एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव
लोकतंत्र, भाईचारा, सामाजिक आंदोलन नहीं सिर्फ हिन्दू राष्ट्र है शिक्षा के नये मूल्य -पृथ्वी
एक शिक्षा समागम में प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (छम्च्द्ध शिक्षा को नई दिशा देगी। ऐसी ही कई आकर्षक बातें हम कई समागमों और सम्मेलनों में सुनते रहें हैं। शिक्षा की यह नई दिशा क्या है? जिसके बारे में इतना प्रचार हो रहा है। सरकार द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत शिक्षा में व्यापक बदलाव का मसौदा रखा गया था। जिसके तहत आने वाले वर्षों में शिक्षा के उद्देश्यों, कार्यप्रणालियों, स्वरूप, पाठ्यक्रमों आदि में भारी बदलाव किये जाने हैं। ढेरों बदलाव किए जा चुके हैं और ढेरों बदलाव आगे किये जाने हैं।
‘शिक्षा नीति की नई दिशा’ के तहत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों में भारी बदलाव किए गए। मुख्य रूप से इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र की किताबों में किए गए बदलावों को देखना और समझना बेहद आवश्यक है। भाजपा सरकार द्वारा कक्षा 6-12 तक की इन किताबों में भारी बदलाव किए गए हैं। इन विषयों से जुड़ी 21 किताबों का अध्ययन इण्डियन एक्सप्रेस द्वारा किया गया। मौजूदा लेख में उन्हीं तथ्यों का इस्तेमाल किया गया है।
भाजपा सरकार के द्वारा किए गए ये बदलाव ‘मुंह में राम, बगल में छुरी’ की कहावत को चरितार्थ करते हैं। किए गए बदलावों के उद्देश्य को खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है। ‘नई दिशा’, ‘वैदिक परम्परा’, ‘विश्वगुरू’, ‘आधुनिकता’ आदि गोल-मोल बातें कहकर एनईपी का वास्तविक उद्देश्य छिपाया जा रहा है। गौरतलब है कि 2014 में भाजपा सरकार आने के बाद से ही पाठ्यपुस्तकों में निरन्तर बदलाव किए जा रहे हैं। सबसे पहले 2017 में 182 किताबों में 1334 बदलाव किये गए। एनसीईआरटी की किताबों में मौजूदा बदलाव के लिए भी कोविड की परिस्थितियों को बहाना बनाया गया। फिर 2020 में कोविड परिस्थितियों का बहाना बनाकर छात्रों को हुए पढ़ाई के नुकसान की भरपाई व पाठ्यक्रमों का बोझ कम करने तथा कोर्स को स्पीडी बनाने के लिये ये बदलाव किए गए हैं। अब मोदी सरकार द्वारा एनसीईआरटी के निर्देश पर नेशनल कुरीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) का गठन कर कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक की सभी पाठ्यपुस्तकों में तीसरी बार भारी बदलाव किये गये हैं। शब्दों का आडंबर रचने और बातों की बाजीगरी में माहिर मोदी सरकार ने पाठ्यक्रम में इस बदलाव को ‘तर्कसंगत’ बनाने का (रेशनलाईजेशन) नाम दिया है।
एनसीईआरटी के पूर्व व वर्तमान निदेशकों से जब इन बदलावों के मद्देनजर सवाल पूछा गया तब उन्होंने यही बताया कि मौजूदा बदलाव किसी भी राजनैतिक पक्ष के नहीं है और इन बदलावों को एनसीईआरटी के भीतरी और बाहरी विशेषज्ञों की मदद से किया जा रहा है। ऐसे गोल-मोल जवाब के अलावा वे सवालों से किनाराकसी करते रहे।
कहा जाता है कि ‘किसी इमारत की नींव जैसी होगी वैसी ही वो इमारत बनेगी’। तो आइए पाठ्यपुस्तकों में बदलाव करने वाले व्यक्तियों और उनके विचारों की छानबीन करते हैं।
आरएसएस-भाजपा इन बदलावों की तैयारी कई वर्षों से कर रही थी। उसने बड़ी तेजी से एनसीएफ और एनसीईआरटी के महत्वपूर्ण पदों पर आरएसएस व उसकी सोच से जुड़े लोगों को नियुक्त किया।
मौजूदा बदलावों में शामिल 24 सदस्य ऐसे हैं जो आरएसएस से जुड़े हैं। इसमें स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक से लेकर विद्याभारती से जुड़े हुए लोग हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा 12 लोगों की एक टीम के.कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में बनाई गई। एनसीएफ ने इस फोकस ग्रुप को पाठ्यक्रमों में सुधारों का रोडमैप तैयार करने के लिए दिसम्बर में नोटिफिकेशन जारी किया। स्पष्ट तौर पर कहा गया कि पाठ्यक्रमों में मौजूदा बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत किये जाने हैं।
अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई। इनमें प्रत्येक टीम में आरएसएस से जुड़े हुए लोग प्रमुख भूमिका में थे। हालांकि ये सभी लोग अपने आप कीे निष्पक्ष होने की सफाई देते हैं। लेकिन सच्चाई का सूरज इतना बड़ा है कि इनके छोटे हाथों से छिप नहीं सका। सी.आई.आईजैक (ग्रुप चेयरमैन) जो कि शिक्षा व सामाजिक विज्ञान की किताबों में बदलाव करने वाली टीम में हैं और ये 1975 से एबीवीपी में रहे फिर आरएसएस की केरल यूनिट के अध्यक्ष रहे। कहते हैं कि ‘‘वर्तमान की हमारी शिक्षा में इतिहास का पाठ्यक्रम वस्तुनिष्ठ न होकर व्यक्तिपरक है। हिन्दू पराजय स्कूली पाठ्क्रम का मुख्य विषय है। मैं एक स्वयंसेवक हूं और मै चर्च जाने वाला ईसाई हूं।’’ इसी टीम में प्रोफेसर वन्दना मिश्रा भी है जो एबीवीपी की महासचिव रहीं है। इसी फोकस ग्रुप में हरियाणा के सरकारी स्कूल में समाजशास्त्र की अध्यापिका ममता यादव भी हैं, जो एबीवीपी की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व वर्तमान में सदस्य हैं। इनका कहना है कि एबीवीपी का सदस्य होने और फोकस गु्रप का हिस्सा होने में कोई विरोधाभास नहीं है।
इसी प्रकार दर्शन शास्त्र में बदलाव सुझाने वाली टीम में भी आरएसएस के लोग शामिल हैं डॉ भगवती प्रकाश शर्मा जो कि स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सह-संयोजक हैं। आरएसएस के वनवासी कल्याण आश्रम और गोवा यूनिट से जुड़े हुए दत्ता भीका जी नाईक एक अन्य सदस्य हैं। इसी प्रकार इतिहास की टीम में डॉक्टर रामाकृष्णन राव (ग्रुप चेयरमैन) ये आरएसएस की विंग विद्याभारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष हैं। इसी तरह पाठ्यक्रमों में बदलाव करने वाली लगभग सारी टीमों में आरएसएस के बुद्धिजीवी शामिल हैं।
इन बदलावों को करने वालों में ‘भीतरी विशेषज्ञ’ और ‘बाहरी विशेषज्ञ’ को शामिल किया गया है। एनसीईआरटी ने इन ‘बाहरी विशेषज्ञों’ का नाम उजागर नहीं किया। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये ‘बाहरी विशेषज्ञ’ कौन होंगे।
ये बदलाव क्या हैं? इनके पीछे का वास्तविक उद्देश्य क्या है? यह किए गए बदलावों से स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। आइए! किए गए बदलावों पर बात करते हैं।
सांप्रदायिकता- कक्षा 6-12 तक की किताबों में से गुजरात दंगों से जुड़ी सारी बातें हटा दी गई हैं। जिन बातों में गुजरात दंगों का घटनाक्रम कि कैसे कारसेवकों की ट्रेन में कारसेवकों के जलने के बाद पूरे गुजरात में दंगे हुए उसमें जो लोग मारे गए, घायल हुए, विस्थापित हुए सारी बातें हटा दी गई हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट जिसमें दंगों में सरकार की संलिप्तता, दंगों को रोकने में उसकी असफलता की बातों को भी हटा दिया गया। इसी में एनएचआरसी की रिपोर्ट से संदर्भित तथ्यों के बॉक्स और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के ‘‘राजधर्म’’ का जिक्र वाले बॉक्सों को हटा दिया गया है। ज्ञात हो कि गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा अहमदाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स की, जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल थे, उस प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अटल बिहारी वाजपेई ने नरेन्द्र मोदी को ‘‘राजधर्म का पालन‘’ करने को कहा था। जहां पर नरेन्द्र मोदी ने ढिठाई के साथ कहा था ‘‘वही तो कर रहे हैं’’।
कक्षा 12 की समाज शास्त्र की किताब ‘भारतीय समाज’ से गुजरात दंगों का पूरा पाठ हटा दिया गया। जिसमें साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र-राज्यों से जुड़ी हुई बातों को हटा दिया गया। उदाहरण ‘‘साम्प्रदायिकता में अपने गौरव को बचाने के लिए दूसरे समुदाय के साथ हत्या, बलात्कार, लूट की जाती है।’’ सांप्रदायिक दंगों में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार, उत्पीड़न की बातों तथा गुजरात दंगों व सिख विरोधी दंगों के लिए राजनीतिक पार्टियों को जिम्मेदार ठहराने वाले अंश को हटा दिया गया है।
कक्षा 6 से 12 की पाठ्यपुस्तकों से साम्प्रदायिकता कैसे चुनौती पैदा कर रही है, से जुड़ी सारी बातें हटा दी गयी हैं। जिसमें कहा गया था कि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए जो कार्यक्रम चलाये जाते हैं उसमें साम्प्रदायिक ताकतें कैसे समस्या बन रही हैं। कि हिन्दू साम्प्रदायिकता के उभार के बाद अल्पसंख्यकों के कल्याण की योजनाओं में क्या-क्या कठिनाईयां आ रही हैं, जैसी बातें पाठ्यपुस्तकों से हटा दी गयी हैं।
इतिहास- प्राचीन भारतीय इतिहास के समान ही मध्य भारत के इतिहास में भी व्यापक बदलाव किये गए हैं। इन बदलावों का कोई वैज्ञानिक पुरातात्विक आधार नहीं है बल्कि यह आरएसएस की सोच से ही प्रेरित हैं। जैसा कि अमित शाह के बयान से भी स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि ‘‘इतिहास को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है, मुस्लिम साम्राज्य की एवज में पाण्डया, चोल, मौर्य, गुप्त और अहोम साम्राज्य को कम प्रमुखता दी गयी है। अब हमें इसे दुबारा लिखने से कोई नहीं रोक सकता।’’
कक्षा 7 से दिल्ली सल्तनत खंड से ममलुक (गुलाम), तुगलक, खिलजी, लोदी और मुगल साम्राज्य हटा दिये गए। मुस्लिम शासकों के दक्षिण भारत में साम्राज्य के विस्तार को हटा दिया गया। मुगल शासकों की जीत से जुड़ी तालिकाएं हटा दी गई। अकबरनामा, बादशाहनामा के उद्धरण, तस्वीर हटा दी गई। जिनमें युद्ध, शिकार के तरीकों, इमारतों के निर्माण दरबार के चित्र आदि सभी हटा दिये गए। हुमायूं, शाहजहां, बाबर, अकबर, जहांगीर और औरंगजेब सभी के शासन के दौरान हासिल उपलब्धियों से जुड़ी हुईं बातों को हटा दिया गया। नई पाठ्य पुस्तक में बताया गया है कि मुहम्मद गज़ऩवी ने सोमनाथ का मंदिर धार्मिक उद्देश्यों के लिए लूटा। पुरानी पाठ्य पुस्तक में गज़ऩवी द्वारा किये गये कार्यों/उपलब्धियों से जुड़े पैराग्राफ को हटा दिया गया। गज़ऩवी द्वारा अपनी प्रजा के बारे में और अधिक जानने के लिए एक पुस्तक लिखने का काम अल बरूनी को सौंपा। अल बरूनी द्वारा अरबी में लिखी ‘किताब-उल-हिन्द’ को लिखवाने के लिए संस्कृत के विद्वानों की मदद ली गई। यह सब हटा दिया गया है और गज़ऩवी की सिर्फ एक ही तस्वीर ‘लुटेरे’ के रूप में पेश की गई है। ज्ञात हो कि यह किताब आज भी इतिहासकारों के लिए इतिहास को जानने का प्रमुख स्रोत है।
कक्षा 8 की राजनीतिक शास्त्र की किताब के पाठ ‘कानूनों को समझना’ में एक अभ्यास में पूछा गया था कि ‘‘आप राजद्रोह कानून 1870 के बारे में क्या सोचते हैं? यह मनमाना था, यह किस प्रकार कानून के शासन का खण्डन करता है?’’ इस अभ्यास प्रश्न को भी हटा दिया गया है।
लोकतंत्र, विविधता और मानवाधिकार- इसी प्रकार जून 1975 में लगाए गए आपातकाल से जुड़े हुए पाठों को भी हटा दिया गया है। कक्षा 12 की राजनीति शास्त्र की किताब के पाठ ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट’ के पांच पेज हटा दिये गए हैं। कक्षा 12 की समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक में से ‘संास्कृतिक विविधता की चुनौतियां’ पाठ हटा दिया गया। जिनमें बताया गया था कि ‘भारत की जनता ने जून 1975 से जनवरी 1977 तक तानाशाही पूर्ण शासन देखा। संसद को भंग कर दिया गया, जनता के अधिकारों को खत्म कर दिया तथा बहुत बड़े पैमाने पर राजनैतिक कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया, मीडिया पर संेसरशिप लगा दी गई। अधिकारियों को मनमर्जी से निकाल दिया गया। जल्दी परिणाम के लिए निम्न दर्जे के कर्मचारियों पर दबाव डाला गया। सबसे कुख्यात यह था कि लोगों की जबरन नसबन्दी की गई। इस दौरान ऑपरेशन की जटिलता के कारण बड़ी संख्या में लोग मारे गए। 1977 में कंाग्रेस पार्टी के विपक्ष में जनता ने वोट डाले।
आज के इस दौर में देश में अघोषित आपातकाल लागू है, जब विरोध के हर स्वर को कुचला जा रहा है, यहां तक कि मीडिया पर भी अघोषित सेंसरशिप लागू है। संघ-भाजपा, उसकी नीतियों, उसके नेताओं, उसकी राजनीति का विरोध करने वाला चाहे कोई भी हो सत्ता के दमन और अघोषित आपातकाल से काफी अच्छी तरह परिचित है। देश के इन हालातों को देखते हुए आसानी से समझा जा सकता है कि ये अंश पाठ्यक्रमों से क्यों हटाए गये हैं। ताकि मानवाधिकारों, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क, ख, ग भी छात्र न जान सकें। वे आज के इन हालातों को ही सामान्य हालात समझें।
कक्षा 11-12 में पहले के पाठ्यक्रम में से लोकतंत्र से जुड़े पाठों को हटा दिया गया है। कक्षा 6 ‘लोकतांत्रिक सरकार के प्रमुख तत्व’ पाठ को हटा दिया गया। जिसमें विस्तार से बताया गया था कि लोकतांत्रिक सरकार कैसी होती है, उसे क्या-क्या करना चाहिए। साथ ही न्याय, समानता, जनता की भागीदारी आदि के बारे में बातें लिखी थी। कक्षा 8 ‘आजादी के बाद भारत’ पाठ को हटा दिया गया। जिसमें बताया गया था कि संविधान और भाषायी राज्य कैसे बने आदि। इसी तरह कक्षा 10 की राजनीति शास्त्र से लोकतंत्र और विविधता, लोकतंत्र की चुनौतियां पाठ हटा दिए गए। इन पाठों में सामाजिक विविधता, विश्व में जातियों का उद्भव, लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार के बारे में विस्तार से बताया गया था।
सामाजिक आंदोलन- कक्षा 6-12 की पाठ्य पुस्तकों में से 3 पाठ जो कि सामाजिक आंदोलनों के थे, हटा दिए गए। कक्षा 12 की राजनीतिक शास्त्र की किताब से ‘जन आंदोलन का उदय’ पाठ हटा दिया गया। जिसमें चिपको आंदोलन 1970, 70 के दशक का पैन्थर आंदोलन तथा 80 के दशक में कृषि संघर्ष जो कि भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में चला था। आन्ध्रप्रदेश का शराब विरोधी आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन (मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र), सूचना का अधिकार के लिए आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक जन आंदोलनों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। कक्षा 7 का पाठ ‘समानता के लिए संघर्ष’ इस पाठ में सतपुरा जंगल, मध्यप्रदेश को बचाने के लिए मत्स्य संघों द्वारा किये संघर्ष को हटा दिया गया। कक्षा 10 की राजनीति शास्त्र की किताब से 3 पाठ हटा दिये गए। जिसमें नेपाल, बोलीविया में पानी के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष, नर्मदा बचाओ आंदोलन, कर्नाटक का अहिंसक आंदोलन किट्टिको-हच्चिकों (चसनबा ंदक चसंदज) जैसे कई महत्वपूर्ण सामाजिक जन-आंदोलन हटा दिये गये हैं। कक्षा 11-12 में सामाजिक आंदोलन के एकमात्र पाठ को भी हटा दिया गया। कक्षा 12 की पाठ्य पुस्तक के एक अभ्यास प्रश्न के बतौर किसान बिल के खिलाफ आंदोलन के जिक्र तक को हटा दिया गया है। इसी प्रकार सभी पाठ्य पुस्तकों में से 1960 के दशक में व्यापक प्रभाव के नक्सलबाड़ी आंदोलन के बारे में सभी पेज व बॉक्स हटा दिये गए हैं।
जातीय उत्पीड़न और भेदभाव- प्रमुख सामाजिक घटनाओं व सामाजिक आंदोलनों से जुड़े पाठों को हटाने के साथ-साथ प्राचीन भारत से जुड़े पाठों में भी व्यापक कांट-छांट की गई। प्राचीन भारत में दलितों, महिलाओं की स्थिति, उन पर सवर्ण जातियों के अमानवीय दमन-उत्पीड़न की बातों को हटाया गया है। प्राचीन भारत की यह कड़वी सच्चाई भाजपा-संघ को सहन नहीं थी, उसके हिन्दू राष्ट्र की परियोजना में एक बाधा थी। इस कारण किताबों में बदलाव किए गए। कक्षा 6 की इतिहास की किताब के वर्ण खंड में से आधा हिस्सा हटा दिया गया है। इस खंड के पाठ ‘राज्य, राजा और शुरूआती गणतंत्र’ में वर्ण की वंशागति, प्रकृति, वर्गीकरण और अछूतों को वर्ण व्यवस्था से भी बाहर रखने के बारे में विस्तार से बताया गया था।
कक्षा 12 में जातिवाद का दर्द व दंश को बयां करने वाली कहानियों को हटा दिया गया है। कक्षा 12 में ही दलित महिलाओं पर सवर्णों द्वारा किये गए अपराधों को बताने वाले हिस्से हटा दिए गए। कक्षा 6 की पाठ्य पुस्तक में पहले बताया गया था कि दलितों और औरतों को वेद सुनने व पढ़ने की इजाजत नहीं थी। ‘‘पुराणों को सरल संस्कृत कविता के रूप में लिखा गया जिसे सभी लोग सुन सकते थे, औरतें और शूद्र भी, जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी।’’ अब इस वाक्य को ‘सुन सकते थे’ पर ही खत्म कर दिया गया है।
पाठ्यक्रमों में मौजूदा बदलाव आरएसएस का प्रमुख एजेण्डा रहा है। 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद इसमें निरंतर तेजी आयी है। 2018 में पहले सारे राज्यों के बोर्ड में और साथ ही अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को अनिवार्य किया गया। ताकि जो बदलाव हों वो एक साथ पूरे भारत में फैल जायंे और बच्चे आरएसएस का पसंदीदा इतिहास, समाजशास्त्र, नागरिक शास्त्र पढ़ंे। और अब पाठ्यपुस्तकों में व्यापक बदलाव करके अपनी परियोजना को अंतिम रूप दे दिया गया है।
पाठ्यक्रमों में ये व्यापक बदलाव किस ‘नई दिशा’ में जा रहे हैं यह इसमें किये गये बदलावों से स्पष्ट है। पाठ्यपुस्तकों में चुन-चुन कर लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक आंदोलनों, तर्कपरकता, वैज्ञानिक विश्लेषणों को हटा दिया गया है। इसके स्थान पर आरएसएस की पसंदगी-नापसंदगी के आधार पर पाठ्यपुस्तकों को ढाल दिया गया है। इतिहास को हिन्दू राजाओं की महिमा और हिन्दू-मुसलमान के संघर्ष के तौर पर बताया जा रहा है। सामाजिक आंदोलन जिन्होंने इतिहास को गति दी और लोकतांत्रिक मूल्य जिसमें यह मौजूदा समाज खड़ा है सभी को उलट दिया गया है। साम्प्रदायिक राजनीति पर चोट करने वाले और भाईचारे की सारी बातों को पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है। शिक्षा की यह ‘नई दिशा’ छात्रों के दिमाग में वही जहर भरना चाहती है जो आरएसएस अब तक अपने स्कूलों में भरता रहा है। मुसलमानों से नफरत, जातिवाद को नकारते हुए ब्राह्मणवाद को स्थापित करना, महिलाओं को सामंती पितृसत्ता के नजरिये से देखना, जनता के संघर्षों और लोकतांत्रिक ढंाचे को बोझ समझना, हिन्दू राजाओं, मान्यताओं का गौरवगान, तानाशाहीपूर्ण हिन्दू राष्ट्र का सपना आदि अब शिक्षा के नये मूल्य बन रहे हैं। यही है ‘शिक्षा की नई दिशा’।
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