बस्ती बचाने के लिए बच्चे भी उतरे आंदोलन में
16 मई हल्द्वानी बुद्ध पार्क पर ‘‘बाल सत्याग्रह’’ का बैनर लगा हुआ था। 13-14 साल के बच्चे माइक पकड़े खड़े हैं। अपनी बात रख रहे हैं। ‘‘रेलवे का दावा झूठा है। हमारी बस्ती तो यहां पहले से मौजूद है। रेलवे ने कभी कोई रोक-टोक नहीं की। आज रेलवे बिना कागजात के अचानक कहता है कि जमीन मेरी है। झूठ बोल रहा है, रेलवे।’’- 13 साल का बच्चा बेझिझक और दो-टूक बात रखता है। यह हल्द्वानी के बनभूलपुरा बस्ती के बच्चों के आंदोलन की आवाज है।
किसी का भी घर उजड़ना बहुत दर्दनाक होता है। अगर घर उजाड़े जाएं और उसके पीछे झूठ, नफरत भरी सोच या लालच हो तो यह सबसे घटिया चीज है। आज हमारे देश में यही कुछ भाजपा राज में हो रहा है। हल्द्वानी, उत्तराखण्ड में पूर्वोत्तर रेलवे के इस कारनामे के खिलाफ बस्ती वासी उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय तक भी गये हैं और सड़क पर भी संघर्षरत हैं। संघर्ष में बच्चों ने ‘‘बाल सत्याग्रह’’-‘‘बाल आग्रह’’ सरीखे कार्यक्रम आयोजित किये।
हल्द्वानी में रेलवे लाइन के किनारे और रेलवे स्टेशन के पास मजदूर-मेहनतकशों की बस्ती है। इस बस्ती में अधिकांश संख्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों की है पर ठीक-ठाक संख्या में मेहनतकश हिन्दू, दलित व अन्य मेहनतकश भी रहते हैं। 2007 में पहली बार रेलवे ने एक याचिका के आधार पर बस्ती के एक हिस्से पर दावा किया। अब रेलवे लगभग पूरी बस्ती पर ही दावा कर रहा है और अपना दावा बढ़ाता जा रहा है। तब से ही मेहनतकश बस्ती वासी उच्च न्यायालय से लेकर सड़क तक संघर्ष करते रहे हैं। इस संघर्ष में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन प्रमुखता से इनका सहयोग करता रहा है। जब बस्ती वासियों का संघर्ष कमजोर पड़ता है तो अदालत की कार्यवाही बस्ती तोड़ने की ओर बढ़ने लग जाती है, प्रशासन तैयारी करने लगता है। सरकार तो जमीन पर रेलवे के झूठे दावे को चुनौती तक नहीं दे रही है।
फरवरी-मार्च 2022 में जहां बस्ती को तोड़े जाने की तैयारी की खबरें अखबारों में प्रकाशित हो रही थी। वहीं बस्ती वासियों के आंदोलन से जुलाई तक मामले में लोगों का पक्ष भी सुना जाने लगा है। बस्ती तोड़ने की तैयारियां ठण्डे बस्ते पर चली गयी हैं। बस्तीवासियों ने जन संगठनों के साथ मिलकर ‘‘बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा’’ बनायी है। संघर्ष समिति के माध्यम से सामूहिक तौर पर आंदोलन को आगे बढ़ाया जा रहा है।
16 मई का ‘बाल सत्याग्रह’ कार्यक्रम में बच्चों ने सभा का संचालन किया। भाषण, गीत, नारे, मीडिया के सवालों का जवाब, बच्चे बेबाकी से दे रहे थे। मेहनतकशों के ये बच्चे अपने स्कूलों में शायद किसी सवाल का जवाब देने में हिचकते हों, घबराते हों या चुप लगा जाते हों। पर यहां आंदोलन में हर सीधे-उलझे सवाल का जवाब इनके पास था। ये बच्चे आंदोलन में अपने कार्यक्रम को नेतृत्व दे रहे थे।
एक 13 वर्षीय बच्चे ने कहा ‘‘रेलवे हमारा घर, बस्ती स्कूल उजाड़ देगा तो हम कहां रहेंगे, कहां पढ़ेंगे? रेलवे को सोचना चाहिए, सरकार को सोचना चाहिए। हजारों लोग उजड़कर कहां जायेंगे?’’ बढ़ रहे शहर के योजनाबद्ध विकास और फैलाव में ऐसे ही सवालों से तो विशेषज्ञ जूझते हैं, जिनको यहां बच्चे अपने भाषण से उठा रहे हैं।
2 जुलाई को बच्चों ने ‘‘बाल आग्रह’’ का कार्यक्रम किया। यह कार्यक्रम याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी से मिलकर उन्हें आग्रह पत्र देने का था। आग्रह में उन्हें सोचने के लिए विवश करना था कि ‘‘ऐसी याचिका जिससे 4365 गरीबों के कच्चे-पक्के घरों को तोड़ने के फैसले हो रहे हों, उन्हें मानवता के आधार पर वापस ले लेनी चाहिए’’- एक बच्चे ने ‘‘बाल आग्रह’’ का उद्देश्य साफ करते हुए बताया।
जब बाल आग्रह की सूचना रविशंकर जोशी के पास गयी तो उन्होंने अखबार के माध्यम से सूचना दी की वे बच्चों से नहीं मिलेंगे। और आरोप लगाया कि उन्हें ‘‘धमकाया’’ जा रहा है। इसके जवाब में बच्चों ने मांग की कि आप बुद्ध पार्क सार्वजनिक स्थल पर आ जाइये। पर वे वहां भी नहीं आये। खैर; बच्चों ने बुद्ध पार्क पर अपना बाल आग्रह का कार्यक्रम किया। बच्चों को शिकायत थी- ‘‘हमने एक मासूस सी मांग की थी इसको भी रविशंकर जोशी अंकल ने धमकी बोल दिया। पता नहीं वे कैसे इंसान हैं।’’
आठ, दस, पन्द्रह साल के ये मजदूरों-मेहनतकशों के बच्चे अपने घर के लिए चिंतित हैं। समाज के लिए संवेदनशील हैं। न्याय-अन्याय को समझते हुए न्याय के पक्ष में खड़े हो संघर्ष करते ये बच्चे एक बेहतर समाज की उम्मीद हैं।
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