शनिवार, 25 जनवरी 2020

भारत  में बढ़ती बेरोजगारी 
वे आंकड़े जो उन्हें पसंद नहीं

एक टीवी कार्यक्रम में भाजपा के एक नेता ने कहा कि ‘‘देश की जनता ने इस चुनाव में बेरोजगारी, महंगाई... इत्यादि मुद्दों को नकारते हुए राष्ट्र-राष्ट्रवाद पर वोट किया।’’ नेता जी के बयान के मायने है कि देश में बेरोजगारी मुद्दा नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि भाजपा अपने पूरे शासन काल के दौरान बेरोजगारी को छिपाती रही। यह यहां तक पहुंचा कि मोदी सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने ही बंद कर दिये। 

चुनाव से पूर्व आ चुकी राष्ट्रीय सैंपल सर्विस संगठन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट, जिसमें उसने देश में बेरोजगारी की भयावहता को दिखाया था। रिपोर्ट कहती थी कि पिछले 45 सालों में बेरोजगारी की दर मोदी राज में सबसे अधिक है। यह लगभग 6 प्रतिशत से अधिक है। इस रिपोर्ट को मोदी सरकार दबाये रही। इसे उसने जारी नहीं होने दिया। और चुनाव जीतते ही यह रिपोर्ट जारी कर दी। 


बेरोजगारी को इन नेता द्वारा ही नहीं मोदी द्वारा भी नहीं स्वीकारा गया। मोदी ने पकौड़ा रोजगार की बात की, मुद्रा लोन की बात की। मुद्रा लोन को तो बेरोजगारी के खिलाफ कारगर हथियार की बातें हुईं। गुणवत्ता की बात हुई और कौशल विकास के नाम पर संस्थान खोले फिर इन संस्थानों की कामयाबी पर तमाम लफ्फाजियां हुईं। इन लफ्फाजियों और सच को सिरे से नकार देने के विपरीत हकीकत क्या है?

हकीकत है- रेलवे ग्रुप की सी व डी के 90 हजार पदों के लिए 2.80 करोड़ बेरोजगार नौजवान आवेदन करते हैं। मुंबई पुलिस की कॉस्टेबल के 1137 पदों के लिए 10 लाख आवेदन होते हैं। जिसमें एम.बी.ए., इंजीनियरिंग, पोस्ट ग्रेजुएट तक फार्म भरते हैं। उत्तर प्रदेश में चपरासी के 62 पदों के लिए 81700 बेरोजगार नौजवान आवेदन करते हैं। आवेदन करने वालों में यहां भी ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट आदि रहते हैं। ये तथ्य अपने आप में बता देते हैं कि भारत में बेरोजगारी की क्या स्थिति है। 

इण्टरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन ने एक रिपोर्ट में कहा कि 2018 में भारत में एक करोड़ 83 लाख बेरोजगार है, जो कि 2019 में एक करोड़ 89 लाख तक पहुंच जायेगी। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन यही कहता है कि भारत में युवा बेरोजगारी 16 फीसदी है। पढ़े-लिखे शिक्षित नौजवानों में भी बेरोजगारी की दर 2011-12 में 6.1 फीसदी, यह महिलाओं में 7.7 फीसदी तक है। सेंटर फॉर मानिटरिंग इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार भी 2017 से 2018 के दौरान बेरोजगारी दर 4.71 से बढ़कर 7.3 फीसदी हो चुकी है। तमाम सरकारी व गैर सरकारी जांच एजेन्सियां अपनी रिपोर्ट में बेरोजगारी की  भयावहता को दर्शा रही हैं, किंतु सरकार बेपरवाह बनी रही है। 

रोजगार देना तो दूर की बात रही जो रोजगार कर भी रहे थे उनकी नौकरियां मोदी राज में खत्म हो गयीं। बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक खबर के मुताबिक 2014-15 में 8 सरकारी व निजी कंपनियों में 10000 लोगों को काम से निकाला गया। तीन सरकारी कंपनियों में लगभग 55000 नौकरियां कम कर दी गयीं। ऐसे ही वेदांता में 49741, फ्यूचर एंटरप्राइजर में 10539, फोर्टिस हैल्थकेयर में 10539 और टेक महिन्द्रा में 10470 कर्मचारियों की छंटनियां कर दी गयीं। 

मोदी सरकार द्वारा मुद्रा लोन से जुड़ी उपलब्धियों की काफी लफ्फाजी की गयी। भाजपा के अनुसार इस योजना से अगणनीय रोजगार पैदा हुआ। कुछ नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि भारत में अब बेरोजगारी की कोई समस्या नहीं बची है। यह अगणनीय रोजगार कैसे पैदा हुआ? कहा गया कि एक व्यक्ति को लोन मिला तो उसने तीन को रोजगार दे दिया।  उदाहरण के लिए यदि किसी ने लोन लेकर आटो खरीदा तो पेट्रोल भरने के लिए फिलिंग बॉय को नौकरी मिली ओर एक अन्य को आटो की मरम्मत का काम मिला। इस हास्यास्पद तर्क से अलग हटकर पहले भारत में स्वरोजगार की स्थिति को देखते हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट बताती है कि कुल श्रम बल का 50.72 फीसदी श्रम बल स्वरोजगार में लगा हुआ है। 29.65 फीसदी कैजुअल लेबर और मात्र 19.63 फीसदी ही ऐसे हैं जो नियमित वेतन पाते हैं। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां भी 2011-12 में 62.2 फीसदी लोग स्वरोजगार, 26 फीसदी कैजुअल और 11.71 फीसदी नियमित वेतन के ढंग से काम कर रहे हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है कि जिस देश में इतनी भारी संख्या में लोग पहले से ही स्वरोजगार में लगे हां वहां स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली बात कितनी बेमानी है। 

दरअसल यह योजना बेरोजगारों को रोजगार न दे पाने की भी स्वीकारोक्ति है। भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट से गुजर रही है तो इस कारण देश में रोजगार पैदा नहीं हो रहा है। सरकार भी सरकारी संस्थानों में खर्च में कटौती के नाम पर ठेका, संविदा प्रथा लागू किये हुए है। नई भर्तियां सरकारी विभागों में न के बराबर हो रही हैं। तमाम पदों को तो सरकार हमेशा के लिए खत्म कर दे रही है। कुल मिलाकर ये सारे कदम बेरोजगारी को भयानक स्तर पर बनाये हुए हैं। इन प्रतिकूल हालात में सरकार स्वरोजगार या मुद्रा लोन की बातें कर गरम हो रही स्थिति पर पानी के छींटे मार रही है। 

उपरोक्त तथ्य समाज में बेरोजगारी की स्थिति को बयां करते ही हैं साथ ही सरकार के नीम हकीमी नुस्खांं को भी दिखाते हैं। बाहर से भाजपा-मोदी सरकार कितनी भी लफ्फाजी करे किंतु वे समाज में फैलती बेरोजगारी से बेहद खौफजदा है। इनके पास बेरोजगारी का कोई समाधान न होने के कारण ये तमाम तरह की लफ्फाजी, झूठ-प्रपंच रच रहे हैं। फर्जी मुद्दों को नौजवानों के बीच डालकर, उन्हें जाति-धर्म में बांटकर वे बेरोजगारी के खिलाफ वास्तविक संघर्षों को रोकना चाहते हैं। साथ ही कानून व पुलिस को और मजबूत कर ये बेरोजगारों-नौजवानों के दमन की भी तैयारी पर जुटे हुए हैं। आज भी जब जहां दमन करना होता है तो ये इससे जरा भी परहेज नहीं करते हैं।

किंतु सरकार की ये बांटने की साजिश और दमन की नीति बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे सकती। कुछ समय के लिए उन्हें भुलावे में रख सकती है किंतु खामोश नहीं कर सकती।   (वर्ष- 10 अंक-4 जुलाई-सितम्बर, 2019)

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