यूजीसी द्वारा 4 वर्षीय स्नातक प्रोग्राम का मसौदा जारी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेप) को पास करने के बाद अब इसे जल्दबाजी में लागू करने के प्रयास जोरों पर हैं। इस नेप में शिक्षा का निजीकरण करने, शिक्षा का भगवाकरण करने तथा कारपोरेट पूंजीपति वर्ग की आज की जरूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षा में व्यापक बदलाव करने की योजना ली गई है। संघ-भाजपा के चहेते और जेएनयू के पूर्व कुलपति प्रो. एम. जगदीश कुमार को शायद नेप को जल्द से जल्द लागू करने के लिए ही यूजीसी का अध्यक्ष बनाया गया है। एम.जगदीश कुमार ने पद संभालते ही वे काम करने शुरू कर दिये जो कि संघ-भाजपा शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से चाहते रहे हैं। शिक्षा का भगवाकरण करना और स्वास्थ्य, सार्वजनिक संस्थाओं की तरह शिक्षा का भी निजीकरण करना संघ-भाजपा के एजेण्डे में रहा है। एम. जगदीश कुमार ने जेएनयू का कुलपति रहते हुए संघ-भाजपा के एजेण्डे को लागू करवाने में अपनी पूरी निष्ठा और लगन का परिचय दिया था। इसी निष्ठा और लगन का इनाम उन्हें यूजीसी का अध्यक्ष बनाये जाने के तौर पर मिला है।
यूजीसी का अध्यक्ष बनते ही एम.जगदीश कुमार ने विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कराने के लिए लेटरल एन्ट्री का प्रस्ताव रख दिया। यूजीसी द्वारा मार्च माह में 4 वर्षीय स्नातक प्रोग्राम (एफवाईयूजीपी) का ड्राफ्ट जारी किया गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापकों के एक संगठन डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) ने यह आरोप लगाया है कि इस मसौदे के 6 अंशों को दूसरी जगह से नकल (कापी) किया गया है। यह 6 अंश यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन तथा यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना की वेबसाइट से नकल (कापी) किये गये हैं। यूजीसी को नये मसौदे को जारी करने की इतनी जल्दी है कि वह अपना मौलिक मसौदा भी नहीं बना सके। वे विमर्श कर, भारत की विशेष परिस्थितियों के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करने के स्थान पर जल्दबाजी में नेप को लागू करना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें चोरी करने से भी कोई परहेज नहीं है।
नेप को लागू करने के प्रयासों में केन्द्रीय विश्वविद्यालयांे में स्नातक में प्रवेश हेतु एक कामन परीक्षा (सीयूईटी) की पहले ही घोषणा हो चुकी है। इस परीक्षा हेतु छात्रों में काफी अफरा-तफरी मच गई है। यूजीसी के इस परीक्षा के जरिये समान अवसर व कोचिंग संस्कृति को बढ़ावा न मिलने के लाख दावों के उलट अभी से कोचिंग करने वाले व कराने वालांे की बाढ़ आ चुकी है। समान अवसर के दावे तब धरे रह गये जब सम्पन्न लोग जो कोचिंग का खर्च वहन करने की क्षमता रखते हैं, इस अवसर का लाभ उठाने हेतु बाजार में पहुंच गये।
और अब स्नातक कोर्स को 4 वर्ष का करने के साथ पाठ्यक्रम मंे भारी बदलाव का यह मसौदा सामने है। एफवाईयूजीपी के इस 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम का मसौदा पेश किया गया है। उसकी प्रमुख बातों के अनुसार-
1. पहले तीन सेमेस्टर अर्थात पहले डेढ़ साल छात्र प्राकृतिक विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञान में सामान्य और प्रारंभिक पाठ्यक्रमों को पढे़ंगे। यह पाठ्यक्रम सभी को पढ़ने होंगे।
2. इन 3 सेमेस्टरों में छात्र (अ) भाषा में आधुनिक भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी भाषा, (ब) भारत को समझना (स) पर्यावरण विज्ञान/शिक्षा (द) डिजिटल एवं तकनीकी समाधान (य) गणित व कम्प्यूटेशनल सोच व विश्लेषण (न) स्वास्थ्य व वेलनेश, योगा शिक्षा, खेल व फिटनेस का पाठ्यक्रम पढेंगे।
3. सेमेस्टर 4, 5 व 6 में छात्र पूर्व सेमेस्टरों के परिणामों के आधार पर व अपनी रूचि दोनों के आंकलन के आधार पर आधारित मुख्य विषय को पढ़ेंगे। इसमें मेजर व माईनर दोनों को छात्र चुन सकते हैं।
4. सेेमेस्टर 7 व 8 में यानी चौथे वर्ष मुख्य विषय में एडवांस पाठ्यक्रम व मुख्य विषय पर शोध आधारित पाठ्यक्रम पढ़ेंगे। अंतिम आठवां सेमेस्टर शोध को समर्पित होगा।
5. इन दौरान छात्र अपनी मर्जी से कभी भी पाठ्यक्रम से बाहर (एक्जिट) जा सकता है और कुछ शर्ताें के साथ पुनः शिक्षा शुरू (एंट्री)कर सकता है। इसमें सेमेस्टर व एक्जिट प्वाइंट को अलग-अलग क्रेडिट में बांटा गया है।
6. 1 वर्ष (2 सेमेस्टर) में 40 क्रेडिट हासिल करने पर स्नातक सर्टिफिकेट, 2 वर्ष (4 सेमेस्टर) में 80 क्रेडिट हासिल करने पर स्नातक डिप्लोमा, 3 वर्ष में 120 क्रेडिट हासिल करने पर स्नातक डिग्री तथा चौथे वर्ष में 160 क्रेडिट हासिल करने पर स्नातक (आनर्स/रिसर्च) डिग्री दी जायेगी।
7. 3 वर्ष की स्नातक डिग्री हासिल करने वाले के लिए 2 वर्षाें का मास्टर्स प्रोग्राम है, जिसमें दूसरा वर्ष पूर्णतः शोध को समर्पित होगा। रिसर्च संग 4 वर्षीय स्नातक प्रोग्राम करने वाले के लिए 1 वर्ष का मास्टर प्रोग्राम मसौदे में है। डाक्टोरल प्रोग्राम वही कर सकता है जिसने या तो मास्टर्स किया हो या फिर रिसर्च संग 4 वर्षीय स्नातक किया हो।
8. इस मसौदा पाठ्यक्रम में कक्षा में लेक्चर, एसाइनमेंट, सेमिनार, प्रैक्टिकल व प्रोजेक्ट वर्क, इन्टर्नशिप, लैब वर्क व एक्टीविटी, स्टूडियो एक्टीविटी, वर्कशाप आधारित गतिविधियां, फील्ड अभ्यास/प्रोजेक्ट, सामुदायिक सेवा में भागीदारी व सेवा का अनुभव आदि-आदि की बातें हैं।
9. इस मसौदे में शिक्षा के वैकल्पिक रूप के तौर पर ओपन व डिस्टैंस लर्निंग, ऑनलाइन शिक्षा तथा हाईब्रिड कोर्स की पेशकश की गई है।
10. छात्रों को स्थानीय उद्योग, व्यवसाय, कलाकारों, शिल्पकारांे/दस्तकारों के यहां इंटर्नशिप करने का अवसर देने की बात भी मसौदे में है।
इस प्रकार यह मसौदा शिक्षा में व्यापक बदलाव करने की योजना है। यह स्नातक के पाठ्यक्रम को एक वर्ष अधिक बढ़ा देता है। यह अतिरिक्त एक वर्ष गरीब छात्रों के लिए बहुत महंगा है। महानगरों में रहने पर यह खर्च और भी बढ़ जाता है। यह अतिरिक्त एक वर्ष छात्रों को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर देगा।
इसके साथ ही उच्च शिक्षा में शुरूआती डेढ़ साल में सामान्य पाठ्यक्रम ही पढ़ाये जायेंगे। नम्बरों या ग्रेड की दौड़ में इन पाठ्यक्रमों में नम्बरों के लिए जरूरी विषय तो छात्र तब भी पढ़ेंगे या सीखेंगे। परंतु अन्य पाठ्यक्रम उनका बोझ ही बढ़ायेंगे या वे नाममात्र के लिए ही होंगे। स्नातक में अभी तक पर्यावरण को अनिवार्य विषय बनाना इसका प्रासंगिक उदाहरण है। सभी छात्र इसे पास तो कर जाते हैं क्योंकि वह अनिवार्य है पर कोई पर्यावरण को समझता या सीखता नहीं है। क्योंकि वह नम्बर देने वाला विषय (पाठ्यक्रम) या मुख्य पाठ्यक्रम नहीं है।
विदेशी विश्वविद्यालयों की नकल करने की धुन के पीछे का असल कारण पूंजीपतियों की आज की जरूरतों को पूरा करना है। आज उद्योग, व्यापार, सेवा क्षेत्र में पंूजी निवेश करने वाले पूंजीपति वर्ग को अधिकांश ऐसे लोग चाहिए जो विभिन्न विषयों में सामान्य ज्ञान रखते हों और उस अनुरूप शिक्षा हासिल किये हुए हों। उसे ऐसे व्हाइट कालर मजदूरों की आवश्यकता है जो थोड़ा मशीन के बारे में जानता हो, थोड़ा कम्प्यूटर ज्ञान रखता हो, डाटा एंट्री व डाटा विश्लेषण कर सकता हो, भाषा की सामान्य जानकारी रखता हो, कारपोरेट हाउसों की जरूरतों व व्यवहार से परिचित हो, लोक व्यवहार जानता हो, आदि-आदि। उसे ऐसे व्हाइट कालर मजदूरों की जरूरत है जो कई-कई काम कर सकता हो। पाठ्यक्रम का पूरा ढांचा इसी अनुरूप डिजाइन किया गया है। ऐसे पाठ्यक्रम को लागू करने की कोशिशें पिछले कई वर्षों से की जा रही थी। कभी यह एफवाईयूपी के रूप में सामने लाया गया, कभी सीबीसीएस के रूप में और अब नेप के दिशा निर्देशन में एफवाईयूजीपी के रूप में सामने है। और साथ ही यह देशी-विदेशी पूंजीपतियों के लिए शिक्षा के बाजार को खोलने का रास्ता सुगम बनाना है।
अगर कालेजों, कक्षाओं, अध्यापकों, लैबों आदि की संख्या बढ़ाये बगैर यह मसौदा लागू किया जाता है तो यह छात्रों व अध्यापकों दोनों पर आफत बनकर टूटेगा। मसौदे में शिक्षा व्यवस्था के ढांचे को दुरूस्त करने की बातें नहीं हैं। छात्रों को रोजगारपरक बनाने की बातें जोर-शोर व लच्छेदार भाषा में की गई हैं। एक वर्ष में सर्टिफिकेट, दो वर्ष में डिप्लोमा, तीन वर्ष में साधारण डिग्री लेकर छात्र श्रम बाजार में उतर सकेंगे। लेकिन योग्यतानुसार गरिमामय रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। जाहिर है डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट को भले ही ऊंचा-नीचा माना जाये पर बाजार की उठापटक इन्हें एक अदद नौकरी का भरोसा नहीं दे सकती। बल्कि इस सबसे कुछ विषयों पर विशिष्ट ज्ञान से भी छात्र महरूम कर दिये जायेंगे। रोजगारपरक व बहुविषयक पाठ्यक्रम के ढोल के पीछे मल्टीपल एंट्री व मल्टीपल एक्जिट की जो बातें मसौदे में हैं वह छात्रों, विशेषकर गरीब छात्रों के सामने एक्जिट का ही एकमात्र विकल्प बनकर रह जायेंगी। गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र साल-दो साल में ही बाहर कर दिये जायेंगे।
यह मसौदा शोध को हतोत्साहित करने वाला है। चौथे वर्ष में प्रथम सेमेस्टर शोध करने की प्रक्रिया और दूसरे सेमेस्टर में शोध पर केन्द्रित होने से कोई गुणवत्तापूर्ण शोध नहीं हो सकता है। यह कानों को अच्छे लगने वाली बातों के सिवा और कुछ नहीं है कि यह शोध संग स्नातक डिग्री होगी।
मसौदे के अनुसार पाठ्यक्रम का एक बड़ा हिस्सा ‘आउट आफ क्लास’, ‘स्वअध्ययन’, ‘पाठ की तैयारी करने’, ‘एसाइनमेंट बनाने’ आदि का है। जो नियमित पाठन को कम कर देता है। इस सब से स्थायी अध्यापन का काम बहुत कम हो जाता है। जिसका सीधा असर अध्यापकों पर पड़ेगा। उन्हें अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। पाठ्यक्रम के ढांचे से ठेके, संविदा या विजिटिंग फैकल्टी को बढ़ावा मिलेगा व स्थायी रोजगार खत्म हो जायेगा। दूरस्थ, ऑनलाइन व हाईब्रिड कोर्स से भी शिक्षकों का रोजगार खत्म हो जायेगा। यह एक ऐसा मसौदा है जो छात्रों को रोजगार परक शिक्षा देने के दावे करने के साथ ही साथ शिक्षा देने वाले शिक्षकों के रोजगार पर ही सबसे पहले हमला करने वाला है।
दुनिया के विश्वविद्यालयों के समान पाठ्यक्रम और शैक्षिक ढांचा लागू करने का मकसद यह हैः विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में मुनाफा कमाने के लिए आमंत्रित करना। साथ ही देशी पूंजीपति इस पाठ्यक्रम के आधार पर जो शिक्षा संस्थान खोलेंगे उसमें विदेशी छात्र भी समा सकें। एक बार जब ‘दुनिया के समान’ पाठ्यक्रम भारत में भी लागू हो जायेगा तो देशी-विदेशी पूंजी शिक्षा क्षेत्र में निवेश करने व लूट मचाने आ जायेगी। यह पाठ्यक्रमों/कोर्सों का एकीकरण नहीं यह देश-दुनिया में कहीं भी जाकर शिक्षा हासिल करने के मामले में एकीकरण भी नहीं बल्कि देशी-विदेशी पूंजीपतियों के लिए बाजार का एकीकरण है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें