आगामी लोकसभा चुनाव
नया कुछ भी नहीं फिर से विकल्पहीनता
-कविता
लोकसभा चुनाव सन्निकट हैं। राजनीतिक दलों के बीच आपसी आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गये हैं। हर तरफ ‘मैं सच्चा-तू झूठा’ का शोर है। गठबंधनों के बनने-बिगड़ने का खेल शुरु हो गया। हर नेता, हर दल सत्ता सुख का आनन्द के लिए अपनी जोड़-गणित लगा रहा है। इस पाले, उस पाले को तोल-मोल कर देख रहा है। इस विशुद्ध सत्ता की लड़ाई को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जनता को समझाया जा रहा है कि हमारा अवसरवाद आपके हित में है। आप ही की खातिर हम नेता गण यह मेहनत कर रहे हैं। जनता का एक बड़ा हिस्सा तो इस पूरे नाटक को बेहद उबाऊ ढंग से देख रहा है। तो एक हिस्सा इस अखाड़े में लड़ते पहलवानों की कुश्ती देख मनोरंजन कर रहा है। तो कई लोग कांग्रेस-भाजपा के तर्क-कुतर्क के बीच झूल रहे हैं। कांग्रेस कह रही है भाजपा ने पांच सालों में कुछ नहीं किया तो भाजपा कह रही है कांग्रेस ने 60 सालों में कुछ नहीं किया। कांग्रेस कह रही है भाजपा ने खूब भ्रष्टाचार किया तो भाजपा कह रही है कांग्रेस ने 60 सालों में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार किया। और दोनों के एक-दूसरे पर आरोप सही हैं।
इस पूरे माहौल में सबसे पहले मोदी सरकार के पांच साल को देखते हैं। पूरे पांच सालों में भाजपा ‘चुनावी मोड’ पर रही। हर छोटे-बड़े चुनावों में प्रधानमंत्री की धुआंधार रैलियां आयोजित हुई। मोदी द्वारा विदेश यात्राओं का सैकड़ा मारने के बावजूद विदेशी निवेशक भारत से दूर ही रहे। मोदी सरकार के दौरान योजनाओं को उन्मादी ढंग से पेश किया जाता रहा। एक समय में एक योजना लागू कर उसका जबरदस्त प्रचार किया जाता। योजना का एक बड़ा हिस्सा तो प्रचार इत्यादि में खर्च कर दिया जाता। हर योजना में मोदी के बड़े-बड़े प्रचार होर्डिंग, विज्ञापन; शहर, टी.वी., अखबारों में; छाये रहते हैं। एक योजना के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी योजना में यही सब दोहराया जाता।
स्वास्थ्य, रोजगार, विद्युतिकरण, स्वच्छता की योजनाएं कागजी घोषणायें साबित हुई। वहीं दूसरी ओर पूरे पांच साल अंधराष्ट्रवाद, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल प्रमुखता से छाये रहे। भाजपा नेता अंधराष्ट्रवादी माहौल में इतने अंधे हो गये कि वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को पाकिस्तान समर्थक या देशद्रोही कहने लगे। चुनाव में भाजपा नेता को वोट ना देने या मोदी विरोध करने वालों तक को पाकिस्तान समर्थक घोषित किया जाता रहा।
कभी ‘लव जिहाद’, कभी ‘गौरक्षा’ तो कभी ‘राममंदिर’ के नाम पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा किया जाता रहा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हिन्दुओं के पौराणिक देवता हनुमान को भी चुनावी राजनीति में खींच लाया गया। बेचारे हनुमान जी की जात तय करने लगे। इन सब कारणों से समाज में फैले उन्माद और संघी लम्पट गिरोहों के ऊंचे हौंसलों के कारण कई लोगों को भीड़ द्वारा अफवाह फैलाकर मार डाला गया। ‘मॉब लिंचिंग’ में लम्पटों द्वारा कम उम्र के नौजवान से लेकर अधेड़-बुजुर्ग लोग मारे गये।
कुछ भाजपा नेता कह रहे हैं कि 2019 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जायेगा। किन्तु विकास या तो ‘पगला’ गया है या हुआ ही नहीं। तो फिर चुनाव किस आधार पर लड़ा जायेगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक इंटरव्यू में कहा कि चुनाव कभी भी विकास के आधार पर लड़कर नहीं जीता जा सकता। चुनाव आर.एस.एस. के धार्मिक एजेण्डे के दम पर लड़कर जीता जा सकता है। भाजपा-संघ की आज की तैयारियां साफ बताती हैं कि 2019 चुनाव में घोर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किया जायेगा।
भाजपा-संघ जानते हैं कि पिछले चुनाव में जनता को दिखाये सब्जबाग का क्या हस्र हुआ है। ‘अच्छे दिन’, ‘2 करोड़ रोजगार’, ‘15 लाख खाते में’ आदि-आदि बातें कोरा झूठ साबित हो गयी हैं। एक समय बाद तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को स्वयं कहना पड़ गया कि ये बातें जुमला थी। जो चुनाव के समय गढ़ा गया था। अब इस चुनाव में तो इससे भी ऊंचे सब्जबाग दिखाने होंगे। पर जनता उन पर क्यों और कैसे विश्वास करेगी। इसीलिए भाजपा अपनी चिर-परिचित राह ही पकड़ेगी यानी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, साम्प्रदायिक उन्माद, दंगे की। निश्चित ही यह स्थिति देश के मेहनतकश के लिए ठीक नहीं। उसकी एकता को यह कमजोर करती है। जनता की वास्तविक मांगों को पीछे धकेलकर यह समाज को हिन्दू-मुसलमान में बांट देती है।
दूसरी ओर तीन राज्यों में मिली जीत के बाद कांग्रेस काफी उत्साह में है। कांग्रेस द्वारा 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर किसानों के कर्ज माफ सहित कई लोक लुभावन कदम उठाये। कांग्रेस भाजपा पर हमलावर है। यह भाजपा को निकम्मा और खुद को वादा निभाने वाली जिम्मेदार पार्टी घोषित कर रही है। यह अपने कामों पर खुद की पीठ थपथपाकर वाह-वाह कर रही है।
कांग्रेस जानती है कि वह चुनाव में भाजपा को बिना गठबंधन बनाकर नहीं हटा सकती। इसलिए गठबंधन के प्रयास तेज हो गये हैं। मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह गठबंधन के मंच बन गये हैं। मीडिया भी मुख्यमंत्री की शपथ को कम और मंच पर गठजोड़ को ज्यादा दिखा रहा है। कांग्रेस चाहती है कि गठबंधन के सभी दल राहुल गांधी को अपना नेता मान लें। किन्तु दल अभी ‘वेट एण्ड वाच’ की नीति पर हैं। वे चुनाव परिणाम में सीटों की जोड़-गणित के बाद यह सब तय करना चाहते हैं। क्योंकि हर किसी को देवगौड़ा के समान प्रधानमंत्री बनने की लालसा है। हर कोई ‘बिल्ली के भाग का छींका’ अपने सामने ही टूटा देख रहा है।
60 साल शासन चलाने का लम्बा अनुभव और पूंजीपति वर्ग की चहेती पार्टी कांग्रेस रही है। पिछले समय में कांग्रेस की छिछालेदार हुई और राहुल गांधी की पप्पू की छवि बनी थी। धूर्त पूंजीपति वर्ग ने राहुल गांधी को फिर से उभारना शुरु कर दिया है। पिछले एक वर्ष में मोदी की लोकप्रियता घटी और राहुल की लोकप्रियता बढ़ी है। पूंजीपति वर्ग जानता है यदि भविष्य में ‘मोदी ब्रांड’ पिट जायेगा तो ‘राहुल ब्रांड’ ऐसा होना चाहिए जिसे लोग अपना सके।
फिलहाल पूंजीपति वर्ग द्वारा ‘मोदी ब्रांड’ को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। 2014 में उसने भाजपा-संघ पर विश्वास किया और विश्वास के अनुरूप भाजपा ने पूंजीपति वर्ग की सेवा में दिन-रात एक भी किये। हालांकि वह भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से नहीं निकाल पायी। किन्तु उसने बैंक लोन, श्रम कानूनों की समाप्ति आदि ऐसे कदम उठाये जिससे पूंजीपति वर्ग उससे खुश ही हैं। पूंजीपति वर्ग लम्बे समय से संघ के फासीवादी विचारों को पालता-पोसता रहा है। आज भाजपा-संघ को सत्ता मिलने के बाद इन विचारों को पर्याप्त खुराक मिल रही है। ये विचार समाज में तेजी से जड़ जमा रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी भी उग्र हिन्दुत्व के स्थान पर नरम हिन्दुत्व की राजनीति कर रही है। यह भी हर किस्म के धार्मिक पाखंड को अपना रही है। पिछले चुनाव में दिखा कि भाजपा ने जितने मंदिरों में मत्था टेका कांग्रेस ने उससे ज्यादा मत्था टेका। इस सबसे कांग्रेस उदार हिन्दू वोट हासिल करना चाहती है। भाजपा का भय दिखाकर वह अल्पसंख्यकों का भी वोट हासिल करना चाहती है। इसीलिए कांग्रेस को भाजपा-संघ के फासीवाद से कोई मतलब नहीं। यह इसके लिए कोई चुनौती नहीं बनता। तीन राज्यों में चुनाव के बाद तो राहुल गांधी ने कह भी दिया कि वे ‘‘भाजपा मुक्त भारत नहीं चाहते।’’ धूर्तता में माहिर कांग्रेस बखूबी समझती है कि जिस तरह कांग्रेस पूंजीपति वर्ग की जरूरत है उसी तरह भाजपा भी है। कांग्रेस से मोहभंग होगा तो जनता भाजपा और भाजपा से मोहभंग होगा तो कांग्रेस की तरफ। 5-10 साल एक का शासन 5-10 साल दूसरे का शासन। यही सिलसिला चलता रहे और पूंजीवाद सुरक्षित रहे।
जनता के सामने आगामी चुनाव में वही विकल्प है जो पहले था एक सांपनाथ-दूसरा नागनाथ। जब तक हम सरकार बदलने तक ही अपने को सीमित रखेंगे तब तक हम चुनें कुछ भी शासक पूंजीवादी पार्टी ही रहेगी। हमें सरकार नहीं इस पूंजीवादी व्यवस्था को बदलने के लिए एक होना होगा। पूंजीवादी व्यवस्था का नाश ही मेहनतकशों को इन सांपनाथ-नागनाथ से मुक्ति दे सकता है। पूंजीवादी व्यवस्था का नाश ही मेहनतकशों के जीवन में खुशहाली ला सकता है। पूंजीवाद और पूंजीवादी नेता तो उनके जीवन में दुःख-दर्द के अलावा कुछ नहीं दे सकते।
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