मंगलवार, 8 नवंबर 2022

  भगत सिंह की हर वर्षगांठ पर

प्यारे-दुलारे भगत,

खत में एक दूरी तो है पर यह खत हम तुम्हारे मार्फत खुद को लिख रहे हैं- तुम से जुड़कर तुम्हें अपने से जोड़ रहे हैं।

तुम्हें हम क्या कह कर पुकारें यह तय करना बाकी है क्योंकि तुमसे जनम का रिश्ता तो है नहीं- कर्म का रिश्ता है और तुम्हें जो करना था कर गए। हमें जो करना है वह कितना कर पाते हैं यह इससे भी तय होगा कि तुम्हें कैसे याद करते हैं। 

बहरहाल इतना तो तय ही है कि तुम्हें ‘शहीदे आजम’ कहना छोड़ दिया है- इसमें जो दूरी, जो परायापन था वह पास आने से रोकता रहा है। तुम्हें अनूठा, असाधारण, निराला बना कर हम बचते रहे कि तुम जैसा और कोई हो ही नहीं सकता। आखिर क्यों नहीं हो सकता, आखिर तुमने ऐसा क्या किया है जो कोई दूसरा नहीं कर सकता? तुमने देश को प्रेम किया, समाज को बदलना चाहा, घर-परिवार को समाज का अंग मान समाज को आजाद और बेहतर बनाना चाहा। आखिर तभी तो घर-परिवार आजाद और बेहतर हो सकते थे। तुमने अनुभव और अध्ययन से जाना और लोगों को बताया कि शोषण और जुल्म करने वालों में देशी-विदेशी का अन्तर बेमानी होता है। तुमने कितनी आसानी से समझा दिया कि तुम नास्तिक क्यों हो गये थे। तुमने कुर्बानी दी- पर कुर्बानी देने वालों की तो कभी कमी नहीं रही है, आज भी हैं कुर्बानी देने वाले। हां! तुम्हारी चेतना का विकास और व्यापक पहुंच असाधारण थी।

पर कोई करने पर आमादा हो जाय तो यह सब मुश्किल भले ही हो पर असंभव तो नहीं होना चाहिए। पर हां तुम्हारी तरह लगातार अपने साथ आगे बढ़ते जाने का जज्बा और कोशिश तो चाहिए ही।

तुमने जब अपने वक्त को और उसी से जोड़ कर अपने को जाना-पहचाना तो हिन्दुस्तान पर बरतानिया के हुक्मरानों की हुकूमत बेलौस और बेलगाम हो चुकी थी। आज अमेरिकी निजाम उसी रास्ते पर है। वह ज्यादा ताकतवर, ज्यादा बेहया और ज्यादा बेगैरत है। उसे हर हाल में अपनी जरूरतें पूरी करनी हैं। पर दूसरी तरफ दुनिया तो पहले से ज्यादा जागी हुई है। खुद अमेरिका में भी लाखों लोग अपने ही देश में अमन और तहजीबी-तमद्दुन के दुश्मनों के खिलाफ बगावत पर आमादा हैं। यह सच है कि आज दुनिया को भरमाने और तरह-तरह के लालचों के जाल में फंसा कर न घर न घाट का कुत्ता बना देने के ढेरों औजार और चकाचौंध पैदा करने वाली फितरतें हैं हुक्मरानों के पास- लोगों को तरह-तरह से बांट कर रखने के उपाय हैं, पर आम लोग भी तो पहले ही तरह भेड़ बकरी नहीं रहे। आज ठीक है कि ज्यादातर लोग सम्मानपूर्वक रोटी दाल भी नहीं खा रहे और पढ़े-लिखे लोग रोटी पर तरह-तरह के मक्खन और चीज चुपड़ने में ही मरे जा रहे हैं पर यह भी तो सच है कि ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो जानने समझने लगे हैं कि जो कुछ उनका है वह उन्हें क्यों नहीं मिल पा रहा है। आज आदमी के हक छीने जा रहे हैं- यहां तक कि हवा-पानी का हक भी जो कुदरत ने हर किसी को दे रखा है। पर हकों की पहचान भी तो बढ़ रही है। आज इन्साफ की उम्मीद नहीं रही पर इन्साफ के लिए खुदा नहीं इन्सान को जिम्मेदार ठहराने की तरकीबें बढ़ रही हैं। इन्सान धरती-सागर ही नहीं अन्तरिक्ष को भी रौंद रहा है पर उसकी इन्सानियत खोती जा रही है- पर साथ ही बढ़ रहा है हैवानियत से शर्म का एहसास। बढ़ रहे हैं भारी पैमाने पर लालच, बेहयाई और बर्बरता, पर क्या गुस्सा नहीं बढ़ रहा?

तो भगत! हम तुम्हारे अनुयायी नहीं, तुम सा बनना चाहते हैं बल्कि तुमसे आगे जाना चाहते हैं- क्योंकि तुम सा बनने से भी काम नहीं चलेगा। तुम रूमानियत से उबरते जा रहे थे पर क्या पूरी तरह? आज के हालात में भी रूमानियत जरूरी है पर दाल में नमक भर।

हम पुराने हथियारों पर लगी जंग छुड़ा उन्हें और धारदार बनाएंगे और लगातार नए-नए हथियार भी ढूंढ़ते जाएंगे। दोस्त-दुश्मन की पहचान तेज करेंगे। हम समझने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम आज होते तो क्या-क्या करते। हमें तुम्हारे बाद पैदा होने का फायदा भी तो मिल सकता है। एक भगत सिंह से नहीं काम चलने वाला- हम सब को ‘तुम’ भी बनना होगा।

यह सब लिख पाना भी आसान नहीं था। वर्षों लग गए यह खत लिखने में। जो कुछ लिखा है उसे कर पाने में तो और भी न जाने कितना वक्त लगे! फिलहाल तुम्हें चूमते हुए, आगोश में भरते हुए.....

-लाल बहादुर वर्मा (साभार- ‘भगत सिंह से दोस्ती’ किताब से)

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