सोमवार, 7 नवंबर 2022

पैंडोरा पेपर्स 

अमीरों द्वारा कानूनी टैक्स चोरी की दास्तान



साल 1997 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोजी पत्रकारों की एक संस्था; इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआई) की स्थापना हुई। इस संस्था में 100 से ऊपर देशों के मीडिया संस्थानों के सैकडों पत्रकार जुटे थे। भारत से इंडियन एक्सप्रेस इससे जुड़ा है। तब से यह संस्था दुनिया भर में नेटवर्क बनाकर होने वाले भ्रष्टाचार और लूट की छानबीन में लगी हुई है। इसने वर्ष 2016 में पनामा पेपर्स जारी किये थे और अभी हाल ही में 117 देशों के 150 मीडिया संस्थानों के 600 पत्रकारों की मदद से एक रिर्पोर्ट जारी की है। जिसे पैंडोरा पेपर्स के नाम से जाना गया है। इस रिपोर्ट में 1990 के दशक के भी दस्तावेज शामिल हैं। यद्यपि ज्यादातर दस्तावेज 1996 से 2020 के बीच के हैं। ये दस्तावेज जर्सी, ब्रिटिश वर्जिन आईलैण्ड्स, साइप्रस जैसे कई ऑफशोर टैक्स हैवन्स में स्थित 14 सेवा प्रदाताओं (कंपनियों) से जुड़े हुए हैं, जिसमें करीब 29000 ऑफशोर कंपनियां और ट्रस्ट स्थापित करने का विवरण है। यह सेवा प्रदाता इस तरह की कंपनियां और ट्रस्टों का गठन करने में मदद देते हैं, जिससे धनकुबेर पैसे का घाल-मेल कर टैक्स बचा सकें। टैक्स हैवेन उन देशों या आइलैण्ड्स को कहा जाता है जहां अन्य देशों की तुलना में बहुत कम या कोई टैक्स नहीं लगता है। यह टैक्स हैवेन विदेशी नागरिकों, निवेशकों और उद्योगपतियों को यह सुविधा प्रदान करते हैं कि वे उनके यहां कागजी कंपनियों या ट्रस्ट का गठन कर सकें। इस तरह यह धनकुबेर टैक्स हैवेन वाले स्थान पर कागजी कंपनियां एवं ट्रस्ट खोल कर अपना पैसा देश से बाहर भेजते हैं, ताकि उनके मूल देश के टैक्स प्राधिकारियों को उनकी वास्तविक सम्पत्ति का पता न चल सके और वे टैक्स देने से बच जायें। यह कंपनियां ऑफशोर कंपनी कहलाती हैं। इसमें मालिक या स्टाक होल्डर जिस देश का नागरिक है उसके बजाय इसके किसी टैक्स हैवेन जगह पर कंपनी स्थापित करते हैं और मूल देश के अपने धन को इस कंपनी में भेजते हैं। इस कंपनी के माध्यम से निवेश करते हैं व टैक्स चोरी को अंजाम देते हैं। 

इस तरह यह केवल टैक्स चोरी नहीं बल्कि दुनिया के पैमाने पर काले धन को बढ़ाने का साधन भी है। आईसीआईजे का अनुमान है कि टैक्स हैवेन देशों के जरिये दुनिया भर के देशों का तकरीबन 6 ट्रिलियन से 32 ट्रिलियन तक धन या टैक्सचुराया जा रहा है। 

इस रिपोर्ट में दुनियाभर की 38 विभिन्न क्षेत्रों के व्यापार करने वाली 14 कंपनियों से मिली लगभग 1 करोड़ 20 लाख फाइलों की समीक्षा की गयी, जिससे विश्व के सैकड़ों नेताओं, धार्मिक नेताओं, अरबपतियों, मशहूर हस्तियों और नशीले पदार्थों के कारोबार में शामिल लोगों के उन निवेशों का खुलासा हुआ है जिन्हें ऑफशोर कंपनियां और प्राइवेट ट्रस्ट बनाकर, उनमें निवेश करके टैक्स चोरी को अंजाम दिया गया था। दुनिया के 91 देशों से जुड़े 330 राजनेताओं और बड़े अधिकारियों का नाम इसमें शामिल है। जिसमें से 35 ऐसे लोग भी हैं जो या पहले किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष रह चुके हैं या वर्तमान में किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष हैं। जैसे वर्तमान में जॉर्डन के राजा, यूक्रेन के राष्ट्रपति, केन्या, इक्वाडोर और चेक रिपब्लिक के प्रधानमंत्री, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के करीबी लोग, रूसी राष्ट्रपति के करीबी लोग, ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर इत्यादि शामिल हैं।

इस टैक्स चोरी में भारत से गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी, अनिल अंबानी, कैप्टन सतीश शर्मा, जैकी श्राफ, सचिन तेंदुलकर एवं कई मामलों में सरकार की ओर से कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील हरीश साल्वे, किरन मजूमदार शॉह और भगोड़ा नीरव मोदी शामिल हैं। चूंकि फाइलों की समीक्षा का काम चल रहा है इसीलिए आने वाले समय में देश-दुनिया के कुछ और नामों का भी खुलासा हो सकता है।

इसी साल जुलाई में भारत सरकार ने बताया था कि पनामा पेपर लीक में भारत से संबंधित लोगों की कुल 20,078 करोड़ रुपये की अघोषित सम्पत्ति का पता चला है। 

पैंडोरा रिपोर्ट में बताया गया है कि पनामा पेपर लीक के बाद भारतीयों ने अपनी सम्पत्ति को ‘रिआर्गनाइज’ करना शुरू कर दिया था। इसी के अनुसार क्रिकेट के ‘‘भगवान’’ सचिन तेंदुलकर लीक के तीन महीने बाद ब्रिटिश वर्जिन आइलैण्ड में अपनी सम्पत्ति बेचने में जुट गये थे। भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे हुये लोगों ने भी अपनी सम्पत्ति के एक बड़े हिस्से को ऑफशोर कंपनियों में निवेश कर दिया है। जैसा कि यह रिपोर्ट बताती है कि कई लोगों ने व्यक्तिगत गारंटी से अपने व्यवसायों द्वारा लिये गये ऋणों से खुद को बचाने के लिये अपनी सम्पत्ति को ऑफशोर ट्रस्ट में लगा दिया। जिसका एक उदाहरण पंजाब नेशनल बैंक से हजारों करोड़ का घोटाला करके, देश से भागने वाले नीरव मोदी का है। इस बात के प्रमाण हैं कि उनकी बहन ने, नीरव के मामले के एक माह पहले ही एक और ऑफशोर ट्रस्ट बनाया था।

इसी प्रकार एक विस्मयकारी उदाहरण अनिल अंबानी का है। इण्डियन एक्सप्रेस के अनुसार रिलायंस एडीए ग्रुप के चेयरमैन और उनके प्रतिनिधियों द्वारा टैक्स हैवेंस में कम से कम 18 कंपनियां खोली गई हैं। जिनका गठन साल 2007 से 2010 के बीच किया गया था। इसमें से 7 कंपनियों द्वारा कम से कम 1.3 अरब डॉलर का लेन-देन (निवेश एवं ऋण प्राप्ति) किया गया। जबकि फरवरी 2020 में चीन के 3 सरकारी बैंकों के द्वारा अनिल अंबानी पर किये गये मुकदमे की, लंदन की एक अदालत में सुनवाई के दौरान उन्होंने बताया कि उनकी आय शून्य है। उस समय अदालत में ऑफशोर कंपनियों के बारे में पूछा था, क्योंकि उनकी कोई जानकारी नहीं दी गयी थी। कुछ दिन बाद अदालत ने अनिल अंबानी को यह आदेश दिया कि वे बैंकों को 71.6 करोड़ डॉलर का भुगतान करें। लेकिन अनिल ने भुगतान नहीं किया और कहा कि उनके पास विदेशों में न तो कोई सम्पत्ति है और न ही कहीं से फायदा हो रहा है। लेकिन पैंडोरा पेपर्स के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अनिल अंबानी के पास कई ऑफशोर कम्पनियां हैं।

मार्के की बात यह है कि ऑफशोर कंपनी बनाना या उसमें निवेश करना बिजनेस दुनिया के लिए कानूनी है और ऐसा करने से इस समय उपस्थित किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होता। दरअसल यह कानूनों के लूप होल का फायदा उठाना है। जिसका उपयोग देश चलाने वालों से लेकर देश लूटने वाले सभी कर रहे हैं। जहां एक ओर मेहनतकश जनता समस्त खरीदों, आय इत्यादि पर ईमानदारी से टैक्स भर रही है। वहीं दूसरी ओर अरबों रुपयों के मालिक, अपार सम्पत्ति होते हुए भी, सम्पत्ति बढ़ाने की हवस में टैक्स चोरी में लिप्त हैं। यह पूंजीवादी व्यवस्था की घिनौनी सच्चाई है। जो बताती है कि पृथ्वी की सबसे सचेत प्रजाति यानी मनुष्यों का बेहद छोटा एवं अमीर हिस्सा पूंजी का ही गुलाम हो जाता है। जो दिन-रात पूंजी/सम्पत्ति को ही अन्तहीन सीमा तक बढ़ाने को जिन्दगी का पवित्र लक्ष्य बना देता है। 

ऐसा नहीं माना जा सकता है कि वर्तमान में दुनिया के अन्य देशों या भारत के आयकर विभाग, जो कि आम जनता की खरीद-फरोख्त, आय-व्यय इत्यादि पर पैनी नजर रखते हैं, को इस टैक्स चोरी का पता न हो। उन्हें निश्चित ही उपस्थित कानूनों की कमजोरियों या उनके लूप होल का पता होगा। लेकिन अमीरों के हित के कानून बनाने वाले, उन कानूनों को बना या लागू नहीं करा सकते जिससे अमीरों की पूंजी पर आंच आये।

यह हमारे समाज की विडम्बना हीे कही जायेगी कि देश-दुनिया में भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी अति आवश्यक चीजों के लिए सरकारों के पास पैसा नहीं है। लेकिन इसी दुनिया में सैकड़ों-हजारों ऐसे लोग भी हैं जो कि अरबों करोड़ की टैक्स चोरी में लिप्त हैं। जिसका पता दुनिया की सरकारों को भी है, और सरकारों के प्रयास ऐसे नहीं हैं कि यह टैक्स चोरियां रुक जायें। मगर यहीं पूंजीवादी व्यवस्था का क्रूर यथार्थ है। निश्चित ही पूंजीवाद के रहते यह यथार्थ नहीं बदल पायेगा। 

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