विज्ञान पर नित नए हमले करती दक्षिणपंथी ताकतें
-दीपक
बीते 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने महान वैज्ञानिकों डार्विन और आइंस्टीन के सिद्धांतो के खिलाफ लगाई गई एक जनहित याचिका को रद्द कर दिया। यह याचिका राजकुमार नाम के एक दक्षिणपंथी व्यक्ति द्वारा लगाई गई थी।याचिका में राजकुमार द्वारा कहा गया था कि उसने अपने स्कूल और कॉलेज में डार्विन के ‘जैव विकास’ और आइंस्टीन के म्=उब2 के सिद्धांत को पढ़ा था। लेकिन उसने पाया कि ये सिद्धांत गलत हैं। इसलिए इन सिद्धांतों को संस्थानों में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। इसी को रोकने के लिए ही उसके द्वारा जनहित याचिका लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को रद्द करते हुए कहा कि ‘आप खुद को फिर से शिक्षित करें या अपना खुद का सिद्धांत बनाएं। हम किसी को भी कुछ हटाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। याचिका खारिज की जाती है।’वैसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिलहाल तो इस याचिका को रद्द कर दिया गया है लेकिन ऐसा नहीं है कि राजकुमार की तरह सोच रखने वाले लोगों की समाज में कमी है। बल्कि भाजपा सरकार और दक्षिणपंथी संघी संगठनों की कारगुजारियों से आज समाज में ऐसी सोच रखने वाले लोगों की बहुसंख्या है। खुद मोदी सरकार भी इसी तरह की सोच को आगे बढ़ा रही है और अब तो ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020’ के जरिए धड़ल्ले से इसी गैरवैज्ञानिक सोच को छात्रों के दिमाग में भरा जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि किसी वैज्ञानिक प्रयोग और सिद्धांत पर सवाल उठाना गलत है। बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में किसी वैज्ञानिक की उपकल्पना, वैज्ञानिक सिद्धांत तब ही बन पाती है जब वो अपने ऊपर उठ रहे सभी सवालों का जवाब दे पाती है। खुद डार्विन के ‘जैव विकास’ पर तो वर्षों से हजारों सवाल उठते रहे हैं। ईसाई मठाधीशों द्वारा सबसे पहले उनके सिद्धांतो पर हमला बोला गया, फिर हर धर्म के ठेकेदारों ने डार्विन पर तलवारें उठाई। लेकिन इन सभी आलोचनाओं के बाद भी विभिन्न तथ्यों, प्रयोगों ने डार्विन को सही साबित किया है। और यही हाल आइंस्टीन के द्रव्यमान और ऊर्जा से संबंधित सिद्धांत के मामले में भी हुआ।
अपने समय के प्रचलित विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांत आगे के समयों में गलत भी साबित होते रहे हैं। लेकिन उनको आरोप लगाकर या ‘ना समझ में आने’ का आरोप लगाकर गलत साबित नहीं किया गया बल्कि उन सिद्धांतांे के खिलाफ तथ्यों को रखकर और लंबे वैज्ञानिक प्रयोगों के बाद ही उन्हें गलत साबित किया गया। दरअसल वैज्ञानिक प्रयोग इसी तरह से गलत या सही साबित किए जाते हैं ना कि कोर्ट में याचिका लगाकर।
लेकिन दक्षिणपंथी ताकतों को ना तो विज्ञान से कुछ मतलब है और ना ही वैज्ञानिक तौर-तरीकों से। उन्हें अगर लग गया कि फलां सिद्धांत उनकी विषाक्त सोच को आगे बढ़ने में बाधा बन रहा है तो वो बिना किसी तर्क के उस सिद्धांत की जगह अपना सिद्धांत खड़ा कर देते हैं। प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी, वायुयान की मौजूदगी, नाले की गैस से चाय, बादलों की वजह से प्लेन का राडार से बच निकलना आदि-आदि ऐसे ही कुछ ‘‘महान’’ मूखर्तापूर्ण वैज्ञानिक सिद्धांत हैं जो संघी चिंतकों द्वारा दिए गए हैं।
इस तरह की सोच से संघ मंडली हमें अतार्किक और कूढ़मगज बनाने की साजिश रच रही है। ताकि छात्र वैज्ञानिक चिंतन से दूर हो, किसी भी तरह के सवाल ना उठा पाएं। और कि जिससे हर तरह की लूट और अन्याय को सर झुकाकर मानने वाले तैयार किए जा सकें। ये हमें, हमारे समाज को और आने वाली पीढ़ियों को अज्ञान और अंधेरे के रसातल में धकेलने की प्रक्रिया है जिसे वैज्ञानिक चिंतन से लैस होकर, संगठित संघर्ष के दम पर ही रोका जा सकता है।
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