पेगासस जासूसी षडयंत्र
सरकार की मजबूती नहीं कमजोरी का परिचय
पिछ़ले दिनों में पेगासस स्पाईवेयर द्वारा जासूसी कराये जाने पर काफी हो-हल्ला मचा। मोदी सरकार पर कई आरोप लगाये गये, लेकिन मोदी सरकार पूर्व में लगे आरापों की भांति ही इस गंभीर आरोप के समय भी या तो चुप रही या फिर झूठ बोलती रही। मोदी सरकार और उसके कई मंत्री-नेता इस गंभीर आरोप पर अपने-अपने तरीके से सफाई देते रहे।
पेगासस स्पाईवेयर द्वारा जासूसी करने, फोन हैक करने के बारे में सबसे पहले फ्रांस की एक संस्था द्वारा खुलासा किया गया। फ्रांस की राजधानी पेरिस के एक गैर लाभकारी मीडिया संगठन फारविडन स्टोरीज को 50 हजार नंबरों का डेटा बेस मिला। उसने मानवाधिकारों पर काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल से संपर्क किया। इसके बाद इन दोनों संस्थाओं ने पूरी दुनिया की 17 मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर एक समूह बनाया। इस समूह ने डेटा बेस के नंबरों की जांच पड़ताल की। इस जांच-पड़ताल को उन्होंने ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम दिया।
ये 50 हजार नंबर इस्राइली कंपनी एनएसओ को अलग-अलग देशोें की सरकारों ने उपलब्ध कराये थे। ये डेटा 2016 से लेकर 2021 तक के हैं। एमनेस्टी की लैब में जब इस लिस्ट के 67 नंबरों की फारेंसिक जांच की गई तो इनमें से 37 फोन ऐसे पाये गये जिनको पेगासस स्पाईवेयर द्वारा हैक किया गया था। इनमें से 10 फोन भारत के थे जिनको हैक किया गया था।
एनएसओ ग्रुप टैक्नोलाजी इसराइल की साइबर सुरक्षा कंपनी है, इसी ने यह जासूसी स्पाईवेयर बनाया है। यह बदनाम कंपनी और इसका बदनाम स्पाईवेयर दुनिया के अलग-अलग देशों की सरकारों ने खरीदा है। एनएसओ स्पष्ट तरीके से कहती रही है कि वह अपना स्पाईवेयर सिर्फ और सिर्फ सरकारों या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है। और इसका उद्देश्य ‘‘आतंकवाद और अपराध के खिलाफ’’ लड़ना है। लेकिन मोदी सरकार है कि वह इस स्पाईवेयर की खरीद और इससे भारतीय नागरिकों की निगरानी कराये जाने से बार-बार इंकार करती रही।
पेगासस ऐसा प्रोग्राम है जो किसी के मोबाईल या कंप्यूटर में पहुंच जाने के बाद उसके फोन या मोबाईल को लगभग पूरी तरह से हैक किया जा सकता है। उसके माइक्रोफोन, कैमरा, आडियो और टैक्सट मैसेज, ईमेल, लोकेशन तक कि जानकारी दूर बैठे ही हासिल की जा सकती है। यह इन्क्रिप्टेड संदेशों ( ऐसा कहा जाता है कि इन्क्रिप्टेड संदेश वे संदेश हैं जिनको भेजने वाला वाला और रिसीव करने वाला ही पढ़ सकता है। जिस कंपनी के प्लेटफार्म पर यह भेजा जा रहा है वह भी इसे पढ़ और सुन नहीं सकती) को भी पढ़ सकता है।
वर्ष 2016 में पहली बार पेगासस का पता तब चला जब संयुक्त अरब अमीरात के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने यह बताया कि उन्हें कई संदिग्ध एसएमएस प्राप्त हुए हैं। फोन की जांच करने पर पता चला कि अगर उन्होंने इन संदिग्ध संदेशों के लिंक पर क्लिक किया होता तो उनका फोन मैलवेयर से संक्रमित हो जाता। इस मैलवेयर को ही पेगाासस का नाम दिया गया। जानकारों के मुताबिक यह ‘‘एंड्रायड पर किया गया अब तक का सबसे जटिल हमला’’ है। ज्ञात हो कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ता का फोन, सबसे सुरक्षित माने जाने वाले फोन में से एक, आईफोन था।
2017 में मैक्सिकों की सरकार पर अपने ही देश के पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं पर पेगासस द्वारा जासूसी करने के आरोप लगे। इसके पश्चात 2020 में एनएसओ पर फेसबुक जैसा दिखने वाली वेबसाईट के जरिये फोन हैकिंग करने के आरोप लगे। वर्ष 2020 में ही अलजजीरा के कई पत्रकारों के फोन हैक करने के आरोप लगे। सऊदी सरकार पर भी पत्रकार जमाल खगोशी की हत्या से पूर्व उनके फोन को इस स्पाईवेयर से हैक करने के आरोप लगे।
50 हजार नंबरों की जांच पड़ताल द गार्जियन, वाशिंगटन पोस्ट, फ्रंटलाइन, द वायर, रेडियो फ्रांस जैसे 16 मीडिया संस्थान कर रहे हैं। ये नंबर भारत, बहरीन, कजाकिस्तान, अजरबैजान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, हंगरी और संयुक्त अरब अमीरात की सरकारों ने एनएसओ को उपलब्ध कराये हैं। जाहिर सी बात है कि इन देशों की सरकारों ने एनएसओ को मोटी रकम चुकाकर ये सब किया है।
अगर भारत की बात की जाये तो इन 50 हजार नंबरों में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, पूर्व चुनाव आयोग के सदस्य अशोक लवासा, वायरोलाजिस्ट गगनदीप कांग, केन्द्र सरकार के नये केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव और केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के अतिरिक्त अलगाववादी नेता व सिख कार्यकर्ताओं के नंबर इसमें हैं। चुनाव आयोग के सदस्य वो व्यक्ति हैं जिन्होंने 2019 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी की ओर से आचार संहिता के उल्लंघन किये जाने की बात कही थी।
पत्रकारों में द वायर के दो संस्थापकों सहित कंट्रीब्यूटर रोहिणी सिंह और इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार सुशांत सिंह का नाम भी इसमें हैं। दावे तो यह भी किये जा रहे हैं कि इस लिस्ट में 40 से ज्यादा पत्रकारों के नंबर हैं।
बड़ा सवाल यह है कि एनएसओ अपने स्पाईवेयर का उद्देश्य ‘‘आतंक और अपराध के खिलाफ लड़ने’’ के लिए बताती है। लेकिन सरकारों और भारत सरकार ने इसका उपयोगे अपने विरोधियों, पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, नागरिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ किया है। हद तो तब हो गयी जब अपनी ही पार्टी के नेताओं के फोन भी हैक कर लिये गये। यह सब इस सब के बाद किया गया, जब सरकार के पास पूर्व से ही फोन हैक करने का ‘वैध व कानूनी’ तरीका मौजूद है।
यह पुरानी बात नहीं है कि भारत में कानूनी तरीके से फोन टैंपिग की एक पूरी व्यवस्था पहले से ही मौजूद है। पेगासस के हो-हल्ले के बीच सरकार ने संसद के जरिये बताया कि ‘‘लॉफुल इंटरसेप्शन’’ या कानूनी तरीके से फोन या इण्टरनेट की निगरानी या टेपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है, जो बरसों से चल रही है। नये सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में कहा कि भारत में एक स्थापित प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी सार्वजनिक आपातकाल की घटना होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए केन्द्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रानिक संचार को इंटरसेप्ट करती हैं। हालांकि यह अलग बात है कि बाद में यह बात उजागर हुई कि उनका फोन भी पेगासस हैकिंग की सूची में शामिल था। केन्द्र और राज्य सरकारों के अलग-अलग अधिकारी ‘‘लाफुल इंटरसेप्शन’ की अनुमति दे सकते हैं। इस सब के लिए 10 एजेन्सियों को अधिकृत किया हुआ है। यह कितना आम है, यह 2012 में द इंडियन एक्सप्रेस अखबार द्वारा आरटीआई में मांगी गई जानकारी से स्पष्ट हो जाता है। इस आरटीआई के आधार पर अखबार द्वारा रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘‘केन्द्रीय गृह मंत्रालय औसतन हर दिन 250-300 टेलीफोन इंटरसेप्शन का आदेश देता है और हर महीने औसतन 7500 से 9000 टेलीफोन इंटरसेप्शन के आदेश जारी किये जाते हैं।’’
भारत में 1885 का इंडियन टेलीग्राफ एक्ट था जो टेलीफोन और टेलीग्राफ के इंटरसेप्शन के लिए प्रयोग होता था। वर्ष 2000 में इसे और व्यापक और कठोर बनाते हुए आईटी एक्ट लागू किया गया। इस आईटी एक्ट में आधुनिक संचार साधनों को अपने जद में लिया गया है। आईटी एक्ट का सेक्शन 81 में दर्ज है कि ‘‘अगर इस कानून के प्रावधानों और अन्य कानूनों के प्रावधानों मेें कोई टकराव होता है तो इस कानून के प्रावधानों को सर्वोपरि माना जायेगा।’’ समझा जा सकता है इस कानून के आगे निजता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता सब रौंदे जाने का इंतजाम कर दिया गया है। इस कानून में यह भी दर्ज है कि अगर सरकार को लगता है कि कुछ वजहों से उन्हें इंटरसेप्ट किया जाना चाहिए तो वो ऐसा कर सकती है। इसमें इंटरसेप्शन के जो कारण दिये गये हैं वे इतने व्यापक हैं कि कोई भी, कभी भी इसकी जद में आ सकता है, वह भी पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत। देश का कानून ऐसी एजेन्सियों को इस सब का अधिकार देता है।
दरअसल यह वह दौर है जब सरकारें निरंतर डर के साये में पूंजीवादी व्यवस्था का संचालन कर रही हैं। समाज में लगातार बढ़ते असंतोष का पूंजीवादी सरकारों के पास कोई समाधान नहीं है। वे किसी भी तरह से शासन सत्ता में बैठे रहना चाहते हैं। उनका हर कदम, हर नीति जन असंतोष को निरंतर बढ़ाता जाता है। इस असंतोष का विपक्षी पार्टियों से लेकर हर विरोधी लाभ उठाना चाहता है। यह असंतोष शासकों को सत्ता से बेदखल न कर दे, इसी कारण निगरानी तंत्र को लगातार मजबूत किया जा रहा है।
शासक वर्ग जुल्म, शोषण, असमानता पर आधारित अपनी व्यवस्था को टिकाये रखने के लिए पहले दिन से वह सब इंतजाम करता है जो वह कर सकता है। समय बदलने के साथ-साथ, तकनीक के विकास के साथ-साथ इसमें नये-नये यंत्र और तंत्र जुड़ते जाते हैं। जैसे-जैसे पूंजीवादी व्यवस्था का संकट बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे वह निगरानी तंत्र को भी मजबूत करता जा रहा है। क्या तो अपने, क्या विपक्षी और क्या संघर्षशील शक्तियां, पूंजीवादी व्यवस्था के संचालक सभी की हर समय निगरानी करने में जरा भी पीछे नहीं हैं। जब सत्ता पर फासीवादी शक्तियों का कब्जा हो तो यह खतरा और भी भीषण हो जाता है। अपने विरोधियों को निपटाने, उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डालने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। भीमा कोरेगांव केस में कई लोगों के फोन-लैपटाप हैक कर उनमें वे चीजें डाली गयी, जिनको आधार बनाकर उनको देशद्रोह के अभियोग में लंबे से समय से जेलों में कैद कर रखा गया है। मोदी सरकार निगरानी कराने के मामले में पूर्व की सरकारों से काफी आगे निकल चुकी है।
लेकिन पेगासस द्वारा यह हैंकिंग पूंजीवादी कानून के तहत भी एक आपराधिक कृत्य है। सरकार कानूनन ऐसा नहीं कर सकती। यही कारण है कि सरकार बार-बार इस सबकी जिम्मेदारी लेने से बचती रही है। सत्ता के लिए यह कोई नैतिक प्रश्न नहीं है। जो कुछ कानूनन नहीं हो सकता उसे गैरकानूनी करने में सत्ता कब पीछे रही है। जब सरकारें अपने ही कानूनों की धज्जियां उड़ा ऐसा करने लग जाये तो समझा जाय कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजता, नागरिक अधिकारों का, मेहनकतशों के संघर्षों पर कड़ा प्रहार होना शुरू हो गया है। देखने में यह शासकों की मजबूती लग सकता है, उनके दमन तंत्र की मजबूती प्रतीत हो सकता है। लेकिन इतिहास पर नजर दौड़ाये तो यह शासकों की मजबूती की नहीं, बल्कि उनकी कमजोरी की ही एक निशानी है। यह इस बात की भी निशानी है कि मौजूदा शासक वर्ग अब अभी तक के नियम-कानूनों से अपना शासन नहीं चला पा रहे हैं। यह इस बात की भी निशानी है कि शासक वर्ग अपने ही कानूनों, संविधान की धज्जियां उड़ा उसे कालातीत हो जाने के प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है।
हर वक्त के शासक अपने निजाम को कायम रखने के लिए ऐसा करते रहे हैं। लेकिन जनता, जनता के एकजुट संघर्ष के सामने वह नहीं टिकेंगे। उनकी ऐसी हर कोशिश एक दिन धरी रह जानी है। सचेत जनता जब परिवर्तनकारी हौसलों से आगे बढ़ती है तो क्रूूर से क्रूर शासकों को भी इतिहास बनना ही पड़ता है। चाहे लाख बाधाएं शासक खड़ी करें, लेकिन परिवर्तनकारी मेहनतकश जनता उसे इतिहास जरूर बनायेगी। ऐसा अतीत में भी हुआ है और भविष्य में भी ऐसे नजारे आम होंगे।
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