गिरमिटिया मजदूरों की मार्मिक व्यथा का चित्रण
कुली लाइंस गिरमिटिया मजदूरों के जीवन पर लिखी गयी किताब है। इसके लेखक प्रवीण झा हैं। ‘कुली’ तमिल शब्द है। इसका अर्थ है ‘काम के बदले पैसा’। आज से 200 वर्ष पूर्व भारत में काबिज साम्राज्यवादियों अंग्रेजों, फ्रांसीसियों द्वारा कुछ द्वीपों जैसे मारीशस, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, गयाना, सूरीनाम, रियूनियन, जमैका इत्यादि पर मजदूरों को गन्ना, कॉफी इत्यादि के बागानों में काम करने के लिए भेजा गया। ताज्जुब की बात है कि भारत से पहले कुली अंग्रेजों ने नहीं, फ्रेंच लोगों ने भेजने शुरु किये। वो भी ब्रिटिश सरकार से बिना पूछे, तस्करी कर ले गये। सन् 1826 से 1830 ई. के बीच लगभग 3,000 मजदूर फ्रांस ने भारत से चुराकर एक द्वीप पर भेज दिये। यह द्वीप ‘रियूनियन’ कहलाता है। गुलामी प्रथा के समापन की तरफ बढ़ते विश्व में नकदी फसल वाले मालिकों को सस्ते और आज्ञाकारी मजदूरों की आवश्यकता पड़ी। यद्यपि इन एग्रीमेंट मजदूरों को ही गिरमिटिया मजदूर कहा गया; शायद निरक्षर होने के कारण ये एग्रीमेन्ट शब्द को सही तरीके से उच्चारण नहीं कर पाते थे और गिरमेन्ट कहते थे; फिर ये शब्द अपभ्रंश होकर गिरमिटिया हो गया। इन गिरमिटिया मजदूरों में महिला या पुरुष, दोनों ही होते थे। हालांकि महिला मजदूरों की संख्या अमूमन कम होती थी, ये अनुपात 60ः40 का होता था। दास प्रथा खत्म होने के उपरांत अंग्रेजों (साम्राज्यवादियों) को अपने उपनिवेशों जैसे मॉरीशस, गयाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो में गन्ना, कॉफी के बागानों में कार्य करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता थी तो इन गिरमिटिया मजदूरों को लाया गया। ये मजदूर कम से कम पाँच वर्ष तथा त्रिनिदाद एवं टोबैगो जैसी जगहों पर 10 वर्ष तक एक एग्रीमेंट के तहत रखे जाते थे। पर इनका जीवन दासों के जीवन की तरह ही बदतर था। इनके कोई भी अधिकार नहीं थे तथा इन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिलता था।
किताब सोचने को मजबूर करती है, जब बताती है कि युगांडा से जिस समय भारतीयों को भगाया जाता है तो भारतीय कैसे अफ्रीकियों की तरह दिखने के लिए अपना मुँह जूते की पॉलिश से रगड़ने लगते हैं, कैसे नटाल में महिलाओं की कमी के कारण कुछ गिरमिटियों को पशुओं के साथ सम्बन्ध बनाते हुए भी पकड़ा गया, कैसे रियूनियन द्वीप पर महिलाओं की कमी के कारण कई पुरुष मिलकर एक महिला से विवाह कर लेते, जिससे उनके बीच झगड़े भी बहुत होते, कैसे महिलाएँ बिस्कुट के एक पैकेट के लिए अपना तन बेचने को मजबूर हो जाती हैं।
ये वे लोग थे जो भारत में गरीबी, भुखमरी से त्रस्त थे तथा एक बेहतर भविष्य की आस में इन द्वीपों में पलायन कर गये थे, लेकिन इनकी सोच से उलट चीजों तो यहाँ बद से बदतर हो गयी थी। इन द्वीपों में जीवन की परिस्थितियां कम या ज्यादा बहुत ही खराब थी। मजदूरों से दिन-रात काम कराया जाता। जहाजों में हालात बहुत ही बदतर थे। जहाजों में सरदारों, अफसरों की नजर महिला मजदूरों पर रहती थी; जहाज में आठ साल की बालिका तक से जघन्य बलात्कार की घटना झकझोर देती है।
कुन्ती नामक एक महिला अपने पति के साथ गिरमिटिया बनकर गयी थी। लेकिन वहां अंग्रेज ने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तब वो महिला भागकर एक तालाब में कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है। इस सब से व्यथित होकर वह एक चिट्ठी भारत भेजती है, वह चिट्ठी भारत के अखबारों में छप जाती है। एक छोटी बच्ची अपने पिता के साथ इस वीरान सफर के लिए रवाना हो रही है। चूंकि वो एक लड़की है, अतः उसे अलग रखा जाता है एवं एक अंग्रेज अफसर उसका रेप कर देता है। कुली लाइंस अंग्रेजों (साम्राज्यवादियों) द्वारा किये गये घृणित अपराधों का एक कच्चा चिट्ठा है।
वैसे तो गिरमिटियाओं की हजारों कहानियां हैं जो आपको क्षोभ से भर देती हैं। लेकिन इस किताब से एक कहानी याद आ रही है जो इस प्रकार है- परसादी रामसहाय बीस वर्ष की उम्र में अपनी पत्नी दुर्गा रामजू और दो बेटों को लेकर चालीस दिन का सफर कर सूरीनाम पहुँचा। परसादी उन खुशकिस्मत लोगों में से थे जिनके साथ उनका हँसता-खेलता परिवार था। परसादी जब सूरीनाम पहुँचे, तो उन्हें और उनकी पत्नी को बागान भेजा गया, जहाँ उन्हें पाँच वर्ष का गिरमिटिया जीवन जीना था, कितना कष्टप्रद था, कहना कठिन है। सूरीनाम में ही उनका एक और बच्चा हुआ। उनकी पत्नी को एक दिन ज्वर आया, और कुछ दिनों में ही वह कमजोर होकर चल बसी। रिकॉर्ड के अनुसार उनकी मृत्यु का कारण ‘स्पेनिश पैन्डेमिक’ था। तीन बच्चों के पिता परसादी अकेले पड़ गये, पर उन्होंने अपना कॉन्ट्रेक्ट पूरा किया। अब आगे की कहानी में परसादी एक रहस्य बन जाते हैं। वो 1920 ई. में अपने बच्चों को सूरीनाम के अनाथालय में छोड़ भारत लौटते हैं। वो दरअसल पत्नी की मृत्यु के बाद अकेले पड़ गये थे। सूरीनाम में लोगों ने कहा कि बच्चों को यही छोड़ जायें क्योंकि उनका भविष्य यहाँ बेहतर है। अनाथालय में ये बच्चे इन्तजार करते रह गये। कई वर्ष बीत गये, परसादी की कोई खबर नहीं आयी।
सूरीनाम जब आजाद हुआ, तो कई परिवार नीदरलैंड चले गये। परसादी का बेटा अब युवा था, और वह भी आखिर नीदरलैंड पहुँच गया। एक अनाथ किन हालातों में यहाँ तक पहुँचा, यह अकल्पनीय है। पर उसके मन में यह कसक रह गयी कि अपने पिता से इस जीवन कभी फिर मिल सके।
आखिर वह 1999 ई. मे अपने पिता और अपने परिजनों को ढूंढने एमस्टरडम से वैनी गाँव तक का सफर करते हैं। वह वही सफर दोहराते हैं, जो उनके पिता परसादी ने शायद किया हो। वह कलकत्ता पहुँचते हैं।
अब 91 वर्ष के यह वृद्ध मात्र 6 वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता के साथ कलकत्ता से सूरीनाम के जहाज पर गये थे। उनके बाल्य-स्मरण का हिन्दुस्तान अब बदल चुका था। यह अब एक आजाद देश था, जो तकनीकी युग में हिलोरे मार रहा था। कलकत्ता से वैनी गाँव तक का ट्रेन का सफर कैसा रहा होगा?
जब वह आखिर गाँव पहुँचे, वहाँ की मिट्टी छूकर उनका इतिहास लौट आया। वह सोचने लगे कि इस सोने की धरती को छोड़ क्यों हम सुदूर देश जा बसे? और क्या मिला? अपने माँ-बाप को खोकर अनाथालय में एक अनजाने देश में बचपन बिताना कितना विदारक रहा होगा?
गाँव में किसी को भी परसादी की खबर नहीं थी। वह लौट कर तो शायद गाँव कभी नहीं आये। तो आखिर कहाँ गये? क्या वो कलकत्ता में ही नौकरी करने लगे? या किसी और जहाज पर किसी और देश चले गये? क्या उन्होंने दूसरा विवाह किया?
दरअसल 1920 ई. में जब वह भारत लौटे, तो गिरमिटिया जहाज लगभग बन्द हो गये थे। 1916 ई. में फिजी के लिए चले सतलज जहाज को आखिरी जहाज कहा जाता है। उनके लिए भारत आने के बाद लौटना असम्भव नजर आता है। 1921 ई. में ही सूरीनाम का आखिरी सरनामी गिरमिटिया कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो गया था। जिस भारत ने गिरमिटिया-प्रथा बन्द करने की वकालत की, आज उसके पास इनके लिए कोई जगह नहीं थी। इस स्थिति के बारे में ह्यूज टिंकर लिखते हैं- ‘‘सुदूर देशों के गन्ने के खेत, जहाँ वो इतने सताये गये, आज उनकी आखिरी किरण थे। यह एक विचित्र कहानी का विचित्र अन्त था।’’
आखिर परसादी के बेटे एक ‘विजिटिंग कार्ड’ पकड़ा कर वापस एम्स्टरडम लौट गये। दो वर्ष बाद उनके गाँव से धीरेन्द्र पाल सिंह जी जब उन्हें फोन करते हैं, वह खिल उठते हैं। शायद कुछ खबर मिली हो? वह उन्हें एम्स्टरडम बुलाते हैं, और उनका हाथ थामे रोने लगते हैं। वो जानते हैं कि उनके पिता की खबर उन्हें जीते-जी नहीं मिल पायेगी, पर वह किस्मत वाले हैं कि वह अपनी मिट्टी को वापस जाकर छू सके, और अपने गाँव के किसी व्यक्ति से इस दूर देश में मिल सके।
मानव इतिहास साम्राज्यवाद के घृणित पापों से भरा हुआ है। गिरमिटियों की कहानी पूंजी के घिनौने रूप को प्रदर्शित करती है। कुली लाइंस बताती है कि मानव जीवन को त्रासद स्थिति तक पहुंचाकर पूंजी के अम्बार लगाये गये। कभी अस्त न होते ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के सूरज के पीछे भारत सहित दुनिया के कितने ही गरीब मेहनतकशों के खून और आंसुओं की लालिमा छिपी है। गहरी सुर्ख खून को जला देने वाली लालिमा। गिरमिटियो आपकी त्रासद कहानी को याद करते हुए हम साम्राज्यवादी-पूंजीवादी दुनिया और उसके रहनुमाओं से सदैव घृणा करते रहेंगे। मानवता के शत्रु, इन परजीवियों की दुनिया को कोई आवश्यकता नहीं है।
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