मंगलवार, 8 नवंबर 2022

 शिक्षा बजटः 2022-23

छात्रों-युवाओं को विष पूंजीपतियों को अमृत

इस वर्ष जब वित्त मंत्री बजट पेश कर रही थीं तो देश के छात्र कोरोना काल में पढ़ाई-लिखाई को हुए भारी नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रहे थे। वे उम्मीद कर रहे थे कि शायद इस बार के बजट में कोरी घोषणाआंे के स्थान पर छात्रों को कुछ हासिल होगा। विस्फोटक होती बेरोजगारी और डिजीटल विभाजन के शिकार छात्रों-युवाओं को इस बजट में कुछ राहतें मिलेंगी। परंतु छात्रों-युवाओं की आशाओं के विपरीत मोदी सरकार का यह बजट सामने आया। कुछ मामलों में यह बेशर्मी और घमंड को प्रदर्शित करने वाला बजट था। अपने बजट से मोदी सरकार ने एक बार फिर बता दिया कि वह छात्रों-युवाओं के हितों के खिलाफ है। 

2022-23 का शिक्षा बजट 1,04,277.72 करोड़ रुपये का है। यह राशि कुल बजट के मात्र 2.6 प्रतिशत के बराबर है। कोरोना महामारी के कारण शिक्षा को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए यह बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। पिछले वर्ष से तुलना करने पर यह बढ़ा नजर आता है लेकिन कुल बजट खर्च के आधार पर देखें तो यह वर्ष 2020 में खर्च के बराबर है। 

वे मद जिनमें कटौती की गई है-

1- नेशनल स्कीम फार इन्सेंटिव टू गर्ल्स फार सेकंडरी एजुकेशन- इस स्कीम के तहत ग्रामीण क्षेत्र की आदिवासी छात्राओं की शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित हों। लेकिन मोदी सरकार निरंतर इसमें कटौती करती रही है। 2020-21 में 110 करोड़ रुपये का बजट इस मद को दिया गया था जिसमें 99.1 प्रतिशत की भारी कटौती गत वर्ष की गयी थी। लेकिन आदिवासी छात्राआंे की पढ़ाई की घोर दुश्मन मोदी सरकार ने इस बजट में इस मद में एक पैसा भी नहीं दिया है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली मोदी सरकार आदिवासी बेटियों को शिक्षा से ही दूर करने का बंदोबस्त कर रही है। यह आवण्टन इनके पाखण्ड को सामने ला देता है। मोदी सरकार ने छात्राओं के हितों पर जोरदार हमला बोला है। कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा, परिवार के आर्थिक संकट में आ जाने पर पढ़ाई छोड़ने की कीमत लड़कियों को ज्यादा चुकानी पड़ी है। गरीब परिवारों की छात्राओं को पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। लेकिन उसके बाद भी मोदी सरकार बड़ी बेशर्मी से छात्राओं को राहत पहुंचाने वाली इस योजना में कटौती कर देती है। 

2-शिक्षक प्रशिक्षण और प्रौढ शिक्षा- इस मद में गत वित्तीय वर्ष में 250 करोड़ रुपये का बजट था जो इस वर्ष 127 करोड़ रुपये का कर दिया गया है। शिक्षा में शिक्षकों का प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण कारक है लेकिन इस मद में बजट कम करना शिक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। 

3-मिड डे मील योजना/पीएम पोषण- मिड डे मील योजना का नया नाम पीएम पोषण कर दिया गया है। इस मद में गत वित्तीय वर्ष में 11,500 करोड़ रुपये का बजट था जो इस बजट में घटाकर 10,233.75 करोड़ रुपये कर दिया है। 

4-समाज के हाशिये पर खड़े छात्रों को मिलने वाली स्कालरशिप में भारी कटौती की गयी है। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय का बजट गत वर्ष के 1395 करोड़ रुपये से कम कर इस वर्ष 969.5 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह कमी 30.5 प्रतिशत की है। अब तक जो गरीब, पिछड़े छात्र इस स्कालरशिप के आधार पर शिक्षा हासिल कर पा रहे थे उनसे यह अवसर छीन लिया गया है। 

5-मौलाना आजाद एजुकेशनल फाउंडेशन के अनुदान में कटौती- यह फाउंडेशन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से  अनुदान प्राप्त करता है। 2021 के 90 करोड़ रुपये की तुलना में 2022-23 में इस मद में 0.1 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। यह कमी 99 प्रतिशत की है। यह आवंटन लगभग नहीं के बराबर है। पिछडे़ अल्पसंख्यकों की शिक्षा में मदद के रूप में दिये जाने वाले इस अनुदान में बहुत भारी कमी, मोदी सरकार का अल्पसंख्यक छात्रों पर एक और आर्थिक हमला है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा के निजीकरण और अनौपचारिक किये जाने की बातें हैं। यह बजट शिक्षा के निजीकरण और शिक्षा को अनौपचाारिक किये जाने की ओर ले जाने वाला बजट है। कोरोना में शिक्षा में पिछड़ गये बच्चों के लिए यह कक्षा 1 से कक्षा 12 तक के बच्चों के लिए प्रधानमंत्री ई-विद्या के रूप में 200 टीवी चैनलों के स्थापना करने की घोषणा करता है। हालांकि यह पूरक शिक्षा के रूप में इसकी बात करता है। लेकिन लगातार बंद हो रहे स्कूलों के समय में नये स्कूल खोलने तथा वहां समग्र ढांचा उपलब्ध करानेे के स्थान पर यह बजट अनौपचारिक शिक्षा बढ़ाने की बात करता है। वह भी भारत जैसे उस देश में जहां आज भी गरीबों के पास टीवी नहीं है, बिजली की आपूर्ति नहीं है। ऐसी स्थिति में यह घोषणा भी एक हवाई घोषणा बनने को अभिशप्त है। 

इसके अतिरिक्त विज्ञान और गणित की 750 वर्चुअल लैब तथा 75 स्कीलिंग लैब गठित करने की घोषणा इस बजट में की गई है। वास्तविक धरातल पर, आमने-सामने, कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के परस्पर व्यवहार के स्थान पर यह बजट और यह सरकार अनौपचारिक व वर्चुअल शिक्षा को ही बढ़ावा देने की बात करती है। यह सब कुछ डिजीटल विभाजन को न सिर्फ बढ़ायेगा बल्कि गरीबों और साधनहीन छात्रों को शिक्षा से दूर कर देगा। 

‘विश्व स्तरीय विदेशी विश्वविद्यालयों’ को भारत मंे खोलने की घोषणा भी इस बजट में की गई। वित्त मंत्री ने छात्रों की लूट की खुली छूट देते हुए इन विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत के कानूनों से भी छूट दे दी है। ये विदेशी विश्वविद्यालय अपने अनुसार फीस, अन्य खर्च और कायदे-कानून खुद ही तय करेंगे। मुनाफा कमाने के लिए आने वाले इन संस्थानों में क्या कोई गरीब, पिछड़ा छात्र प्रवेश पा पायेगा? 

इस वर्ष का बजट पेश करते समय वित्त मंत्री सीतारमन ने भारत वर्ष के ‘अमृतकाल’ में प्रवेश कर जाने की घोषणा कर दी। इस ‘अमृतकाल’ में भारत के प्रवेश कर जाने पर न तो छात्रों को कुछ मिला और न ही मेहनतकशों को। मनरेगा के बजट में भी कटौती इस बजट में की गई है। खाद्य, उर्वरक, पेट्रोलियम पदार्थों तथा अन्य मदों में राहत दिलाने वाली सब्सिडियों में बड़ी कटौती इस बजट में की गई है। मेहनतकशों पर राहत की चंद बूदें छिड़कना भी मोदी सरकार नहीं चाहती। मोदी सरकार के इस ‘अमृतकाल’ में अंबानी-अडानी सरीखे पूंजीपतियों की दौलत पहले की तरह और बढ़नी है और छात्रों-युवाओं को जो कुछ अभी तक मिल भी रहा था उसे भी छीना जाना है। जब सरकार को कुछ देना नहीं होता तो वह ऐसी ही लफ्फाजियों और जुमलों का सहारा लेती है। मोदी सरकार तो लफ्फाजी और जुमलों में माहिर है। और बजट में उसने कुछ राहत छात्रों-मेहनतकशों को देने के स्थान पर कोरी लफ्फाजी और लच्छेदार बातें कीं। 

इस ‘अमृतकाल’ मेें छात्रों-युवाओं और मेहनकतशों को विष मिला है और कारपोरेट पूंजीपति वर्ग को अमृत। इस ‘अमृतकाल’ की यही सच्चाई है। 

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