बुधवार, 9 नवंबर 2022

 उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति


दिसंबर माह में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस नौजवानों पर लाठियां भांजते नजर आ रही है। यह नौजवान प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिक्षक भर्ती को लेकर करीब 5 महीने से धरना दे रहे थे। इस धरने में आये मैनपुरी जिले के रजत जैन (35) कहते हैं ‘‘मैंने कई भर्तियों के फार्म भरे। किसी भर्ती में इंटरव्यू में पैसे मांगे गए तो किसी का पेपर लीक हो गया। शिक्षा भर्ती से उम्मीद थी, कोर्ट का आदेश भी है कि हमें 69 हजार शिक्षक भर्ती में शामिल किया जाए, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।’’ यह सिर्फ एक नौजवान नहीं बल्कि यूपी के लाखों नौजवानों की व्यथा है। साथ ही यह उनके साथ सरकार व प्रशासन के रुख को भी दिखा देता है।

उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भी बेरोजगारी के मुद्दे की चर्चा रही। जहाँ मोदी- योगी यूपी में बेरोजगारी दर न्यूनतम हो जाने तथा 5 लाख सरकारी नौकरियां दिये जाने का दावा कर रहे थे। वहीं विपक्षी दल बेरोजगारी बढ़ने को लेकर योगी सरकार पर हमला कर रहे थे।

सत्ता पक्ष - विपक्ष के दावों- हमलों के बीच उत्तर प्रदेश के छात्र- नौजवान रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस उन पर लाठियां भांज रही थी, फर्जी मुकदमें दर्ज कर रही थी। एक अदद नौकरी की तलाश में छात्र- नौजवान सुबह- शाम किताबों में खटने, घर- परिवार के ताने सुनने से लेकर पुलिस की मार खाने- उत्पीड़न सहने को मज़बूर हैं। उत्तर प्रदेश सहित पूरे ही देश में छात्र- नौजवान बेरोजगारी की भयंकर मार झेलने को मज़बूर हैं।

उ.प्र. में बेरोजगारी की बात की जाये तो स्थिति लगातार विकराल होती चली जा रही है। बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने वाली गैर सरकारी संस्था सी. एम. आई. इ. (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के अनुसार मई- अगस्त 2016 में राज्य की कामकाजी आबादी (15 से 59 वर्ष की जनसंख्या 14.82 करोड़) का लगभग 38 प्रतिशत या 5.71 करोड़ कार्यबल कार्यरत था। जो मई- अगस्त 2017 में 37.1 प्रतिशत, 2020 में 33.33 प्रतिशत और 2021 के अंत में 32.79 प्रतिशत रह गया। यानि इस दौरान काम चाहने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गयी है जबकि रोजगार घटता गया है। खुद राज्य के श्रम मंत्री ने फरवरी 2020 में उ.प्र. की विधानसभा में बताया कि राज्य में 7 फ़रवरी 2020 तक 33.93 लाख लोग बेरोजगार हैं। जबकि 30 जून 2018 तक यह संख्या 21.39 लाख थी। यह स्वीकारोक्ति तब है जबकि बेरोजगारी के अधिकतर आंकड़े सरकारी फाइलों में स्थान ही नहीं बना पाते हैं। केंद्र सरकार ने तो 2016-17 के बाद बेरोजगारी के आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए हैं।

कोरोना के बाद तो रोजगार के हालात और बदतर ही हुये हैं। प्राइवेट नौकरी व स्वरोजगार में लगे करोड़ों लोगों को इस दौरान रोजगार से हाथ धोना पड़ा। इनमें से बहुत से लोगों को बाद में नौकरी नहीं मिल पायी, वेतन काफी कम हो गया या स्वरोजगार चल नही पाया। रोजगार देने के सरकारी प्रचार के इतर स्थिति यह हो गयी कि लोगों को ज़िंदा रहने को भोजन मिल सके व आगामी चुनावों को देखते हुये केंद्र व उ.प्र. सरकार को मिलकर मुफ्त राशन (गेहूं, चावल, तेल, नमक, दाल आदि) बांटना पड़ा। बेशर्म मोदी- योगी इसको अपनी उपलब्धि की तरह प्रचारित करते रहे कि वह लगभग 15 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दे रहे हैं।

अगर सरकारी नौकरी की बात की जाये तो उत्तर प्रदेश में लगभग 21.50 लाख से ज्यादा स्वीकृत पद हैं। 2021 में उ.प्र. सरकार के आंकड़ों के अनुसार 16 लाख लगभग कर्मचारी कार्यरत हैं। यानि की 5.50 लाख लगभग पद रिक्त हैं। इन रिक्त पदों में लगभग 3.80 लाख राज्य के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के हैं तो 1.75 लाख से अधिक शिक्षकों के हैं। न्यूज़ क्लिक में 2021 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में, केंद्र सरकार के मंत्रालयों, निकायों- संस्थानों में 30 लाख व विभिन्न राज्य सरकारों में भी लगभग 30 लाख, कुल 60 लाख स्वीकृत पद रिक्त हैं। रिक्त पदों पर सरकार स्थायी भर्ती करने के बजाय संविदा, ठेका आदि पर नियुक्ति कर रही है या पद रिक्त पड़े हैं। बढ़ती आबादी के अनुरूप नये पद सृजित करना तो दूर उल्टा सरकारें रिक्त पदों को एक समय पश्चात ख़त्म कर दे रही हैं।

गिनी-चुनी जो नौकरियां निकल भी रही हैं वह पेपर लीक, भ्रष्टाचार, नियुक्ति में लेट- लतीफी या कोर्ट के चक्करों में फंस जा रही हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा भर्ती निकालने वाली एजेंसी उ.प्र.अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा 2016 से 2019 के बीच 24 विभागों की भर्तियां निकाली गयीं जिनमें से 22 भर्तियां मार्च 2021 तक अटकी हुयी थीं। कई पेपर लीक होने के चलते रद्द हो गये। चुनावों से पहले ही नवम्बर में यूपी- टी.ई.टी. का पेपर लीक होने के चलते परीक्षा रद्द करनी पड़ी। कमोबेश यही हाल अन्य भर्ती एजेंसियों का भी है।

ऐसे में जब रोजगार के मुद्दे पर एक चुनावी सभा में योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि उनकी सरकार ने पिछले 5 सालों में 5 लाख लोगों को नौकरियां दी हैं तो इस बात पर सहसा किसी को यकीन ही नहीं हुआ। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे, पेपर दे रहे युवा हैरत जताने लगे कि इतनी नौकरियां कब दी गयी? किसको दी गयी? सरकार से भर्तियों का ब्यौरा मांगने पर कोई जवाब नहीं मिला। सूचना के अधिकार के तहत भर्तियों का विभागवार ब्यौरा मांगने पर उत्तर प्रदेश के कार्मिक विभाग ने जवाब दिया कि उनके पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है। यानि की इनमें से अधिकतर नौकरियां चुनावी सभाओं और विज्ञापनों में ही दी गयी।

योगी सरकार ने रोजगार भले ही कितने ही दिये हों पर सत्ता में आते ही 1.75 लाख से अधिक स्थायी रोजगार ख़त्म जरूर कर दिये। पूर्ववर्ती सरकार में सहायक अध्यापक पद में समायोजित 1.35 लाख से अधिक शिक्षामित्रों को सरकार ने इस पद से हटा दिया। इसी तरह 42 हजार से अधिक होमगार्डों का मानदेय व भत्ता बढ़ाने के बजाय उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया। सरकारी प्रचार में योगी सरकार राज्य में रोजगार देने, कानून का राज, भ्रष्टाचार मुक्त, चौतरफा विकास के खूब दावे कर रही है। वास्तव में योगी सरकार नौकरियों में कटौती, पेपर लीक, भ्रष्टाचार, भर्तियों में लेट- लतीफी का पर्याय बन गयी है।

रोजगार दिए जाने को लेकर प्रदेश भर में छात्र- नौजवान पिछले कुछ समय से लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं। सितंबर 2020 में नींद में सोती सरकार को जगाने के लिये ताली-थाली बजाते हुए नौजवानों के उ.प्र. सहित देशभर में प्रदर्शन हुये। बढ़ती बेरोजगारी और रोजगार देने में सरकार की नाकामी के खिलाफ गुस्से में नौजवानों ने प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन को ही ‘बेरोजगार दिवस’ के रूप में मना डाला।

4 जनवरी 2022 को इलाहाबाद में हजारों की संख्या में पढ़ाई व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों ने ताली- थाली बजाकर लंबित भर्तियों को भरने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। छात्रों का कहना था कि सरकार नींद में है इसीलिये उसको जगाने के लिए हम ताली- थाली बजा रहे हैं। पुलिस ने सैकड़ों छात्रों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।

छात्र- नौजवान पूरा यत्न कर पढ़ाई कर रहे हैं और नौकरी की आस लगाये हैं। सरकार उनकी आवाज़ सुनने के बजाय दबाने का काम कर रही है। जरुरत है कि छात्र-नौजवान अपनी देशव्यापी एकजुटता कायम करें। इन हालातों को बदलने के लिए छात्रों-नौजवानों को बेरोजगारी को बढ़ाने वाली निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ संघर्ष करना होगा। सबको ‘योग्यतानुसार काम और काम के अनुसार वेतन’ का नारा इतनी जोर से बुलंद करना होगा कि सरकार सहित उसके आकाओं की तन्द्रा टूट जाये।

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