पछास का 11 वां सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न
परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) का 11 वां सम्मेलन 25-26 दिसंबर, 2021 को बरेली में आयोजित किया गया। पूर्व संध्या को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा राज्यों से अलग-अलग इकाइयां बैनर के साथ नारे लगाते हुए सम्मेलन स्थल पर पहुंची। 24 दिसंबर की शाम को साथियों ने अपना-अपना परिचय दिया। 2 दिन सही से सम्मेलन संचालित हो इसके लिए विभिन्न कामों के लिए अलग-अलग टीमें और 2 दिन की रूपरेखा बनाई गई।
25 दिसंबर को प्रातः 8ः30 बजे झंडारोहण के साथ कार्यक्रम की शुरूआत हुई। पछास के अध्यक्ष द्वारा झंडारोहण किया गया। झंडारोहण के पश्चात ‘यूथ इंटरनेशनल’ गीत गाया गया। यह गीत देश-दुनिया के छात्रों-युवाओं के साथ एकजुटता प्रदर्शित करता है और सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ खड़ा होने के लिए आह्वान करता है। इसके बाद देश-दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा सताए-मारे गए क्रांतिकारियों, नौजवानों और अन्य मेहनतकशों की याद में 2 मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद अध्यक्षीय भाषण हुआ। जोशो-खरोश के साथ नारे लगाए गये और सम्मेलन के बंद सत्र के लिए साथियों ने प्रस्थान किया।
बंद सत्र की शुरूआत में अध्यक्षीय संबोधन के बाद 3 सदस्यीय संचालक मंडल को आगे संचालन की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। सम्मेलन के पहले सत्र में राजनीतिक रिपोर्ट की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि 2007 से शुरू हुआ आर्थिक संकट अभी तक मजदूर-मेहनतकश जनता पर कहर ढा रहा है। आज पूंजीवादी व्यवस्था गहरे आर्थिक संकट में धंसी हुई है। कोविड-19 महामारी में जनता ने शासकों के कठोर रुख को देखा है। जिसमें जनता के ऊपर दमन, सामाजिक मदों में कटौती और मनमर्जी के फैसले थोपे गए। सरकारों ने मेहनतकश जनता के बरक्स पूंजीपतियों को और अधिक सुरक्षा मुहैया कराई है। पूरी दुनिया के अंदर गैर बराबरी बढ़ी है। दुनिया भर की सरकारें इस दौरान फासीवाद की तरफ बढ़ रही हैं। क्रांतिकारी संघर्षों से ही इस पूंजीवादी व्यवस्था को हम रोक सकते हैं। चर्चा के बाद अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति वाले हिस्से को पास किया गया।
राष्ट्रीय परिस्थिति पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज देश के अंदर छात्रों-नौजवानों सहित मजदूर-मेहनतकश जनता की जिंदगी बदहाली की ओर जा रही है। अर्थव्यवस्था का संकट गहरा होता जा रहा है। कोविड-19 महामारी के नाम पर लॉकडाउन के समय सरकारों ने मजदूरों-किसानों के विरोध में कानून पास किए। आज संघी-मोदी सरकार भी देश को फासीवादी निजाम की ओर धकेलने में लगी हुई है। सीएए, एनआरसी विरोधी आंदोलन और 1 साल से अधिक चले सफल किसान आंदोलन की चर्चा की गई। राजनीतिक रिपोर्ट की राष्ट्रीय परिस्थिति वाले हिस्से पर चर्चा करने के बाद पास किया गया।
छात्र जगत वाले हिस्से में बात करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज सरकारों के पास छात्रों-नौजवानों को देने के लिए कुछ नहीं रह गया है। लॉकडाउन के नाम पर जब अघोषित आपातकाल लगाया गया था। उसमें विरोध करने का अधिकार भी छीन लिया गया था। ऐसे समय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, सरकार ने पास कर दी। जो कि संघ और पूंजीपति वर्ग के अनुरूप बनाई गई है। इसमें शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण के ढेरों प्रावधान हैं। महामारी में मेहनतकश छात्रों का बड़ा वर्ग शिक्षा से दूर हो गया है। बेरोजगारी अपनी चरम सीमा को लगातार पार कर रही है। सरकारें निजीकरण-उदारीकरण- वैश्वीकरण की नीतियों को आगे बढ़ा रही हैं। यह नीतियां बची-खुची सरकारी नौकरियों को भी समाप्त कर रही हैं। इन सवालों को सरकारें लगातार अनदेखा कर रही हैं। नौजवानों के सांस्कृतिक पतन के लिए इस व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया। छात्रों-नौजवानों की देश-दुनिया के सामाजिक आंदोलनों में बढ़ती भूमिका की सराहना की गई। छात्र जगत वाले हिस्से में बात करने के बाद छात्र जगत वाला हिस्सा और फिर पूरी राजनीतिक रिपोर्ट सम्मेलन द्वारा सर्वसम्मति से हाथ उठाकर ताली की गर्जनाओं के साथ पास की गयी।
इसके बाद 25 दिसंबर को अंतिम सत्र में पिछले 3 सालों में संगठन द्वारा की गई गतिविधियाँ/प्रमुख कार्यवाहियों और संगठन की मौजूदा समस्याओं की सांगठनिक रिपोर्ट संगठन के महासचिव ने सम्मेलन के पटल पर रखी।
25 दिसंबर की शाम को एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक संध्या में क्रांतिकारी गीत, नाटक, नृत्य नाटिका, कविता पाठ, लघु नाटिका आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए। जिसमें साथियों ने बढ़-चढ़कर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सम्मेलन का समा बांध कर रख दिया था।
26 दिसंबर की सुबह सांगठनिक रिपोर्ट पर सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने खुलकर चर्चा की। और आने वाले 3 सालों के लिए अपने संगठन की कार्यदिशा तय की। सर्वसम्मति से तालियों की गर्जनाओं के साथ हाथ उठाकर सांगठनिक रिपोर्ट भी पास की गई।
इसके पश्चात शहीदों को श्रद्धांजलि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (छम्च्) के खिलाफ प्रस्ताव, छात्रों नौजवानों पर बढ़ रहे फासीवादी हमले के खिलाफ प्रस्ताव, जनआंदोलनों में छात्रों की शानदार भूमिका, शिक्षा, कोरोना महामारी और छात्र, बढ़ती बेरोजगारी, विनिवेशीकरण के विरोध में कुल 6 प्रस्ताव पास किए गए। पछास के झंडे में पछास लिखने का संविधान संशोधन भी सम्मेलन द्वारा पारित किया गया।
सम्मेलन ने आने वाले अगले सम्मेलन तक अपने बीच से अध्यक्ष के लिए साथी महेंद्र को और महासचिव के लिए साथी महेश को सर्वसम्मति से नए पदाधिकारी के रूप में स्वीकारा। नेतृत्वकारी 18 सदस्यीय सर्वोच्च परिषद का सर्वसम्मति से चुनाव किया गया। 6 सदस्यीय केंद्रीय कार्यकारिणी का चुनाव करने के बाद बंद सत्र का समापन किया गया।
इसके बाद सम्मेलन का खुला सत्र शुरू किया गया। खुले सत्र में विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों, मजदूर संगठनों, महिला संगठनों, ट्रेड यूनियनों, शिक्षक संगठनों, के प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों ने अपनी बात रखी।
खुले सत्र में सभा के बाद बरेली शहर में जुलूस निकाला गया। जुलूस में शिक्षा, रोजगार, महंगाई, फासीवाद को बढ़ते खतरे आदि के खिलाफ जोशो-खरोश से नारे लगाये गये। सम्मेलन का जुलूस बैनर, झंडे, तख्ती, नारों के साथ काफी रंग-बिरंगा और जोशीला लग रहा था। जुलूस वापस सम्मेलन स्थल पर पहुंचकर समाप्त हुआ। सम्मेलन स्थल पर साथियों ने काफी जोश के साथ क्रांतिकारी गीत गाए और नारे लगाये।
अध्यक्षीय भाषण के बाद पछास के 11वें सम्मेलन के सफलतापूर्वक समापन की घोषणा की गई। इसके बाद सभी साथी अपने-अपने समयानुसार सम्मेलन की ऊर्जा के साथ अपने स्थल के लिए विदा हुए।
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