17 सितंबर राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस
भारत में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। सरकारी नौकरियों में भर्ती न के बराबर हो रही है। इस समय भारत में कारोबार ठप्प होना, सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में बेचा जाना, तेजी से गिरती जीडीपी आम चर्चा का विषय है। जुमले गढ़ने में माहिर मोदी सरकार हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा करके सत्ता में आयी थी। परंतु सरकार एक के बाद दूसरी रोजगार विहीन योजनाएं प्रस्तुत कर रही है। इस बीच बेरोजगारी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है।
सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर माह में बेरोजगारी दर 7.02 प्रतिशत है। सभी जानते हैं कि यह आंकडे़ वास्तविकता से काफी कम हैं। शहरी क्षेत्रों में यह दर 8 प्रतिशत तक है। सीएमआईई के अनुसार 20-24 आयु वर्ग के स्नातक युवाओं में बेरोजगारी दर 2017 में 42 प्रतिशत थी जो 2019 में बढ़कर 63.4 प्रतिशत तक पहुंच गयी। जो पिछले वर्ष 45 वर्षों में सबसे ऊंचे स्तर पर थी। तब से अब तक बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस सब से बेखबर मोदी सरकार शुतुरमुर्ग की तरह मुंह छिपाये है। बढ़ती बेरोजगारी छात्रों-नौजवानों को क्षोभ से भर रही है।
जम्मू कश्मीर में सीएमआईई के अनुसार बेरोजगारी दर 21.6 प्रतिशत और हरियाणा में 20.3 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। बेरोजगारी की इस विकरालता से डरी हुई मोदी सरकार ने बेरोजगारी के आंकडे़ भी जारी करने बंद कर दिये हैं। बढ़ती बेरोजगारी भारत को एक विस्फोट के मुहाने पर ले आयी है। कभी भी कोई चिंगारी इस विस्फोट को दावानल में बदल सकती है।
बढ़ती बेरोजगारी के कारण ही भारत के छात्रों-युवाओं द्वारा 2020 से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिवस 17 सितंबर को ‘राष्ट्रीय बेराजगार दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा है। अपनी योजनाओं, नीतियों, कामों को ऐतिहासिक और सर्वश्रेष्ठ बताने वाली मोदी सरकार को भारत के नौजवान उसी की भाषा में जवाब दे रहे हैं।
इस वर्ष भी भारत के छात्र-युवा, बेरोजगारों के संगठनों ने बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाकर अपना विरोध प्रकट किया। इन प्रदर्शनों में सरकारी रिक्त पदों को भरने, फार्म फीस कम करने, संविदा-ठेका प्रथा पर रोक लगाने, भर्ती प्रक्रिया को सालों-साल लटकाने के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की। साथ ही सरकारी संस्थानों का विनिवेशीकरण-मौद्रीकरण किये जाने का भी विरोध किया। इसमें सभा, जुलूस, ज्ञापन देने के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी भरपूर प्रयोग किया गया। 17 सिंतबर को सुबह से ही ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी के जन्म दिवस से अधिक राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस, नेशनल अनइम्प्लॉयमेंट डे, टेªड करता रहा। यह भारत के नौजवानों के गुस्से को दिखाता है। नौजवान अब बेरोजगारी के सवाल पर मुखर होने लगे हैं।
कॉरपोरेट मीडिया में बेरोजगारी की भयावहता न के बराबर स्थान पाती है। बेरोजगारी के खिलाफ इन विरोध-प्रदर्शनों को भी मीडिया ने कोई खास तवज्जो नहीं दी। इसी तरह संघ-भाजपा के लोग, इनके आईटी सेल, इनके चाहने वाले ‘बुद्धिजीवियों’ ने बेरोजगारी को हर तरह से नकारने की कोशिश की। इसके उलट ये हर कुतर्क से मोदी सरकार को नये रोजगार पैदा करने वाले के रूप में साबित करने की कोशिश करते रहे। कभी मुद्रा लोन से करोड़ों रोजगार पैदा हुए, कभी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से बेरोजगारी दूर की गई, कभी भारत के युवा रोजगार मांगने वाले नहीं रोजगार देने वाले बने जैसे लफ्फाजी और झूठ को दोहराने लगे।
बेरोजगार युवाओं की नाराजगी की एक बड़ी वजह सरकार द्वारा लाखों रिक्त पदों को भरने में टाल-मटोली करना है। अगर भर्ती प्रक्रिया शुरू भी की जाती है तो वह पहले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती है। फिर लंबी अदालती प्रक्रिया की। दिन-रात तैयारी करने वाले पढ़े-लिखे बेरोजगार चंद सरकारी नौकरियों के लिए हाथों में डिग्रियां लेकर सालों-साल धक्के खाने को मजबूर होते हैं। सरकारों की इस बेरूखी से अपने को ठगा सा पाते हैं। इससे युवाओं के अंदर, निराशा और पस्तहिम्मती भी तेजी से फैल रही है। कई नौजवान इस सबसे आहत होकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार अकेले 2019 में 2,851 नौजवानों ने बेरोजगारी के कारण आत्महत्या की। वहीं 2019 में आत्महत्या करने वाले लोगों में 14,019 बेरोजगार थे। यह आत्महत्याएं नहीं हैं बल्कि केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा इनकी ‘‘हत्यायें’’ हैं। छात्रों-नौजवानों को ठंडी मौतें बांटी जा रही हैं।
निजी सेक्टर की रोजगार देने, इसमें स्थायी भर्ती करने के मामले में हालत और खराब है। नौकरियों का बड़ा हिस्सा निजी सेक्टर से ही आता है। यहां पर स्थायी नौकरियां हासिल करना कोयले में हीरे ढूढ़ने के समान है। ‘रखो और निकालो’ ही निजी क्षेत्र का आप्त वाक्य है। पढ़े-लिखे, डिग्री और डिप्लोमाधारी नौजवानों का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र में बिना किसी श्रम कानूनों के तहत मामूली वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। इस वेतन से उनका जीवन चल पाना महंगाई के दौर में और भी कठिन हो गया है। उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के तहत पूंजीपतियों को लूट की खुली छूट पहले ही दे दी गयी थी। लेकिन अब श्रम कानूनों में बदलाव कर कामगारों को गुलाम बनाने की तैयारी भी कर ली गयी है।
भयावह होती बेरोजगारी के खिलाफ छात्रों-युवाओं ने पिछले दिनों जो आवाज बुलंद की है उससे बेरोजगारी का मुद्दा पटल पर आ गया है। यह आम विमर्श का मुद्दा बन रहा है। इन संघर्षों के दम पर ही सरकार को मजबूरन कुछ रिक्त पदों की भर्ती शुरू करने की घोषणा करनी पड़ी। लेकिन इन भर्ती प्रक्रियाओं की गति कछुए की गति से भी धीमी हैं और ज्यादातर मामलों में अभी तक भी पूरी नहीं हुयी हैं।
बेरोजगारी जैसी विकराल समस्या के खिलाफ एक देशव्यापी एकजुट संघर्ष जरूरी है। राज्य और केन्द्र सरकारों के खिलाफ छात्रों,नौजवानों
का देशव्यापी संगठित मोर्चा बनाकर संघर्ष करना वक्त की जरूरत है। इसके दम पर ही सरकारों को किसी हद
तक रोजगार मुहैय्या कराने पर मजबूर किया जा सकता है।
यह बात भी सच है, मुनाफे पर टिकी इस पूंजीवादी व्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है। मजदूरों, किसानों, मेहनतकशों के साथ साथ छात्रों-युवाओं पर इस पूंजीवादी व्यवस्था की मार समान रूप से पड़ रही है। सभी को पूंजीवाद के खिलाफ एकजुट संघर्ष करना होगा। और शहीदे आजम भगत सिंह के विचारों पर चलकर समाजवादी व्यवस्था का निर्माण करना होगा। समाजवाद में सभी को योग्यतानुसार काम और काम के अनुसार वेतन का सिद्धांत लागू होता है। समाजवाद में ही बेरोजगारी का पूरे तौर पर समाधान संभव है।
छात्रों-नौजवानों का आज का कार्यभार यह बनता है कि वे बेरोजगारी के खिलाफ लड़ते हुए समाज परिवर्तन की लड़ाई का भी हिस्सा बनें।
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