बुधवार, 2 सितंबर 2020

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020


नई शिक्षा नीति (जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नाम दिया गया है।) 2020(नेप) को शिक्षा मंत्रालय और केन्द्र सरकार ने जारी कर दिया है। नई शिक्षा नीति में शिक्षा में व्यापक बदलाव करने की बात की गई है। केन्द्र की भाजपा सरकार ने कस्तूरीरंगन समिति द्वारा प्रस्तुत मसौदे को लगभग स्वीकार कर लिया है। यद्यपि नहीं मानने का भी काम किया गया है जैसे मिड डे मील को कक्षा 12 तक विस्तारित करने के सुझाव को नहीं स्वीकारा गया है। मसौदे में प्रस्तावित सुझावों को अपनी जरूरत के अनुसार शिक्षा के रंग को और भगवा करने की जिद संघी सरकार की इस शिक्षा नीति में साफ तौर पर देखी जा सकती है। गौर करने योग्य बात यह है कि नेप निरंतर मौजूदा शिक्षा व्यवस्था की आलोचना करते हुए आगे बढ़ती है(आलोचना का यह स्वर कस्तूरीरंगन समिति के मसौदे में अधिक है)। कमियों-खामियों, भ्रष्टाचार, अफसरशाही के दुष्परिणामों पर चोट करते हुए दिखती है। और यह सब करने के बाद इन कमियां-खामियों को दूर करने के लिए अपने सुझावों को रखती है। अपनी गैर जनवादी कार्य करने की पद्धति का परिचय देते हुए मोदी सरकार ने नेप को संसद में बिना बहस के पास कर दिया।   

निजीकरण-नई शिक्षा नीति प्री स्कूलिंग को मान्यता देते हुए 3 वर्ष की उम्र से ही शिक्षा देने की बात को स्वीकार करती है। 5़3़3़4 का फार्मूला देते हुए कक्षा 1 से पहले के 3 वर्षों को भी शिक्षा ढांचे में रखती है। 3 वर्ष की उम्र से लेकर 5 वर्ष तक यानी कक्षा 1 में प्रवेश लेने से पूर्व तक की पढ़ाई को अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) का नाम दिया गया है। जिसमें खेल आधारित शिक्षा और प्रारंभिक संख्या ज्ञान कराया जायेगा। ऐसा करने के पीछे सरकार का तर्क है कि कक्षा 1 में प्रवेश लेने से पूर्व उनकी अच्छी तैयारी हो जायेगी और वे बीच में अपनी पढ़ाई नहीं छोडं़ेगे। आंगनबाड़ी के रूप में सरकारों द्वारा ऐसे संस्थानों को चलाया जाता है और प्री स्कूलिंग और प्ले स्कूल पूरी तरह से निजी हाथों में हैं। इन प्री या प्ले स्कूलों में कुछ ऐसे भी हैं जिनको बहुत बड़ी पूंजी के मालिक संचालित करते हैं। जी किड्स जैसे प्ले स्कूल इसके उदाहरण हैं। लेकिन अब नये फार्मूले के तहत यह पूर्व प्राथमिक शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है। नेप में बिन्दु संख्या 1.4 में कहा गया है कि- ‘‘विशिष्ट और सशक्त ईसीसीई संस्थानों द्वारा ईसीसीई प्रणाली को लागू किया जायेगा जिसमें (क) पहले से काफी विस्तृत और सशक्त रूप से अकेले चल रहे आंगनबाड़ियों के माध्यम से(ख) प्राथमिक विद्यालय के साथ स्थित आंगनबाड़ियों के माध्यम से (ग) पूर्व प्रा0 विद्यालयों में जो कम से कम 5 से 6 वर्ष पूरा करेंगे और प्राथमिक विद्यालयों में स्थित हैं, इनके माध्यम से (घ)अकेले चल रहे प्री स्कूल के माध्यम से इसे लागू किया जायेगा।’’ स्पष्ट है कि अभी तक आंगनबाड़ियों के जरिये जो शिक्षा दी जा रही थी उसे भी सरकार निजी प्री स्कूलों के हवाले करने जा रही है। प्री स्कूलिंग का जो मॉडल अभी तक निजी स्कूल चलाते रहे हैं और मुनाफा बटोरते रहे हैं सरकार ने भी उस मॉडल को स्वीकार कर लिया है। आखिर निजी प्री स्कूलों के इस मॉडल को सरकार द्वारा स्वीकार करने के क्या मायने हैं? यह निजी पूंजी द्वारा संचालित इन प्री स्कूलों के मॉडल को मान्यता दे, निजीकरण को बढ़ाने की परियोजना है। अभी तक जो शिक्षा का निजीकरण प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों तक था उसे अब पूर्व प्राथमिक विद्यालयों तक विस्तारित कर दिया गया है।

नेप के बिन्दु संख्या 8.4 में कहा गया है कि ‘‘निजी और परोपकारी स्कूलों को भी एक महत्वपूर्ण और फायदेमंद भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित और सक्षम किया जाना चाहिए।’’ आगे 8.7 में में कहा गया है कि ‘‘... गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए निजी परोपकारी प्रयासों को प्रोत्साहित किया जायेगा....’’ स्पष्ट है कि एक तरफ निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की मंशा है और दूसरी तरफ ‘परोपकारी’ स्कूलों को। ये परोपकारी स्कूल विद्या भारती के शिशु मंदिर, विद्या मंदिर स्कूल होंगे। इस प्रकार शिक्षा नीति से दो निशाने साधे गये हैं एक तरफ निजी पूंजीपतियों के हितों का ध्यान रखा गया है तो दूसरी ओर संघ के एजेण्डे को आगे बढ़ाने वाले विद्या मंदिरों के हितों का, जिससे वे शिक्षा में अपनी फासीवादी सोच से बाल मस्तिष्क को दूषित करेंगे।  

इसी तरह बिन्दु संख्या 7.10 में कहा गया है ‘‘निजी और सार्वजनिक स्कूलों सहित सभी स्कूलों के बीच परस्पर सहयोग और सकारात्मक तालमेल बढ़ाने के लिए देश भर में एक निजी और एक सार्वजनिक विद्यालय को परस्पर संबद्ध किया जायेगा।  ......और संभव हो तो एक-दूसरे के संसाधनों से भी लाभान्वित हो सकें।....’’  देश जानता है कि उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण के पूरे दौर में विभिन्न सरकारों ने सार्वजनिक संस्थाओं का इस्तेमाल करने की पूरी छूट निजी पूंजीपतियों को दी है। कहीं यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के जरिये किया गया तो शिक्षा में इसे और बढ़ाने के लिए इस तरह के सुन्दर शब्दों में पेश किया जा रहा है। सभी जानते हैं कि सरकारी विद्यालयों का इस्तेमाल निजी स्कूल के मालिक करेंगे। इसके लिए नेप में पूरी व्यवस्था कर दी गयी है। यह विभिन्न राज्यों में स्कूलों को पीपीपी में देने, पूंजीपतियों को गोद देने आदि कार्यवाहियों का अगला चरण है जो संघी सरकार द्वारा अमल में लाया जायेगा। 

उच्च शिक्षा को लचीला और बहुविषयक बनाने पर अतिशय जोर है। नेप 2030 तक प्रत्यके जिले में 1 बहुविषयक उच्च शिक्षा संस्थान तथा 2040 तक वर्तमान उच्च शिक्षा संस्थानों को बहुविषयक बनाने का लक्ष्य लेती है। ऐसे संस्थानों की स्थापना पर नेप कहती है कि ‘‘...श्रेष्ठ गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा संस्थान सार्वजनिक और निजी दोनों को विकसित करने की दिशा में ठोस कदम उठाये जायेंगे, ...’’ इसके आगे कहा गया है कि ‘‘बड़ी संख्या में उत्कृष्ट सार्वजनिक संस्थाओं के विकास में जोर देने के साथ सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थानों का विकास होगा.....’’ नई शिक्षा नीति भले ही सरकार पेश कर रही है लेकिन उसमें पूंजीपतियों की पूरी चिंता की गयी है। इसमें पूंजीपतियों को अपने निजी संस्थान खोलने की पूरी व्यवस्था की गयी है। जाहिर सी बात है कि जिस तरह के बड़े उच्च शिक्षा संस्थानों की नेप वकालत करती है उसे खड़ा करने वाले बड़े-बड़े पूंजीपति ही होंगे। सरकारें निरंतर सामाजिक मदों में कटौती करती गयी हैं उससे ऐसा नहीं लगता है कि सरकार इतने बड़े स्तर पर ऐसे संस्थानों को खड़ा करने की मंशा रखती है। यह तो तब और भी असंभव लगता है जब संघी सरकार के पिछले वर्षों के इतिहास पर नजर डालते हैं। संघी सरकार ने सत्ता में आते ही एक तरफ कई शिक्षा संस्थानों पर अपने फासीवादी एजेण्डे को थोपने के लिए उन पर कई हमले किये और शिक्षण-प्रशिक्षण के कार्य में बाधा डाली। वहीं दूसरी तरफ शोध में किये जाने वाले खर्च में भी भारी कटौती की। यूं तो इससे पूर्व की शिक्षा नीति ने भी जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा में खर्च करने की सिफारिश की थी लेकिन सरकारों ने उसे नहीं लागू किया। ऐसे में यह नीति भी 6 प्रतिशत खर्च की बात करती है लेकिन इसका भी जमीन पर उतरना मुश्किल है। तो ऐसे में बहुविषयक उच्च शिक्षा संस्थान खोलने का टेंडर बड़े पूंजीपतियों के हवाले ही है। 

इसके अतिरिक्त विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को भारत में अपने संस्थान खोलने की छूट प्रदान कर दी गयी है। अब देशी-विदेशी दोनों तरह की पूंजी छात्रों के अभिभावकों की जेब पर हाथ साफ करने को तैयार हैं। देखने में आया है कि ये विदेशी विश्वविद्यालय दूसरे देशों में घटिया शिक्षा देते है और ऊंची फीस वसूलते हैं।  

सरकार द्वारा शिक्षा से अपने हाथ खींच जनता पर ही जिम्मेदारी डालना- राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह दस्तावेज सरकार द्वारा शिक्षा से अपने हाथ और भी ज्यादा खींचने का दस्तावेज है। एक तरफ ईसीसीई और अन्य में प्रशिक्षित लोगों को भर्ती करने की बात है वहीं दूसरी तरफ इसके बिल्कुल उलट बातें भी की गयी हैं। छात्रों को सिखाने के लिए सहपाठियों, अभिभावकों, समुदायों का सहयोग लेने और इसे बढ़ाने की बात की गयी है। कहा गया है कि ‘‘राज्य इस तरह के शिक्षण संकट के दौरान मूलभूत साक्षरता व संख्या ज्ञान को बढ़ावा देने हेतु इस तत्काल राष्ट्रीय मिशन में पियर ट्यूटरिंग को बढ़ावा देने के लिए नवीन मॉडल स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं.....’’ पियर ट्यूटरिंग एक छात्र द्वारा दूसरे को पढ़ाने की कवायद है। यह सभी जानते है एक छात्र की तुलना में एक प्रशिक्षित शिक्षक ही बेहतर शिक्षा दे सकता है। लेकिन सरकार शिक्षा देने के महत्वपूर्ण कार्यभार को समुदाय के सदस्यों जिससे छात्र आते हैं, सेवा निवृत्त कर्मचारियों, वालंटियर्स के जरिये देने पर विशेष जोर देती है। ऐसी शिक्षा देने के लिए ‘वैकल्पिक और नवीन शिक्षा केन्द्र स्थापित किये जाने’ पर जोर देती है। यानि सरकार शिक्षकां की कमी को पूरा नहीं करने जा रही है। वह पूरी तरह से शिक्षा को अनौपचारिक करना चाहती है या फिर जनता पर ही अपने को शिक्षित-दीक्षित करने की जिम्मेदारी डालने की कोशिश कर रही है। यह बेहद शर्म की बात है कि राज्य अपने कर्तव्यों से मुंह छिपा भाग रहा है। 

औपचारिक शिक्षा का त्याग और अनौपचारिक शिक्षा को बढ़ावा- नेप प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक ऑनलाइन, ओपन एंड डिस्टैंस लर्निंग(ओडीएल) को बढ़ावा देने और मजबूत करने, राज्य के ओपन बोर्ड को सशक्त करने और नये संस्थानों की स्थापना करने की बात करती है। कुल जमा अनौपचारिक शिक्षा के तंत्र को मजबूत करने की बात करती है। यही नहीं कक्षा 3, 5 व 8 की पढ़ाई हेतु डिस्टैंस लर्निंग में उसके लिए कोर्स बनाने की योजना है। इसी तरह व्यवसायिक शिक्षा को भी दूरस्थ शिक्षा के जरिये देने की बात है। नेप बिन्दू 3.6 में कहती है कि ‘‘ एनआईओएस अपने वर्तमान कार्यक्रमों के अलावा निम्नलिखित कार्यक्रमों को भी ऑफर करेगाः ए, बी और सी स्तरों की शिक्षा जो औपचारिक स्कूल प्रणाली के कक्षा 3, 5 और 8 के बराबर है; माध्यमिक शिक्षा कार्यक्रम जो कक्षा 10 और 12 के बराबर है; व्यवसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम/कार्यक्रम; और वयस्क साक्षरता और जीवन संवर्धन कार्यक्रम। एनआईओएस की तर्ज पर राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जायेगा कि वे अपने राज्यों में पूर्व में स्थापित स्टेट इंस्टीटयूट आफ ओपन स्कूलिंग को सशक्त करके और नये संस्थानों की स्थापना करें और क्षेत्रीय भाषाओं में उपरोक्त कार्यक्रम इन संस्थानों के जरिये चलाएं।’’

राष्ट्रीय शिक्षा नीति माध्यमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक व्यवसायिक शिक्षा पर जोर देती है। उच्च शिक्षा को पूरी तरह से बदलने की बात करती है। माध्यमिक स्तर पर कम से कम एक व्यवसाय की शिक्षा दी जायेगी। उच्च शिक्षा को ‘बहुविषयक और लचीला’ बनाने का मकसद भी यही है कि कई कामों को करने वाले सफेद कॉलर मजदूर तैयार किये जायें। नेप 2025 तक ऐसे 50 प्रतिशत विद्यार्थियों (सफेद कॉलर मजदूर) को तैयार करने का लक्ष्य रखती है। दरअसल अभी तक जारी शिक्षा में किसी विषय के विशिष्ट ज्ञान को रखने वाले लोगों को तैयार किया जाता था, जो पूंजीपति वर्ग के या पूंजीवादी व्यवस्था की खास जरूरतों को पूरा करते थे। लेकिन समय के साथ इनकी संख्या लगातार बढ़ती गयी है। पूंजीपतियों की आज के समय की बदली हुयी जरूरतों को यह शिक्षा और इस शिक्षा से निकलने वाले छात्र पूरा नहीं करते। इसीलिए नई शिक्षा नीति में व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर या बहुविषयक शिक्षा के नाम पर पूंजीपति वर्ग की आज की जरूरतों को पूरा करने वाले लोगों को तैयार किया जायेगा। आज पूंजीपति वर्ग को किसी विषय के जानकार लोग नहीं चाहिए, उसकी जरूरत तो कुछ मुट्ठीभर विशिष्ट विश्वविद्यालय या संस्थानों से निकलने वाले छात्रों से पूरी हो जा रही है। उसे उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे लोग चाहिए जो बहुतायत में आम संस्थानों से निकलते हैं। और जब ये लोग निकले तो इनको कई कामों को करने में दक्ष होना चाहिए। ‘बहुविषयक’ का इससे अधिक और कुछ अर्थ नहीं है। पूंजीपति वर्ग के हितों को समर्पित नेप कहती है, ‘‘ एक समग्र और बहुविषयक शिक्षा, जो कि भारत के इतिहास में सुन्दर ढंग से वर्णित की गई है- वास्तव में आज के स्कूलों की जरूरत है, ताकि हम इक्कसवीं शताब्दी और चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व कर सकें। यहां तक अभियांत्रिकी संस्थान जैसे आईआईटी कला और मानविकी के साथ समग्र और बहुविषयक शिक्षा की ओर बढ़ेंगे। कला और मानविकी के छात्र भी विज्ञान सीखेंगे, कोशिश यही होगी कि सभी व्यवसायिक विषय और व्यवहारिक कौशलों(साफ्ट स्किल्स) को हासिल करें।...’’ तो उद्योगपतियों की चौथी औद्योगिक क्रांति को सफल बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। इसी तरह से उच्च शिक्षा और शोध को उद्योग से जोड़ने की बात भी नेप करती है। 

शिक्षकों की नियुक्ति में अवरोध- हालांकि नेप शिक्षकों का महिमामंडन करती है और साथ ही भारत को विश्व गुरू बनाने का स्वप्न भी देखती है। लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति के मार्ग में कई अवरोधों को खड़ा करती है। नियुक्ति, पदोन्नति से लेकर, वेतन वृद्धि तक कई अड़चने उनके रास्ते में खड़ी कर दी गयी हैं। अब शिक्षकों की नियुक्ति पहले अस्थायी रूप में होगी, नेप इसे ‘कार्यकाल ट्रैक’ का नाम देती है। इसमें शिक्षक को परिवीक्षा अवधि में रखा जायेगा। उसके बाद उसका विभिन्न स्तरों पर मूल्यांकन किया जायेगा। यह मूल्यांकन छात्रों, सहकर्मियों, उसको दिये कार्य के परिणाम और संस्थान द्वारा किया जायेगा। इस सब बाधाओं को पार करने वाला ही स्थायी नियुक्ति के फल को चख पायेगा। इस दौरान वह प्राईवेट संस्थानों के अध्यापकों की तरह दबाव, भय में काम करता रहेगा। जरूरी नहीं कि इस परिवीक्षा अवधि के बाद कोई स्थायी नियुक्ति पा ही जाये। रंगनाथन द्वारा पेश नेप के मसौदे में यह परिवीक्षा अवधि 5 साल तक थी लेकिन सरकार द्वारा जारी नेप में इस अवधि का कोई जिक्र नहीं है। स्वतः अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार अस्थाई नियुक्ति पर ही लंबे समय तक शिक्षकों को लटकाये रखेगी। 

शिक्षा के भगवाकरण के लंबे डग- संघी सरकार में बनी नयी शिक्षा नीति में शिक्षा को भगवा रंग में रंगने की योजना न हो, ऐसा होना असंभव है। संघ के एक अनुषंगी संगठन भारतीय शिक्षा मण्डल के प्रवक्ता ने कहा कि नेप ने हमारी 60 से 70 प्रतिशत मांगों को मान लिया है। नेप संस्कृत के बखान, भारत के अतीत के गौरवगान, प्राचीन इतिहास का महिमामंडन, नैतिक शिक्षा पर जोर से भरा पड़ा है। हांलाकि कस्तूरीरंगन द्वारा नेप के मसविदे में भी ऐसा था लेकिन सरकार द्वारा जारी नेप में यह और ठोस रूप में पेश किया गया है। 

नेप में कहा गया है (4.31) कि ‘‘ .... सभी पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण माने जाने वाली आवश्यक मूल सामग्री(चर्चा, विश्लेषण, उदाहरण और अनुप्रयोग के साथ) को शामिल करना होगा, ....’’  पाठयक्रम को संघी एजेण्डे से भरने के लिए नेप 4.29 बिन्दू में कहती है ‘‘ फाउंडेशन स्तर से शुरू करके बाकि सभी स्तरों तक, पाठ्यचर्या और शिक्षण शास्त्र को एक मजबूत भारतीय और स्थानीय संदर्भ देने की दृष्टि से पुनर्गठित किया जायेगा। इसके अंतर्गत संस्कृति, परंपराएं, विरासत, रीति रिवाज, भाषा, दर्शन, भूगोल, प्राचीन और समकालीन ज्ञान, सामाजिक और वैज्ञानिक आवश्यकताएं, सीखने के स्वदेशी और पारंपरिक तरीके आदि सभी पक्ष शामिल होंगे। .... शिक्षा को इस तरह का आधार मिलने पर निश्चित रूप से अमूर्त चिंतन, नए विचारों और रचनात्मकता को निखरने का अवसर मिलेगा।’’ इस प्रकार सभी विषयों में भगवाकरण करने की कोशिश होगी। संघ द्वारा शिक्षा का भगवाकरण, उसमें फासीवादी और सांप्रदायिक विचारों, मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का काम परंपरा, भारतीय संदर्भ, संस्कृति, विरासत, स्वदेशी तरीके आदि के नाम पर ही किया जाता है। अभी तक इतिहास जैसे विषय ही संघ के निशाने पर रहे थे लेकिन अब सभी विषय उसके निशाने पर हैं। दीनानाथ बत्रा जो कि संघ के विचारक हैं उनकी ऐसी ही अनेक पुस्तकें गुजरात के स्कूलों में चलती हैं। अब ऐसी पुस्तकों को पूरी शिक्षा व्यवस्था में चलाने की कोशिश हो रही है। नेप में अन्य भारतीय भाषाओं को पढ़ाने, कक्षा 5 तक का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा में होने का जिक्र है लेकिन संस्कृत और संस्कृत साहित्य पर विशेष जोर देते हुए कहा गया है कि ‘‘..  इस प्रकार संस्कृत को, त्रिभाषा के मुख्यधारा विकल्प के साथ, स्कूल और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण, समृद्ध विकल्प के रूप में पेश किया जायेगा।.....’’ जाहिर है कि त्रिभाषा फार्मूले का जाप करते हुए संस्कृत को छात्रों पर जबरन थोपने के लिए ही इसे महत्वपूर्ण और समृद्ध विकल्प के रूप में पेश करने की बात की गयी है। संस्कृत आम बोल चाल की भाषा नहीं रह गयी है लेकिन फिर भी संघी इसे थोपने का कोई प्रयास नहीं चूकते। संस्कृत से कहीं ज्यादा बोलचाल की भाषा उर्दू का जिक्र तक नहीं किया गया है। इसके अलावा नेप में समाजवाद, लोकतांत्रिक मूल्यां, धर्मनिरपेक्षता, धर्म की आजादी पर पूरी तरह चुप्पी साधी गयी है। 

अन्य बातें-ऑनलाइन शिक्षा, स्कूल कॉम्प्लेक्स की अवधारणा को लागू करने के जरिये शिक्षा के खर्च में कटौती करने की योजना है। हर स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा आदि के जरिये भी ऐसा किया जायेगा और स्कूल कॉम्प्लेक्स जिसमें आंगनबाड़ी से लेकर माध्यमिक स्तर के स्कूलों को मिलाकर इनके संसाधनों का मिलकर प्रयोग किया जायेगा। इसके जरिये अब हर स्कूल के लिए सभी संसाधन - अध्यापक, लैब, मैदान, आदि- नहीं जुटाये जायेंगे बल्कि कॉम्प्लेक्स बनाकर सामूहिक रूप से इनका इस्तेमाल होगा। इसमें अध्यापक तो दूसरे स्कूल जाकर पढ़ा सकते हैं परंतु छोटे विद्यार्थी अन्य स्कूलों के संसाधनों का कैसे प्रयोग कर पायेंगे? स्पष्ट है कि विद्यार्थी अपने स्कूल से दूर दूसरे स्कूलों के लैब, कंप्यूटर, खेल का मैदान, खेल सामग्री, किताबें आदि का इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे।

उच्च शिक्षा में स्वायत्ता के नाम पर उसके ढांचे को और केन्द्रीकृत करने की योजना सरकार ने नेप में ली है। शिक्षा संस्थानों को संचालित करने के लिए बोर्ड आफ गवर्नर्स (बीओजी) का गठन किया जायेगा, जो सभी निर्णय लेगें। संस्थानों में सत्ता पर काबिज दल की नीतियों को लागू करने की नीति पेश करते हुए नेप कहती है कि (19.2) ‘‘उच्चतम गुणवत्ता का नेतृत्व सुनिश्चित करने और उत्कृष्टता की संस्थागत संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सभी उच्चतर शिक्षण संस्थानों में उपाय किये जाएंगे। इस तरह के कदम के लिए  तैयार संस्था को उपयुक्त ग्रेडेड प्रत्यायन प्राप्त होने पर, योग्य, सक्षम और समर्पित व्यक्तियों जिनमें सिद्ध क्षमताएं और प्रतिबद्धता की एक मजबूत भावना होगी, के समूह से मिलकर बोर्ड आफ गवर्नर्स(बीओजी) स्थापित किया जायेगा। किसी संस्था के बीओजी को किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त संस्था को संचालित करने, संस्था के प्रमुख सहित सभी नियुक्तियां करने और शासन के संबंध में सभी निर्णय लेने का अधिकार होगा। ....’’ इस प्रकार बीओजी ही किसी उच्च शिक्षा संस्थान का सर्वेसर्वा होगा। 

स्नातक को 4 वर्ष का कर दिया गया है, जिससे छात्रों पर आर्थिक भार बढ़ेगा। इन 4 वर्षों के बीच में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा आदि लेकर का बाहर निकलने का इंतजाम किया गया है। एम फिल को खत्म कर दिया गया है। शोध को केन्द्र सरकार के नियंत्रण में करने के प्रावधान किये गये हैं। अब सरकार की ‘चाहत’ के अनुसार ही शोध होगा या शोध के लिए पैसा मिलेगा। इस पूरी नीति में छात्रों के जनवादी अधिकारों, छात्र संघ आदि की कोई चर्चा नहीं है। नेप द्वारा कैंपस डेमोक्रेसी जैसे ज्वलंत मुद्दे पर कोई चर्चा न करना संकेत करता है कि कैंपसों में सरकार और सत्ताधारी दल का दबदबा और नियंत्रण और बढ़ेगा। 

इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आज के दौर में पूंजीपति वर्ग के हितों को साधने, शिक्षा के निजीकरण को और परवान चढ़ाने, शिक्षा के मद में और कटौती करने, उच्च शिक्षा के ढांचे को और केन्द्रीकृत करने तथा शिक्षा के भगवाकरण के एजेण्डे को पूरा करने का दस्तावेज है। यह शिक्षा नीति पूरी तरह छात्र विरोधी, अध्यापक विरोधी और जन विरोधी है। इसलिए इसका पुरजोर विरोध करना पूरे छात्र समुदाय की जरूरत है। यह पुरजोर विरोध ही संघ-भाजपा को अपनी इस जन विरोधी शिक्षा नीति को धरातल पर उतारने से रोक सकता है। 

वर्ष- 11 अंक- 3 व 4 (अप्रैल-सितंबर, 2020)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें