बुधवार, 1 अप्रैल 2015

कोशिका

(शरीर के विभिन्न अंगों के बारे में लोकप्रिय ढंग से एक श्रृंखला कई दशकों पूर्व रीडर्स डाइजेस्ट में ‘आई एम जोस बाडी’ नाम से छपी थी। उसके एक हिस्से का अनुवाद प्रस्तुत है- संपादक)
        मैं कुछ-कुछ एक बड़े नगर के समान हूं। मेरे पास दर्जनों ऊर्जा गृह हैं। एक यातायात व्यवस्था है। एक बेहतरीन दूरसंचार व्यवस्था है। मैं कच्चा माल आयात करता हूं, वस्तुओं का निर्माण करता हूं और अवशिष्ट निस्तारण तंत्र का संचालन करता हूं। मेरे पास एक सक्षम शासन है। वास्तव में एक सख़्त निरंकुश शासन है और मैं अवांछनीय चीजों को दूर रखने के लिए अपने परिक्षेत्र की निगरानी करता हूं।
        क्या कुछ मेरे आकार के कारण यह है? मुझे देखने भर केे लिए भी एक अच्छे सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता है और मेेरे अंदर के महानगर में झांकने के लिए एक बेहतरीन सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता है। मैं एक कोशिका हूं, जाॅय के शरीर की 600 खरब कोशिकाओं में से एक। प्रायः कोशिका को जीवन की मूलभूत इकाई कहा जाता है। वास्तव में मैं खुद में ही जीवन हूं। जाॅय की दायीं आंख की छड़ कोशिका (rod cell) केे रूप में, मैं उस पूरी आबादी के बारे में बताऊंगी, जिसकी मैं एक सदस्य हूं।
        ‘विशेष’ कोशिका जैसी कोई नहीं होती है। हम आकार और कार्य में उतने ही भिन्न हैं, जितना कि जिराफ और चूहा। हम हर आकार की होती हैं। सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग का अंडा है। इस आकार से लेकर हम इतने छोटे भी हो सकते हैं कि एक साथ 10 लाख एक पिन के शीर्ष में आसानी से आ जायें और साथ ही साथ हमारी बनावटों में भी बहुत भिन्नता होती है। जैसे कि- तश्तरीनुमा, छड़नुमा तथा गोलाकार। 
  हम हर उस चीज में भाग लेते हैं जो भी जाॅय करता है। वह सूटकेस उठाता है और सोचता है कि उसकी बांह यह कार्य कर रही है। पर वास्तव में यह अदृश्य मांसपेशीय कोशिकाओं का संकुचन है। चलो! उसे सोच-विचार करने दो कि उसे कौन सी टाई पहननी चाहिए; पर वास्तव में यह मस्तिष्क की कोशिकाएं होती हैं, जो सोचने का कार्य करती हैं। या वह दाड़ी बनाता है तो तंत्रिका कोशिकाएं तथा मांसपेशीय कोशिकाएं यह कार्य संपन्न करती हैं। गौरतलब है कि चेहरे के जो बाल वह काटता है, वह भी दूसरी तरह की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं। 
  आंख मेें एक छड़ कोशिका के रूप में मेरा कार्य मंद प्रकाश को पकड़ना (जैसे टिमटिमाते हुए तारे को देखना) और उसे विद्युत संकेतों में सरलीकृत कर बदलना है। फिर मैं इस संकेत को जाॅय के दिमाग को भेज देती हूं। यदि पर्याप्त संकेत पहुंचते हैं तो वह सितारे को ‘‘देखने’’ में सफल हो जाता है। क्योंकि जाॅय की आंख की 25 करोड़ छड़ कोशिकाओं में से हममें से हरेक के अंदर प्रकाश को पकड़ने वाले 3 करोड़ वर्ण बिन्दुओं के अणु होते हैं; इसलिए हम स्वभावतः बहुत ज्यादा विद्युत इस्तेमाल करते हैं। इसे पैदा करने के लिए मेरे पास कुछ हजार माइट्रोकाण्ड्रिया हैं- जो कि बहुत सूक्ष्म, सासेजनुमा ऊर्जा गृह हैं, जो ईधन (शर्करा) को जलाते हैं, विद्युत उत्पन्न करते हैं और अपने पीछे ‘‘राख’’ (जल और कार्बन डाई आक्साइड) छोड़ते हैं। इस जटिल रासायनिक प्रक्रिया में वे ‘एडीनोसीन-ट्राई-फास्फेट’ (संक्षेप में ए.टी.पी.) का संश्लेषण करते हैं। यह हर जीवित वस्तु के लिए सार्वभौमिक ऊर्जा स्रोत है, एक रेखाचीनी के पौधे से लेकर घोंघे तक और मनुष्य तक को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 
  जब भी जैसे दिल के धड़कने के लिए, सांस लेते समय छाती फुलाने के लिए, पलक झपकाने के लिए एटीपी सरल छोटे पदार्थों में टूटती है और ऊर्जा निकालती है। जब तक भी जाॅय जिंदा रहेगा, उसे ऊर्जा और इसलिए एटीपी की मांग रहेगी। यहां तक कि गहरी से गहरी नींद में भी गतिविधियों का प्रवाह चलता रहता है, जैसे- कोशिकीय भट्टियों का शरीर को गर्म करने के लिए जलते रहना, दिमागी कोशिकाओं का स्वप्न उत्पन्न करने के लिए विद्युत प्रवाहित करना, दिल की कोशिकाओं का रक्त प्रवाह के लिए निरंतर स्पंदन करना। एटीपी का टूटना (और निर्माण होना) सतत है।
  हम सभी कोशिकाओं में माइट्रोकाण्ड्रिया (ऊर्जा गृह) होता है, सिर्फ लाल रक्त कणिकाओं के एक प्रमुख अपवाद के साथ। क्योंकि वे कोई निर्माण कार्य नहीं कर रही होती हैं और रक्त धारा उन्हें अपने साथ बहा ले जाती हैं, अतः उन्हें ऊर्जा की कोई आवश्यकता नहीं होती है। 
  सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक मादा अण्डाणु कोशिका होती है। जेैसे कि जाॅय की मां के शरीर में। एक बार निषेचित होने पर यह कोशिका बार-बार विभाजित होती है, जब तक कि बच्चे की 20 खरब कोशिकाएं न हो जायें। इस प्रकार की गुणात्मकता अपने आप में ही बहुत बड़ा आश्चर्य है। सबसे बड़ा आश्चर्य एक निषेचित अण्डाणु में इतनी बड़ी मात्रा में जानकारियों का एकत्र होना है। इस छोटे से जीवन के अंश में लीवर जैसे रासायनिक विभाग के निर्माण का पूरा खाका संचित रहता है। इसके अंदर बालोें के रंग, त्वचा के रंग, शरीर के आकार के बारे में सूचनाएं संचित रहती हैं। छोटी अंगुली के विकास को कब रोक देना है, इसके बारे में भी यह जानती है। यह आरंभ से ही लगभग जानती है कि जाॅय आने वाले वर्षों में कितना प्रखर होगा और वह किन बीमारियों के लिए ज्यादा संवेदनशील रहेगा तथा उसका रूप-रंग कैसा होगा। किस प्रकार से कोई छोटा सा अंडाणु जानता है कि (हालांकि ये सभी अंडाणु स्तनपायियों में एक ही आकार के होते हैं), उसे व्हेल मछली बनना है या एक खरगोश या फिर किसी दूसरे को जाॅय। यह हमें संरचना के चमत्कारिक पदार्थ डीएनए मतलब डी-आक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल की शरण में ले जाता है। हम सभी कोशिकाओं को यह हमारे कोशिकीय भागों को बताता है कि कैसे व्यवहार करना है; क्या पदार्थ बनाना है; क्या चाहिए तथा किस चीज से बचना है। 
  मेरे डीएनए की तुलना एक निर्माता (आर्किटेक्ट) से की जा सकती है, जिसका कार्य जीवन-यापन के लिए शानदार डिजायन बनाना होता है। पर इन निर्माण कार्य के लिए ठेकेदार आरएनए को या राइबोन्यूक्लिक अम्ल को नियुक्त किया जाता है। अणुओं के रूप में ये सारी जानकारी एक साथ जुड़े द्विकुण्डलीय डीएनए अणुओं में ‘‘छपी’’ होती है। संदेशवाहक आर.एन.ए. कुण्डलित डीएनए से लिपटे रहते हैं और डीएनए से संदेशवाहक आरएनए को अग्रयोजना के बारे में जानकारी मिलती है तथा रूपरेखा के बारे में पता चलता है कि किस चीज की जरूरत है। फिर संदेशवाहक आरएनए द्वारा इन शब्दों में निहित संदेश को आरएनए के अन्य रूप ‘‘transfer RNA’’ द्वारा आगे पहुंचाया जाता है। फिर इसके बाद की प्रक्रिया शुरू होती है तथा दिशा-निर्देशोें के अनुसार जाॅय के शरीर में सैकड़ों प्रोटीनों में से एक प्रोटीन का निर्माण कार्य किया जाता है। 20 अमीनों अम्लों द्वारा प्रोटीन निर्माण होता है और माला के मनकों के भांति ये एक विशेष आकार बनाती हैं, परिणामस्वरूप जाॅय के दिल की धड़कने वाली मांसपेशियों की कोशिकाएं तथा संकुचन करने वाली पैर की मांसपेशियां जो जाॅय को चलने-फिरने की आज्ञा देती हैं या वह चीज बनती है जिसका आदेश डीएनए देता है।
  आश्चर्यजनक तौर पर जाॅय की आंखों में उपस्थित छड़ कोशिकाओं के डीएनए में वो सारी जानकारी संग्रहित होती है, जो एक बच्चे के लिए आवश्यक हो। कान की कोशिकाओं में उपस्थित डीएनए में सैद्धान्तिक रूप से एक पैर का निर्माण किया जा सकता है, हम ऐसा अविवेकपूर्ण काम नहीं करते क्योंकि हममें से प्रत्येक में डीएनए ढांचे का एक बड़ा हिस्सा बंद कर दिया जाता है। मेरा डीएनए सिर्फ छड़ कोशिकाएं बनाता है, कुछ और नहीं। 
  कोशिका विभाजन जिसने जाॅय को निर्मित किया है, वह पूरी जिंदगी चलता रहता है, हर सेकण्ड लाखों कोशिकाएं मरती हैं और लाखों पैदा होती हैं। कोशिका विभाजन की प्रक्रिया द्वारा, हर कोशिका एकदम प्रतिरूप दो नयी कोशिकाएं बनाती हैं। वसा कोशिकाएं संचित करने वाली बड़ा डिब्बा होती हैं तथा अपनी संतानें धीमी गति से उत्पन्न करती हैं। लेकिन त्वचा कोशिकाएं हर 10 घंटों में अपनी जैसी नयी प्रतिलिपि उत्पन्न करती हैं। इस मामले में दिमाग एक  निश्चित अपवाद है। जिस क्षण जाॅय पैदा हुआ, उसके पास उसके संपूर्ण जीवन में सर्वाधिक दिमागी कोशिकाएं थीं। कमजोर, घिसी-पिटी, मृतप्राय कोशिकाएं मरती जाती हैं; तथा इनका स्थान नयी कोशिका नहीं लेती हैं। फिर भी शुरूआत में ही ये इतनी अधिक मात्रा में होती हैं कि ये हानि कुछ मायने नहीं रखती।
  हम कोशिकाएं 600 एन्जाइमों का निर्माण करती हैं। ये सबसे ज्यादा उल्लेखनीय पदार्थ हैं। आर.एन.ए. के आदेशानुसार, ये कुशल रसायनशास्त्री तुरंत तथा स्वतः ही प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं- जैसे पहले मछली के एक टुकड़े से प्रोटीन लेना, फिर इस प्रोटीन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना और फिर इसमें उपस्थित अमीनों अम्लों को सही काम में लगाना ताकि जरूरी मानव प्रोटीन बनाया जा सके, जैसे जाॅय के अंगूठे का नाखून। साथ ही साथ कोशिकीय एन्जाइम जटिल हारमोन्स बनाते हैं और बीमारी से लड़ने हेतु; एन्टीबाडीज भी, और दुनिया के सबसे बेहतरीन रसायनशास्त्री से भी; बड़ी योग्यता के काम करता है। 
  जितनी उल्लेखनीय हमारी आंतरिक संरचना है, उतनी ही बाहरी भित्ति (दीवार) भी। मेरी झिल्ली सिर्फ 0.000001 मिमी. मोटी होती है। अभी तक वैज्ञानिक मेरी परत के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे; इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का धन्यवाद कि वे अब जानते हैं कि यह एक अति आवश्यक अंग है। कोशिका झिल्ली एक गेट कीपर की तरह काम करती है। तथा यह भी निर्णय करती है कि किसको प्रवेश करने दिया जाय और किसका निकास किया जाय। यह कोशिका के आंतरिक वातावरण को लवण, कार्बनिक पदार्थ, जल और अन्य पदार्थों के मामलों में बहुत संतुलित रखती है। इस पर जीवन पूर्णतया निर्भर होता है। प्रोटीन निर्माण के लिए किन कच्चे पदार्थाें की आवश्यकता होती है? यह झिल्ली उचित (सही) चीजों को ही प्रवेश करने देती है तथा दूसरी चीजों को बाहर करती है। निश्चित तौर पर इसका एक उच्च तकनीकी प्रबंधन होता है। 
  हममें से हर कोई एक अलग पहचान पत्र लेकर घूमता है, जो कि दूसरी कोशिका झिल्ली द्वारा पहचान लिया जाता है। ताकि कोेई भी विदेशी या घुसपैठिया हमारी बस्तियों में न आ जाये। कल्पना करो कि क्या होगा यदि हम अजनबियों को सहन करे। एक बाल की कोशिका यदि मेरे क्षेत्र में आ जाये तो शायद बाल जाॅय की आंखों से निकल आये। या कोई गांठ किडनी में निकल आये या लीवर कोशिका पलकों में उग आये। 
  ऐसा भी प्रतीत होता है कि कोशिका झिल्ली के पास अन्य कोशिकाओं से बात करने के लिए एक दूरसंचार व्यवस्था भी है। ये कैसे काम करता है- मुझे भी नहीं पता-शायद पुनः एन्जाइमों द्वारा ऐसा होता हो। यदि आप दिल का एक हिस्सा लें, इसे स्वतंत्र कोशिकाओं में अलग-अलग करें तो भी ये कोशिका कुछ समय बाद एक साथ धड़केंगी। कैसे भी, पर शब्द एक कोशिका से दूसरी कोशिका में संचरित हो जाते हैं। 
  हार्मोन्स भी एक दूरसंचार व्यवस्था का हिस्सा होते हैं और रासायनिक संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर- यदि जाॅय की रक्त शर्करा बढ़नी शुरू होती है, तो उसका पैनक्रियाज इंसुलिन का उत्पादन बढ़ा देता हैं, हार्मोन संदेश देकर कहता है, ‘‘शर्करा को जलाने की गति तेज करो’’। रक्तधारा अपने साथ इस कार्य का आदेश ले जाती है। ऐसे ही; जाॅय पेड़ काटने का फैसला करता है तो उसे अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होगी। इस मामले में उसको थायराइड कोशिकाओं का हार्मोन्स कार्य-आदेश देती है:‘‘एटीपी उत्पादन की गति बढ़ाओ।’’ हमारे बड़े शत्रु वायरस हैं। इन छोटे तंग करने वाले परजीवियों का अपना कोई भी माइट्रोकाण्ड्रिया नहीं होता। ये अपने जीने के लिए कोई भी ऊर्जा उत्पन्न नहीं करते। कभी-कभार जब हमारी अभिभावक कोशिका अपना कार्य करने में असफल होती है तो वायरस एक कोशिका में प्रवेश कर जाता है। अब शक्ति की उपलब्धता के कारण ये आतंकी प्रजनन करते हैं। वायरस कणों से पूर्णतया पराजित होकर कोशिका नष्ट हो जाती है। फिर ये वायरस दूसरी कोशिकाओं को भी संक्रमित करते हैं। वायरस संक्रमण से लाखों कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, अगर शरीर की रक्षा हेतु विविध इंतजाम न हो तो वायरस हावी हो जायेंगे तो शायद जाॅय इस दुनिया में जिंदा न रहे। शायद कोशिकाओं की कहानी का अंत भली प्रकार से यह कहकर किया जा सकता है कि हम कोशिकाओं से ही हर चीज उत्पन्न होती है। जाॅय के जन्म से लेकर मृत्यु तक हम हमेशा उपस्थित रहती हैं। किस प्रकार हममें से 600 खरब कोशिकाएं एक साथ प्रेम से रहती हैं। हर कोई अपने काम सेे काम रखता है और कार्यकुशलता द्वारा अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। यह एक आश्चर्य है या शायद सबसे बड़ा आश्चर्य है।       (अनुवाद: मनीष)  

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