हमारा कहना है
युवा और आम चुनाव
देश का युवा एक बार फिर से चर्चा में है क्यांकि मौका चुनाव का है। सरकार एक ढंग से तो विपक्ष दूसरे ढंग से युवा की बात कर रहे हैं। मोदी सरकार मुद्रा लोन, कौशल विकास आदि बातों को कह-बता रही है कि उसने युवाओं को क्या कुछ नहीं दिया। तो दूसरी तरफ विपक्ष सरकार को 2 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने का वादा याद दिलाकर इस क्षेत्र में सरकार की पूरी तरह विफलता की बात कह रहा है। कुछ ‘समझदार’ व्यवस्थापरस्त नेता, बुद्धिजीवी तो यहां तक कह रहे हैं कि युवाओं में बेरोजगारी का यह संकट भयंकर असंतोष को जन्म दे रहा है, जो कि हमारी व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है। पूंजीवादी नेताओं का झूठ, विलाप और चिंता युवाओं की दशा को ठीक से व्यक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
भाजपा सरकार ने बीते पांच साल शिक्षा में लगातार बजट कटौती की। शिक्षा पर जीडीपी का महज 0.47 ही खर्च किया जा रहा है। यह अति सूक्ष्म बजट साल दर साल कम होता जा रहा है। हां! चाटुकारिता की सारी हदें पार करते हुए बेहद हास्यास्पद ढंग से जियो यूनिवर्सिटी; को जो कि अभी खुली ही नहीं; को सबसे उत्कृष्ठ विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया। जिससे उसे विभिन्न तरीके से सरकारी धन उपलब्ध करवाया जा सके और मुकेश अम्बानी की दौलत को और अधिक बढ़ाया जा सके।
मोदी सरकार द्वारा शिक्षा के निजीकरण, भगवाकरण को बहुत तेजी से बढ़ाया गया है। स्मृति ईरानी ने इसे भौड़े ढ़ग से तो प्रकाश जावडे़कर ने इसे शातिर ढंग से आगे बढ़ाया है। पाठ्यक्रमों को पूंजीपतियों की छुद्र जरूरतों के हिसाब से ढाला गया। स्नातक कर रहे छात्रों को बाजार की जरूरत के हिसाब से अतिरिक्त पाठ्यक्रम करने को मजबूर किया गया। शोध छात्रों की सीटें कम करने तथा उनकी छात्रवृति में भारी कटौती की गयी। कालेज-कैम्पसों में छात्रों के जनवादी अधिकारों पर नित नये हमले किये गये। कालेज-कैम्पसों को संघी गुंडों के अड्डे में तब्दील किया जा रहा है। प्रगतिशील-जनवादी राजनीति करने वाले छात्रों का व उनके संघर्षों का तीखा दमन किया गया। वहीं दूसरी ओर संघी लम्पटों को कालेज प्रशासन, पुलिस सुरक्षा में गुंडागर्दी का खुला लाइसेंस दिया गया। शिक्षा प्राप्त करना और कालेज में खुले माहौल में बिना डर के शिक्षा हासिल करना पहले की तुलना में लगातार कठिन होता जा रहा है।
संघी लम्पटों और विभिन्न पदों में बैठे संघी बुद्धिहीन चिन्तकों द्वारा पाठ्यक्रमों में मौजूद नाम मात्र के प्रगतिशील मूल्यों, वैज्ञानिक-सामाजिक शोध सामग्री को चुन-चुन कर हटाया जा रहा है। ये पाठयक्रमों से हर उस चीज हो हटाने पर आमादा हैं जो इन्हें पंसद नहीं है। भाजपा द्वारा अपने छद्म राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के नाम पर ना सिर्फ छात्रों बल्कि पूरे संस्थान को ही निशाना बनाया गया। जेएनयू, एएमयू इसके बेहद तीखे उदाहरण हैं। शिक्षा के नाम पर दुनिया में मशहूर इन दोनों विश्व विद्यालयों को देश में देशद्रोहियों के कैम्प के तौर पर प्रचारित किया जा चुका है। किसी पिछडे़ कालेज में कई दफा एबीवीपी के छात्र नेता किसी घटना के होने पर जब उत्पात मचाते हैं तो जोर जोर से कहते हैं- ‘‘हम अपने कालेज को जेएनयू या एएमयू नहीं बनने देगें’’।
शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण के साथ-साथ आज देश के युवाओं के सामने बड़ा सवाल रोजगार पाने का है। मोदी सरकार ने बड़े-बडे़ वादे किये किन्तु यह सब ‘कौशल विकास’, ‘मुद्रा लोन’ और अंत में ‘पकोड़े बेचो’ तक आकर समाप्त हो गये। जब इन सब से भी बात नहीं बनी जो कि नहीं बननी थी तो झूठ-प्रपंच का सहारा लिया गया। जिसमें संघ-भाजपा माहिर है। समाज में यह झूठ प्रचारित किया गया कि बीते सालों में बहुत अधिक रोजगार पैदा हुआ। देश तेजी से विकास कर रहा है। पर आंकडे़ सच्चाई बयां कर रहे थे। तो मोदी सरकार ने बेरोजगारी से जुडे़ आंकड़ों को प्रकाशित करने पर ही रोक लगा दी। आंकडे़ बता रहे थे कि पिछले 45 सालों में मोदी सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक 6.1 रही है। आंकडे़ बता रहे हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में महज लगभग डेढ़ लाख रोजगार प्रतिवर्ष पैदा हुआ। इसके विपरीत लगभग 15 लाख पुराना रोजगार समाप्त हो गया। भारत में बेरोजगारी का आलम यह है कि लगभग हर टीवी चैनल जो चुनावी सर्वे कर रहे हैं उसमें लोग बेरोजगारी को सबसे प्रमुख मुद्दा बता रहे हैं। इस सब के बावजूद कोई भी दल युवाओं के रोजगार पर कोई वास्तविक योजना बताने को तैयार नहीं है। कांग्रेस कभी-कभी बेरोजगारों का दुखड़ा रो रही है। वह यह बताने को तैयार नहीं कि उसके शासन काल में बेरोजगारी क्यों थी? और उसकी सरकार आयी तो वह बेरोजगारी को कैसे समाप्त करेगी?
भाजपा तो राष्ट्रवाद का धुआं फैलाकर सारी समस्याओं को छिपा देना चाहती है। वह सिर्फ और सिर्फ देश की मजबूती की बात कह रही है। देश मजबूत रहना चाहिए भले ही करोड़ों लोग बेरोजगार घूमते रहें। ‘मजबूत प्रधानमंत्री’ चाहिए भले ही शिक्षा की हालात खस्ता हो जाये। मजबूत देश या मजबूत सरकार तब नहीं हो सकते जब तक देश की जनता कमजोर व गरीब है। हां! यदि देश से मतलब पूंजीपतियों के देश से है तो मजबूत सरकार के कुछ और ही मायने होंगे। और ये जो भी मायने होंगे वह आम युवाओं, मेहनतकशों के लिए खतरनाक होंगे। पूंजीपतियों की मजबूत सरकार के मायने मजबूत डंडा जो देश के मेहनतकशों बेरोजगारों के सिर पर पडे़गा।
देश के युवाओं को मौजूदा समय में मजबूत सरकार नहीं बल्कि मजदूरों-किसानों की व्यवस्था का नारा बुलंद करना चाहिए। कहना चाहिए कि पूंजीवाद नहीं समाजवाद चाहिए। समाजवादी सराकर ही हर नौजवान को उसकी योग्यतानुसार काम की पूरी गारंटी कर सकती है। जो हर बच्चे को पूर्ण बराबरी के साथ निशुल्क, वैज्ञानिक शिक्षा दे सकती है।
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