ब्राजील छात्र-युवा प्रदर्शन
दरअसल अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ाने जिसे ‘विकास’ के नाम से भी शासकवर्ग संबोधित करते हैं आदि-आदि का हवाला देते हुए ब्राजील की सरकार ने कई ‘सुधार’ पेश किये। जिसमें शिक्षा बजट में भारी कटौती भी शामिल है। इसके तहत केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों-हाईस्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक- में 30 प्रतिशत की बजट कटौती की घोषणा कर दी गयी। शिक्षा पर इस हमले की जद में 60 विश्वविद्यालय जिसमें, 12 लाख छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं तथा 40 माध्यमिक तकनीकि स्कूल आ जाने हैं। इस घोषणा के साथ ही नेशनल एजूकेशनल वर्कर्स कन्फेडरेशन और नेशनल स्टूडेंट यूनियन ने प्रदर्शन की घोषणा कर दी।
बजट कटौती एक तरह का हमला था तो शिक्षा पर फासीवादी हमला दूसरी तरह का। शिक्षा पर फासीवादी हमले करते हुए सरकार ने घोषणा की कि पूरे देश भर में समाजशास्त्र और दर्शन के विभागों को भी फंड उपलब्ध नहीं कराया जायेगा। समाजशास़्त्र और दर्शन जैसे सामाजिक विज्ञान के विषयों पर फासीवादी हमला कोई नया हमला नहीं है। न ही यह मात्र ब्राजील के शासक द्वारा किया जा रहा है। भारत में भी ऐसा ही फासीवादी हमला जारी है। विज्ञान, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय फासीवादियों के लिए घृणा के पात्र रहे हैं और हैं। ब्राजील की सरकार ने जब समाजशास्त्र और दर्शन जैसे विषयों पर बजट उपलब्ध नहीं कराने की घोषणा की तो उसने कहा कि ‘‘वह इसमें रूचि नहीं रखती कि किसानों के बच्चे मानव विज्ञान की डिग्री के साथ घर लौटें।’’ सरकार के बयान से यह साफ जाहिर है कि सरकार खुद ज्ञान की सबसे बड़ी दुश्मन बनने पर आमादा है। सरकार के इस घृणित रुख ने छात्रों के आक्रोश को और बढ़ा दिया। यह आक्रोश 15 मई के प्रदर्शनों के रूप में कॉलेज की कक्षाओं से बाहर सड़कों पर आ गया।
15 मई के दिन शिक्षा पर बोले गये इस हमले के विरोध में लगभग 10 लाख लोग सड़कों पर उतर आये। ये प्रदर्शन पूरे ब्राजील के 200 से ज्यादा शहरों में हुए। साउ पावलो में 15 मई की सुबह के शुरूआती घण्टों से ही हाईस्कूल के छात्रों ने मोर्चा लेना शुरू कर दिया था। ये छात्र सरकारी और निजी हाईस्कूलों के छात्र थे। हाईस्कूल के ये छात्र, जिन्होंने साउ पावलो में सुबह से ही प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था और जगह-जगह सड़कों को ब्लाक कर दिया था। दिन ढलने तक 1 लाख से ज्यादा लोग प्रदर्शन में उतर चुके थे। इनमें से अधिकांश सरकारी विश्वविद्यालयों के छात्र थे। म्यूनसिपल और सरकारी स्कूलों के अलावा निजी विश्वविद्यालयों के अध्यापक व छात्र साउ पावलो के इस प्रदर्शन में शामिल हुए। प्रदर्शन में शामिल हुए लोग पिछले वर्षों में शिक्षा पर बोले विभिन्न हमलों का प्रतिरोध कर रहे थे। उनके बैनर, उनके नारे इस बात को अच्छे से बयां कर रहे थे कि पिछले वर्षों में ब्राजीली छात्रों ने क्या-क्या झेला है। उनके बैनरों में शिक्षा के सैन्यीकरण का विरोध, जलवायु विज्ञान पर हमले, पूरे देश के विज्ञान पर होने वाले बजट में आधी कटौती का विरोध, कार्यपरिस्थितियों को और बुरा किये जाने का विरोध आदि प्रमुख रूप से थे।
ये प्रदर्शन हाल के वर्षों में हुए प्रदर्शनों में न सिर्फ सबसे बड़ा प्रदर्शन साबित हुआ बल्कि राष्ट्रपति के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन भी साबित हुआ।
पिछले वर्षों में शिक्षा में बजट कटौती और शासकों के अपने हितों को बढ़ाने वाले ‘शैक्षिक सुधार’ किये जाते रहे हैं। शिक्षा पर लगातार जारी ये हमले छात्रों के भीतर गुस्से को लगातार बढ़ाते जा रहे थे। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप छात्रों का आक्रोश भी पिछले वर्षों में फूटता रहा है। पिछले वर्षों(2017) में कॉरपोरेटों के हितों को साधने वाला हाईस्कूल रिफार्म नामक ‘शैक्षिक सुधार’ ब्राजीलियन कांग्रेस में पास किया गया और इसको अगले वर्ष व्यवहार में उतारा जाना था। 2016 में एक बिल पास कर अगले बीस वर्षों में सामाजिक मदों में भारी कटौती कर दी गयी। जिसके तहत इन 20 वर्षों में शिक्षा पर 240 अरब अमेरिकी डालर(240 बीलियन) की कटौती की जानी है। पिछले एक चौथाई सदी में ब्राजीली शिक्षा में यह सबसे बड़ा परिवर्तन है। यह बात जगजाहिर है कि शिक्षा में इतनी बड़ी कटौती का परिणाम शिक्षा का निजीकरण और तेज हो जाना होगा। बजट कटौती के परिणामस्वरूप सरकार नये स्कूल नहीं खोलेगी और पुराने स्कूलों की हालत और बुरी हो जानी है। इसका अवश्यंभावी परिणाम निजी कालेजों के खुलने की गति को तेज कर देगा और स्कूल खोलने वाले पूंजीपति मालामाल हो जायेंगे।
2015 के बाद से ही छात्रों के भीतर एक तीव्र आक्रोश देखने को मिला है। जगह-जगह छात्र आंदोलित हुए हैं। 2015 में साउ पावलो के 200 माध्यमिक स्कूलों पर वहां के छात्रों द्वारा कब्जा किया गया। वहीं पूरे ब्राजील में 2016 में हाईस्कूल रिफार्म बिल और सामाजिक मदों में बजट कटौती के विरोध में 1000 से ज्यादा विश्वविद्यालयों व स्कूलों पर छात्रों द्वारा कब्जा किया गया।
छात्रों के इस जुझारूपन और आक्रोशित होने से निपटने के लिए सरकार ने और तेजी से फासीवादी कदम उठाये। उसने छात्रों द्वारा निभाई जा रही इस अग्रणी भूमिका से निपटने की कोशिश स्कूल बिदआउट(पालीटिकल) पार्टीज नामक बिल से की। इस बिल को यह कहकर थोपा गया कि विश्वविद्यालयों के अध्यापक छात्रों को पढ़ाने के बजाय मार्क्सवादी विचारों पर खड़ा कर रहे हैं। यह बिल पहले ही दर्जनों सिटी कौंसिलों, राज्य विधानसभाओं और नेशनल कांग्रेस में पेश किया जा चुका है। यह बिल राजनैतिक और वैचारिक सिद्धांतों को न सिर्फ प्रतिबंधित करता बल्कि इनको आपराधिक भी बना देता है। जाहिर है कि इससे सरकार और राष्ट्रपति बोलसोनारो का विरोध करने वाले और सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को निशाना बनाया जायगा। जैसा की आज जो माहौल भारत में है वही ब्राजील का है। यहां सरकार, मोदी व सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले देशविरोधी घोषित किये जा रहे हैं तो ब्राजील में इसकी पूरी तैयारी है। ट्वीटर पर राष्ट्रपति बोलसोनारो ने ट्वीट कर कहा कि ‘‘ अध्यापक कक्षाओं में छात्रों को पढ़ने, लिखने और गिनने के बजाय मार्क्सवादी वैचारिक सिद्धांतों को पढ़ा रहे हैं।’’ यहां भी मार्क्स और मार्क्स की शिक्षाएं शासकों को डरा रही हैं। वे आंदोलित छात्रों से इतना भयभीत हो गये कि ऊलजलूल बातें करने लगे और दमननकारी फासीवादी बिल लाने पर मजबूर हो गये। छात्रों के आंदोलन को तोड़ने में असफल होने की हताशा में उनको बिल बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह ब्राजील के छात्र और उनके तेवर भविष्य में बतायेंगे कि शासक अपनी मंशाओं को कितना मुकाम तक पहुंचा पाते हैं। इसकी बहुत संभावनाएं हैं कि यह बिल छात्रों को रोकने के बजाय और उग्र आंदोलन करने की ओर बढ़ा देगा। हो यह भी सकता है कि बोलसोनारो को सत्ता से ही बेदखल होना पड़े। ब्राजील के आज जो हालात हैं वे इसी ओर इशारा कर रहे हैं। (वर्ष- 10 अंक-4 जुलाई-सितम्बर, 2019)
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