कंचल लाल को भावभीनी श्रद्धांजलि
जितेन्द्र कुमार जिन्हें सभी लोग कंचल लाल के तौर पर जानते थे, की बीती 16 सितम्बर की सुबह मृत्यु हो गयी। वे 53 वर्ष के थे। कंचल लाल जी का जन्म 10 अक्टूबर 1968 को बरेली के पुराना शहर के एक रेलवे मजदूर के घर हुआ था। उनके पिता रेलवे में डीजल इंजन के ड्राइवर थे और मां एक घरेलू महिला थी।
सांस्कृतिक कामों में साथी की शुरूआत से बेहद रूचि रही है। विशेष तौर पर तबला वादन और नाटक करने में। इसके अतिरिक्त वे कई तरह के वाद्य यंत्रों को आवश्यतानुसार बजाते रहते थे। उनके द्वारा गाये जाने वाले गीत लोगों में प्रेरणा भरते रहते रहे हैं।
परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भी साथी ने कई बार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। पछास के सम्मेलन, शिविरों में साथी की शानदार सांस्कृतिक प्रस्तुति सदा ही हम याद करते रहेंगे। आरएसएस के सांस्कृतिक संगठन होने के झूठे दावे की पोल खोलते हुए साथी ने बेहद उम्दा व्यंग्य नाटक पछास के सम्मेलन में प्रस्तुत किया था। जब वे पछास के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते तो नौजवानों को तुरंत ही अपने सांस्कृितक कार्यवाही का हिस्सा बना लेते थे। कई नौजवान साथी बेहद उल्लास से उनकी सांस्कृतिक टीम में शामिल होते थे। इस प्रक्रिया में विभिन्न सांस्कृतिक विधाओं को सीखते और उनका सीधा हिस्सा बनते। इस तरह साथी कंचन सांस्कृतिक प्रस्तुति और सांस्कृतिक वर्कशाप एक साथ लगा देते थे।
एक बार साथी कंचन ने बरेली में स्थानीय शिविर में हरिशंकर परसाई का व्यंग्य ‘गणतंत्र दिवस की परेड’ का पाठ किया। व्यंग्य इतने सजीव और व्यंग्यात्मक ढंग से पढ़ा कि शिविर में मौजूद हर कोई उनकी प्रतिभा को सलाम करने लगा।
सांस्कृतिक कामों की ही बात करें तो साथी बेहद प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा को पंूजीवाद के सिक्कों में तोलने के वजाए मजदूर-मेहनतकशों के जीवन को बदलने के लिए लगा दिया। सैकड़ों कार्यक्रमों में साथी ने अपने गीतों के माध्यम से मजदूरों-किसानों, नौजवानों, औरतों के दुःख, कष्टों को स्वर दिये। साथ ही इनको खत्म करने के लिए समाजवाद ही एक मात्र विकल्प है; को भी साथी ने अपने गीतों के माध्यम से बताया। कार्यक्रमों में कंचन के नेतृत्व में उनकी सांस्कृतिक टीम की प्रस्तुति का लोग बेसर्बी से इंतजार किया करते थे। और कार्यक्रम के बाद सांस्कृतिक टीम को पूरा मान सम्मान दिया करते थे।
साथी ने कई नुक्कड नाटक, झांकियां, पोस्टर प्रदर्शनियां बनाई और समाज में इन्हें दिखाया। इन विधाओं ने वापपंथी विचारों को समाज में लोकप्रिय ढंग से फैलाने में बेहद मदद की। आज भी उनके द्वारा नुक्कड नाटकों, स्टेज नाकटों में खेला गया अभिनय लोगों की आंखों में तरोताजा है।
सेमिनार, जुलूस, सम्मेलन, आंदोलन ऐसी कोई जगह नहीं जहां कंचन और उनकी संास्कृतिक टीम ने कार्यक्रम प्रस्तुत ना किये हों। साथी लम्बे समय से देश में चल रहे किसान आंदोलन में अपनी सांस्कृतिक प्रतिभा के माध्यम से योगदान कर रहे थे। पहले अलग-अलग बॉर्डरों में जाकर कार्यक्रम प्रस्तुत किये, जिन्हें आंदोलनकारी किसानों ने काफी पंसद किया। बाद में तो साथी पूरी तरह से किसान आंदोलन के साथ एकाकार हो गये। वे गाजीपुर बॉर्डर में ही रहने लगे और वहां रोज ही अपने गीतों, नाटकों व अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दे आंदोलन को मजबूती देने में अपना योगदान करते रहे। गाजीपुर बॉर्डर में उनके द्वारा गाया गीत ‘जागो फिर एक बार जागो जागो रे’ काफी प्रसिद्ध हुआ।
साथी द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली किसी भी प्रस्तुति में एक खास बात हमेशा रहती थी। वह खास बात है उनका जनता से गहरा सरोकार। वे भरसक कोशिश कर लोगों को अपनी प्रस्तुति से मिलाने की कोशिश करते थे। आम गरीब, मजदूर, मेहनतकश को उनके कार्यक्रम ज्यादा अच्छे लगते थे और साथी कंचन भी उनके बीच प्रस्तुति करने में ज्यादा सहज व जोश में रहते थे। आम गरीब व संघर्षरत वर्ग के बीच प्रस्तुति में उनके अंदर पैदा होता जोश व उत्साह साफ-साफ दिख जाता था।
साथी जितने अच्छे क्रांतिकारी संस्कृतिकर्मी थे उतने ही अच्छे इंसान भी थे। वे संगठन के साथ अटूट रिश्तों में बंधे थे। वे नियमित तौर पर अपनी पत्नी व दोनों बेटियों को संगठन में जुड़ने के लिए प्रेरित करते रहे। आपसी पारिवारिक रिश्तों में वे बेटियों व पत्नी के साथ भी बेहद जनवादी ढंग से व्यवहार करते थे। उनकी ही मेहनत का परिणाम है कि आज उनका परिवार भी संगठन के साथ गहरे से जुड़ा है और कामों में सक्रिय है। साथी कंचन जैसे भीतर थे वैसे ही बाहर थे। बाहर क्रांतिकारी सांस्कृतिक कर्मी और भीतर मजबूत पूंजीवाद ऐसा उनके साथ नहीं था। वे संगठन के उसूलों, आदर्शो में जीते थे और नियमित तौर पर सक्रिय रहते थे।
साथी कंचन को मार्च 2021 से हल्की खांसी शुरू हुई। डॉक्टरों को दिखाने, जांचें करवाने के बाद दवाई चली लेकिन पूरी तरह से आराम नहीं मिल पा रहा था। बाद में जब सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया, पहले पलक अस्पताल में फिर रूहेलखंड मेडिकल कालेज में। स्वास्थ्य ठीक ना होता देख उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती करवाया गया। जहां उनका लम्बा इलाज चला। यहां वे कोमा की स्थिति में चले गये थे। इलाज के दौरान पता चला की उन्हें फेफड़े का कैंसर जैसा असाध्य रोग है। फिर भी अंत समय तक कोशिश की गयी। लेकिन जब वहां के डाक्टरों ने इलाज की किसी संभावना से इंकार कर दिया तो मजबूर हो उन्हें 12 सितम्बर को घर वापस ले आये। घर में कुछ दिन रहने के बाद अंततः 16 सितम्बर 2021 को साथी की मृत्यु हो गयी।
साथी कंचन की यूं असमय मृत्यु होना हम सभी के लिए बेहद दुःख का समय है। उनकी मृत्यु से संगठन और सामाजिक आंदोलन को एक क्षति पहुंची है। लेकिन इस दुःख से उभर कर हमें उन्हीं कामों को तेज करना होगा जिन्हें साथी कंचन ताउम्र करते रहे। यही साथी कंचन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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