गुरुवार, 10 नवंबर 2022

 मेंढ़कों के बीच

                                                                                              - सुकेश साहनी


वर्षों पहले मैंने अपने बेटे को एक कहानी सुनाई थी, जो कुछ इस तरह थीः एक बार की बात है, रात के अंधेरे में एक गाय फिसलकर नाले में जा गिरी। सुबह उसके इर्द-गिर्द बहुत से मेंढ़क जमा हो गये।

‘‘आखिर गाय नाले में गिरी कैसे?’’ उनमें से एक मेंढ़क टरटराया, हमें इस पर गहराई से विचार करना चाहिए।

‘‘मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है’’, दूसरे ने कहा।

‘‘कुछ भी कहो.....’’ तीसरा मेंढक बोला, ‘‘अगर पुण्य कमाना हो तो इसे बाहर निकालना होगा।’’

‘‘मरने दो!’’ चौथा टर्राया, ‘‘हमारी नाक के नीचे रोज ही सैकड़ों गायें-बछड़े काटे जाते हैं, तब हम क्या कर लेते हैं?’’

‘‘हमने तो चूड़ियां पहन रखी हैं’’, पांचवे मेंढ़़क की टर्र-टर्र।

‘‘भाइयो!’’ उन सबको शांत करते हुए एक बूढ़े मेंढ़क ने कहा, ‘‘अगर ये गाय न होकर कुत्ता-बिल्ली होता तो क्या हमें इसे मर जाने देना था?’’

एकबारगी वहां चुप्पी छा गई। वे सब उस बुजुर्ग मेंढ़क को शक-भरी नजरों से घूरने लगे। अगले ही क्षण वे सब के सब उस पर टूट पड़े।

उन्होंने उसे लहुलूहान कर नाले में धकेल दिया। इस घटना से मेंढकों में भगदड़ मच गई। वे सब सुरक्षित स्थलों में दुबक गए। घटना-स्थल पर सन्नाटा छा गया।

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मुझे चुप देखकर बच्चे ने पूछा था।

‘‘फिर?.....वहां एक आदमी आया, उसने रस्सी की मदद से गाय को नाले से बाहर निकाल दिया। अपनी जमात से बाहर वाले का ऐसा करना मेंढ़कों के गले नहीं उतरा। उनको इसमें भी कोई साजिश दिखाई देने लगी। यह बात कानोंकान पूरी मेंढ़क बिरादरी में फैल गई। वे समवेत स्वर में जोर-जोर से टर्राने लगे।’’

कहकर मैं चुप हो गया था।

‘‘अब मेंढ़क क्यों टर्रा रहे थे, पापा?’’

‘‘अब वे इस बहस में उलझे थे कि गाय को बाहर निकालने वाला हिन्दू था कि मुसलमान।’’

‘‘फिर.....’’

‘‘फिर क्या? उनका टर्राना आज भी जारी है।’’

बच्चा सोच में पड़ गया था। थोड़ी देर बाद उसने पूछा था, ‘‘पापा, आपको तो पता ही होगा कि आदमी कौन था?’’

‘‘बेटा, मुझे इतना ही पता है कि वह एक अच्छा आदमी था’’, मैंने उसकी भोली आंखों में झांकते हुए कहा था, ‘‘वह हिन्दू था या मुसलमान, यह जानने की कोशिश मैंने नहीं की क्योंकि तुम्हारे दादाजी ने मुझे बचपन में ही सावधान कर दिया था कि जिस दिन मैं इस चक्कर में पड़ूंगा उसी दिन आदमी से मेंढ़क में बदल जाऊंगा।

इसके बाद मेरे बेटे ने इस बारे में मुझसे कोई सवाल नहीं किया था और मुझसे चिपककर सो गया था।

मुझे नहीं मालूम कि यह कहानी मेरे बच्चे के मतलब की थी या नहीं, उसकी समझ में आई थी या नहीं, पर इतना जरूर है कि उस दिन के बाद वह मेंढ़कों से जरा दूर ही रहता है। 

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