सीयूईटी, यूजीसी और शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव करते हुए यूजीसी इस साल से एक नया कानून लागू कर रहा है जिसके अंतर्गत 12 वीं की परीक्षा पास करने के बाद जो भी छात्र अंडर ग्रेजुएट कोर्सों में दाखिला लेना चाहते हैं उन्हें अब कम्प्यूटर पर आधारित एक टेस्ट पास करना होगा। जिसे सीयूईटी (सेंट्रल यूनिवर्सिटीज एंट्रेंस टेस्ट) नाम दिया गया है। अंडर ग्रेजुएट कोर्सों में दाखिला पाने के लिए इस टेस्ट को पास करना अनिवार्य होगा। इसी के आधार पर देश में मौजूदा 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले दिए जाएंगे।
अब तक इन पाठ्îक्रमों में दाखिले के लिए 12 वीं के नंबरों को आधार बनाया जाता था लेकिन अब इसे खत्म कर के इस एंट्रेंस टेस्ट को आधार बनाया जाएगा।
सीयूईटी को इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है कि इसके आने से छात्रों के बीच 12 वीं में नंबर लाने की जो होड़ थी वो एक तरह से खत्म हो जाएगी। और सिर्फ एक फार्म भर कर, एक टेस्ट दे कर आप सभी यूनिवर्सिटियों के लिए आवेदन कर पाएंगे और आपकी रैंक के आधार पर आपको दाखिला दिया जाएगा।
दूर से ये सभी तथ्य बड़े ही लुभावने जान पड़ते हैं। लेकिन जैसे ही हम इसके तह तक जाते हैं, तो पता चल पाता है कि ये एंट्रेंस एग्जाम किस तरह छात्र विरोधी, शिक्षा का बाजारीकरण और निम्न तबके से आने वाले छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र से बाहर धकेलने वाला साबित होने वाला है।
कोरोना के आने से शिक्षण संस्थानों पर पूर्णत तालाबंदी कर दी गई थी। 2021 मध्य के बाद ही स्कूलों को खोला गया और लगभग डेढ साल बाद छात्र अपने स्कूल और कक्षाओं का चेहरा देख सके। 12 वीं के छात्रों को तो तुरंत प्री बोर्ड की तैयारी में लगना पड़ा। उसके बाद उनके बोर्ड के पेपर होंगे, जिसमें उन्हें अपना सारा ध्यान लगाना था लेकिन तभी सीयूईटी की घोषणा हो जाती है। अब उनके ऊपर एक और बड़े एग्जाम का भार आ गया। इस एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी के लिए इस वर्ष के 12 वीं के छात्रों को कोई समय नहीं दिया गया ये पूर्णतः उनके साथ नाइंसाफी है।
सीयूईटी के अनुसार ये एक कामन टेस्ट है। अर्थात सभी के लिए समान है। यूजीसी के द्वारा जो इसका पाठ्यक्रम जारी किया गया है उसमें ये साफ-साफ लिखा गया है कि ये पेपर सीबीएससी बोर्ड के सिलेबस पर आधारित होगा। यहां सीधा सवाल ये बनता है कि जब देश में शिक्षा का कोई एक पैटर्न नहीं है तो एक समान टेस्ट कैसे लिया जा सकता है? जब एंट्रेंस टेस्ट सीबीएससी बोर्ड के सिलेबस पर आधारित है तो राज्य बोर्ड से आ रहे छात्रों के लिए ये एंट्रेंस समान कैसे होगा? जबकि दोनों का सिलेबस काफी अलग होता है। यहां राज्य बोर्ड से आने वाले छात्रों को नुकसान उठाना पड़ जाएगा।
सीयूईटी की आवेदन प्रकिया शुरू हो चुकी है लेकिन इस फार्म को भरना काफी कठिन है। क्योंकि हो सकता है कि आप जिस विषय में पेपर देना चाह रहे हों, उस विषय के लिए अलग-अलग यूनिवर्सिटी अलग-अलग विषयों की मांग कर रही हैं। इसलिए फार्म भरने से पहले आप को सभी यूनिवर्सिटियों की वेबसाइट पर जा कर ये सब चीजें चेक करनी पडं़ेगी। ये फार्म भरने की पूरी प्रक्रिया आम छात्रों के लिए बेहद कठिन होने वाली है जिसके लिए उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई। और अब आधे छात्रों का भाग्य सायबर कैफे वाले भैया के ऊपर निर्भर होगा और यहां भी छात्रों को फार्म भरने के नाम पर लूटा जाएगा।
इसी प्रकार इस फार्म को स्लाट में बांट दिया गया है। इसके पहले स्लाट में आपको लैंग्वेज (भाषा) चुनने का आप्शन दिया गया है। लेकिन दिक्कत ये है कि आप सिर्फ तीन लैंग्वेज ही चुन सकते हैं। इससे बड़ा नुकसान उन छात्रों को होगा जो जेएनयू जैसे संस्थान से विदेशी भाषाओं में बी.ए. करना चाहते थे उनके पास विकल्प कम हो गए। नहीं तो इससे पहले आप सिर्फ जेएनयू में तीन विदेशी भाषाओं के लिए अप्लाई कर सकते थे। उसके साथ आप अन्य यूनिवर्सिटी में भी किसी भी भाषा में आनर्स के लिए अप्लाई कर सकते थे, कोई सीमा नहीं थी। छात्रों के पास पहले अधिक विकल्प थे जो इस टेस्ट से सीमित हो जाएंगे।
अब तक सिर्फ 12 वीं के नंबरों को आधार बनाकर छात्रों को दाखिला मिल जाता था लेकिन अब उन्हें एक और एग्जाम के प्रेशर से गुजरना होगा। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों को जिन्हें कम्प्यूटर की सुविधा कभी उपलब्ध नहीं हो पाई होगी उन्हें, अब टेस्ट कंप्यूटर पर देना होगा जो उनके लिए डराने वाला अनुभव हो सकता है।
माना जा रहा है कि नंबर की दौड़ से निकाल कर ये टेस्ट सभी छात्रों को समान अवसर उपलब्ध करायेगा। लेकिन इसके पीछे इस तथ्य को छुपाया जा रहा है कि किसी भी छात्र के नंबर अधिक आने के पीछे आर्थिक, सामाजिक फैक्टर काम करते हैं। जो इस एंट्रेंस में भी पूरी तरह काम करेंगे, उनको ही बढ़ावा देंगे। 12 वीं के आधार पर जो दाखिले का मेरिट सिस्टम था उसे कहीं से भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन ये एंट्रेंस टेस्ट भी उसी खांचे में बैठता है कि जिसके पास संसाधन होंगे, कोचिंग में तैयारी करने के पैसे होंगे, सिर्फ वही छात्रों का वर्ग इसमें अच्छी रैंक ला पाएगा जैसा कि पहले से ही होता आया है। सरकार द्वारा यहां पर स्थानीय शिक्षण संस्थानों में सुधार करने, सीटें बढ़ाने और सभी को निःशुल्क व समान शिक्षा के अवसर प्रदान करने की जगह छात्रों को एक रेस के बाद दूसरी रेस में शामिल करवा कर उन्हें और प्रताड़ित किया जा रहा है।
अब तक 12 वीं की शिक्षा का एक उद्देश्य होता था कि छात्र एक अच्छा नागरिक बन कर बाहर निकलेगा। लेकिन इस एंट्रेंस टेस्ट ने पूरी तरह स्कूली शिक्षा के महत्व को कम कर दिया है। अब छात्र सिर्फ नाम के लिए 12 वीं पास करना चाहेंगे ताकि वो सीयूईटी देने के योग्य माने जाएं। जैसा की हम मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षा देने वाले छात्रों के संदर्भ में देख सकते हैं।
स्कूली शिक्षा पास करने के बाद वो छात्र जो मेडिकल, इंजीनियरिंग में संसाधनों की कमी से नहीं जा पाते थे या उनके पास कोचिंग की तैयारी के पैसे नहीं होते थे, वो लोग यूनिवर्सिटी मंे दाखिला लेकर डिग्री हासिल कर लेते थे। लेकिन अब ये डिग्री हासिल करना भी उनके लिए कठिन हो जायेगा क्योंकि सीटें बहुत कम हैं और छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा। और इससे दबाव पैदा होगा इस एंट्रेंस में अच्छी रैंक लाने का जिसका सीधा फायदा मिलेगा कोचिंग सेंटरों को। अब एक बड़े शिक्षा के बाजार में 12 वीं से निकलते ही छात्र पिस जायंेगे। जिसका सीधा असर छात्रों और उनके परिवार की जेब पर पड़ेगा।
इस तरह हम देख सकते हैं कि इस एंट्रेंस से बड़ी संख्या में गरीब छात्रों को भारी नुकसान होने वाला है। एक अदद बी.ए. की डिग्री हासिल करने के लिए उन्हें रैंक की घुड़दौड़ में शामिल होना पड़ेगा और हमेशा इस रेस में पीछे रहने के लिए अभिशप्त होना पड़ेगा।
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