सोमवार, 7 नवंबर 2022

प्रचार करो, प्रचार करो सच्चा हो या झूठा 

प्रचार करो बस प्रचार करो


प्रचार क्या है? अपने सामान या सेवा की प्रशंसा करना। इस प्रशंसा से आपका सामान ज्यादा बिकेगा, आपकी सेवाऐं ज्यादा ली जायेंगी और आपकी दुकान ज्यादा चलेगी। बाजार की भाषा में प्रचार को विज्ञापन कहते हैं। प्रचार के लिए इस्तेमाल होने वाले बहुचर्चित चेहरे को ‘‘ब्रांड एंबेसडर’’ कहते हैं। राजनीति सेवा (सर्विस) है। भाजपा के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर मोदी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के ब्रांड एंबेसडर योगी हैं। मोदी को विज्ञापनों (फोटो छपवाने) से कितना प्यार है यह बताने की जरूरत नहीं है। फोटो छपवाने की इच्छा योगी में भी कम नहीं है। फोटो के साथ देश-प्रदेश के विकास की तस्वीर भी दिख जाती है। 

जैसा कि होता है त्यौहारों के समय में विज्ञापनों की भरमार होती है। और सामान भी ज्यादा बिकता है। वैसे ही चुनावी राजनीति में चुनाव भी विज्ञापन का सीजन होते हैं। उपभोक्तावादी माहौल में जैसा कि होता है विज्ञापनों में सच दिखाने पर सामान कम बिकता है वैसे ही, राजनीति में झूठा प्रचार करने से अधिक वोट मिलने की संभावना होती है। उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। तो योगी ने विज्ञापन करना शुरू कर दिया है। विज्ञापन का मकसद वोट पाना है तो फर्क नहीं पड़ता प्रचार सच्चा है या झूठा। बस, लोगों को पसन्द आना चाहिए।

योगी ने विज्ञापन में अपनी पूरी फोटो लगवाई। पीछे जो सुंदर पुल दिखाया वह बंगाल का निकला। इसके साथ लगा फैक्टरी का फोटो एक विदेशी कम्पनी एचएसई वीजन (भ्ैम् टपेपवद) का निकला। 12 सितम्बर को विज्ञापन छपने के साथ ही इन तस्वीरों का सच भी सामने आ गया। एक झूठ को सौ बार बोलने का मौका नहीं मिला, वरना यही सच लगने लगता।

इसके पहले प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का प्रचार हुआ। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 20.42 करोड़ है। जिसके आज 23 करोड़ होने का अनुमान है। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश की 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी की स्थिति में है। इस योजना के अंतर्गत मोदी की फोटो लगे थैलों में राशन दिया गया। जहां-जहां राशन जाये वहां फोटो जाये प्रचार हो। 

1 अक्टूबर 2021 को दुबई एक्स्पो 2020 में भारतीय पवेलियन के उद्घाटन में पीयूष गोयल (वाणिज्य व उद्योग मंत्री) के नाम के साथ मोदी की फोटो लगी। गुवाहाटी मेडिकल कालेज और अस्पताल में 3 अक्टूबर 2021 को च्म्ज्-डत्प् ॅपदह के उद्घाटन में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू के नाम के साथ मोदी की फोटो छपी। खास बात ये है कि दोनों ही विज्ञापनों में पीयूष गोयल और वैंकेया नायडू की नाम भर की भी फोटो नहीं थी। 

ओलंपिक विजेताओं और प्रतिभागियों के साथ भोज मोदी करते हैं। खेल मंत्री (अनुराग ठाकुर) गायब होते हैं। कोरोना वैक्सीन के टीके के बाद मिले प्रमाण पत्र में फोटो मोदी की है। 

यानी मोदी के अलावा अन्य सभी मंत्री बस नाम के हैं, किसी काम के नहीं। न सुंदर चेहरा-मोहरा, न हुनर। हर बार मोदी जी को ही फोटो खिंचवानी पड़ती है। 

सामान जितना बुरा और बेकार होता है, ब्रांड एंबेसडर में उतना ही ज्यादा खर्चा करना पड़ता है। ब्रांड एंबेसडर भी फीका पड़ने लगे तो नया मुफीद ब्रांड एंबेसडर मिलने तक पुराने वाले पर ही ज्यादा खर्च करना पड़ता है। विज्ञापन की मात्रा बढ़ा दी जाती है। यहां सारी गणना बड़े पूंजीपतियों अम्बानी-अडानी को ध्यान में रखकर की जा रही है। 

काफी समय से यह चर्चा हो रही है कि मोदी ब्रांड पिट गया है, कुछ नया लाओ। यकीन मानिए बाजार (पूंजीपति वर्ग) के पास उपभोक्ताओं (जनता) के लिए कुछ भी नया और बेहतर नहीं है। इसीलिए पिटे-पिटाये ब्रांड को ही रीब्रांड किया जा रहा है। दाढ़ी से लेकर पहनावे पर काफी खर्च किया जा रहा है। अब जो ब्रांड आगे आयेगा वह और ज्यादा बुरा ही होगा और जल्दी पिट जायेगा।

मोदी सरकार ने 2014 से जून 2021 तक विज्ञापन पर 5749 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया। यह जानकारी बीबीसी को आरटीआई के जरिये मिले जवाब से सामने आयी है। यह मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल में विज्ञापन पर 3582 करोड़ रुपये से ज्यादा है। जिसके मोदी के दूसरा कार्यकाल पूरा होने तक कुछ हजार करोड़ और बढ़ जाने की अपार संभावना है। हालांकि यह सरकार द्वारा स्वीकारा गया खर्च है वास्तविक खर्च का कोई अनुमान नहीं है। इसमें भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा अपनी या मोदी की छवि चमकाने में हुए विज्ञापन खर्च को नहीं जोड़ा गया है।

बाजार में एक मुहावरा बड़ा चर्चित है ‘‘जो दिखता है वो बिकता है’’। मोदी दिखते हैं और बिकते हैं। खरीदता कौन है? जिनके पास पैसा है। पैसा है अम्बानी-अडानी-टाटा जैसे बड़े पूंजीपतियों के पास। अच्छा पूंजीपति वो होता है जो मुनाफे का सौदा करे। मोदी दिखे, बिके लाभ हुआ कि नहीं? लाभ हुआ अम्बानी-अडानी की तो रैंकिंग ही सुधर गयी। वे दुनिया के पूंजीपतियों की दौड़ में आगे निकल गये। 

एक मुहावरा बाजार में और अधिक चर्चित है कि ‘‘फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा न करें’’। यह मुहावरा मेहनतकश जनता के हिसाब से सही है। इसमें बेरोजगार, छात्र, मजदूर, महिला, अल्पसंख्यक आदि-आदि सभी आ जाते हैं। ‘‘फैशन’’ पूरा है कि देश विकास कर रहा है, विदेशों में डंका बज गया’, भारत को पूरी दुनिया जान गयी’, आदि-आदि। पर जीवन की मूलभूत जरूरतों से जनता महरूम है।

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