मंगलवार, 8 नवंबर 2022

 भगत सिंह का बताया रास्ता, हम सब का रास्ता है

23 मार्च का दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के बलिदान को याद करने का दिन है। 23 मार्च 1931 के दिन ही अंग्रेज हुकूमत ने इन तीन वीर नौजवानों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध के अपराध में फांसी पर चढ़ा दिया था। भारत को लूटने के हर हथकंडे अंग्रेजों द्वारा अपनाये गये। हर तरह के जुल्म भारतीयों पर ढाये गये। भारतीयों का दमन करने के लिए तरह-तरह के काले कानून भारतीयों पर थोपे। इन काले कानूनों का प्रयोग भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों पर किया गया। अंग्रेजों ने मजदूरों-किसानों-नौजवानों को क्रूर यातनाएं दी, जेलों में कैद किया। 

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू सरीखे क्रांतिकारी अंग्रेजों के इन्हीं अत्याचारों के खिलाफ लड़े। वे भारत को न सिर्फ गोरे अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराना चाहते थे बल्कि काले अंग्रेजों से भी मुक्त कराना चाहते थे। काले अंग्रेजों से इन क्रांतिकारियों का स्पष्ट आशय देश के पूंजीपतियों से था। वे  सिर्फ भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए ही नहीं लड़ रहे थे बल्कि ऐसी आजादी के लिए लड़ रहे थे जहां मेहनतकशों का राज हो। आजाद भारत के बारे में स्पष्ट समझ रखते हुए भगत सिंह ने समाजवादी भारत का सपना देखा था और इस सपने को पूरा करने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी। समाजवाद का यह सपना इन क्रांतिकारियों की सक्रियता के दौर में रूस में जमीन पर उतारा जा रहा था। समाजवादी व्यवस्था ने सारे उत्पीड़नों का अंत कर दिया था। मेहनतकशों के शोषण का अंत कर दिया था। सभी मेहनतकशों के लिए वास्तविक मानवीय जीवन क्या होता है इसका एहसास भी समाजवादी रूस ने कराया था। मेहनतकशों के वजूद को मात्र श्रम करने व एक वोट तक सीमित कर देने वाले पूंजीवादी समाजों की तुलना में समाजवादी रूस ने उनके लिए जीवन के इन्द्रधनुषी अवसरों का मार्ग खोल दिया। समाजवाद के ऐसे चमत्कारिक घटनाक्रम ने प्रगति की चाह रखने वाले सभी लोगांे को अपनी ओर आकर्षित किया। हमारे देश के क्रांतिकारी भी इससे अछूते नहीं रह सकते थे। और उन्होंने भारत में समाजवादी क्रांति को अपना लक्ष्य घोषित किया। 

बहुत शक्तिशाली तंत्र के बावजूद भी अंग्रेज; क्रांतिकारियों से; बहुत डरते थे। यह अंग्रेज शासकों का डर ही था जिस कारण उन्होंने अपने ही बनाये कानूनों की अवहेलना कर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को तय तारीख से पहले ही और वह भी रात के अंधेरे में फांसी दे दी। जितना अंग्रेज इनसे डरते थे उतना ही हमारे आज के शासक भी इनसे डरते हैं। हमारे शासक हर कोशिश करते रहे हैं कि इन क्रांतिकारियों के परिवर्तनकारी और प्रगतिशील विचार छात्रों-युवाओं तक न पहुंचें। हमारा शासक वर्ग इन क्रांतिकारियों को जब भी पेश करता है तो उन्हें उनके क्रांतिकारी विचारों से बिल्कुल काटकर पेश करता है। सांप्रदायिकता और जात-पात के घोर विरोधी भगत सिंह को शासक अपने क्षुद्र हितों के अनुरूप इस्तेमाल करने की कोशिश करते रहे हैं। संघ-भाजपा की विचाराधारा भगत सिंह की विचारधारा के बिल्कुल विपरीत है लेकिन संघ-भाजपा उनको इस्तेमाल करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। 

आजाद भारत के शासकों ने अपने दमनकारी- उत्पीड़नकारी व्यवहार से हमें हर रोज ये जताया है कि वे दमन-उत्पीड़न और शोषण में अंग्रेजों से जरा भी कम नहीं हैं। संघ-भाजपा के सत्ता में आने के बाद कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब छात्रों-युवाओं पर इनके हमले न हुए हों। जेएनयू से लेकर अब कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने तक इन हमलों की एक लंबी श्रृंखला है। शिक्षा मद में निरंतर कटौती, अल्पसंख्यकों, दलितों-वंचितों को शिक्षा से दूर करने की कोशिशों में ये अन्यांे से आगे हैं। देश को धर्म-जाति के आधार पर बांटना और अल्पसंख्यकों-दलितों-महिलाओं के खिलाफ घृणा फैलाना और हत्याएं आज के भारत की तस्वीर है। रोजगार की मांग करने वालों पर बर्बर लाठीचार्ज इनके राज में आम है। इनके राज में गरीब और गरीब हुए हैं तो अंबानी-अडानी जैसे बडे़ पूंजीपतियों की दौलत में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। ये छात्रों-बेरोजगारों- मेहनतकशों के हकों पर हमला बोल कर अंबानी-अडानी की दौलत बढ़ा रहे हैं। असल मंे एक की कीमत पर ही दूसरा काम हो रहा है।

ऐसे समय में जो लड़ाई लड़ते हुए हमारे शहीद अमर हो गये उस लड़ाई को आज के युवाओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है। इतिहास ने यह कार्यभार आज के छात्रों-नौजवानों के कंधे पर डाला है कि वे काले अंग्रेजों से मुक्ति के संघर्ष में शामिल हों। अपने क्रांतिकारी साथियों की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आगे आएं। अपनी मौत से 3 दिन पहले इन क्रांतिकारियों ने लिखा कि ‘‘निकट भविष्य मंे अंतिम यु़द्ध लड़ा जायेगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूंजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया है और हम अपने पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारंभ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा।’’ पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष को निर्णायक मुकाम तक पहुंचाकर ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। असमानता- अपमान-उत्पीड़न के जीवन से मुक्ति का रास्ता भगत सिंह का रास्ता है। नौजवानों के लिए भगत सिंह और उनके साथियों का यही संदेश है कि यह निर्णायक संघर्ष समाजवाद की स्थापना की ओर ले जाता है। 

भारत के युवाओं को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के शहादत दिवस पर केवल उन्हें याद भर कर लेने की नहीं बल्कि उनके विचारों को जानकर उन पर चलने की जरूरत है। यही वो रास्ता है जो हमारे जीवन के कष्टों के निर्णायक समाधान की ओर ले जाता है। भगत सिंह का बताया रास्ता हम सब का रास्ता है। यह इंकलाब का रास्ता है।

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