शनिवार, 22 अप्रैल 2023

 छात्रों पर मोदी सरकार का एक और हमला

प्री मैट्रिक स्कालरशिप सीमित और एमएएनएफ बंद

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले दिनों छात्रों पर बड़ा हमला बोलते हुए एमएएनएफ (मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप) को खत्म कर दिया है। यह फेलोशिप भारत के अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले उन छात्रों को दी जाती थी जो यूजीसी से संबंधित विश्वविद्यालयों से शोध कर रहे थे। 2006 में आयी सच्चर कमेटी की सिफारिशों के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस फेलोशिप को मुस्लिम समुदाय से आने वाले शोधार्थियों के लिए शुरू किया था, आगामी वर्षों में इसमें बदलाव कर बाकी अल्पसंख्यक समुदायों को भी इस फेलोशिप से जोड़ दिया गया। अब 2022-23 के शैक्षिक सत्र से सरकार ने इसे खत्म करने की घोषणा कर दी है। एमएएनएफ का खत्म किया जाना, देशभर के शोधार्थियों पर किया गया बहुत बड़ा हमला है। एमएएनएफ की 30 प्रतिशत सीटें छात्राओं के लिए आरक्षित थी, इसलिए इसका सबसे बुरा प्रभाव अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाली छात्राओं पर देखने को मिलेगा। इससे मोदी सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ और ‘सबका साथ सबका विकास’ नारों की पोल खुल जाती है। मोदी सरकार का आचरण उसके नारों से बिलकुल उल्टा है।

8 दिसंबर 2022 को लोकसभा में एक जवाब देते हुए अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में एमएएनएफ लेने वाले छात्रों की संख्या लगातार कम हो रही है और ये फेलोशिप बाकी अन्य फेलोशिप के साथ ‘ओवरलैप’ होती है इसलिए सरकार इस वर्ष से इसे खत्म करने जा रही है। उसी दिन 8 दिसंबर को प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इसके बारे में बताया गया। उस विज्ञप्ति के मुताबिक सरकार की ‘प्री मैट्रिक स्कालरशिप’, ‘पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप’ और ‘मेरिट कम स्कालरशिप’ अल्पसंख्यक छात्रों को दी जा रही है। पीआईबी ने इन तीन स्कालरशिप से जुड़े आंकड़े भी जारी किए, जिन्हें देखना बहुत ज़रूरी है।

वर्ष 2013-14 में सरकार द्वारा 77,94,190 छात्रों को प्री मैट्रिक स्कालरशिप दी गयी थी, जो घटते-घटते वर्ष 2021-22 में 57,10,789 छात्रों तक रह गयी। यानी 8 वर्षों में सरकार ने 20 लाख से अधिक छात्रों को इस स्कालरशिप से वंचित कर दिया। ये पीआईबी के सरकारी आंकड़े हैं। हम अनुमान लगा सकते हैं कि जमीनी हालात कितनी खराब होगी।

पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप की बात करें। वर्ष 2013-14 में 8,90,467 छात्रों को यह स्कालरशिप दी गयी थी, ये भी घटकर वर्ष 2021-22 में 7,20,093 छात्रों तक रह गयी। यानी इसमें भी सरकार ने 8 वर्षों में एक लाख सत्तर हजार से ज्यादा छात्रों को निकालकर बाहर कर दिया।

मेरिट कम स्कालरशिप में 8 वर्षों के दौरान एक मामूली इज़ाफ़ा देखा गया है। वर्ष 2013-14 में 1,00,428 छात्रों को ये स्कालरशिप दी गयी, वहीं 21-22 में ये 1,31,810 छात्रों को दी गयी।

इन आंकड़ों को गौर से देखने पर आप पाएंगे कि जिन स्कालरशिप को अल्पसंख्यक छात्रों को दिया जा रहा है, उनमें पिछले 8 वर्षों में भारी कटौती की गई है।

ओवरलैप का तर्क अपने आप में ही बहुत हास्यास्पद है। यह सर्वविदित है कि एक छात्र एक बार में एक ही स्कालरशिप ले सकता है। अगर कोई छात्र एक समय पर एमएएनएफ और एनएफओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप) दोनों छात्रवृत्तियों के लिए योग्यता रखता है, तो भी वह एक समय पर केवल एक ही स्कालरशिप ले सकता है। इसके लिए विभाग तमाम तरह की जांच करता है, उसके बाद छात्र को छात्रवृत्ति दी जाती है।

8 दिसंबर को सरकार ने सदन में कहा कि हम प्री मेट्रिक, पोस्ट मैट्रिक व मेरिट कम स्कालरशिप देते हैं और ये एमएएनएफ के साथ ओवरलैप होती है, इसलिए हम एमएएनएफ को खत्म कर रहे हैं। लेकिन एमएएनएफ के खत्म किए जाने के 11 दिन पहले 29 नवंबर को सरकार ने प्री मैट्रिक स्कालरशिप सीमित (कक्षा 1 से 10 की जगह केवल 9-10 के लिए) करने की घोषणा कर दी थी।

एमएएनएफ पर हुआ ये हमला एकाएक नहीं है। सरकार पिछले 2-3 वर्षों से इसे खत्म करने का ‘माहौल’ बना रही थी। 2019-20 में सरकार ने एमएएनएफ के लिए 100 करोड़ का फण्ड जारी किया था, जिसे 21-22 में घटाकर 74 करोड़ कर दिया गया। 2019-20 में 1251 छात्रों को यह फेलोशिप मिली, 2021-22 में यह फेलोशिप 1075 छात्रों को दी गयी। जिन छात्रों को एमएएनएफ दी गयी, उन्हें भी महीनों तक लटकाकर रखा गया।

जुलाई 2022 में मीडिया संस्थान ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार पिछले 9 महीने से एमएएनएफ की राशि न मिलने के कारण छात्रों के प्रतिनिधिमंडल ने यूजीसी के अधिकारियों और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों से कई बार मुलाकात की। लेकिन अभी तक उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है। खबर में प्रकाशित छात्रों का बयान है कि ‘‘पिछले 9 महीने से उन्हें एमएएनएफ नहीं मिल रही है, इससे उनका शोध कार्य बुरी तरह प्रभावित है। वे यूजीसी के दफ्तर आकर, मंत्रालय जाकर और बार-बार ईमेल लिखकर इसकी शिकायत कर रहे हैं, लेकिन कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है।’’

जिस तरह से सरकार ने एमएएनएफ को खत्म करने से पहले इसकी सीटों को घटाया, फण्ड कम किया, ठीक उसी तरह सरकार अभी कुछ और योजनाओं के फण्ड में बड़े पैमाने पर कटौती कर रही है। ऐसी कुछ छात्रवृत्तियों की जानकारी इस प्रकार हैः

1. पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिपः वर्ष 2019-20 में 482.65 करोड़ का फण्ड जारी किया गया एवं 7.43 लाख छात्रों को छात्रवृत्ति मिली। लेकिन वर्ष 2021-22 में फण्ड घटाकर 465.73 करोड़ कर दिया गया और छात्रवृत्तियों की संख्या घटाकर 7.14 लाख कर दी गयी।

2. बेगम हजरत महल नेशनल स्कालरशिपः वर्ष 2019-20 में 165.20 करोड़ का फण्ड जारी किया गया एवं 2.95 लाख छात्राओं को स्कालरशिप दी गयी। लेकिन, वर्ष 21-22 में इसका फण्ड घटाकर 91.60 करोड़ कर दिया गया और छात्रवृत्तियों की संख्या घटाकर 1.65 लाख कर दी गयी।

इसी तरह से नया सवेरा, नयी मंजिल जैसी तमाम छात्रवृत्तियों में फण्ड और सीटों को लगातार कम किया जा रहा है।

इन फेलोशिप (छात्रवृत्तियों) को खत्म कर मोदी सरकार प्रकारांतर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ही आगे बढ़ा रही है। मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा का निजीकरण करने की बड़ी योजना पेश की गई है। मोदी सरकार की नीति है - शिक्षा पर सरकारी खर्च को लगातार कम कर इन संस्थानों की ऐसी हालत कर दो कि वो शिक्षा लायक बचे ही नहीं। और ऐसा होने पर छात्रों को मजबूरन निजी संस्थानों में जाना पड़ेगा। ये शिक्षा का निजीकरण करने का सरकारों का आजमाया हुआ हथकंडा है।

मौजूदा भाजपा सरकार का इस तरह से दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले छात्रों को मिलने वाली स्कालरशिप/फेलोशिप को खत्म करना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। हिन्दू फासीवादी सरकार अल्पसंख्यकों- पिछड़ों-दलितों पर निरंतर हमलावर रही है। जिस देश में मुस्लिमों की माॅब लिंचिंग सत्ता के संरक्षण में हो रही हो, वहां मुस्लिमों व अन्य अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति खत्म व सीमित होना अजूबा नहीं है।

दरअसल संघी सरकार अपनी ब्राह्मणवादी मानसिकता के चलते सवर्ण सम्पन्न हिन्दुओं को छोड़ सबसे शिक्षा छीन लेना चाहती है। ये सरकार पिछले लंबे समय से सार्वजनिक शिक्षा से अपने हाथ पीछे खींच रही है और शिक्षा को लगातार पूंजीपतियों के हाथों में सौंप रही है। आने वाले वर्षों में ये बची हुई छात्रवृत्तियों पर भी इस तरह के हमले जारी रखेगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार के आगामी हमले यूजीसी की नेट-जेआरएफ सरीखी छात्रवृत्तियों पर होंगे। इस क्रम को रोकने के लिए आज बेहद ज़रूरी है कि छात्र एमएएनएफ को खत्म करने, प्री मेट्रिक स्कालरशिप को सीमित किये जाने के खिलाफ जुझारू आंदोलन छेड़ दें। 

आज समय की आवश्यकता है कि न सिर्फ इन छात्रवृत्तियों को वापस लागू कराने के लिए संघर्ष किया जाए, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 समेत शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण को बढ़ाने वाले तमाम नीतिगत फैसलों को बतौर चुनौती चिह्नित कर, इनके खिलाफ कड़े संघर्ष की तैयारी की जाए। एक मजबूत और देशव्यापी छात्र आंदोलन ही आज शिक्षा को बचा सकता है। सरकार को छात्र विरोधी कदम उठाने से रोक सकता है।


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