इलाहाबाद वि.वि. छात्रा आंदोलन
अमन
बीते लगभग दो दशकों से भारत निजी शिक्षण संस्थानों के बहुत तेज उभार को देख रहा है। तमाम सरकारें निजी संस्थानों के फायदे के लिए नीतियां बनाती रहीं और इस कारण सार्वजनिक शिक्षा के लगभग सभी सरकारी संस्थान या तो पूरी तरह से बर्बाद हो गए या बर्बादी के कगार पर पहुंच गए। खास तौर पर बीते 8 सालों में जब से नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आयी है, देश लगातार सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों पर हमले देख रहा है। ऐसे संस्थानों को मिलने वाले सरकारी अनुदान में भारी कटौती की गई है, जिसके कारण बार-बार फीस वृद्धि हो रही है। बीते वर्षों में देश के लगभग सभी सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों की फीस बढ़ाई गयी है और ये प्रक्रिया लगातार जारी है।
पिछले दिनों श्रछन्ए क्न्ए प्प्ज् बाम्बेए प्प्डब् जैसे संस्थानों में भी बेतहाशा फीस वृद्धि की गयी थी। कई जगहों पर छात्रों के विरोध के आगे सरकार को झुकना पड़ा लेकिन ज्यादातर जगहों पर सरकार ने इसे लागू करा लिया। हालिया उदाहरण इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है, जहां 400 प्रतिशत तक फीस वृद्धि की गयी है। इसके खिलाफ छात्रों ने एक जबरदस्त आंदोलन लड़ा, जो अभी तक जारी है।
अगस्त महीने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा फीस बढ़ोत्तरी करने का निर्णय लिया गया था, जिसमें सीधे तौर पर 400 प्रतिशत फीस वृद्धि की गयी थी। जिस स्नातक पाठ्यक्रम की फीस 975 रुपये थी, उसे बढ़ाकर 4151 रुपये कर दिया गया। 17 अगस्त को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों-प्रगतिशील छात्र संगठनों ने विश्वविद्यालय की उपकुलपति को एक मांग पत्र सौंपकर बढ़ी हुई फीस वापस लेने की मांग की। इसी मांग पत्र के साथ प्रशासन को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया गया था लेकिन उसके बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई संतोषजनक जवाब छात्रों को नहीं दिया गया।
18 अगस्त के दिन से छात्रों ने विश्वविद्यालय में अनिश्चितकालीन धरना और क्रमिक अनशन की शुरूआत की, लेकिन उसके बावजूद भी प्रशासन की तरफ से कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। इस बीच देशभर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के संघर्ष को समर्थन मिलता रहा। 27 अगस्त को पुलिस-विश्वविद्यालय प्रशासन के गठजोड़ ने धरने को खत्म करने के लिए बल प्रयोग किया, लेकिन छात्रों ने एकजुटता के साथ आंदोलन को जारी रखा। 29 सितंबर को अनशनकारियों की तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
इस बीच प्रशासन की तरफ से मीडिया को दिए गए बयान में कहा गया कि हमने कई दशकों में पहली बार फीस बढ़ाई है, वो भी इसलिए क्योंकि सरकार विश्वविद्यालय को दिये जाने वाले अनुदान में भारी कटौती कर रही है। विश्वविद्यालय की कुलपति ने कहा कि पिछले कई सालों से यूजीसी लगातार इलाहाबाद विश्वविद्यालय समेत सभी विश्वविद्यालयों को अपने खर्च को पूरा करने के लिए खुद के संसाधन जुटाने के लिए कह रहा है। हमारे पास अपने संसाधन जुटाने के लिए फीस बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
27 अगस्त को पुलिस के बल प्रयोग कर आंदोलन खत्म कराने की कोशिशों के बाद, एक तरफ आंदोलन में आम छात्रों की भागीदारी बढ़ी तो दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आंदोलन के छात्र नेताओं को अनौपचारिक तौर पर धमकियां दी जाने लगीं जैसे- तुम्हारी डिग्री रद्द कर दी जाएगी, दंगा करने के जुर्म में घर पर बुल्डोजर चल जाएगा वगैरह...। लेकिन इन धमकियों से भी आंदोलन कमजोर नहीं हुआ, क्रमिक अनशन चलता रहा। बीच-बीच में छात्र जुलूस निकालते और प्रदर्शन करते रहे। 15 सितंबर को एक बार फिर पुलिस ने बल प्रयोग कर आंदोलन को खत्म कराने की कोशिश की और इसी दिन विश्वविद्यालय की शिकायत पर 115 छात्रों (15 नामजद, 100 अज्ञात) पर वैमनस्य फैलाना, दंगा भड़काने जैसी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया। 19 सितंबर को पुलिस द्वारा एक बार फिर दमन का प्रयास किया गया, इस दिन बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज, मारपीट हुई और कई छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
2 अक्टूबर को छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ जिला प्रशासन की वार्ता हुई, छात्रों ने मजबूती के साथ अपनी दोनों मांगों को रखा कि फीस बढ़ोत्तरी तत्काल वापस ली जाए और छात्र संघ को बहाल किया जाए। जिला प्रशासन ने बार-बार जोर दिया कि पहले आप आंदोलन स्थगित करें। इस तरह वार्ता बेनतीजा रही। जिला प्रशासन की तरफ से यह जरूर कहा गया कि हम अपने स्तर से विश्वविद्यालय प्रशासन से भी बात करके मामले को सुलझाने का प्रयास करेंगे।
इस सब के बावजूद आज तक वहां छात्रों का धरना जारी है। विश्वविद्यालय की दलील है कि हम मजबूरन फीस बढ़ा रहे हैं। सरकार, यूजीसी हमसे अपने संसाधन खुद जुटाने के लिए कह रही है।
ऐसी तमाम नीतियों को केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (नेप) लागू करने से पहले छिटपुट तरीके से लागू करती थी, लेकिन नेप लागू होने के बाद अब सरकार खुले तौर पर फण्ड रोकने, सीट घटाने, फीस बढ़ाने से पीछे नहीं हट रही। सेल्फ फाइनेंसिंग, हेफा जैसे नेप के प्रावधानों के आगामी दिनों में लागू होने के बाद ये हमले और भी तेज गति से आगे बढ़ेंगे।
अगर सरकार शिक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी से भागने की कोशिश करेगी तो छात्र अपने संघर्षों के बूते, सरकार से लड़कर सबको शिक्षा, निःशुल्क शिक्षा को लागू कराएंगे।
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