शनिवार, 25 जनवरी 2020

हमारा कहना है
बढ़ते फासीवाद को मुंहतोड़ जवाब देना होगा!

इस वर्ष संपन्न हुए आम चुनाव में भाजपा को एक बार फिर से प्रचंड बहुमत मिला। मोदी सरकार की वापसी हो गयी। यह कोई छुपा रहस्य नहीं है कि भाजपा को कैसे प्रचंड बहुमत मिला और मोदी सरकार की कैसे वापसी हुई।

आम चुनाव के कई माह पहले से ही उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद की बयार बहायी जा रही थी। और यह बयार एक आंधी में तब बदल गयी जब पुलवामा की आतंकी घटना घटी। उसके बाद उग्र राष्ट्रवाद का ऐसा माहौल बना कि वे सारे मुद्दे हवा हो गये जिनके कारण मोदी सरकार मुश्किलों में घिर गयी थी। 


ये मुद्दे क्या थे? ये मुद्दे थे : देश में भयानक ढंग से बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की बढ़ती आत्महत्याएं तथा उनका आक्रोश, धीमी विकास दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था और मजदूरों की बुरी हालत, समाज में दलितों व अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले इत्यादि।

यह सरकार जब पहली बार अस्तित्व में आयी थी तब भी और जब दूसरी बार अस्तित्व में आयी तब भी भारत के बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने बेहिसाब पैसा इनके चुनाव प्रचार के लिए दिया। पहली बार भाजपा का चुनावी खर्च 30,000 करोड़ रूपये के करीब था तो दूसरी बार यह राशि इसके डेढ़ गुने से दो गुने के करीब पहुंच गयी। दूसरी बार तो सरकार के पास सरकारी खजाना भी था जिसका इस चुनाव में जमकर इस्तेमाल हुआ। देश के बड़े पूंजीपतियों ने अपने टी.वी. चैनल, अखबार पूरे तौर से मोदी के चुनाव प्रचार में लगा दिये। जो कसर बची थी उसके लिए रातों-रात एक ‘नमो टीवी’ चैनल प्रकट हो गया और ठीक अंतिम चुनावी चरण के बाद लुप्त हो गया। कोई नहीं जानता कि किसने वह चैनल शुरू किया, किसका पैसा लगा और वह क्यों बंद हो गया। 

मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक से बढ़कर एक तुगलकी फैसले लिये। मोहम्मद बिन तुगलक इतिहास में ऐसा शासक रहा है जो कभी देश की राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद ले गया तो कभी दिल्ली वापस लाया तो कभी उसने चमड़े के सिक्के चला दिये। आधुनिक तुगलक ने इसी तरह के कई कारनामे किये। नोटबंदी का फैसला इसकी सबसे बड़ी मिसाल बना। जीएसटी इसकी दूसरी मिसाल थी। और इसी तरह के कारनामे विदेश नीति के सन्दर्भ में किये। कभी यकायक पाकिस्तान जाकर भ्रष्ट नवाज शरीफ की मां के पैर छुए तो कभी पाकिस्तान में कथित सर्जिकल स्ट्राइक किये। कभी कुछ तो कभी कुछ। 

भारत की जनता को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में क्या मिला? भारत के छात्रों-नौजवानों को क्या मिला? झूठे आश्वासन और जुमले। ऐसे जुमले जिन्हें बाद में इन्हें कहना पड़ा कि वे तो चुनाव के समय किये गये ऐसे वायदे थे जिनको इन्होंने ऐसे ही उछाल दिया था। और यह तब कहा जब ‘अच्छे दिन’ का जुमला इनके गले की हड्डी बन गया था। पन्द्रह लाख रूपये हर खाते में न कभी आने थे न कभी आये। और इस चुनाव में ऐसे वायदों से परहेज किया पर नये जुमले उछाल दिये। और  सच यह है कि चुनाव के पहले ये डरे हुये थे। चुनाव में जीत हासिल करने  के लिए इन्होंने हर तिकड़म भिड़ायी। पाखण्ड और प्रपंच की ऐसी मिसालें कायम की कि विरोधी हतप्रभ रह गये। इनका डर ही था कि जिसने इन्हें जद(यू), शिवसेना, लोजपा के सामने झुकने को मजबूर किया। बिहार और महाराष्ट्र में इन्हें ज्यादा सीटें दीं। 

और अब, जब से चुनाव जीतकर आये तब से इनके पांव जमीन पर नहीं हैं। ये एक से बढ़कर एक जनविरोधी फैसले ले रहे हैं। भारत की मेहनतकश जनता के हाथ से वह हर अधिकार छीन लेना चाहते हैं जो उन्होंने वर्षों के भीषण जांबाज संघर्षों से हासिल किये थे। श्रम अधिकारों को न्यून बना देने के लिए इन्होंने श्रम कानूनों में व्यापक सुधार शुरू कर दिये हैं। अपने विरोधी विचारों को आतंकवाद के नाम पर चुप करा देने के लिए इन्होंने यू.ए.पी.ए. में घातक बदलाव कर दिये हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार हासिल करने के भारत के मेहनतकशों के अधिकारों का कत्ल करने के लिए निजीकरण को बहुत तेजी से लागू कर दिया है। और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर का मनमाना विभाजन कर दिया है। वहां के नागरिकों के जनवादी अधिकारों का सरेआम गला घोंट दिया गया है।

भारत के छात्रों-नौजवानों को शिक्षा व रोजगार से वंचित करना जो कि उनका पैदाइशी हक है। भारत के मजदूरों से उनके वाजिब मजदूरी पाने और यूनियन बनाने के हक को छीनना एकदम गलत है। किसी भी व्यक्ति को अपने विचार को प्रकट करने व संगठन बनाने से यह कहकर रोकना कि यह आतंकवाद है, गलत है। जम्मू और कश्मीर के लोगों की इच्छा के विरूद्ध उनके राज्य का विभाजन और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना सरासर मनमानापन है, तानाशाही है। 

ये सब बातें देखने में भले ही जुदा-जुदा हों पर हकीकत में एक ही हैं। इन सब का मतलब है भारत के मजदूरों, किसानों, नौजवानों और उत्पीड़ितों के जीवन को पहले से और अधिक बदतर बनाना। मुश्किलों में डालना है। यह और कुछ नहीं भारत की बरबाद होती पूंजीवादी व्यवस्था को हिटलरी ढंग के फासीवाद के जरिये बचाने की कवायद है। यह हिन्दू फासीवादी संगठनों के द्वारा भारत के सबसे बडे़ पूंजीपतियों-अंबानी, टाटा आदि की सेवा करना है।

ऐसे कठिन और कठिन होते जाते समय में हमारा कहना है कि हम छात्रों, नौजवानों को देश को एक नयी राह दिखानी होगी। बढ़ते फासीवाद को मुहंतोड़ जवाब देना होगा। इन्हें बताना होगा कि भारत में खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, अशफाक उल्ला खां, भगत सिंह अतीत में नहीं, आज के दिन भी पैदा हो सकते हैं। ऐसे लोग फिर से पैदा हो सकते हैं, जिनके पूर्वजों ने कभी सूरज न डूबने वाले साम्राज्य के मालिकों का सूरज भारत में डूबने को मजबूर कर दिया था। बिट्रिश साम्राज्यवाद की ईंट से ईंट बजा देने वालों के वारिस होने के नाते हमारे लिये ये कतई मुश्किल नहीं है कि हम भारत को फासीवाद के गड्ढे में गिरने से बचा दें और नये सामाजिक व्यवस्था की ओर बढ़ा दें। समाजवादी भारत की राह खोल दें। बस हमें यह ठान लेना होगा।                       (वर्ष- 10 अंक-4 जुलाई-सितम्बर, 2019)

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