‘‘रेडियम महिला’’
-नीलम
विज्ञान और ईश्वर में यदि अन्तर किया जाए तो वह इतना ही होगा कि ब्रह्माण्ड में जिन क्रियाओं के घटित होने को हम जानते हैं वह विज्ञान है तथा जिनके घटित होने को हम नहीं जानते वह ईश्वर है। विज्ञान के निरंतर विकास ने ईश्वर का स्थान क्रमशः कम किया है और विज्ञान पर लोगों के विश्वास को भी बढ़ाया। विज्ञान के विकास की कड़ी हैं हमारे वैज्ञानिकों की लम्बी फेहरिस्त। महिला वैज्ञानिक के रूप में सर्वत्र चमकदार नाम मैडम क्यूरी का नजर आता है। जिन्होंने, उस समय जब महिलाओं को पढ़ने की मनाही थी तब आर्वत सारणी में कुछ पदार्थों की उत्पत्ति की खोज कर दी थी।
मैडम क्यूरी के बचपन का नाम मान्या था। इनका जन्म 1867 की 7 नवम्बर को हुआ था। मान्या की तीन बहनें तथा एक भाई था। मान्या के पिता का नाम व्लादिस्लाव स्कलोडोव्स्की था जो कि एक विद्यालय में मास्टर थे। मां मादाम स्कलोडोव्स्का वारसा नगर में लड़कियों के स्कूल में प्रधान अध्यापिका थीं।
उस वक्त पोलैंड रूस के जार के अधीन था जहां लड़कियों के कुछ विद्यालय थे जो कि कुछ उत्साही महिलाओं द्वारा चलाए जाते थे। लेकिन विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई के लिए पोलैण्ड में कोई साधन नहीं था। स्कूली शिक्षा के दौरान ही मान्या की मां का तपेदिक की बीमारी के कारण देहान्त हो चुका था तथा उसकी बड़ी बहन भी टाइफस की बीमारी से चल बसी। कठिन परिस्थितियों व निर्धनता में स्कूली शिक्षा गुजारने के बाद अब सवाल था विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई का जो कि पोलैण्ड में रहते संभव नहीं थी। अतः मान्या व उसकी बड़ी बहन ने पेरिस जाकर पढ़ने का निश्चय किया।
1891 में मान्या यानी ‘ मारी स्कलोडोव्स्का’ ने सोरबान विश्वविद्यालय पेरिस के विज्ञान विभाग में दाखिला लिया। यूनिवर्सिटी में मारी प्रथम स्थान में उत्तीर्ण हुई थी तथा स्कालरशिप से मारी की आगे की पढ़ाई शुरु हो पायी थी। पढ़ाई के दौरान ही मारी की मुलाकात विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर पियरे क्यूरी से हुई जो कि विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला में सहायक पद पर नियुक्त थे। इसी दौरान मारी व पियरे ने विवाह कर लिया तथा दोनों ने फ्रांस में ही रहने का निर्णय लिया। अब मारी व पियरे का सम्पूर्ण समय अपनी प्रयोगशाला में ही व्यतीत होता था।
विश्वविद्यालय स्तर की परीक्षाएं समाप्त होने के तुरन्त बाद मारी ने पहली पुत्री इरीन को जन्म दिया। अब मारी के सामने थी डाक्टरेट की उपाधि। जिसके लिए किसी नयी चीज का शोध आवश्यक था तथा मारी के लिए समस्या थी किस विषय को शोध के लिए चुने।
इन्हीं दिनों वैज्ञानिक हेनरी बेकेरल ने एक लेख ‘एक्स रेज’ यानी ‘रंतजन किरणों’ के बारे में लिखा था तथा उन्होंने इन अदृश्य किरणों की खोज की थी पर इन किरणों के स्वभाव और उत्पत्ति के बारे में अधिक जानकारी दुनिया को नहीं थी। मारी को अपने शोध के लिए विषय मिल चुका था। इन शोध कार्यों में मारी की सहायता की पियरे क्यूरी ने। विश्वविद्यालय से मिले एक कमरे में मारी व पियरे घण्टों शोध करते रहते। उन्होंने देखा कि थोरियम से भी इस तरह की किरणें निकलती हैं। इस सिद्धान्त को उन्होंने नाम दिया ‘रेडियोएक्टिवता’। प्रयोगों द्वारा मेरी ने पाया कि कुछ ऐसी चीज जरूर है जो यूरेनियम व थोरियम से अधिक शक्तिशाली है व रेडियोएक्टिवता इसी के कारण है। अब उनका काम था उस वस्तु को एकत्र करना जिसमें रेडियोएक्टिवता है तथा फिर उसमें एक अंजानी चीज की उत्पत्ति करना। इस प्रकार मेरी ने ‘पिंचब्लेड’ एक प्रकार के खनिज से एक रेडियोएक्टिव तत्व को अलग कर लिया। इसका नाम मारी ने गुलाम पोलैण्ड को सोचकर ‘पोलोनियम’ (1898) रखा।
सन् 1902 में तीन साल नौ महीने बाद मारी व पियरे ने शोध करते हुये पिंचब्लेड के कुछ अंश से चमकते कण पाए, जिसका नाम इन्होंने रेडियम रखा। रेडियम के अविष्कार ने सम्पूर्ण विज्ञान जगत में एक नई क्रांति ला दी थी। मूल तत्व सदा एक जैसे रहते हैं विज्ञान की इस धारणा को रेडियम ने विफल कर दिया था। रेडियोएक्टिविटी के कारण ये तत्व दूसरे तत्वों में बदल जाते हैं। यह कहानी थी ‘रेडियम महिला’ के बनने की।
1903 में पियरे क्यूरी, मैडम क्यूरी को संयुक्त रूप से हेनरी बेकरल के साथ भौतिकी का नोबेल पुरुस्कार प्रदान किया गया। फ्रांस की उस युनिवर्सिटी में महिलाओं को नौकरी देने की प्रथा नहीं थी, परन्तु मारी की योग्यता ने इन सब पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसी बीच मारी व पियरे को दूसरे सन्तान के रूप में बेटी ईव का अवतरण हुआ। एकाएक 1906 की एक शाम पियरे क्यूरी की एक रोड दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। पियरे की मृत्यु के बाद विश्वविद्यालय द्वारा मारी क्यूरी को पदार्थ विज्ञान विभाग का भार सौंपा गया। विद्यालय में इससे पहले किसी महिला को इतना ऊंचा पद नहीं दिया गया था। मारी के पहले आख्यान को सुनने के लिए विज्ञान जगत, फिल्म जगत तथा मीडिया जगत के अनेक लोगों द्वारा सोरबान विश्वविद्यालय का हॉल खचाखच भरा था। मैडम क्यूरी ने इस ऐतिहासिक आख्यान को वहीं से शुरु किया जहां पियरे क्यूरी छोड़कर गये थे। 1919 में मैरी क्यूरी को पुनः रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरुस्कार दिया गया। मैडम क्यूरी ऐसी पहली व्यक्ति थीं, जिन्हें दो अलग-अलग क्षेत्रों में नोबल पुरुस्कार मिला।
इसी समय 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध का आरम्भ हो गया। मैरी क्यूरी द्वारा खोजे गये रेडियम का प्रयोग अब विशाल स्तर पर चिकित्सा विभाग में होने लगा था। एक्स किरणों द्वारा हड्डियों का चित्र खींचा जाने लगा। कैंसर के उपचार में भी रेडियम का उपयोग होने लगा था। प्रथम विश्वयुद्ध के समय युद्ध पीड़ितों के लिए मैडम क्यूरी ने महिला संघ के सहयोग से ‘‘एक्स रे वैन’’ का निर्माण किया जो कि युद्ध स्थल पर जाकर घायलों का एक्स-रे खींचता था।
मैडम क्यूरी व पियरे क्यूरी ने रेडियम बनाने की विधि को कभी भी पेटेंट नहीं करवाया। उनके विचार से रेडियम का प्रयोग हर आवश्यक क्षेत्र में हर कोई कर पाए। 1920 के दौरान ही एक ऐसी स्थिति भी आ गयी थी कि मैडम क्यूरी के पास खुद रेडियम नहीं बचा तथा फिर अमेरिका की जनता ने मैडम क्यूरी को रेडियम खरीदने में सहायता प्रदान की। रेडियम के बहुत अधिक सम्पर्क में रहने के कारण मारी क्यूरी के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। उनकी आंखों की ज्योति धीरे-धीरे जाती गयी। अंततः रेडियम ही मारी क्यूरी के मृत्यु का कारण बना। रेडियम के प्रभाव के कारण ही मैडम क्यूरी के शरीर में रक्त की कमी हो गयी जो कि उनकी मृत्यु का कारण बना।
मैडम क्यूरी की डायरी जो कि एक म्यूजियम में रखी गयी है। आज भी इतनी रेडियोएक्टिव है कि उसे शीशे की मोटी परत के बीच रखना पड़ा है।
एक ऐसे समय में जब महिलाएं स्वयं को जानने की जद्दोजहद से कहीं परे थी उस समय पर मैडम क्यूरी विज्ञान जगत में एक अभूतपूर्व सितारे की तरह उदित हुयी। और आज वे न केवल विज्ञान के क्षेत्र में न केवल महिला मुक्ति के अभियान में बल्कि सारी मानवता के लिए मिसाल हैं। अपनी प्रतिभा, अपनी मेहनत, अपनी ध्येय के प्रति लगन, अपने ध्येय के प्रति समर्पण के कारण हम सबके लिए अनुकरणीय हैं।
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