आम बजट: 2015-16
-कमलेश
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2015-16 पेश किया। ऊंचे स्तर की लफ्फाजी और आंकड़ों की बाजीगरी के साथ बजट लोक सभा में रखा गया। बजट में कार्पोरेट घरानों, पूंजीपतियों पर जमकर धनवर्षा की गई और मेहनतकशों की झुकी पीठ को और दबा दिया गया। पूंजीपतियों की तिजोरियों में धन की आवक आमद के इंतजाम किये गये तो दूसरी तरफ मेहनतकशों की थाली से खाना, जेब में रखी पूंजी पर डाका डाला गया है। इस सब पर भी वाचाल मोदी के शागिर्द अरुण जेटली ‘अच्छे दिन’, ‘फूल खिलाने’ जैसी लफ्फाजी कर रहे हैं। मेहनतकशों को ‘अच्छे दिनों’ के लिए धैर्य रखने की सलाहें भाजपा, मोदी सरकार दे रही है। वह उससे 2021 तक इंतजार करने को कह रही है। 2022 यानी अगली बार भी मोदी सरकार तब जाकर स्वच्छ भारत, सबके लिए स्वास्थ्य, 24 घंटे बिजली, आदि-आदि चीजें आम जन को मिलेंगीं।
लोक सभा चुनाव में एकाधिकारी पूंजीपति ने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तिजोरियों के मुंह खोल दिये थे। मौजूदा बजट में मोदी सरकार ने इस कृपा को सूद समेत लौटाने की व्यवस्था की है। मोदी सरकार बनते ही सरकार पूंजीपतियों की सेवा में जुट गयी थी। श्रम कानूनों में सुधार, भूमि अधिग्र्रहण बिल, विनिवेश, दवाओं और अन्य जरूरी चीजों के दामों में वृद्धि, डीजल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त, आदि-आदि तरीकों से मोदी सरकार ने पूंजीपतियों को यह संदेश दिया कि वे कांग्रेस से किसी मामले में पीछे नहीं हैं, बल्कि सेवा भक्ति में उससे अव्वल है।
आम बजट पेश करते हुए अर्थव्यवस्था की एक खुशनुमा तस्वीर पेश की गयी। आंकड़ों की बाजीगरी से 5 प्रतिशत से भी कम विकास दर वाली अर्थव्यवस्था रातों-रात 7 प्रतिशत विकास दर से ऊपर पहुंच गयी। इस बाजीगरी में वित्तमंत्री ने 2004-05 के आधार वर्ष को बदलकर 2011-12 कर दिया था। आंकड़ों की यह बाजीगरी आंकड़ों की तो खुशनुमा तस्वीर बना सकती है, किंतु वास्तविक जीवन की नहीं। वास्तव में यह वृद्धि दर खोखली ही ज्यादा है। इस वृद्धि दर में उद्योग व कृषि की वृद्धि दर बेहद निम्न है। उद्योग की वृद्धि दर तो ठहरावग्रस्त है, नीचे गयी है। इस वृद्धि दर में सेवा क्षेत्र का ही बड़ा हिस्सा है जिसमें रक्षा से लेकर शेयर बाजार, विनिवेश सब कुछ शामिल है।
तेजी से सुधर रही, बढ़ रही अर्थव्यवस्था का सच बाजार खर्च को एक नजर देखकर उजागर हो जाता है। पिछले वर्ष बजट की कुल राशि 17,94,892 करोड़ रु. थी और इस वर्ष यह राशि 17,415 करोड़ रु. घटकर 17,77,477 करोड़ रु. रह गयी। वित्त मंत्री साहब, यदि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार सुधर रही है तो बजट खर्च बढ़ने के स्थान पर कम क्यों हो गया?
मोदी सरकार के इस आम बजट ने कार्पोरेट टैक्स को अगले चार वर्षों में 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत लाने का फैसला किया है। संपत्ति कर (वैल्थ टैक्स) को पूरी तरह समाप्त कर दिया है और एक करोड़ से अधिक आय वालों पर सरचार्ज घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया है। कार्पोरेट टैक्स कम करते हुए वित्तमंत्री ने अजीबो-गरीब तर्क दिया। उन्होंने कहा कि हम 23 प्रतिशत टैक्स ही वसूल पाते हैं, इसलिए कार्पोरेट टैक्स 30 से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया जाय। पूंजीपतियों के टैक्स न चुकाने की राशि और राजकोषीय घाटे की राशि लगभग समान है। यह बताता है कि देश के घाटे के लिए पूंजीपति ही जिम्मेदार हैं। पूंजीपति वर्ग लंबे समय से ‘कर आतंक’ की बातें करता रहा है। मोदी सरकार भी पूंजीपतियों के बीच चुनावी अभियान में पूंजी के सामने करों और श्रम कानूनों की बाधा को गिनाती रही और इसे खत्म करने का वादा भी करती रही है। चुनाव के बाद श्रम कानूनों को तो बड़े पैमाने पर बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और अब बजट में टैक्सों में छूट दे दी गयी। पूंजीपति वर्ग की चाहत और मोदी सरकार का लक्ष्य जी.एस.टी. नामक समान कर प्रणाली पूरे भारत में लागू करने की है। इसका वादा वित्तमंत्री पूंजीपतियों से कर चुके हैं।
आम बजट मेें पूंजीपतियों को करों में भारी छूट के बावजूद सरकार 62 प्रतिशत रकम करों से जुटायेगी। इस तथ्य का स्पष्ट मतलब है कि सरकार करों का बोझ मेहनतकशों के कंधों पर डालेगी। भारत में करों का बड़ा हिस्सा अप्रत्यक्ष करों (कस्टम, सेवा कर, एक्साइज ड्यूटी, आदि) से आता है। सरकार पूंजीपतियों पर लगने वाले प्रत्यक्ष करों को कम करते हुए अप्रत्यक्ष करों को बढ़ा रही है। सेवा कर 12.36 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया है। पहले से ही महंगाई से त्रस्त मेहनतकशों को वित्तमंत्री ने एक हंटर और जड़ दिया है।
बजट में मेहनतकशों पर और भी हमले किये गये हैं। सामाजिक सुरक्षा की मदों, स्वास्थ्य का अधिकार, पीने के लिए स्वच्छ पानी, आदि-आदि लफ्फाजियां करते हुए इन सभी मदों में सरकार द्वारा कटौती कर दी गयी है। 2014-15 मेें शिक्षा, महिला व बाल विकास, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, पेयजल, पंचायती राज मंत्रालयों में अनुमानित खर्च राशि 2,07,279 करोड़ रु. से घटाकर 2015-16 के लिए 1,92,411 करोड़ रु. कर दी गयी है। जन साधारण से जुड़े निम्न मंत्रालयों में खर्च 14,868 करोड़ रु. की कटौती कर दी गयी है। इस कटौती को यदि मुद्रास्फीति से जोड़ दें तो यह और भी कम हो जायेगी और वास्तविकता के करीब पहुंच जायेगी। मनरेगा जैसी योजना को जो कि ग्रामीण स्तर पर एक बेहद नाकाफी योजना है, पर भी सरकार का खर्च क्रमशः कम होता गया है। मौजूदा बजट में मनरेगा पर खर्च पिछले वर्ष के बराबर ही रखा गया है। मुद्रा स्फीति की दर के अनुपात में बढ़ाने के स्थान पर बजट वही रखना, वास्तविक अर्थ में बजट काकम करना है। मनरेगा में कभी 40 हजार करोड़ रु. के आस-पास खर्च होता था जो लगातार घटते हुए 34 हजार करोड़ रु. पहुंच चुका है। जी.डी.पी. का 0.84 प्रतिशत से क्रमशः घटते-घटते यह 0.2 प्रतिशत पहुंच चुका है। मोदी सरकार की मंत्री मेनका गांधी ने तो मनरेगा योजना को खत्म करने तक की वकालत बनारस में एक जनसभा में कर डाली। उनका स्पष्ट कहना है कि मनरेगा औद्योगिक विकास में बाधा पैदा कर रही है।
शिक्षा में खर्च पर मोदी सरकार ने कैंची चलाई है। 2014-15 में 70,505 करोड़ रु. खर्च से घटाकर 69,075 करोड़ रु. कर दिया गया है। सर्व शिक्षा अभियान में 2375 करोड़ रू., राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में 85 करोड़ रु. और मिड डे मील में 4100 करोड़ रु. की कटौती कर दी गयी है। शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा की मदों पर सरकार की यह भारी कटौती मोदी सरकार की लफ्फाजियों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।
पूंजीपति वर्ग और सरकार जनता को दी जाने वाली सब्सिडी को हमेशा तिरछी नजर से देखते रहे हैं। इसे वे अपने ऊपर बोझ समझते रहे हैं। किंतु पूंजीपतियों को दी जाने वाली छूटों को वह अपना फर्ज समझती है। मौजूदा बजट में जनता को मिलने वाली सब्सिडी में कमी की गयी है। सामाजिक सुरक्षा की मदों और सब्सिडी में कमी के बरक्स सरकार का हथियारों का बजट बढ़ना बदस्तूर जारी है। मोदी सरकार ने इसे बढ़ाकर 2.46 लाख करोड़ रु. पहुंचा दिया है। पिछले वर्ष सरकार रक्षा क्षेत्र में एफ.डी.आई में निवेश की सीमा बढ़ाकर बड़ा नीतिगत फैसला ले चुकी है। एक तरफ जनता की थाली की रोटियां छीनी जा रही हैं, दूसरी तरफ व्यवस्था अपनेे को और अधिक बंदूकों से लैस कर रही है। इस डर से कि कहीं ये भूखे-नंगे लोग बगावत पर न उतर आयें।
इस बजट में मोदी सरकार दावा कर रही है कि वह देश की दशा व दिशा बदल देगी। चीन को पछाड़कर वह दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जायेगी।इसके लिए मोदी सरकार बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की आस में है। विदेशी निवेश के लिए हर तरह की बाधाएं दूर की जा रही हैं। ‘मेक इन इंडिया’, ‘मैन्यूफैक्चरिंग हब’ के लिए आधारभूत ढ़ांचे को बढ़ाने की लंबी-चैड़ी योजना सरकार ने ले ली है। देशी-विदेशी पूंजी के लिए विनिवेश का एक रोड मैप सरकार बना कर बैठी है। बीमा, रक्षा, रेलवे, आदि-आदि में यह शुरू भी कर दिया गया है। इसे और बढ़ाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। सरकार ने 69,500 करोड़ रु. विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा है।
देश के विकास के लिए विदेशी निवेश पर टिकी मोदी सरकार की निगाहें देश को बहुत बुरे दिनों की ओर धकेलेगा। अव्वल तो दुनिया में छायी मंदी भारत में विदेशी निवेश की सीमाएं खड़ी करेगी। मंदी के कारण ही ‘मेक इन इंडिया’ कितना परवान चढे़ेगा इसमें शक है। किंतु जैसा कि विदेशी पूंजी का इतिहास है कि वह जिस देश में लगती है, उस देश को खोखला कर, मुनाफा न मिलने पर तुरंत ही रफूचक्कर हो जाती है। इंडोनेशिया का उदाहरण हमारे सामने है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की लंबे समय से विकास दर रोजगार विहीन बनी हुई है। जब भारतीय अर्थव्यवस्था 8-9 प्रतिशत विकास दर से तेजी से बढ़ रही थी तब भी रोजगार में वृद्धि दर एक प्रतिशत प्रतिवर्ष ही थी। इस तेज वृद्धि के समय भी भुखमरी की समस्या बढ़ी थी। इस अनुभव से जाना जा सकता है कि मोदी सरकार की तेज वृद्धि दर आम मेहनतकश के जीवन में कोई बदलाव नहीं लायेगी। यह विकास सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों का होगा।
मौजूदा बजट में मेहनतकशों व छात्रों के लिए कुछ नहीं है। ना शिक्षा, ना रोजगार, ना बेहतर जीवन सुरक्षा। इसे हासिल करने के लिए मेहनतकशों और छात्र-नौजवानों को बजट बनाने वालों और बजट के लाभार्थियों को रसातल में पहुंचाकर, नये समाज समाजवादी समाज का निर्माण करना होगा।
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