रविवार, 26 जनवरी 2020

दुर्गा भाभी 
एक साहसी, अविस्मणीय क्रांतिकारी

हमारे देश के स्वाधीनता आंदोलन ने लाखों क्रांतिकारियों को जन्म दिया। भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, भगवती चरण बोरहा आदि क्रांतिकारियों को पढ़ते हुए हम कई दफा एक नाम बार-बार सुनते हैं, वह नाम है दुर्गा भाभी का। दुर्गा भाभी एक साहसी क्रांतिकारी के तौर पर हमेशा आंदोलन के साथ खड़ी रहीं। विभिन्न तरीकों से क्रांतिकारियों की मदद करते हुए क्रांति के काम को आगे बढ़ाती रहीं। एक प्रमुख घटना जिसका बार बार जिक्र मिलता है वह है- भगत सिंह व उनके साथियों द्वारा सांडर्स की हत्या के बाद जब उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के जल्लाद खोज रहे थे। तब ऐसे मौके पर भगत सिंह व साथियों को पनाह देना, उनकी किसी किस्म की मदद करना बेहद खतरनाक और जानलेवा काम था। किन्तु ऐसे वक्त में दुर्गा भाभी जो एक दूध पीते बच्चे की मां थी, ने पूरे साहस का परिचय दिया और भगत सिंह और राजगुरू की जान बचायी। उन्हें सुरक्षित कलकत्ता पहुंचाया। दुर्गा भाभी की बदौलत ही क्रांतिकारी अंग्रेज जल्लादों की नाक के नीचे से निकल पाये।


दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती था। यह भगवती चरण बोहरा की पत्नी थीं। तमाम क्रांतिकारी गतिविधियों की योजना व छुपने के लिए आसरे के लिए कई क्रांतिकारी इनके घर में आते थे। जहां इन्हें पूरा सम्मान और दुलार मिलता था। क्रांतिकारी साथी प्रेम व सम्मान से इन्हें दुर्गा भाभी बुलाया करते थे और इसी कारण दुर्गा भाभी नाम इतिहास में अपने अर्थ में दर्ज हो गया। 

दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को शहजादपुर गांव अब कौशाम्बी जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनका परिवार एक जमींदार परिवार था। इनके पिता का नाम बाके बिहारी था जो इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे। लाहौर के भगवतीचरण बोहरा से दुर्गा भाभी का विवाह हुआ। यह परिवार भी एक सम्पन्न परिवार था। भगवतीचरण बोहरा के पिता रेलवे के ऊंचे पद पर थे। अंग्रेजों ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था। सम्पन्न परिवार के होने के बावजूद पति और पत्नी दोनों ही भारत की गुलामी से नफरत करते थे। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ क्रांतिकारी कामों से जुड़ गये थे। परिवार द्वारा निजी जीवन के संकट के समय के लिए 40 हजार और 5 हजार रुपये दम्पति को दिये गये थे। उस समय के हिसाब से यह भारी रकम दोनों ने देश के आजादी के आंदोलन में लगा दी।

भगवती चरण बोहरा व भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का प्रारुप बनाया। बोहरा संगठन में राजनीतिक तौर पर प्रखर बुद्धि के व्यक्तियों में माने जाते थे। और वे बम बनाने में भी माहिर माने जाते थे। 1920 से ही दुर्गा भाभी नौजवान भारत सभा की सदस्य रहीं। और संगठन द्वारा दी गयी जिम्मेदारियों को पूरे उत्साह व कुशलता से करती रहीं। दुर्गा भाभी एक मजबूत सहयोगी के तौर पर हमेशा भगवती चरण बोरहा और क्रांतिकारी आंदोलन के साथ खड़ी रहीं। भगत सिंह और साथियों को जेल से छुडवाने की योजना के तहत बम बनाते हुए 28 मई 1930 को भगवती चरण बोहरा शहीद हो गये। पति की मृत्यु के बाद भी दुर्गा भाभी लगातार क्रांतिकारी कामों में सक्रिय रहीं।

पंजाब के पूर्व गवर्नर लॉर्ड हैली जो कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एक जल्लाद के समान था। जो क्रांतिकारियों के बीच बहुत बदनाम अफसर था, की हत्या के प्रयास में दुर्गा भाभी शामिल रहीं। मुबंई के एक पुलिस अधिकारी पर दुर्गा भाभी द्वारा 9 अक्टूबर 1930 को गोली चलायी गयी। जिस कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और 3 साल की जेल भी हुई। दुर्गा भाभी राजस्थान से हथियारों को लाने ले जाने और क्रांतिकारियों के बीच पत्र व्यवहार का काम किया करती थीं। उन्हांने हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था।

दुर्गा भाभी जेल में कैद अपने साथियों को छुड़वाने के लिए भरसक प्रयास करती रहीं। जुलाई 1929 को उन्होंने भगत सिंह की फोटो लेकर लाहौर में एक बड़े जुलूस का नेतृत्व किया। गिरफतार क्रांतिकारियों को रिहा करने की मांग की। 62 दिनों के भूख हड़ताल के संघर्ष के बाद शहीद जतिन्द्र नाथ दास का अंतिम संस्कार लाहौर में करवाया गया। जिसके लिए दुर्गा भाभी को अंग्रेजों से बहुत संघर्ष करना पड़ा।

देश की आजादी के लिए दुर्गा भाभी का साहसी संघर्ष हमेशा अविस्मर्णीय रहेगा। बिना ऐसे साहसी क्रांतिकारियों के शायद कभी देश आजाद ही ना हो पाता, और हम गुलाम बने रहते। 1940 में दुर्गा भाभी ने लखनऊ में पहला मांटेसरी स्कूल खोला। आजाद भारत की सरकार ने उनके त्याग, बलिदान को भुला दिया और वे एक तरह से गुमनामी का जीवन जीती रहीं। और अतंतः 1999 को 92 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी।

भगत सिंह द्वारा जेल से दुर्गा भाभी को लिया अंतिम पत्र-

भगत सिंह द्वारा दुर्गा भाभी को सेन्टल जेल लाहौर से 22 मार्च 1931 को अंतिम पत्र लिखा गया। पत्र से हम सहज ही दुर्गा भाभी के महान क्रांतिकारी जीवन को देख सकते है। पत्र के कुछ अंश-

‘‘ ....मार्क्सवाद पर कुछ चुनींदा किताबें यों ही पड़ी रह गयी। अफसोस मैं उन्हें पढ़ न सका और फिर कभी पढ़ नहीं पाउंगा। मार्क्सवादी लिटरेचर में आपकी गहरी रुचि है। लेनिन पर भी कुछ बेहतरीन पुस्तकें हैं। आप इन्हें पढेंगी और अन्य क्रांतिकारियों में भी इन विचारों के प्रति रूचि जगायेंगी। भारत जैसे गरीब देश में समाजवाद की नितान्त आवश्यकता है।.....आदमी आता है जाता है पर संस्था बनी रहती है। ऐसोसिएशन का काम कदापि शिथिल नहीं होना चाहिए। ब्रिटिश सरकार से हमारी लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक भारत माता की गुलामी की बेड़ियां कट न जायें और समाजवादी सरकार की स्थापना न हो जाय.....’’

‘‘भाभी आप अपने को अकेली अवश्य महसूस करती होंगी पर अपने मिशन के साथ आम लोंगो के बीच जाएंगी तो आप देखेंगी आपके साथ हजारों हजार लोग हैं। आप बराबर सर्वहारा के लिए समर्पित रहेंगी। क्योंकि समाज में शोषण के सबसे ज्यादा शिकार वे ही होते हैं।....’’
                                                (वर्ष- 11 अंक- 2 जनवरी-मार्च, 2020)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें