सोमवार, 1 जून 2015

भाजपा की हार और ‘आप’ की जीत दोनों हतप्रभ

-पंकज
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को भारी जीत मिली। 54.3 प्रतिशत मत हासिल कर, 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की। चुनाव संपन्न होते ही मीडिया ने इसे सबसे बड़ी जीत करार दे दिया; क्योंकि 2013 के 66 प्रतिशत मतदान के मुकाबले 2015 में यह 67.1 प्रतिशत हो गया था। मत प्रतिशत 1.1 प्रतिशत बढ़ जाने को मीडिया ने लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत करार दे दिया। किंतु यह नहीं बताया कि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार के चुनाव में शराब व पैसे (नकदी बांटने) के मामले ज्यादा प्रकाश में आये। मीडिया ने नहीं बताया कि दर्जनों मामले मीडिया की पेड न्यूज के दर्ज हुए हैं। चुनाव आयोग द्वारा बनाये गये नियमों का खुल कर उल्लंघन किया गया। यह कटु सत्य प्रकाश में न आये तो ही अच्छा रहता है, क्योंकि इनसे ‘लोकतंत्र की भारी जीत’ फीकी पड़ने लगती है।
        दिल्ली विधानसभा चुनाव भाजपा-मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। वे हर हाल में चुनाव जीत लेना चाहते थे। इसके लिए उसने साम-दाम-दंड-भेद सब कुछ अपनाया। पानी की तरह पैसा बहाया, मीडिया मैनेजमैंट किया। त्रिलोकपुरी, बवाना में सांप्रदायिक दंगे करवाये। दिलशाद गार्डन, बसंत कुंज, जसौला, आदि स्थानों पर चर्चों पर हमले करवाये। चुनाव जीतने के लिए सवा लाख संघ कार्यकर्ताओं को प्रचार कार्य में लगाया गया। 120 सांसदों तथा तमाम मुख्यमंत्रियों को दिल्ली चुनाव जितवाने के लिए तैनात किया गया। झूठी घोषणाओं की झड़ी लगा दी गयी। 84 के दंगा पीड़ितों को 5.5 लाख रु. का मुआवजा, बस्तियों का नियमितीकरण, पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी, आदि-आदि लोक लुभावन वायदे व कदम उठाये गये।
इस सब के बावजूद लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा का वोट प्रतिशत 13 प्रतिशत गिर गया। उसे महज तीन सीटें ही मिल पायीं। इतनी ताकत लगाने के बाद मिली हार से पूरी भाजपा हतप्रभ रह गयी। तमाम विश्लेषकों द्वारा इस हार को मोदी की हार, मोदी जादू के फीके पड़ने, मोदी नीतियों के प्रति आक्रोश, मोदी की सांप्रदायिक धुव्रीकरण राजनीति का जवाब, आदि-आदि कहा जा रहा हैं। जो कि सही भी है।
आम आदमी की जीत से भी तमाम लोग हतप्रभ हैं। ये लोग केजरीवाल की जीत को आम आदमी की जीत घोषित कर रहे हैं। केजरीवाल को ईमानदार, जनता से जुड़ा, संघर्षशील, आदि-आदि गुणों से सुशोभित कर रहे हैं। मोदी के फासीवाद को रोकने के एक मजबूत अस्त्र के रूप मेें देख रहे हैं। केजरीवाल से वामपंथ को सीख लेने के सुझाव दे डाले गये हैैं। यह बातें कहां तक सही हैं, आइए जाने।
केजरीवाल ने चुनाव में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, जैसी मांगे उठाई जो कि कोई भी पूंजीवादी पार्टी का नेता उठाता रहता है। फिर भी जनता ने उन्हें इतना समर्थन क्यों दिया? बात साफ हैै। तमाम पार्टी, नेताओं की पोल जनता के सामने नंगे ढंग से खुल चुकी है। केजरीवाल एक नया जमूरा आया है। नये जमूरे का तमाशा लोग देखने आये हैं। जल्दी ही

पार्टी              2013 सीटें      मत प्रतिशत     2015 सीटें      मत प्रतिशत
भाजपा          32                (33.98)          3                  (32.3)
कांग्रेस           8                 (24.6 )                  0                   (9.7)
आप                  28                (29.5 )                 67                 (54.3)
कुल वोट                          (66)                              (67.1) 

उन्हें मालूम पड़ जायेगा कि इसमें नया कुछ भी नहीं है। पार्टी में मची यादव-केजरीवाल घमासान, ‘आप’ में मोदी-सोनिया पैदा होने की प्रक्रिया भर है। 
वल्र्ड बैंक, फोर्ड फाउंडेशन से खाद-पानी लेकर पैदा हुए केजरीवाल अपने-आप को सभी विचारधाराओं से अलग घोषित करते हैं। अपने को आम आदमी और अपनी राजनीति को आम आदमी की राजनीति घोषित करने का छलावा करते हैं। अपनी आर्थिक-सामाजिक हैसियत में यह कभी भी, कहीं से भी आम आदमी नहीं रहे हैं। राजनीति में जरूर आम आदमी वाले लटकों-झटकों का इस्तेमाल कर यह सफल हो गये हैं। राजनीतिज्ञों की परंपरागत छवि लटकों-झटकों के बरक्स आम आदमी पार्टी के लटकों-झटकों ने मध्यम वर्ग को जरूर प्रभावित किया है, उसे मंत्रमुग्ध किया है। 
केजरीवाल किसी विचारधारा पर विश्वास नहीं करते। वे सरकार को व्यवसाय करने वाला नहीं मानते। यह निष्पक्ष दिखने वाले विचार राजनीति से परहेज करने वाले मध्यम वर्ग को भा सकते हैं। किंतु सरकार कोई व्यवसाय न करे यह विचार किसका है- वल्र्ड बैंक, फोर्ड फाउंडेशन, अन्य साम्राज्यवादी संस्थाओं के और कारोबारी घरानों के। वे सरकार की भूमिका सीमित कर देना चाहते हैं। गुड गवरनेंस, स्माल गवरमेंट का नारा मोदी ने लगाया। केजरीवाल दूसरे शब्दों में यह नारा लगा रहे हैं। यह नारा साम्राज्यवादी संस्थाओं द्वारा दिया गया नारा है। ज्यादा सही कहें तो देश चलाने का यह रोड मैप साम्राज्यवादी संस्थाओं द्वारा बनाया गया है। विचारधारा से निष्पक्ष केजरीवाल निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की जन विरोधी नीतियों के प्रबल समर्थक हैं। इन नीतियों को खत्म किये बिना यह जनता के लिए बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा की बात करते हैं। यह लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं है। इन जन विरोधी नीतियों के साथ मिड डे मील, आंगनबाड़ी, शिक्षा मित्र, मोबाइल स्वास्थ्य सेवा वैन, इत्यादि सरीखी चीजें हो सकती हैं, जो कि विश्व बैंक की योजनाओं का भारतीय रूपांतरण या हू-ब-हू वही हैं जिसमें न तो सम्मानजनक रोजगार होता है, न जन कल्याण का मुकम्मल ढांचा। एन.जी.ओ. मानसिकता में पले-बड़े, वल्र्ड बैंक से प्रशिक्षित केजरीवाल से यही उम्मीद की जा सकती है कि वे जनकल्याण के लिए अधिकाधिक एन.जी.ओ. मार्का चीजें खड़ी करेंगे। इस तरह केजरीवाल कार्पोरेट घरानों, पूंजीवादी व्यवस्था के सच्चे व ईमानदार सेवक हैं और साबित भी होंगे।

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