स्वास्थ समस्या
पूंजीवादी कारोबार या समाजवादी समाधान
शारीरिक मानसिक स्वास्थ स्वस्थ समाज के निर्माण का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। सामाजिक परिवेश, ऐतिहासिक विरासत समाज निर्माण में भूमिका निभाते हैं। किन्तु सचेत सामाजिक परिवर्तन में सामाजिक संस्थाओं की निर्णायक भूमिका होती है। समाज के पूरे ढांचे में बंद लोगों द्वारा मुनाफा बटोरने की व्यवस्था में सम्पन्न लोगां को ही हर तरह की सुविधाऐं मिल पाती हैं। भारी आम आबादी इन सुविधाओं से वंचित रहती है। वर्तमान बाजारीकरण, निजीकरण के दौर में स्वास्थ सेवाओं का बोझ विश्वभर की आम जनता के लिए समस्या बना हुआ है। थोड़े लोगों के मुनाफे की हवश वर्तमान समाज को संकट में डाल रही है। यह भावी पीढ़ियों के भी शारीरिक मानसिक स्वास्थ का संकट बढ़ा रही है।
सामाजिक स्वास्थ के महत्वपूर्ण मामले को थोड़े लोगों के मुनाफा बटोरने का व्यवसाय बनाने के स्थान पर उसे ‘‘सामाजिक सेवा’’ के उद्देश्य को समर्पित कर दिया जाय तो यह बेहतर सामाजिक जीवन में योगदान कर सकता है। यह सामाजिक सेवा सर्वव्यापी सेवा हो। यह परोपकार या दया भाव में लिपटी न हो बल्कि स्वस्थ नागरिक के अधिकार के साथ प्रतिबद्ध हो।
सोवियत समाजवादी संघ ने बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवादी चिकित्सा सेवा को संगठित किया। प्रथम विश्वयुद्ध की तबाही बरबादी से समाज त्रस्त था। जारशाही जमाने की निरंकुशता से गरीबी, बदहाली छायी हुई थी। गृहयुद्ध से उत्पादन ठप्प पड़ा था। युद्ध से लौटे घायलों की भारी संख्या कराह रही थी। अस्वास्थकर परिवेश में महामारियां, प्लेग, टी.बी., यौन जनित रोग भारी विपदा बने हुए थे। जनता दरिद्रता में घिरी हुई थी। सभी तरह की बीमारियों में से 25 प्रतिशत बीमारियां आर्थिक अभावों और रहन-सहन के बुरे हालातों से जुड़ी थीं।
सोवियत समाजवादी राज्य ने इन चुनौतीभरी स्थितियों में सोवियत समाजवादी चिकित्सा सेवा को संगठित किया। उसने एक सर्वव्यापी स्वास्थ सेवा का सार्वभौमिक आधार निर्मित किया। उसकी दृष्टि संक्रामक रोगों से निबटने तक सीमित नहीं रही। उसने अपने सरोकार को तात्कालिक बीमारी के त्वरित उपचार से भी आगे की ओर फैलाया। और वे सभी कमियां जो आदमी को अशक्त कर देती थीं उसे भी अपने सरोकार का हिस्सा बनाया।
मानसिक शारीरिक बीमारियों को प्राकृतिक परिणाम बताने वाली धारणाओं को उन्होंने असंगत ठहराया। सोवियत समाजवादी चिकित्सा सेवा ने मानव के सम्पूर्ण जीवन यहां तक कि प्रसवपूर्व के काल को अपने परीक्षण, बचाव, उपचार की परिधि में लिया।
समाजवादी चिकित्सा सेवा ने जन हितकारी सेवा में आयु, लिंग, राष्ट्रीयता, धार्मिकता, पेशा, पद और प्रभाव को भेदभाव का आधार नहीं बनने दिया। सोवियत संघ का विशाल क्षेत्र प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक विस्तारित था। यहां अनेकों नस्लें, राष्ट्रीयताऐं, सौ से अधिक भाषायी लोग थे। ये कभी भेदभाव का कारण नहीं बने। समाजवाद की सभी सार्वजनिक सेवाओं की तरह चिकित्सा सेवा मजदूरों, किसानों समेत सभी के लिए निशुल्क रही। यहां तक कि जो सामर्थ्यवान थे उनके लिए भी समान रूप से निशुल्क सेवा उपलब्ध रही।
सोवियत समाजवादी जन कमिसारियत ने 1918 में घोषित किया कि चिकित्सा का समाजवादीकरण उनका लक्ष्य है। इसका अर्थ था कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि हर व्यक्ति को उसकी आवश्यकता पर निशुल्क सर्वोत्कृष्ट चिकित्सा उपचार उपलब्ध कराये।
उन्होंने ऐलान किया कि सभी निजी अस्पताल, चिकित्सा का व्यवसाय मुनाफे के लिए करने वाले, समाजवादी चिकित्सा व्यवस्था स्थापित होते ही गायब हो जायेंगे। और उन्होंने यह किया।
1. समाजवादी चिकित्सा व्यवस्था के संगठित ढांचे का 1921 में निर्माण आरंभ किया। उन्होंने सभी निजी अस्पतालों, आरोग्यशालाओं, दवा स्टोरों को राज्य की सम्पत्ति बना दिया। सभी चिकित्सकों, फील्ड स्टाफ, नर्सों, फार्मेसिस्टों को नागरिक सेवक (सरकारी कर्मचारी) बना दिया। कर्तव्यों का मानकीकरण साथ ही साथ पेशे की जिम्मेदारी के अनुरूप वेतनों का भी मानकीकरण कर दिया।
2. गांवों, नगरों सहित बड़े शहरों तक के लिए संगठित चिकित्सा सेवा स्थापना आरंभ कर दी। यह व्यवस्था समूचे संघ के घटक राष्ट्रों तक कोने-कोने तक पहुंचा दी गयी। इसने सम्पूर्ण आबादी के स्वास्थ पुनर्रोद्धार को अभियान बनाया। केवल बीमारी का इलाज तक सीमित न रहकर समाज के स्वास्थ को बेहतर बनाना लक्ष्य बनाया।
3. उन्होंने तय किया कि चिकित्सा सेवा रोग निरोध के लिए लक्षित हो। किसी व्यक्ति के शारीरिक मानसिक स्थिति मानक स्तर से कम पाये जाने पर उसका तुरंत निदान (Diagnosis) हो।
4. चिकित्सा विज्ञान के हर विभाग के लिए विस्तृत शोध संस्थान स्थापित किए जायें।
5. सम्पूर्ण आबादी की वास्तविक पहुंच में कुशलतम उपचार हो, सोवियत समाजवादी चिकित्सा व्यवस्था ने यह कर दिखाया। उसने 1921 के बाद के पांच वर्षों में धन की व्यवस्था, स्टाफ, संस्थानों को उपकरणों से सज्जित करने, विशेषज्ञों और सामान्य सेवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल कर लिया। साल दर साल चिकित्सा की हर शाखा उन्नत होती गई और सोवियत समाजवादी चिकित्सा सेवा संसार भर की सर्वोत्कृष्ट चिकित्सा सेवा बन गई। यथार्थ मानव सेवा। ग्राम सोवियतों से फैक्ट्री-कारखानों तक प्राथमिक निशुल्क चिकित्सा उपलब्ध हो गयी।
मातृ-शिशु कल्याण, क्रेच व्यवस्था, बच्चों की देख-रेख, पालन-पोषण की हर ओर निशुल्क व्यवस्था लागू हो गयी। सभी बड़े शहरों में सुसज्जित अस्पताल स्थापित हो गये। चिकित्सा के उड़नदस्तों की व्यवस्था सक्रिय हो गयी। शोध संस्थानों, चिकित्सा शिक्षा संस्थानों का कारगर ढांचा खड़ा हो गया।
महत्वपूर्ण यह भी है कि यह सारी संगठित चिकित्सा व्यवस्था के संचालन, नियमन में व्यापक जन समुदाय की भागीदारी अहम हिस्सा रही।
सोवियत नेताओं ने ठीक ही कहा था कि स्वस्थ समाज का निर्माण सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया जा सकता है। और उन्होंने यह कर दिखाया। (वर्ष- 10 अंक-4 जुलाई-सितम्बर, 2019)
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