गुरुवार, 10 नवंबर 2022

 कर्नाटक बोर्ड में पाठ्यक्रम में बदलाव

                                                                                                                -विजेयता

भाजपा शासित कर्नाटक सरकार हिजाब प्रकरण के बाद एक बार फिर अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा को प्रसारित करने के लिए एक और नया कदम उठा रही है।

अपने इस नए कदम के तहत कर्नाटक सरकार ने कक्षा 1 से 10 तक सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम को अपनी सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुरूप बदल दिया है। जिसका काफी विरोध किया जा रहा है और इसी विरोध के चलते कुछ अध्याय इन्हें वापस भी लगाने पड़े।

कर्नाटक में ये पाठ्यक्रम बदलने का सिलसिला कोविड-19 आने के बाद से शुरू हो जाता है। जहां ये फैसला लिया गया था कि कोविड के चलते सभी कक्षाओं के पाठ्यक्रम को 30 प्रतिशत तक कम कर दिया जायेगा। आपदा को अवसर में बदलते हुए कर्नाटक सरकार ने टीपू सुल्तान, संगोली रायन्ना, रानी चेन्नमा आदि को उस वर्ष पाठ्यक्रम से बाहर रखा गया। लगभग उसी समय, कर्नाटक ब्राह्मण महासभा ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री और सार्वजनिक निर्देश विभाग को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें कक्षा 6 से 8 तक की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में कुछ पाठों के संशोधन की मांग की गई क्योंकि उन पाठों से ब्राह्मण समाज की भावनाएं ‘‘आहत’’ होती हैं। और इसी आधार पर कर्नाटक सरकार ने 16 सदस्यों की पाठ्यपुस्तक पुनर्निरीक्षण समिति का गठन किया और एक ऐसे व्यक्ति को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया जो गणित विषय का अध्यापक है और दक्षिणपंथी विचारों का पोषक है।

आरंभ में सरकार ने घोषणा की कि ये समिति केवल 6 से 8 तक के पाठ्यक्रमों में ही संशोधन करेगी लेकिन इस समिति ने इसके विपरीत 1 से 10वीं कक्षा तक के सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में बदलाव को अंजाम दिया।

इन सभी संशोधनों के पश्चात नई किताबें 23 मई को आई। जिसमें से बहुत सारे जरूरी पाठों को हटा दिया गया और  अपनी भगवाकरण की नीति के तहत दक्षिणपंथी विचारों के कई लेखकों को शामिल कर लिया गया। पाठ्यक्रम के इस भगवाकरण पर अपना जवाब देते हुए यहां के शिक्षा मंत्री ने कहा ‘‘पहले की किताबें वामपंथी सोच और ब्राह्मण विरोधी विचारधारा की हैं।’’ 

पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए जिन पाठों को हटा दिया गया है वो काफी महत्वपूर्ण भूमिका रखते थे। जैसे कि बसवान्ना पर लिखा गया पाठ जिसमें उन्हें लिंगायत समुदाय का संत, हिंदू कर्मकांड के खिलाफ विद्रोह करने वाला और जीवन जीने का नया तरीका बताने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया था जो कि सच भी है लेकिन नई किताब में उनकी भूमिका को सिर्फ वीरशैव मान्यता में सुधार करने वाला दिखाया गया। 

अंबेडकर संविधान के निर्माता चैप्टर भी हटाया गया उनका जाति व्यवस्था के विरोध सहित महाड़ सत्याग्रह और कालाराम मंदिर में उनके प्रवेश की घटनाओं को भी नई पुस्तक से हटा दिया गया।

इतना ही नहीं पी.लंकेश जैसे प्रगतिशील लेखक को हटाकर संघ के संस्थापक हेडगेवार के भाषण को शामिल कर दिया गया। जबकि हेडगेवार का आरएसएस जैसी जहरीली संस्था की स्थापना के अलावा समाज के लिए कोई योगदान नहीं रहा है। पी.लंकेश सहित अबू बकर और ए.एन.मूर्ति राव जैसे प्रगतिशील लेखकों को हटा कर अन्य दक्षिणपंथी लेखकों को जगह दी गई है।

कक्षा 6 की पुस्तक में भुनेश्वरी के हाथ से कन्नड़ झंडा वाला फोटो हटाकर देवी के हाथ में भगवा झंडा वाली तस्वीर को लगा दिया गया जिसे विरोध के बाद फिर से लगाने का फैसला किया गया है।

मार्क्सवादी विद्वान जी रामकृष्ण द्वारा लिखित भगत सिंह पर एक अध्याय को शुरू में हटा दिया गया था लेकिन भारी विरोध के बाद उसे बहाल कर दिया गया।

समाज सुधारक नारायण गुरू, पेरियार के विचारों से भी छेड़छाड़ की गई और अगले वर्ष टीपू सुल्तान को भी पाठ्यक्रम से बदलने की सिफारिश की गई है। इन बदलावों के साथ कर्नाटक पहला राज्य बन जायेगा जहां हेडगेवार के भाषण को छात्रों की पुस्तक में शामिल किया जायेगा।

भाजपा सत्ता में होने का भरपूर फायदा उठाते हुए सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों के माध्यम से गलत इतिहास और झूठे विचारों को प्रसारित करने का काम कर रही है।

शिक्षा में बदलाव करने का निर्णय इस फासीवादी सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल है। जिसे ये काफी दिनों से अंजाम देने में लगी है लेकिन छात्रों के प्रबल विरोध के बाद उसे कई बार अपने निर्णय वापस भी लेने पड़े हैं। 

शिक्षा में भगवाकरण की इनकी नीति से लड़ने के लिए हमारे पास सिर्फ संघर्ष का रास्ता है और छात्रों की एक बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि इस तरह के हर फैसले पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराएं और संघ के मंसूबों को कामयाब ना होने दें।

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