मंगलवार, 8 नवंबर 2022

 शहीद भगत सिंह जिन्दा हैं

‘‘हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली’’ (‘छोटे भाई कुलतार को लिखे अंतिम पत्र’ से) भगत सिंह के ये शब्द कितने सच्चे हैं। जब कभी छात्र-नौजवान सरकारी ज्यादती या अपनी समस्याओं के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं, भगत सिंह का नाम लेते हैं। जब कभी मजदूर, मेहनतकश या अन्य लोग उत्पीड़न, अन्याय के खिलाफ बोलते-लड़ते हैं, तो भगत सिंह की राह पर चलने की बात करते हैं। यहां तक कि हर पल भगत सिंह से खौफ खाने वाले हिन्दू फासीवादी भी अपने को भगत सिंह से जोड़ने की कोशिश करते हैं। 23 मार्च भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू का शहादत दिवस होता है। शहादत के बावजूद भगत सिंह का जिक्र एक जिंदा इंसान की तरह होता है और यह होता रहेगा।

‘‘हमारा विश्वास है कि जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने वाली सरकार को नेस्तनाबूत करना युवाओं का कर्तव्य है।’’ (युवक लेख से)। जब तक सरकारें जनता (यानी मेहनतकश जनता) को इंसानी गरिमा वाले बुनियादी अधिकार नहीं दे देती हैं भगत सिंह याद आते रहेंगे। ऐसी सरकार को नेस्तनाबूत करने का कर्तव्य निभाने के लिए युवा जब-जब आगे आते रहेंगे। भगत सिंह फिर-फिर जी उठेंगे। ऐसे जागरुक छात्र जो समाज की समस्याओं से चिंतित हैं। इन समस्याओं के समाधान में ही अपनी समस्याओं का भी समाधान देखते हैं। वे शिक्षा के हाल देखकर भगत सिंह को याद करते हैं और उनका लिखा पाते हैं ‘‘जिन नौजवानों को कल देश की बागडोर हाथ में लेनी है, उन्हें आज ही अक्ल के अन्धे बनाने की कोशिश की जा रही है।’’ (विद्यार्थी और राजनीति लेख से)

शिक्षा से दूर होते नौजवान, निजीकरण की मार झेल रहे युवा, महंगाई, बेरोजगारी से फटेहाल लोगों का हाल किससे छिपा है। पर सरकार है कि अपनी ही तारीफ के पुल बांधते नहीं थक रही। उसने भारत को विश्वगुरू घोषित कर दिया है। ऐसे धोखों से बचते हुए छात्रों नौजवानों को क्या करना चाहिए? ‘‘नौजवानों को क्रांति का यह संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचाना है। फैक्टरी, कारखानों के क्षेत्र में गन्दी बस्तियों और गांवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आयेगी और एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।’’ (‘भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा पंजाब छात्र संघ लाहौर के लिए भेजा गया पत्र’ से) 

मौजूदा सरकार ने धर्म, राष्ट्र, देशसेवा का ऐसा गड़बड़झाला किया है कि तमाम नौजवान बेसुध हो गये हैं। उन्हें होश नहीं है कि इस खुमारी में वे जिनके खिलाफ नफरत, घृणा और हत्या करने के जुनून से भर दिये गये हैं, वे उनके दोस्त हैं। दुश्मन है कि दूर से ये तस्वीर देखकर खुश है, तसल्ली में है कि उसका जहर असर कर रहा है। दुश्मन सुकून में है, दोस्त हलकान हैं। देश की ऐसी दुर्दशा के बारे में भगत सिंह की बात बरबस याद हो आती है ‘‘भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है। भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है।’’  (‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ लेख से) आजाद भारत की सरकारों ने यही किया।

सरकारों ने यह संसद में बैठकर किया। इसके बारे में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जब बम काण्ड के बाद सेशन कोर्ट में बयान दे रहे थे तो बताया ‘‘भारत की लाखों मेहनतकश जनता एक ऐसी संस्था से किसी बात की भी आशा नहीं कर सकती जो भारत के बेबस मेहनतकशों की दासता तथा शोषकों की गलाघोटू शक्ति की अहितकारी यादगार है।’’ (‘बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में भगत सिंह और दत्त का बयान’ से) अपने बयान में उन्होंने साफ शब्दों में बताया कि संसद में यह किसके लिए होता है ‘‘समाज के जोंक पूंजीपति जरा-जरा सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा कर देते हैं।’’ (‘बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में भगत सिंह और दत्त का बयान’ से) यानी चन्द पूंजीपतियों की अय्याशी, रंगरलियां; जिसका हर पल बेशर्म प्रचार होता रहता है; देश के करोड़ों मेहनतकशों की तबाही-बर्बादी की कीमत पर हो रही है। लबालब भरी तिजोरियां करोड़ों मेहनतकशों के खून-पसीने से पड़ी हैं। भारत के इन पूंजीपतियों ने यह कहां से सीखा? ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से। 

‘‘भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या जो मजदूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गंभीर है। उसके सामने दोहरा खतरा है- विदेशी पूंजीवाद का एक तरफ से और भारतीय पूंजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ से। भारतीय पूंजीवाद विदेशी पूंजी के साथ हर रोज बहुत से गठजोड़ कर रहा है।’’ (‘एच.एस.आर.ए. के घोषणा पत्र’ से) आज मोदी सरकार साम्राज्यवादियों से अपने नये-नये सौदेबाजी की तारीफ करते नहीं थकती। उनसे युद्धक हथियार, निगरानी तकनीक आदि लेकर जश्न मनाती है। आप हर गठजोड़-सौदेबादी के साथ साम्राज्यवादियों के दुलारे हो सकते हैं। पर महाशय! आप क्रांतिकारियों की नजर में देश के सबसे बड़े शत्रु हैं। आपका जश्न आपको और आपके चंद मित्रों अम्बानी-अडानी-टाटा और साम्राज्यवादी लुटेरों को मुबारक। क्योंकि भगत सिंह के शब्दों में ‘‘साम्राज्यवाद मनुष्य के हाथों मनुष्य और राष्ट्र के हाथों राष्ट्र के शोषण का चरम है।’’ (‘कमिश्नर, विशेष ट्रिब्यूनल, लाहौर साजिश केस, लाहौर के सामने स्पष्टीकरण’ से)

इन हालातों में छात्रों-नौजवानों और मेहनतकश जनता के संघर्ष जारी हैं। इन संघर्षों पर रोज नये लांछन लगाये जा रहे हैं। ऐसा इसीलिए कि यह युद्ध है उत्पीड़नकारी व्यवस्था के खिलाफ। यह युद्ध जारी रहेगा। बकौल भगत सिंह ‘‘युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय पर अपना एकाधिकार कर रखा है चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति और अंग्रेज या सर्वथा भारतीय ही हों।’’ (‘हमें फांसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये’ शीर्षक से पंजाब गवर्नर को लिखे पत्र से) संघर्ष कर रही जनता पर लांछन लगाने वाले पूंजीपति या सरकार मेहनतकशों का खून चूसने वाली लुटेरी जोंकों के सिवा कुछ नहीं हैं।

आज देश की फासीवादी मोदी सरकार अपने इस लुटेरे चरित्र को छुपाने के लिए अतीत की अंधश्रद्धा को जनता पर थोप रही है। अतीत के खण्डहरों से मुग्ध हिन्दू फासीवादी भविष्य को भी खण्डहर बना देंगे। भगत सिंह ने ऐसे विश्वासों के बारे में कहा था ‘‘पर निरा विश्वास और अन्धविश्वास खतरनाक है। यह मस्तिष्क को मूढ़ तथा मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है। जो मनुष्य अपने को यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी पड़ेगी। यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे। तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नये दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना।’’ (मैं नास्तिक क्यों हूं, लेख से) साफ है कि अतीत के खण्डहरों में कुछ गर्व करने लायक है तो काफी कुछ झाड़ने-बुहारने के लायक। इस सफाई के बिना अतीत को अंधश्रद्धा से अपनाने से देश का बहुत अहित हो रहा है, आगे और भी अधिक होगा।

अक्सर ही पूंजीवादी लूट से परेशान और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बोलने वाले लोग ‘इंकलाब- इंकलाब’ का जाप करने लगते हैं। भगत सिंह ने इस बारे में कहा था ‘‘हम समाजवादी क्रांति चाहते हैं, जिसके लिए बुनियादी जरूरत राजनीतिक क्रांति की है।... स्पष्टता से कहें तो- राजसत्ता का सामान्य जनता की कोशिश से क्रांतिकारी पार्टी के हाथों में आना। इसके बाद पूरी संजीदगी से पूरे समाज को समाजवादी दिशा में ले जाने के लिए जुट जाना होगा। यदि क्रांति से आपका यह अर्थ नहीं है तो महाशय, मेहरबानी करें और ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाना बंद कर दें। कम-से-कम हमारे लिये ‘क्रांति’ शब्द में बहुत ऊंचे विचार निहित हैं। और इसका प्रयोग बिना संजीदगी के नहीं करना चाहिए, नहीं तो इसका दुरुपयोग होगा।’’ (‘एच.एस.आर.ए. के घोषणा पत्र’ से)

हर छात्र-नौजवान, मेहनतकश को भगत सिंह की इस चेतावनी का ख्याल रखना चाहिए। इंकलाब जिन्दाबाद कहते हुए साम्राज्यवाद-पूंजीवाद का धुर विरोधी होना काफी नहीं, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, पुरातनपंथी विचारों से भिड़ना भी काफी नहीं है। बल्कि जरूरी है समाजवादी क्रांति का, मजदूर-मेहनतकश जनता के हाथ राजनीतिक सत्ता का समर्थक होना।

क्रांति के भगीरथ काम के लिए अपार उत्साह के साथ साहस और धैर्य की जरूरत का एहसास करवाते हुए भगत सिंह ने आगाह किया था। ‘‘क्रांति करना बहुत कठिन काम है। यह किसी एक आदमी की ताकत की बस की बात नहीं है और यह ना ही किसी निश्चित तारीख को आ सकती है। यह तो विशेष सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से पैदा होती है और एक संगठित पार्टी को ऐसे अवसर को संभालना होता है और जनता को इसके लिए तैयार करना होता है।’’ (‘एच.एस.आर.ए. के घोषणा पत्र’ से)

यह साफ है कि भगत सिंह के सपनों वाले समाजवादी भारत, जिसकी राजनीतिक सत्ता देश के मेहनतकशों के हाथ में हो, के निर्माण तक उनकी प्रासंगिकता असंदिग्ध है। हर संघर्ष में भगत सिंह का जिक्र आयेगा। उनसे प्रेरणा ली जाती रहेगी। उनकी तस्वीरों को ऊंचा स्थान मिलेगा। भगत सिंह की प्रासंगिकता का अर्थ यह भी है कि उनके विचारों, लक्ष्यों तक पहुंचने की छटपटाहट भी नौजवानों में होनी चाहिए। यही छटपटाहट भगत सिंह को शहादत के बाद भी जिंदा रखती है।

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