परीक्षा और नकल विरोधी कानून
उत्तर प्रदेश में हाईस्कूल तथा इण्टरमीडिएट की बोर्ड परीक्षाएं 16 फरवरी से प्रारंभ होकर 4 मार्च को सम्पन्न हुई। बोर्ड परीक्षा प्रारंभ होने से पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि बोर्ड परीक्षाओं में नकल में शामिल पाये जाने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कारवाई की जाएगी। यही नहीं परीक्षा में बाधा डालने वालों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कारवाई होगी, उनकी सम्पत्ति भी कुर्क की जायेगी। और तीन महीने तक बगैर आरोप पत्र के जेल में डाल दिया जायेगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पहले ही 1992 में ‘नकल अध्यादेश’ लाकर नकल करने और कराने को अपराध घोषित कर दिया था।
उत्तर प्रदेश की बोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए 58 लाख से अधिक छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। यह देश की सबसे बड़ी और सबसे अधिक छात्र संख्या वाली परीक्षा है। इसके लिए लगभग 9 हजार परीक्षा केन्द्र बनाये गये हैं और सभी परीक्षा केन्द्रों पर ब्ब्ज्ट कैमरे लगाये गये हैं; जिनमें एग्जाम की लाइव मॉनिटरिंग होगी। इतने इंतजाम के बाद छात्रों और शिक्षकों पर छै। कार्यवाही का डर दिखाना और गैंगस्टर एक्ट के तहत सम्पत्ति कुर्क करने का हौव्वा खड़ा करना दिखाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार की नजर में छात्र और शिक्षक अपराधी हैं जिनको डर दिखाकर भय में रखकर ही ठीक किया जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों से शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता का जो हाल है वह किसी से छुपा नहीं है। उत्तर प्रदेश में केन्द्र सरकार के 2019 के आंकड़ों के अनुसार तकरीबन सवा दो लाख शिक्षकों की कमी है। उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर एक तरफ निजी स्कूल कॉलेज हैं। दूसरी ओर सरकारी और अर्द्धसरकारी स्कूल हैं। सरकारी-अर्द्धसरकारी स्कूलों में समाज के निम्न और निम्न मध्यम आय वर्ग के बच्चे पढ़ने जाते हैं। जहाँ एक ओर इस वर्ग के परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होती है इसलिए इन परिवारों के बच्चों पर भी इस खराब आर्थिक स्थिति का प्रभाव पड़ता है। ये मजबूरन कहीं न कहीं काम करके अपने परिवार में आर्थिक सहयोग देते हैं। इस कारण ये छात्र नियमित स्कूल नहीं जा पाते हैं तो दूसरी ओर अर्द्धसरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर, उसकी गुणवत्ता और शैक्षिक ढांचे पर सरकार का ध्यान नहीं है। विद्यालयों की बिलिं्डग से लेकर क्लास रूम, लैब्स, खेल तथा अन्य शैक्षिक गतिविधियों पर सरकार का रवैया उपेक्षात्मक है। क्योंकि शिक्षा देना राज्य के लिए मुनाफे का सौदा नहीं है। इसलिए सरकार ने धीरे-धीरे शिक्षा की व्यवस्था से अपने हाथ खींच लिए और इसमें निजी पूंजी का प्रवेश सुगम बनाया। अब राज्य ने दोहरी शिक्षा व्यवस्था कायम की जिसमें एक तरफ शिक्षा का कारोबार करने वाले प्राईवेट स्कूल हैं, जो शिक्षा को बेचने का कार्य करते हैं जिसमें मध्यम, उच्च मध्यम वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। और दूसरी ओर दिखावे के लिए सरकारी शिक्षा के ढांचे को सरकार चला रही है। लेकिन यह दोहरी शिक्षा प्रणाली समाज में मौजूद अमीर-गरीब के भेद को और बढ़ाती है।
अब जहाँ एक ओर सरकारी शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता निम्न हो और उसमें पढ़ने वाले छात्र भी निम्न और निम्न मध्यम आर्थिक स्तर से आते हों। जहाँ शिक्षा देने के नाम पर सरकार सिर्फ खानापूरी कर रही हो वहाँ बोर्ड परीक्षा ‘नकल विहीन’ बनाने के नाम पर ‘रासुका’ और ‘गैंगस्टर कानून’ के तहत कार्यवाही का खौफ दिखाना छात्रों और शिक्षकों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव ही डालेगा।
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