांतिकारियों के जीवन का फिल्म में मनोरंजन के लिए उपयोग करना उनके जीवन और त्याग, समर्पण को कलंकित करता है। मुनाफे की हवस में चौतरफा डूबा पूंजीवादी शासक वर्ग स्वतंत्रता के लिए शहादत देने वाले इन नायकों को भी नहीं बख्शता है। बल्कि इसके जरिये वो और अधिक मुनाफा कमाने की इच्छा करता है। फिल्म निर्देशक एस.एस.राजामौली ने अल्लूरी सीताराम राजू और कोमुरम भीम के साथ यही किया है। उन्होंने इन स्वतंत्रता सेनानियों को गलत ढंग से दिखाते हुए उनके देश की मेहनतकश जनता के लिए दी गई अकूत कुर्बानियों के बावजूद उनका अपमानजनक चित्रण किया है। ब्रिटिश पुलिस की नाक में दम करने वाले अल्लूरी सीताराम को फिल्म में ब्रिटिश पुलिस की सेवा करते हुए अपनी ही जनता का बर्बर दमन करते हुए दिखा रखा है। आसाम के चाय बागानों के मजदूरों को संगठित करने वाले कोमुरम भीम को आदिवासियों के बारे में पूंजीपतियों की घृणित धारणा के हिसाब से अनपढ़, अज्ञानी आदिवासी की तरह दिखाया गया है।

मिथकीय चरित्रों राम, सीता, भीम का उपयोग करने के पीछे फिल्म निर्माताओं का कोई आस्था भाव नहीं है। बल्कि फिल्म के निर्देशक एस.एस.राजामौली कहते हैं कि वे नास्तिक हैं। यदि वे नास्तिक हैं तो फिर मिथकीय पात्रों को फिल्म में क्यों डाला गया? क्योंकि इन मिथकीय नायकों को चित्रित करने में उन्हें बाजार में फिल्म के जोरों से चल पड़ने की उम्मीद नजर आती है। बल्कि वे कहते हैं कि रामायण-महाभारत में उनको हर बार कुछ नया मिलता है। आज देश में बढ़ते हिन्दू फासीवादी माहौल में उन्हें इन मिथकीय पात्रों को उपयोग करने में बड़ा मुनाफा नजर आता है। संभव है आगे भी फिल्मों में वे ऐसा करें या इन पर ही फिल्म बना डालें। इतिहास के साथ मिथक का मेल-मिलाप से मिथकों को ही प्रकारान्तर से स्थापित किया गया है। यहां आकर फिल्म के किरदारों की अतिरंजित शारीरिक क्षमता को ‘‘देवत्व’’ के आधार पर दर्शक को मनाने की कोशिश की गयी है।

आरआरआर फिल्म इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाली, धार्मिक कूपमंडूकता को प्रश्रय देने वाली और जनता को तुच्छ जबकि नायकों को सारी क्रूरता-बर्बरता के बावजूद ‘‘महान’’ पेश करती है। यही इसकी राजनीतिक पक्षधरता को स्पष्ट कर देता है। फिल्म शासकों के फायदे के अनुरूप लोगों के दिमाग को दूषित करती है। वह क्रांति या आजादी की भावना को सामाजिक के स्थान पर निजी इच्छा पर आधारित करती है। और इस ‘‘महान’’ निजी इच्छा के नाम पर मेहनतकश जनता पर हर तरह की ज्यादती को जायज ठहराती है। यह कुछ वैसा ही है जो आज ‘‘हिन्दू राष्ट्र’’ के नाम पर मोदी सरकार देश की मेहनतकश जनता के साथ कर रही है। वह देश के सवर्ण हिन्दुओं को समझाना चाहती है कि अखण्ड हिन्दू राष्ट्र के लिए आपको सरकार के कठोर कदम झेलने होंगे। इसके लिए यदि राजनीतिक तौर पर अल्पसंख्यक मुस्लिम-इसाई, दलित, महिला, आदिवासी, मजदूर, किसान, आदि मेहनतकशों का दमन हो रहा है तो वह जायज है, आप चुप्पी साधे रहें। साथ ही आर्थिक तौर पर तुम्हें भी दमन झेलना चाहिए। बेरोजगारी, महंगाई सबको झेलनी होगी। 

आरआरआर की राजनीतिक पक्षधरता के आधार पर हमें इसके दूषित मनोरंजन के प्रति आलोचक होना होगा। हमें कहना होगा आपके फिल्मी क्रांतिकारी नहीं बल्कि जनता के सच्चे नायक अपनी कुर्बानियों में सदैव जनता की स्मृति में अपने क्रांतिकारी रूप में जीवित हैं। आपको मिले पुरस्कार आपकी शासक भक्ति के प्रमाण हैं, आपके मुनाफाखोर होने के गवाह हैं।

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