मजदूरों के बच्चे भी संघर्ष के मैदान में
-महेश
रुद्रपुर उपश्रमायुक्त कार्यालय के बाहर मजदूरों का धरना चल रहा था। मजदूर पीछे बैठे हैं, उनके आगे महिलायें हैं और महिलाओं के साथ व उनसे आगे बच्चे हैं। मजदूरों की सभा का संचालन बच्चे कर रहेे हैं। मजदूरों व महिलाओं को बच्चे अनुशासित कर रहेे हैं। बच्चे भाषण दे रहे हैं, गीत गा रहे हैं। उपश्रमायुक्त से इंटरार्क कम्पनी को वापस खुलवाने, मजदूरों को काम पर वापस लिये जाने और रुका हुआ वेतन दिलाने की मांग कर रहे हैं। ये इंटरार्क कम्पनी के मजदूरों के बच्चों की बाल पंचायत है। मजदूरों के समर्थन में ‘‘बाल पंचायत’’। जिसका नेतृत्व 12-15 साल के बच्चे कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड के सिडकुल पंतनगर में इंटरार्क बिल्डिंग प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी स्थित है। पंतनगर सिडकुल से 16 किमी. दूर किच्छा में कम्पनी का एक और प्लांट है। कम्पनी पुलों, वेयर हाउस, इंडस्ट्रियल बिल्डिंग आदि का पूर्वनिर्मित ढांचा (प्री स्ट्रक्चर) बनाती है, जो कि बाद में मूल जगह पर लाकर जोड़ दिये जाते हैं। कम्पनी के दोनों प्लांटों में मजदूरों की यूनियन भी सक्रिय है। विगत 16 अगस्त 2021 से मजदूर धरना-प्रदर्शन कर आंदोलनरत थे। कम्पनी मालिक, प्रबन्धन, शासन-प्रशासन, श्रम विभाग आदि मजदूरों के अधिकारों को कुचलने में लगे रहे। 16 मार्च 2022 को कम्पनी मालिक ने पंतनगर प्लांट को अचानक; बिना किसी पूर्व सूचना के; बंद (लाकआउट) कर दिया। गैरकानूनी ढंग से कम्पनी बंद होने से मजदूरों के परिवार में शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर रोजमर्रा के जीवन यापन की चीजों का संकट सामने आ गया।
बच्चे भी परिवार की समस्याओं को समझे। समस्याओं से जूझते हुए बच्चे भी आंदोलन में कूद पड़े। अपने मजदूर पिता और उनकी यूनियन के संघर्षरत साथियों के कन्धे से कन्धे मिला बच्चों ने भी मोर्चा संभाला।
14 मई 2022 को क्रांतिकारी शहीद सुखदेव के जन्म दिवस व 24 मई क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा के जन्म दिवस के अवसर पर बच्चे पदयात्रा कार्यक्रमों में शामिल हुए। अभी बच्चे मजदूर आंदोलन को देख रहे थे, समझ रहे थे। इन कार्यवाहियों में बच्चों ने नारे लगाना, धरने पर बैठना, जुलूस में चलना, मालिक-पुलिस-श्रम विभाग व प्रशासन के रुख आदि को समझा। अब बच्चों ने 1 जून को कमिश्नर के पास जाने का निर्णय लिया और अपने नेतृत्व में कार्यक्रम करने की शुरूआत की। बच्चों के फैसले को इंटरार्क मजदूर यूनियन और इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने समर्थन दिया और पूरा सहयोग किया।
जब बच्चे 1 जून को कमिश्नर से मिलने गये उससे पहले 30 मई को ही उत्तराखण्ड शासन की ओर से कम्पनी के गैरकानूनी लॉकआउट के खिलाफ फैसला आ गया। बच्चों ने कमिश्नर से मजदूरों के 3 माह से रुके हुए वेतन की रिकवरी कराने की मांग की। कमिश्नर ने कहा कि आदेश हमें प्राप्त हो गया है हमने इस पर विधिक कार्यवाही के लिए अधिकारियों को निर्देशित कर दिया है। इंटरार्क और सिडकुल की समस्याओं से भोलेपन से अंजान होने का कमिश्नर ने अभिनय किया। अभिनय करते हुए ही कमिश्नर ने बच्चों को समझाया-बुझाया और समय पर उचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया।
जैसा कि होता है जनता के सामने मीठी बातें पर काम धेले भर का नहीं। कमिश्नर का आश्वासन महीने भर बाद भी लागू नहीं हुआ। इस बीच बच्चों ने उपश्रमायुक्त व स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के सामने 6 जून, 8 जून, 15 जून व 22 जून को गुहार लगायी। मजदूरों व बच्चों के इन प्रदर्शनों के दबाव से मजदूरों के चार माह के वेतन की रिकवरी की कार्यवाही आगे बढ़ रही थी। यदि मजदूर व बच्चे सरकारी आश्वासन के भरोसे बैठ जाते तो रिकवरी की यह कार्यवाही ठप ही रहती। बच्चे लगातार पहलकदमी लेकर कार्यक्रम कर रहे थे मजदूर अपने आंदोलन के लिए राशन व आर्थिक सहयोग जुटा रहे थे। साथ ही कम्पनी गेट पर धरना भी संचालित कर रहे थे।
इंटरार्क के मजदूरों व बच्चों के जुझारू आंदोलन को इलाके भर में सहानुभूति, सम्मान व सहयोग की भावना से देखा जा रहा है। इंटरार्क मजदूर आंदोलन को जनता ने राशन व पैसे से मदद कर आंदोलन की सफलता के लिए भरपूर सहयोग किया। जनता के सहयोग ने मजदूरों को मजबूती से आंदोलन चलाने का संबल प्रदान किया। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं व संगठनों ने भी इंटरार्क मजदूरों को पूरा सहयोग दिया।
29 जून को बच्चों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन देने का कार्यक्रम किया। इसकी पूर्व सूचना जिलाधिकारी को 2 दिन पहले 27 जून को व्यक्तिगत तौर पर मिलकर बच्चे दे चुके थे। 29 जून को जिलाधिकारी ज्ञापन लेने बच्चों के पास नहीं आये। जिलाधिकारी कार्यालय के परिसर के बाहर गेट पर ही बच्चों, महिलाओं, मजदूरों को रोक दिया गया। भयंकर बारिश में रात्रि नौ बजे तक बच्चों ने जिलाधिकारी का इंतजार किया। अंततः कार्यालय की दीवार पर ज्ञापन चिपकाकर आंदोलनरत बच्चे, महिलायें और मजदूर वापस आ गये। अगले दिन 30 जून को जिलाधिकारी का निर्मम व क्रूर व्यवहार अखबारों में छपा।
1 जुलाई को बाल कल्याण समिति, ऊधमसिंह नगर और 3 जुलाई को उपश्रमायुक्त की तरफ से क्रमशः मजदूर आंदोलन के नेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर मुकदमे और बाल अधिकार हनन, बच्चों की काउंसलिंग आदि की खबरें सामने आयी। साफ था कि यह बच्चों की आड़ लेकर आंदोलन को बदनाम करने की साजिश थी। उपश्रमायुक्त या बाल कल्याण समिति ने 4 माह से इंटरार्क कम्पनी मालिक व प्रबंधन के गैरकानूनी लॉकआउट को लेकर कुछ नहीं कहा। मजदूर, उनके परिवार-बच्चे कैसे जी रहे हैं इसकी कोई चिंता नहीं की। जिलाधिकारी की निर्ममता क्या सामने आयी ये खुद भी निर्मम व निष्ठुर हो गये।
इस पर बच्चों ने पुनः मोर्चा संभाला। कमिश्नर, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, मानवाधिकार आयोग, जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आदि केन्द्र व राज्य के अधिकारियों को पूरे वाकिये से अवगत कराया। उपश्रमायुक्त और बाल कल्याण समिति की कार्यवाही की निंदा की। बताया कि हमारे देश का संविधान बच्चों को भी वयस्कों की तरह शोषण के विरुद्ध बोलने का अधिकार देता है। 29 जून के कार्यक्रम के आयोजक हम बच्चे थे, हमारे सहयोगी मजदूर नेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन करना गलत है। हमें कमअक्ल समझने और बहलाये-बहकाये हुए कहकर हमारी काउंसलिंग करने वाली बाल कल्याण समिति ने अखबारों में खबर प्रकाशित कर हमारा अपमान किया है, मानसिक उत्पीड़न किया है, हमारी मानहानि की है। हमारे सहयोगियों को आरोपी कहने वाले खुद आरोपी हैं। बच्चों के इस जवाब से प्रशासन भी हलकान है। प्रशासन को अपने गिरेबां में झांकने पर मजबूर होना पड़ा।
इन सब कार्यवाहियों के बीच कम्पनी मालिक ने 4 जुलाई को नोटिस चस्पा किया और 6 जुलाई से कम्पनी खुलने की सूचना दी। सभी मजदूरों से काम पर वापस लौटने की अपील की। बच्चों ने रुद्रपुर के भगत सिंह पार्क में ‘‘शपथ’’ लेकर मजदूर आंदोलन की सफलता तक संघर्ष में सहयोग करने और न्याय के लिए होने वाले हर सामजिक आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया।
मजदूर काम पर वापस लौटे हैं। अन्य मांगों पर संघर्ष पहले की ही तरह जारी है। बच्चों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है, साथ ही आंदोलन में भी समय-समय पर पहुंच रहे हैं।
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